शब्दकोष 46 || सगुण-उपासक से सत्य तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
सगुण-उपासक - सत्य
सगुण - उपासक ( सं ० , वि ० ) = सगुण ब्रह्म की उपासना करनेवाला ।
सचखंड ( पुं ० ) = सतलोक , चेतन प्रकृति का मंडल ।
सच्चा सद्गुरु ( वि ० ) = सद्गुरु जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया हो ।
सच्चिदानन्द ( सं ० , वि ० ) = जिसका स्वरूप अविनाशी , ज्ञानमय और आनन्दमय हो । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति , परमात्मा ।
{सच्चिदानन्द = सच्चिदानन्द ब्रह्म । ( कुछ विचारक परम सत्ता को सत् - चित् - आनन्दमयी मानते हैं ; परन्तु कुछ अन्य विचारको का कहना है कि परम सत्ता सच्चिदानन्दमयी नहीं , परा प्रकृति सच्चिदानन्दमयी है । सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने परा प्रकृति में व्याप्त परमात्म - अंश को सच्चिदानन्द ब्रह्म कहा है । ) P01 }
सच्चिदानन्दघन ( सं ० , वि ० ) = जो सत् ( अविनाशी ) , चित् ( ज्ञानमय ) और आनन्द का भंडार हो ।
सच्चिदानन्द - पद ( सं ० , पुं ० ) सत्य ( अपरिवर्त्तनशील ) , ज्ञानमयी और आनन्दमयी परा प्रकृति ( चेतन प्रकृति ) का स्थान , चेतन प्रकृति मंडल |
सच्चिदानन्द ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह अंश जो सत् ( अविनाशी , परिवर्त्तन - रहित ) , चित् ( ज्ञानमयी ) और आनन्दमयी परा प्रकृति ( चेतन प्रकृति ) में व्यापक हो ।
सच्चिदानन्दमय ( सं ० , वि ० पुं ० ) = जो परिवर्त्तन - रहित , ज्ञान = और आनन्दमय हो । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति ।
सच्चिदानन्द रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप जो अविनाशी , ज्ञानमय तथा आनन्दमय हो ; निर्मल चेतन रूप ।
(सतगुरु = सच्चा गुरु । P04 )
सतनाम ( पुं ० ) = सच्चा नाम , अविनाशी शब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द , सारशब्द ।
सतलोक ( पुं ० ) = चेतन प्रकृति का मंडला ।
सत् ( सं ० , वि ० ) = सत्य , अविनाशी , परिवर्त्तन - रहित , बदलाव - रहित । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति , परा प्रकृति ।
(सत् = अविनाशी , अपरिवर्तनशील । P05 )
सत् - असत् से परे = जो सत् ( चेतन ) और असत् ( जड़ ) - दोनों प्रकृतियों से ऊपर है , जिसे न सत् कहा जा सकता सत्ता ( सं ० , स्त्री ० ) है , न असत् । ( पुं ० ) परमात्मा ।
सत्ता ( सं०, वि०) = अस्तित्व , होने का भाव , अस्तित्व रखनेवाला पदार्थ , शासन ।
(सत्ता = अस्तित्व , विद्यमानतः , वास्तविकता । P01)
{सत्तास्वरूप = सत्तारूप , सबकी सत्ता ( अस्तित्व ) का कारण (करै न कछु कछु होय न ता बिन । सबको सत्ता कहै अनुभव जिन।।" --14 वां पद्य), सबकी सत्ता का मूल आधार , जिसके अस्तित्व पर सबका अस्तित्व कायम हो , परम सत्ता , वास्तविक सत्ता , जिसकी अपनी वास्तविक स्थिति हो , जो अपनी निजी स्थिति से विद्यमान हो , जो अपना आधार आप हो । P01 }
(सत्शब्द = वह आदिनाद जो अविनाशी ( अपरिवर्तनशील ) है । P05 )
सत्त्वगुण ( सं ० , पँ ० ) = सतोगुण , प्रकृति का एक गुण या शक्ति जो पालन करती है ।
सत्य ( सं ० , वि ० ) = अस्तित्व रखनेवाला , अविनाशी , परिवर्त्तन रहित । ( पुं ० ) अविनाशी पदार्थ ।
सत्यता - समाधि तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां दवाएं
लालदास साहित्य सूची
|
प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत महर्षि मेँहीँ शब्दकोश + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।