11/13/2021

MS08 मोक्ष-दर्शन || मोक्ष संबंधी आवश्यक सभी बातों की स्टेप बाय स्टेप जानकारी की पुस्तक

मोक्ष-दर्शन एक परिचय

     प्रभु प्रेमियों ! ' सत्संग - योग ' की भूमिका में सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज शुरू में ही लिखते हैं - "सत्संग द्वारा श्रवण - मनन से मोक्षधर्म - सम्बन्धी मेरी जानकारी जैसी है , उसका ही वर्णन चौथे भाग में मैंने किया है । परमात्मा , ब्रह्म , ईश्वर , जीव , प्रकृति , माया , बन्ध मोक्षधर्म वा सन्तमत की उपयोगिता , परमात्म भक्ति और अन्तर - साधन का सारांश साफ - साफ समझ में आ जाय इस भाग के लिखने का हेतु यही है । "


मोक्ष-दर्शन

मोक्ष प्राप्ति क्या होता है? मोक्ष प्राप्ति का भावार्थ क्या है? 

     प्रभु प्रेमियों  ! "कल्याण - पाद महर्षिजी ने वेद - काल से लेकर आजतक के मोक्ष - दर्शन को चार प्रकोष्ठों में प्रतिष्ठित किया है और उसका नाम रखा है- ' सत्संग - योग , चारो भाग ' और उनके अनुभव ज्ञान की वाणियाँ गम्भीर सरलता में अभिव्यक्त होकर ' मोक्ष - दर्शन ' नाम धारण कर आज मुमुक्षुजनों में अमृत - वितरण के लिए प्रस्तुत है ।" प्रकाशक (मोक्ष-दर्शन) 

     "सामान्यतः ' मैं हूँ ' का ज्ञान मनुष्य को स्वतः होता है । उसको यह जानने में कठिनाई नहीं होती कि वह शारीरिक , मानसिक और सांसारिक बंधनों एवं विकारों से जकड़ा हुआ है । परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता रहित होने के कारण वह शांतिमय सुख से वंचित रहता है । इस हेतु उपर्युक्त बंधनों , विकारों एवं कष्टों से छूटने तथा आत्म - स्वतंत्रता का शांतिमय स्थिर सुख लाभ करने का ज्ञान और उसकी युक्ति उसे अवश्य प्राप्त करनी चाहिए , जो संतों के संग और उनकी सेवा के सिवाय अन्य कहीं से प्राप्त होने योग्य नहीं है ।" 

     मोक्ष - संबंधी पर्याप्त ज्ञान के हेतु मैंने वेदार्थ * , उपनिषद् , संतवाणी तथा अन्यान्य सद्ग्रंथों का अध्ययन किया । श्रीसद्गुरु महाराजजी का संग तो था ही , इसके अतिरिक्त यत्र - तत्र भ्रमण करके मैंने अन्य महात्माओं का भी सत्संग किया । वर्णित सद्ग्रंथों में से मोक्ष - विषयक सद्ज्ञान का संग्रह कर उसे तीन भागों में विभक्त कर दिया । 

     सत्संग , अध्ययन और वर्षों के साधनाभ्यास की अनुभूतियों से जो कुछ मेरी जानकारी में आया - जैसा कुछ मुझे बोध हुआ , उन सबको अपने वाक्यों में गठित कर मैंने चौथे भाग का निर्माण किया । पश्चात् चारो को मिलाकर उस बृहत् पुस्तक का नाम मैंने ' सत्संग योग ' रखा । ' सत्संग - योग ' के चौथे भाग में यत्र - तत्र प्रमाण स्वरूप कुछ संतों की वाणियाँ भी दी गयी हैं । ईश्वर , जीव , जगत् , जीव का बंध और मोक्ष , मोक्ष- मार्ग पर चलने का सहारा और उसकी युक्ति प्रभृति मोक्ष - विषयक जिन बातों का ज्ञान मनुष्य को अनिवार्य रूप से होना चाहिए , वह समस्त ज्ञान इस चौथे भाग में है । 

मुक्ति का मार्ग कौन सा है? 

     विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा अवश्य ही भारत अधिक अध्यात्म भावापन्न देश है । वैदिक काल को अनेक विद्वान् विचारक अध्यात्म का स्वर्णिम काल कहकर उद्घोषित करते हैं ; क्योंकि उस समय जन - जीवन बड़ा ही शांतिमय और सुखद था और ऋषि - मुनियों की तपस्या के पुनीत तेज से सारा समाज आच्छादित सा था । उस दिव्य काल के शीर्षस्थ ऋषि या शांति प्राप्त संतजन की हार्दिक अभिलाषा थी - ' सभी सुखी हों और रहें , सभी आरोग्यमय जीव बिताएँ , सभी सर्वजीवों के लिए भद्र - शुभ - कल्याण ही देखें अर्थात् केवल सर्वकल्याण के लिए ही सांसारिक कर्तव्य करें और किसी को भी किसी प्रकार के दुःख की प्राप्ति न हो । ' , तपः तेज से उत्प्राणित वाणी का प्रभाव और दबाव उस समय अवश्य ही छाया हुआ था , पर इसी के अंतराल में महामाया क मोहकारिणी लीला भी संचरित थी । 

