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शब्दकोष 47 || सत्यता से समाधि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि मेंंही परमहंसजी महाराज और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

सत्यता - समाधि

 

सत्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = सच्चाई । 

(सत्नाम = सच्चा नाम..अपरिवर्तनशील ध्वन्यात्मक शब्द । P05 ) 

सत्यनाम ( सं ० , पुं ० ) - सच्चा नाम , वह नाम या शब्द जिसके पकड़े जाने पर सुरत शब्द - रहित पद ( परमात्मा ) में समा जाती है , सत्यशब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द , आदिनाद । 

{सत्य पुरुष = परम अविनाशी पुरुष, परम प्रभु परमात्मा; देखें- " अविगत अज विभु अगम अपारा । सत्य पुरुष सतनाम ।।" (१२वाँ पद्य)   P10 }

सत्यशब्द ( सं ० , पुं ० ) = परिवर्त्तन रहित शब्द , वह शब्द जिसमें कभी किसी प्रकार की विकृति ( विकार , बदलाव ) नहीं आती हो , आदिनाद । 

(सत्शब्द = अपरिवर्तनशील शब्द , आदिनाद । P01 ) 

सत्संग ( सं ० , पुं ० ) अच्छे का संग , साधु - संतों का संग , सत्य स्वरूपी परमात्मा का संग , ऋषियों एवं संतों के विचारों का चिन्तन मनन , साधु - महात्माओं की ऐसी सभा जिसमें धार्मिक बातों की चर्चा होती हो , बाहरी सत्संग , आन्तरिक सत्संग ( ध्यानाभ्यास ) ।

सत्संग - योग ( सं ० , पुं ० ) = सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के द्वारा संपादित तथा लिखित एक पुस्तक जिसके चार भाग हैं और चारो भाग एक ही जिल्द में हैं , सत्संगरूपी योग ।

(सतमत = सत्य धर्म ; देखें - " तुलसी सतमत तत गहे , स्वर्ग पर करे खखार । " -संत तुलसी साहब  ।  P145 )

(सतमत द्वार = सत्य धर्म का द्वार, दशम द्वार । P145 )

(सतावै = संताप दे , दुःख दे , तंग करे , परेशान करे । P09)

(सद = सदा । नानक वाणी 52 )

सदा ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = हमेशा । 

सदाचार ( सं ० , पुं ० ) 1 = सत्य आचरण , अच्छे व्यक्ति का आचरण , शिष्टाचार , उत्तम आचरण , अच्छी रहनी - गहनी ,  पंच पापों से बचकर रहना । 

सदृश ( सं ० वि ० ) = समान, तरह , जैसा । 

सद्युक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = सच्ची युक्ति , सच्चा उपाय । 

सन ( अँ ० ) = पुत्र । 

[सन = से , साथ , समान । { संस्कृत में सन् का अर्थ ' होते हुए ' भी होता है । अवधी भाषा में सन का प्रयोग ' से ' के स्थान पर होता है ; जैसे- " जाहि न चाहिय कबहुँ कछु , तुम सन सहज सनेह । ( रामचरितमानस , अयोध्याकांड ) संभव है , यहाँ ' सन ' का प्रयोग निरर्थक रूप में मात्र ' विनाशन ' के साथ तुक मिलाने की दृष्टि से किया गया हो । } P04 ]

(सनातन = नित्य , शाश्वत , स्थायी , स्थिर , प्राचीन । P06 ) 

सन्तवाणी ( सं ० , स्त्री ० ) = किन्हीं संत का गद्यात्मक या पद्यात्मक वचन ।

सन्मुख ( वि ० ) =सम्मुख , जो  सामने हो ।  

सफलता ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी काम के सफल ( पूर्ण ) होने का भाव , उद्देश्य की प्राप्ति ।

सफाई ( अ ० , स्त्री ० ) = शुद्धता , पवित्रता , सफा ( शुद्ध ) होने का भाव । 

सफेदी ( फा ० , स्त्री ० ) = उजलापन । ( वि ० ) सफेद , उजला ।

(सब ठाहीं = सब ही जगह । P04 ) 

सबूरी ( अ ० , स्त्री ० ) = संतोष | 

(समं = सम , जैसा , समान ।  P13 ) 

(सम = समान , स्वरूप , पूर्ण । P04 ) 

सम अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = एकसमान रहनेवाली अवस्था , संतुलन , संतुलित अवस्था । 

समदर्शी ( सं ० , वि ० ) = सबको समान दृष्टि से देखनेवाला ।

{सर्वव्यापक = जो सबमें ( समस्त प्रकृति - मंडलों में ) अत्यन्त सघनता से फैला हुआ हो । ( व्यापक = फैला हुआ । ) P06 }

समाज ( सं ० , पुं ० ) = दल , समूह , संस्था ।

समाधि ( सं ० , स्त्री ० ) = योग के अभ्यास से प्राप्त वह अवस्था जिसमें जीव परमात्मा से मिलकर एकमेक हो जाता है ।


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      प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  सत्यता, सत्यनाम, सत्यशब्द, सत्संग, सत्संग-योग, सदा, सदाचार, सदृश्य, सद्युक्ति, संतवाणी, सन्मुख, सफलता, सफाई, सफेदी, सबूरी, सम अवस्था, समदर्शी, समाज, समाधि आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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शब्दकोष 47 || सत्यता से समाधि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 47 ||  सत्यता से समाधि  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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