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शब्दकोष 46 || सगुण-उपासक से सत्य तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष /

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

संभाल - सगुण ब्रह्म  तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं

सद्गुरु महर्षि मेंंही परमहंसजी महाराज और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

सगुण-उपासक  - सत्य


 

सगुण - उपासक ( सं ० , वि ० ) = सगुण ब्रह्म की उपासना करनेवाला । 

सचखंड ( पुं ० ) = सतलोक , चेतन प्रकृति का मंडल । 

सच्चा सद्गुरु ( वि ० ) = सद्गुरु जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया हो । 

सच्चिदानन्द ( सं ० , वि ० ) = जिसका स्वरूप अविनाशी , ज्ञानमय और आनन्दमय हो । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति , परमात्मा ।

{सच्चिदानन्द = सच्चिदानन्द ब्रह्म । ( कुछ विचारक परम सत्ता को सत् - चित् - आनन्दमयी मानते हैं ; परन्तु कुछ अन्य विचारको का कहना है कि परम सत्ता सच्चिदानन्दमयी नहीं , परा प्रकृति सच्चिदानन्दमयी है । सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने परा प्रकृति में व्याप्त परमात्म - अंश को सच्चिदानन्द ब्रह्म कहा है । ) P01 }

सच्चिदानन्दघन ( सं ० , वि ० ) = जो सत् ( अविनाशी ) , चित् ( ज्ञानमय ) और आनन्द का भंडार हो । 

सच्चिदानन्द - पद ( सं ० , पुं ० ) सत्य ( अपरिवर्त्तनशील ) , ज्ञानमयी और आनन्दमयी परा प्रकृति ( चेतन प्रकृति ) का स्थान , चेतन प्रकृति मंडल | 

सच्चिदानन्द ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह अंश जो सत् ( अविनाशी , परिवर्त्तन - रहित ) , चित् ( ज्ञानमयी ) और आनन्दमयी परा प्रकृति ( चेतन प्रकृति ) में व्यापक हो । 

सच्चिदानन्दमय ( सं ० , वि ० पुं ० ) = जो परिवर्त्तन - रहित , ज्ञान = और आनन्दमय हो । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति । 

सच्चिदानन्द रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप जो अविनाशी , ज्ञानमय तथा आनन्दमय हो ; निर्मल चेतन रूप । 

(सतगुरु = सच्चा गुरु । P04 ) 

सतनाम ( पुं ० ) = सच्चा नाम , अविनाशी शब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द , सारशब्द । 

सतलोक ( पुं ० ) = चेतन प्रकृति का मंडला ।

सत् ( सं ० , वि ० ) = सत्य , अविनाशी , परिवर्त्तन - रहित , बदलाव - रहित । ( पुं ० ) चेतन प्रकृति , परा प्रकृति । 

(सत् = अविनाशी , अपरिवर्तनशील । P05 ) 

सत् - असत् से परे = जो सत् ( चेतन ) और असत्  ( जड़ ) - दोनों प्रकृतियों से ऊपर है , जिसे न सत् कहा जा सकता सत्ता ( सं ० , स्त्री ० ) है , न असत् ।  ( पुं ० ) परमात्मा । 

सत्ता ( सं०, वि०) = अस्तित्व , होने का भाव , अस्तित्व रखनेवाला पदार्थ , शासन । 

(सत्ता = अस्तित्व , विद्यमानतः , वास्तविकता । P01

{सत्तास्वरूप = सत्तारूप , सबकी सत्ता ( अस्तित्व ) का कारण  (करै न कछु कछु होय न ता बिन । सबको सत्ता कहै अनुभव जिन।।" --14 वां पद्य), सबकी सत्ता का मूल आधार , जिसके अस्तित्व पर सबका अस्तित्व कायम हो , परम सत्ता , वास्तविक सत्ता , जिसकी अपनी वास्तविक स्थिति हो , जो अपनी निजी स्थिति से विद्यमान हो , जो अपना आधार आप हो । P01 }

(सत्शब्द = वह आदिनाद जो अविनाशी ( अपरिवर्तनशील ) है । P05 ) 

(स्थिरता= स्थिर होने का भाव , मन का ठहराव , मन का निरोध । P08 ) 

सत्त्वगुण ( सं ० , पँ ० ) = सतोगुण , प्रकृति का एक गुण या शक्ति जो पालन करती है  ।

सत्य ( सं ० , वि ० ) = अस्तित्व  रखनेवाला , अविनाशी , परिवर्त्तन रहित । ( पुं ० ) अविनाशी पदार्थ । 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  सगुन उपासक, सचखंड, सच्चा सतगुरु, सच्चिदानंद, सच्चिदानंद घन, सच्चिदानंद-पद, सच्चिदानंद ब्रह्म, सच्चिदानंदमय, सच्चिदानंद रूप, सतनाम, सतलोक, सत्, सत्-असत् से परे, सत्ता, सत्तगुण, सत्य आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्दकोष, लेखक संतमत के वेद व्यास पूज्य पाद बाबा लाल दास जी महाराज
 

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शब्दकोष 46 || सगुण-उपासक से सत्य तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 46 ||  सगुण-उपासक  से  सत्य   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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