मोक्ष प्राप्ति के कितने उपाय है

     अपनी जाति , अपना शासन - क्षेत्र , अपनी भाषा , अपना रीति - रिवाज आदि संकीर्णताओं या सीमा विभेद करनेवाली वृत्तियों की संख्या बढ़ती गयी । धर्मतत्त्व की नैसर्गिक अखण्डता को भी छद्मजाल से भेदों और खण्डों में दिखाया जाने लगा । वशिष्ठ और विश्वामित्र के काल से लेकर आजतक माया की इस छद्मलीला से सुबुद्ध जन अपरिचित नहीं है । महामानव बुद्धदेव ने इस कपट को पहचाना और इसका संवेधन किया । इसीलिए बुद्धकाल को हम मानवता के कल्याण - विस्तारण का ' हीरक काल ' कहकर बोध ले सकते हैं । 

     एक दिन पूज्यपाद महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने अपना हार्दिक भाव इन शब्दों में व्यक्त किया था - ' जिसको कोई नहीं पूछता- कोई पूछनेवाला नहीं है , ऐसा -व्यक्ति जब मेरे पास दीक्षा - भजन - भेद लेने आता है , तो आनन्द से मेरा हृदय परिपूर्ण हो जाता है । ' इन वाणियों की ऊर्जस्वित सर्वजन - कल्याण - भावना , ऐसा लगता है , जैसे मानव समाज के सारे कलुषित आवरणों को अपने अदम्य शक्तिशाली विस्फोट से चूर्ण - विचूर्ण कर विश्व भर में छा जाने के लिए आतुर - आकुल हो । इसीलिए उनके अन्तर से प्रस्फुटित यह वाणी अपने मंगल- निनाद को ऊँचे - से - ऊँचे उठाये जा रही है - जितने मनुष तनधारि हैं , प्रभु भक्ति कर सकते सभी । अन्तर व बाहर भक्ति कर , घट - पट हटाना चाहिए । 

 मोक्ष प्राप्ति के साधन कलयुग में

     कल्याण - पाद महर्षिजी ने वेद - काल से लेकर आजतक के मोक्ष - दर्शन को चार प्रकोष्ठों में प्रतिष्ठित किया है और उसका नाम रखा है- ' सत्संग - योग , चारो भाग ' और उनके अनुभव ज्ञान की वाणियाँ गम्भीर सरलता में अभिव्यक्त होकर ' मोक्ष - दर्शन ' नाम धारण कर आज मुमुक्षुजनों में अमृत - वितरण के लिए प्रस्तुत है ।


मोक्ष-दर्शन



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मोक्ष-दर्शन

सूची पत्र 

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      प्रेमियों  ! मोक्ष दर्शन पुस्तक से आप निम्नलिखित सभी प्रश्नों के उत्तर के साथ ही साथ और भी मोक्ष संबंधित  बातों के बारे  जानेगे  . प्रश्न- मोक्ष कब मिलता है? मोक्ष प्राप्ति क्या होता है? धर्मशास्त्र में मोक्ष को क्या कहा जाता है ? मुक्ति का मार्ग कौन सा है? मोक्ष प्राप्ति के साधन कलयुग में ? भगवत गीता के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग कौन सा है? मोक्ष प्राप्ति के कितने उपाय है? मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं? आत्मा को मोक्ष कब मिलता है ? मोक्ष मिलने के बाद क्या होता है? आदि बातें.

      इतना सारा जानकारी प्राप्त करने के बाद आप अवश्य ही  खरीदना चाहेंगे और इसे अभी अवश्य मंगा ले क्योंकि स्टौक सीमित मात्रा में प्रकाशित होती है. स्टॉक कब समाप्त हो जाएगा कोई पता नहीं रहता है -


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       प्रभु प्रेमियों ! आप लोगों के जानकारी के लिए बता दें कि यह सत्संग योग का चतुर्थ भाग है  इसकी  विशेषता के कारण इसे अलग से प्रकाशित किया गया है.

सत्संग योग चारों भाग
सत्संग योग (चारो भाग) 
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मोक्ष-दर्शन पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है और इसका एक शब्दकोश भी है-


मोक्ष-दर्शन शब्द कोष
मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

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सद्गुरु महर्षि मेंहीं साहित्य सुमनावली


सदगुरु महर्षि मेंहीं
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MS01 . सत्संग - योग ( चारो भाग )   MS02 . रामचरितमानस - सार सटीक,   MS03 . वेद दर्शन - योग,   MS04 . विनय - पत्रिका - सार सटीक,  MS05 . श्रीगीता - योग - प्रकाश, भारती (हिन्दी),  MS05a . श्री गीता-योग-प्रकाश   (अंग्रेजी अनुवाद),    MS06 . संतवाणी सटीक   MS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली   MS08 . मोक्ष दर्शन भारती (हिन्दी), MS08a . मोक्ष दर्शन अंग्रेजी अनुवाद,  MS09 . ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर भक्ति ,   MS10 . ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति, .  MS11 . भावार्थ - सहित घटरामायण - पदावली ,   MS12  .  सत्संग - सुधा , प्रथम भाग,   MS13. सत्संग सुधा , द्वितीय भाग,  MS14 . सत्संग - सुधा , तृतीय भाग,   MS15 . सत्संग - सुधा , चतुर्थ भाग,   MS16. राजगीर हरिद्वार दिल्ली सत्संग,  MS17 . महर्षि मेंहाँ - वचनामृत , प्रथम खंड,   MS18 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 1,   MS19 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 2,



     प्रभु प्रेमियों !  मोक्ष-दर्शन  के उपर्युक्त विवेचन से हमलोगों ने जाना कि भक्त कवि लेखक विचारक ने इस ग्रंथ को लिखकर हमलोंगों का बड़ा उपकार किया है।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त पुस्तक की झांकी दिखाई गई है। उसे भी अवश्य देखें, सुनें।



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