महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
समाधि - सहज
समाधि ( सं ० , स्त्री ० ) = शान्ति योग का अन्तिम आठवाँ अंग जिसमें ध्याता , ध्येय और ध्यान इन तीनों का भेद मिट जाता है ।
समाना ( स ० क्रि ० ) = मिलना , घुमना ।
समाप्त ( सं ० वि ० ) = अच्छी तरह पाया हुआ खत्म , अन्त , पूर्ण ।
समाप्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = समाप्त होने का भाव ।
समालिंग्य ( सं ० , क्रियापद ) = अच्छी तरह आलिंगन करके , अच्छी तरह छाती से लगाकर ।
समास रूप ( सं ० , पुं ० ) = संक्षिप्त रूप , छोटा किया हुआ रूप ।
समीपवर्ती ( सं ० , वि ० ) = निकट रहनेवाला ।
समेट ( हिं ० , स्त्री ० ) समेटने की क्रिया ।
सम्पुट ( सं ० , पुं ० ) = डिब्बा ।
सम्पूर्णत : ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = संपूर्ण रूप से , पूरी तरह ।
सम्मिश्रण - रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप या पदार्थ जिसमें अनेक वस्तुओं की अच्छी तरह मिलावट की गयी हो या हुई हो ।
(सयाह = काला , शूद्र । श्रीचंदवाणी 1क )
{सरवर = सरवरि , सदृश , समान , बराबरी , तुलना , सर्वश्रेष्ठ , प्रतिष्ठित । ( फारसी भाषा में ' सरवर ' का अर्थ सर्वश्रेष्ठ होता है और ' सरवर ' का अर्थ प्रतिष्ठित । ) P04 }
(सरकार ( फारसी ) = शासक, प्रभु, मालिक, स्वामी। P11 )
(सरल - सरल = सरलतापूर्वक , उदारतापूर्वक । P02 )
(सरब निवासी = सब जगह रहनेवाला । नानक वाणी 03 )
(सर्वं = सर्व , सब । P13 )
सर्व ( सं ० , वि ० ) = सब ।
(सर्वकर्षक = संबको आकर्षित करनेवाला , सबकी सुरत को अपने उद्गम - केन्द्र की ओर खींचनेवाला । P05 )
सर्वगत ( सं ० , वि ० ) = सब स्थानों में फैला हुआ ।
सर्वथा ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = सब प्रकार से , बिल्कुल , पूरा , पूरी तरह से ।
सर्वदर्शी ( सं ० , स्त्री ० वि ० ) = सबको देखनेवाला , सबको समान दृष्टि से देखनेवाला ।
सर्वपर ( सं ० , वि ० ) = सबसे परे , सबसे बाहर , सबसे ऊपर , सबसे श्रेष्ठ ।
सर्वप्रथम ( सं ० , वि ० ) = किसी दृष्टि से सबमें पहला स्थान रखनेवाला । ( पुं ० ) जो सबसे पहले का हो , परमात्मा ।
(सर्वप्रथम से = सबके पहले से । P06 )
(सर्वमयं = सर्वमय , सबमें भरा हुआ , सबमें भरपूर । P13 )
सर्वव्यापक ( सं ० , वि ० ) = सबमें फैला हुआ ।
सर्वव्यापी ( सं ० , वि ० ) = सबमें फैला हुआ होकर रहनेवाला , जड़ और चेतन दोनों प्रकृतियों में व्यापक ( पुं ० ) आदिनाद , परमात्मा।
(सर्वसाधारण= सभी साधारण लोग । P08 )
(सर्वसुगंध = इन्द्रिय घाटों में बिखरी हुई समस्त चेतन धाराएँ । ( जैसे फूल का सार सुगंध है , उसी तरह शरीर का सार चेतन धार है । इसीलिए चेतनधार ' सुगंध ' कही गयी है । P145 )
{सर्वाधार ( सर्व + आधार ) = सबका आधार , जिसपर सबकुछ टिका हुआ हो , समस्त प्रकृतिमंडलों का आधार । P01 }
(सविता = जगत् प्रसवकर्त्ता ईश्वर। MS01-1)
(सविता = हे जगत्-प्रसवकर्त्ता ईश्वर ! आप । MS01-2 )
{सर्वेश ( सर्व + ईश ) = सबका स्वामी , समस्त प्रकृतिमंडलों में व्यापक परमात्म - अंश । P01 }
सर्वेश्वर ( सं ० , वि ० ) = सबका ईश्वर , सबका स्वामी , सबपर शासन करनेवाला । ( पुं ० ) परमात्मा ।
{सर्वेश्वरं ( सर्व + ईश्वरं ) = सबका स्वामी , परम प्रभु परमात्मा । P13}
सर्वेश्वर की निज भक्ति ( स्त्री ० ) = शरीर के अंदर आवरणों से छूटते हुए परम प्रभु सर्वेश्वर तक चलने का काम ।
सर्वोच्च पद ( सं ० , पुं ० ) = सबसे ऊँचा पद या स्थान , परमात्मा ।
सर्वोत्कृष्ट ( सं ० , वि ० ) = सबसे अच्छा , सबसे श्रेष्ठ ।
सहचर ( सं ० , वि ० ) = साथ चलनेवाला , साथ रहनेवाला ।
सहज ( सं ० , वि ० ) = स्वाभाविक ।
(सहजि = सहज , परमात्मा । नानक वाणी 52 )
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