शब्दकोष 49 || सहजावस्ता से सारंगी तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
सहजावस्ता - सारंगी
सहजावस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = सहज समाधि की अवस्था , वह स्वाभाविक अवस्था जिसमें जीव परमात्मा से = मिलकर एक - ही - एक हो जाता है ।
(सहस = हजार । नानक वाणी 53 )
सहस्रदल कमल ( सं ० , पुं ० ) भीतरी ब्रह्माण्ड का एक दर्जा जहाँ उगा हुआ चन्द्रमा दिखलायी पड़ता है ।
(सहाई = सहाय , सहायक , दयालु , सहारा देनेवाला । अकाशा - आकाश , अंदर का आकाश , ब्रह्मांड । P09 )
सहारा ( हिं ० , पुं ० ) = आसरा ,भरोसा , सहायता , मदद ।
सहित ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = साथ , संग ।
(स्वः = सुख-स्वरूप सविता जगत्-प्रसवकर्त्ता ईश्वर को प्राप्त करने के निमित्त। MS01-2 )
(स्थिरता= स्थिर होने का भाव , मन का ठहराव , मन का निरोध । P08 )
(सृजित = रचित , जो रचा गया हो , जो बनाया गया हो । P06 )
(साकम् = एक साथ वा एकरस से सबमें । MS01-3 )
साकार रूप ( सं ० , पुं ० ) = कोई आकार रखनेवाला पदार्थ जो स्थूल या सूक्ष्म दृष्टि से देखा जा सके ।
साखी ( स्त्री ० ) = एक प्रकार का छन्द , दोहा जिसे कुछ संतों ने ' साखी ' भी कहा है ।
(साखी = साक्षी , गवाही , गवाह , उपदेश - वाक्य । नानक वाणी 53 )
सात्त्विक गुण ( सं ० , पुं ० ) = दैविक गुण , उत्तम गुण , दैवी सम्पदा ; जैसे निर्भयता , दया , क्षमा आदि ।
साधक ( सं ० , वि ० ) = साधना करनेवाला , अभ्यास करनेवाला , कोई काम करने का प्रयत्न करनेवाला ।
साधन ( सं ० , पुं ० ) = कुछ पाने का माध्यम , कोई काम करने का प्रयत्न या उपाय , वह पदार्थ जो कुछ प्राप्त कराने में सहायक बने , साधना ।
साध्य ( सं ० , वि ० ) = साधनेयोग्य , प्राप्त करनेयोग्य , जिसकी प्राप्ति के लिए साधना की जाए , इष्ट , लक्ष्या ।
सान्त ( सं ० , वि ० पुं ० ) - अन्त सहित , कहीं - न - कहीं आदि , मध्य और अन्त रखनेवाला , हददार , सीमा रखनेवाला । ( पुं ० ) सीमा रखनेवाला पदार्थ , सीमित पदार्थ ।
{सान्त ( स + अन्त ) = जिसके आदि - अन्त हों , सीमा - सहित , ससीम , सीमा रखनेवाला पदार्थ , हददार चीज । P01 }
(सापेक्ष = अपेक्षा साहित , जो कोई चाहना रखता हो . जिसे कोई आवश्यकता हो , जो किसी दूसरे पर आधारित हो , जो अपने आपमें स्वतंत्र नहीं - दूसरे के अधीन हो , जो किसी से प्रभावित होता हो , जो किसी की तुलना में किसी प्रकार का हो , जिसका किसी के साथ आनुपातिक संबंध हो । P01 )
(सापेक्षता के पार में = जो सापेक्ष नहीं है , जो परस्पर सापेक्ष भावों या पदार्थों में से भी नहीं कहा जा सकता ( सापेक्षता सापेक्षा होने का भाव । P01 )
साफ ( अ ० वि ० ) = स्वच्छ , निर्मल , स्पष्ट , उजला ।
साफ - साफ ( अ ० , क्रि ० वि ० ) = एकदम स्पष्ट रूप से ।
साम्यावस्थाधारिणी प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) = सम अवस्था को धारण करके रहनेवाली प्रकृति , वह जड़ात्मिका मूल प्रकृति जो सदा सम अवस्था में रहती है , जो विक्षुब्ध या हलचल की अवस्था में नहीं रहती है , जिसमें त्रय गुण समान - समान मात्रा में रहते हैं , जो प्रकृति संतुलित रहती है , महाकारण मंडल ।
सायंकाल ( सं ० , पुं ० ) = सूर्य के अस्त होने के बाद का समय , शाम ।
सार ( सं ० , पुं ० ) = मुख्य बात , असली बात । ( वि ० ) सारभूत , असली ।
सारंगी ( स्त्री ० ) = एक प्रसिद्ध बाजा जिसमें लगे हुए तार कमानी से रगड़कर बजाये जाते हैं ।
(सारिंग = सारंग , चातक , पपीहा । नानक वाणी 53 )
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