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शब्दकोष 48 || समाधि से सहज तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि मेंंही परमहंसजी महाराज और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

समाधि - सहज

 

समाधि ( सं ० , स्त्री ० ) = शान्ति योग का अन्तिम आठवाँ अंग जिसमें ध्याता , ध्येय और ध्यान इन तीनों का भेद मिट जाता है ।

समाना ( स ० क्रि ० ) = मिलना , घुमना । 

समाप्त ( सं ० वि ० )  = अच्छी तरह पाया हुआ खत्म , अन्त , पूर्ण । 

समाप्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = समाप्त होने का भाव । 

समालिंग्य ( सं ० , क्रियापद ) = अच्छी तरह आलिंगन करके , अच्छी तरह छाती से लगाकर । 

समास रूप ( सं ० , पुं ० ) = संक्षिप्त रूप , छोटा किया हुआ रूप । 

समीपवर्ती ( सं ० , वि ० ) = निकट रहनेवाला । 

समेट ( हिं ० , स्त्री ० ) समेटने की क्रिया । 

सम्पुट ( सं ० , पुं ० ) = डिब्बा । 

सम्पूर्णत : ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = संपूर्ण रूप से , पूरी तरह ।

सम्मिश्रण - रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप या पदार्थ जिसमें अनेक वस्तुओं की अच्छी तरह मिलावट की गयी हो या हुई हो ।

(सयाह = काला , शूद्र ।  श्रीचंदवाणी 1क ) 

{सरवर = सरवरि , सदृश , समान , बराबरी , तुलना , सर्वश्रेष्ठ , प्रतिष्ठित । ( फारसी भाषा में ' सरवर ' का अर्थ सर्वश्रेष्ठ होता है और ' सरवर ' का अर्थ प्रतिष्ठित । ) P04 }

(सरकार ( फारसी ) = शासक, प्रभु, मालिक, स्वामी। P11 ) 

(सरल - सरल = सरलतापूर्वक , उदारतापूर्वक । P02 )

(सरब निवासी = सब जगह रहनेवाला । नानक वाणी 03 ) 

(सविता = जगत् प्रसवकर्त्ता ईश्वर। MS01-1

(सविता  = हे जगत्-प्रसवकर्त्ता ईश्वर ! आप । MS01-2 )

(सर्वं = सर्व , सब ।  P13  ) 

सर्व ( सं ० , वि ० ) = सब । 

(सर्वकर्षक = संबको आकर्षित करनेवाला , सबकी सुरत को अपने उद्गम - केन्द्र की ओर खींचनेवाला । P05 ) 

सर्वगत ( सं ० , वि ० ) = सब स्थानों में फैला हुआ । 

सर्वथा ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = सब प्रकार से , बिल्कुल , पूरा , पूरी तरह से । 

सर्वदर्शी ( सं ० , स्त्री ० वि ० ) = सबको देखनेवाला , सबको समान दृष्टि से देखनेवाला । 

सर्वपर ( सं ० , वि ० ) = सबसे परे , सबसे बाहर , सबसे ऊपर , सबसे श्रेष्ठ ।  

(सर्व पूज्यं = सबके द्वारा पूजे जानेयोग्य । P14 ) 

सर्वप्रथम ( सं ० , वि ० ) = किसी दृष्टि से सबमें पहला स्थान रखनेवाला । ( पुं ० ) जो सबसे पहले का हो , परमात्मा ।

(सर्वप्रथम से = सबके पहले से । P06 ) 

(सर्वमयं = सर्वमय , सबमें भरा हुआ , सबमें भरपूर ।  P13  ) 

सर्वव्यापक ( सं ० , वि ० ) = सबमें फैला हुआ । 

सर्वव्यापी ( सं ० , वि ० ) = सबमें फैला हुआ होकर रहनेवाला , जड़ और चेतन दोनों प्रकृतियों में व्यापक ( पुं ० ) आदिनाद , परमात्मा। 

(सर्वसाधारण= सभी साधारण लोग । P08 ) 

(सर्वसुगंध =  इन्द्रिय घाटों में बिखरी हुई समस्त चेतन धाराएँ । ( जैसे फूल का सार सुगंध है , उसी तरह शरीर का सार चेतन धार है । इसीलिए चेतनधार ' सुगंध ' कही गयी है । P145  )

{सर्वाधार ( सर्व + आधार ) = सबका आधार , जिसपर सबकुछ टिका हुआ हो , समस्त प्रकृतिमंडलों का आधार । P01 }

(सर्वव्यापकता के भी परे = समस्त प्रकृति - मंडलों में व्यापक होकर उनसे बाहर भी अपरिमित रूप से विद्यमान रहनेवाला ।P06 ) 

(सर्वाधार ( सर्व + आधार ) = सबका आधार , जिसपर सब कुछ टिका हुआ है । P06 ) ( P03 

{सर्वेश ( सर्व + ईश ) = सबका स्वामी , समस्त प्रकृतिमंडलों में व्यापक परमात्म - अंश । P01 }

{सर्वेश्वरं ( सर्व + ईश्वरं ) = सबका स्वामी , परम प्रभु परमात्मा । P13}

सर्वेश्वर ( सं ० , वि ० ) = सबका ईश्वर , सबका स्वामी , सबपर शासन करनेवाला । ( पुं ० ) परमात्मा । 

(सर्वेश्वर ( सर्व + ईश्वर ) = सबका स्वामी , सबका शासक । P06 ) 

सर्वेश्वर की निज भक्ति ( स्त्री ० ) = शरीर के अंदर आवरणों से छूटते हुए परम प्रभु सर्वेश्वर तक चलने का काम । 

(सर्वेश्वर की भक्ति = परमात्मा की भक्ति , शरीर के अन्दर आवरणों से छूटते हुए परमात्मा की ओर चलना । P06 ) 

सर्वोच्च पद ( सं ० , पुं ० ) = सबसे ऊँचा पद या स्थान , परमात्मा । 

सर्वोत्कृष्ट ( सं ० , वि ० ) = सबसे अच्छा , सबसे श्रेष्ठ । 

सहचर ( सं ० , वि ० ) = साथ चलनेवाला , साथ रहनेवाला ।

सहज ( सं ० , वि ० ) = स्वाभाविक ।

(सहजि = सहज , परमात्मा ।   नानक वाणी 52 )


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शब्दकोष 48 || समाधि से सहज तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 48 ||  समाधि से सहज  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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