मोक्ष दर्शन (11-22) जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, ईश्वर, जीव और अनात्मा का वर्णन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
सत्संग योग भाग 4 (मोक्ष दर्शन) / 02
प्रभु प्रेमियों ! भारतीय साहित्य में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों और प्राचीन-आधुनिक पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों को संग्रहित करकेे प्रमाणित किया गया है कि सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों में एकता है। 'सत्संग योग' नामक इस पुस्तक के चौथे भाग में इन्हीं विचारों के आधार पर और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अपनी साधनात्मक अनुभूतियों के आधार पर, मनुष्यों के सभी दुखों से छूटने के उपायों का वर्णन किया गया है। इसे 'मोक्ष दर्शन' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मोक्ष से संबंधित बातों को अभिव्यक्त् करने के लिए पाराग्राफ नंंबर दिया गया हैैैै । इन्हीं पैराग्राफों में से कुुछ पैराग्राफों के बारे में जानेंगेेेे । इसे समझने के पहले आइए सन्त-सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के दर्शन करें।
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जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, ईश्वर, जीव और अनात्मा का वर्णन
प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष-दर्शन के पाराग्राफ संख्या 11-22 तक में जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, ईश्वर, जीव और अनात्मा का वर्णन किया गया है तथा परमात्मा कैसा है, चेतन प्रकृति कैसा है, जड़ात्मक मूल प्रकृति किसे कहते हैं, ईश्वर अनंत हैैैै और जीव भी, ईश्वर और जीव में क्या अंतर है, आत्मतत्त्व और अनात्मतत्त्व क्या है, अनात्मतत्त्व का महत्व, आच्छादन - मण्डल किसे कहते हैं, इत्यादि बातों के बारे में भी बताया गया है। इन बातों को निम्न पाराग्राफों में समझिये-
मोक्ष दर्शन (11-22)
( ११ ) अपरा ( जड़ ) और परा ( चेतन ) ; दोनों प्रकृतियों के पार में अगुण और सगुण पर , अनादि - अनंतस्वरूपी , अपरम्पार शक्तियुक्त , देशकालातीत , शब्दातीत , नाम - रूपातीत , अद्वितीय ; मन , बुद्धि और इन्द्रियों के परे जिस परम सत्ता पर यह सारा प्रकृतिमण्डल एक महान् यंत्र नाईं परिचालित होता रहता है ; जो न व्यक्ति है और न व्यक्त है , जो मायिक विस्तृतत्व - विहीन है , जो अपने से बाहर कुछ भी अवकाश नहीं रखता है , जो परम सनातन , परम पुरातन एवं सर्वप्रथम से विद्यमान है , संतमत में उसे ही परम अध्यात्म - पद वा परम अध्यात्म - स्वरूपी परम प्रभु सर्वेश्वर ( कुल्ल मालिक ) मानते हैं ।
( १२ ) परा प्रकृति वा चेतन प्रकृति वा कैवल्य पद त्रय गुण - रहित और सच्चिदानन्दमय है और अपरा प्रकृति वा जड़ात्मक प्रकृति त्रय गुणमयी है ।
( १३ ) त्रय गुण के सम्मिश्रण - रूप ( सम - मिश्रण - रूप ) को जड़ात्मक मूल प्रकृति कहते हैं ।
( १४ ) परम प्रभु सर्वेश्वर व्याप्य अर्थात् समस्त प्रकृति - मण्डल में व्यापक हैं ; परन्तु व्याप्य को भरकर ही वे मर्यादित नहीं हो जाते हैं । वे व्याप्य के बाहर और कितने अधिक हैं , इसकी कल्पना भी नहीं हो सकती ; क्योंकि वे अनन्त हैं ।
( १५ ) परम प्रभु सर्वेश्वर अंशी हैं और ( सच्चिदानन्द ब्रह्म , ॐ ब्रह्म और पूर्ण ब्रह्म , अगुण एवं सगुण आदि ) ब्रह्म , ईश्वर तथा जीव , उसके अटूट अंश हैं ; जैसे मठाकाश , घटाकाश और पटाकाश महदाकाश के अटूट अंश हैं ।
( १६ ) प्रकृति के भेद - रूप सारे व्याप्यों के पार में , सारे नाम - रूपों के पार में और वर्णात्मक , ध्वन्यात्मक , आहत , अनाहत आदि सब शब्दों के परे आच्छादन - विहीन शान्ति का पद है , वही परम प्रभु सर्वेश्वर का जड़ातीत , चैतन्यातीत निज अचिन्त्य स्वरूप है , और उसका यही स्वरूप सारे आच्छादनों में भी अंश - रूपों में व्यापक है , जहाँ आच्छादनों के भेदों के अनुसार परम प्रभु के अंशों के ब्रह्म और जीवादि नाम हैं । अंश और अंशी , तत्त्व - रूप में निश्चय ही एक हैं ; परन्तु अणुता और विभुता का भेद उनमें अवश्य है , जो आच्छादनों के नहीं रहने पर नहीं रहेगा ।
( १७ ) परम प्रभु के निज स्वरूप को ही आत्मा वा आत्मतत्त्व कहते हैं ; और इस तत्त्व के अतिरिक्त सभी अनात्मतत्त्व हैं ।
( १८ ) आत्मा सब शरीरों में शरीरी वा सब देहों में देही वा सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ है ।
( १९ ) शरीर वा देह वा क्षेत्र , इसके सब विकार और इसके बाहर और अन्तर के सब स्थूल - सूक्ष्म अंग - प्रत्यंग अनात्मा हैं ।
( २० ) परा प्रकृति , अपरा प्रकृति और इनसे बने हुए सब नाम - रूप - पिण्ड , ब्रह्माण्ड , स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य ( जड़ - रहित चेतन वा निर्मल चेतन ) ; सब - के - सब अनात्मा हैं ।
( २१ ) अनात्मा के पसार को आच्छादन - मण्डल कहते हैं ।
( २२ ) आच्छादन - मण्डलों के केवल पार ही में परम प्रभु सर्वेश्वर के निज स्वरूप की प्राप्ति हो सकती है । जड़ात्मक आच्छादन - मण्डल चार रूपों में है । वे स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण कहलाते हैं । कारण की खानि को महाकारण कहते हैं । इति।।
( मोक्ष-दर्शन में आये किलिष्ट शब्दों की सरलार्थ एवं अन्य शब्दों के शब्दार्थादि की जानकारी के लिए "महर्षि मेँहीँ + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें )
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प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन के उपर्युक्त पैराग्राफों से हमलोगों ने जाना कि संतमत में कुल मालिक कौन है ? उसका स्वरूप कैसा है? त्रयगुण सहित और त्रयगुण रहित कौन-कौन से मंडल है? मूल प्रकृति किसे कहते हैं? अनंत परमात्मा का स्वरूप कैसा है? ईश्वर का अंश और अंशी कौन-कौन है? ईश्वर और जीव में किन कारणों से भेद है और वह कैसे हटता है? अनात्मा से क्या समझते है, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें।
महर्षि मेंहीं साहित्य "मोक्ष-दर्शन" का परिचय
'मोक्ष-दर्शन' सत्संग-योग चारों भाग पुस्तक का चौथा भाग ही है. इसके बारे में विशेष रूप से जानने के लिए 👉 यहां दवाएं।
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मोक्ष दर्शन (11-22) जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, ईश्वर, जीव और अनात्मा का वर्णन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/03/2020
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