महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
सत्यता - समाधि
सत्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = सच्चाई ।
(सत्नाम = सच्चा नाम..अपरिवर्तनशील ध्वन्यात्मक शब्द । P05 )
सत्यनाम ( सं ० , पुं ० ) - सच्चा नाम , वह नाम या शब्द जिसके पकड़े जाने पर सुरत शब्द - रहित पद ( परमात्मा ) में समा जाती है , सत्यशब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द , आदिनाद ।
{सत्य पुरुष = परम अविनाशी पुरुष, परम प्रभु परमात्मा; देखें- " अविगत अज विभु अगम अपारा । सत्य पुरुष सतनाम ।।" (१२वाँ पद्य) P10 }
सत्यशब्द ( सं ० , पुं ० ) = परिवर्त्तन रहित शब्द , वह शब्द जिसमें कभी किसी प्रकार की विकृति ( विकार , बदलाव ) नहीं आती हो , आदिनाद ।
(सत्शब्द = अपरिवर्तनशील शब्द , आदिनाद । P01 )
सत्संग ( सं ० , पुं ० ) अच्छे का संग , साधु - संतों का संग , सत्य स्वरूपी परमात्मा का संग , ऋषियों एवं संतों के विचारों का चिन्तन मनन , साधु - महात्माओं की ऐसी सभा जिसमें धार्मिक बातों की चर्चा होती हो , बाहरी सत्संग , आन्तरिक सत्संग ( ध्यानाभ्यास ) ।
सत्संग - योग ( सं ० , पुं ० ) = सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के द्वारा संपादित तथा लिखित एक पुस्तक जिसके चार भाग हैं और चारो भाग एक ही जिल्द में हैं , सत्संगरूपी योग ।
(सतमत = सत्य धर्म ; देखें - " तुलसी सतमत तत गहे , स्वर्ग पर करे खखार । " -संत तुलसी साहब । P145 )
(सतमत द्वार = सत्य धर्म का द्वार, दशम द्वार । P145 )
(सतावै = संताप दे , दुःख दे , तंग करे , परेशान करे । P09)
(सद = सदा । नानक वाणी 52 )
सदा ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = हमेशा ।
सदाचार ( सं ० , पुं ० ) 1 = सत्य आचरण , अच्छे व्यक्ति का आचरण , शिष्टाचार , उत्तम आचरण , अच्छी रहनी - गहनी , पंच पापों से बचकर रहना ।
सदृश ( सं ० वि ० ) = समान, तरह , जैसा ।
सद्युक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = सच्ची युक्ति , सच्चा उपाय ।
सन ( अँ ० ) = पुत्र ।
[सन = से , साथ , समान । { संस्कृत में सन् का अर्थ ' होते हुए ' भी होता है । अवधी भाषा में सन का प्रयोग ' से ' के स्थान पर होता है ; जैसे- " जाहि न चाहिय कबहुँ कछु , तुम सन सहज सनेह । " ( रामचरितमानस , अयोध्याकांड ) संभव है , यहाँ ' सन ' का प्रयोग निरर्थक रूप में मात्र ' विनाशन ' के साथ तुक मिलाने की दृष्टि से किया गया हो । } P04 ]
(सनातन = नित्य , शाश्वत , स्थायी , स्थिर , प्राचीन । P06 )
सन्तवाणी ( सं ० , स्त्री ० ) = किन्हीं संत का गद्यात्मक या पद्यात्मक वचन ।
सन्मुख ( वि ० ) =सम्मुख , जो सामने हो ।
सफलता ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी काम के सफल ( पूर्ण ) होने का भाव , उद्देश्य की प्राप्ति ।
सफाई ( अ ० , स्त्री ० ) = शुद्धता , पवित्रता , सफा ( शुद्ध ) होने का भाव ।
सफेदी ( फा ० , स्त्री ० ) = उजलापन । ( वि ० ) सफेद , उजला ।
(सब ठाहीं = सब ही जगह । P04 )
सबूरी ( अ ० , स्त्री ० ) = संतोष |
(समं = सम , जैसा , समान । P13 )
(सम = समान , स्वरूप , पूर्ण । P04 )
सम अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = एकसमान रहनेवाली अवस्था , संतुलन , संतुलित अवस्था ।
समदर्शी ( सं ० , वि ० ) = सबको समान दृष्टि से देखनेवाला ।
{सर्वव्यापक = जो सबमें ( समस्त प्रकृति - मंडलों में ) अत्यन्त सघनता से फैला हुआ हो । ( व्यापक = फैला हुआ । ) P06 }
समाज ( सं ० , पुं ० ) = दल , समूह , संस्था ।
समाधि ( सं ० , स्त्री ० ) = योग के अभ्यास से प्राप्त वह अवस्था जिसमें जीव परमात्मा से मिलकर एकमेक हो जाता है ।
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