शब्दकोष 50 || सारतत्व से सुरतशब्दयोग तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
सारतत्व - सुरतशब्दयोग
(सार = मुख्य , उत्तम , श्रेष्ठ , सच्चा । P07 )
(सार धुन्न = सारध्वनि , सारशब्द । P09 )
सारतत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = सारभूत तत्त्व , वह तत्त्व जो किसी पदार्थ की स्थिति का कारण हो ।
सारधार ( स्त्री ० = सारशब्द की धारा , निर्मल चेतन शब्द ।
सारशब्द ( सं ० , ) = वह शब्द जो सृष्टि का सारतत्त्व है , वह शब्द जिससे सृष्टि हुई है और जिसके निकल जाने पर सृष्टि नष्ट हो जाती हैं , आदिनाद ।
(सारशब्द = आदिनाद जो सृष्टि का सारतत्त्व है अर्थात् जिसके आधार पर सारी सृष्टि टिकी हुई है , सृष्टि से जिसके निकल जाने पर सृष्टि का विनाश हो जाता है । P05 )
साराधार ( सं ० , पूँ ० ) = सारतत्त्व और आधार , जो किसी पदार्थ का सारतत्त्व और उसके अस्तित्व का कारण हो ।
साहब ( अ ० , पुं ० ) = मालिक, स्वामी , परमात्मा । ( P03 )
(साहब (अरबी) = स्वामी, मालिक । P11, P12 )
सिंगी ( पुं ० ) = सींग का बनाया हुआ एक बाजा जो फूँककर बजाया जाता है ।
सितार ( फा ० , पुं ० ) = एक प्रसिद्ध बाजा जो उसके तारों को उँगली से झनकारने पर बजता है ।
सिद्क ( अ ० , पुं ० ) = सच्चाई , सत्यता ।
सिद्ध ( सं ० , वि ० ) = सिद्धि प्राप्त किया हुआ , पका हुआ , प्रमाणित , सत्य ठहराया हुआ ।
(सिद्धांत ( सिद्ध + अंत ) = वह ज्ञान जो विचार और अनुभव से अन्ततः पूर्णरूप सत्य सिद्ध हो गया हो , निश्चित मत । P07 )
सिफ़त ( अ ० , स्त्री ० ) = गुण , विशेषता , लक्षण ।
(सिफति = जिसका गुणगाया जाए , परमात्मा । नानक वाणी 52 )
(सिफती = प्रशंसा करनेवाला , गुण गानेवाला , भक्त , जीवात्मा । नानक वाणी 52 )
सिफ़ात ( अ ० ) = ' सिफ़ात ' का बहुवचन , गुण - समूह ।
सिफ़ाती ( अ ० , वि ० ) = गुण संबंधी , विशेषता - संबंधी ।
सिफ़ाती नाम ( अ ० सं ० , पुं ० ) = गुण बतानेवाला नाम । ( परमात्मा के वर्णात्मक नाम उसके सिफ़ाती नाम हैं ; जैसे सर्वेश्वर , परब्रह्म परमेश्वर आदि । )
सिमटाव ( हिं ० , पुं ० ) = सिमटने का भाव , एकाग्र होने का भाव , सिकुड़ने या संकुचित होने का भाव , फैली हुई वृत्तियों के एक जगह जमा होने का भाव ।
सीमा ( सं ० , स्त्री ० ) = घेरा , परिधि , हृद ।
(सील = शील , सत्य और नम्र व्यवहार । श्रीचंदवाणी 1क )
(सु = सुन्दर , श्रेष्ठ । P03 )
(सुखरूप = जो सच्चे सुख का स्वरूप हो , जो सदा सहज सुख में रहता हो , जिसका रूप बड़ा सुहावना हो , जो सुख का कारण हो । P04 )
सुगम ( सं ० , वि ० ) = आसान , सरल , जहाँ जाना आसान हो ।
(सुजान = सुंदर ज्ञानवाले , संत । श्रीचंदवाणी 1क )
(सुजान = सुन्दर ( अच्छे ) ज्ञानवाला । P03 )
सुनाम ( सं ० , पुं ० ) = सुन्दर नाम ।
सुन्न ( हिं ० , पुं ० ) = शून्य , आन्तरिक ।
{सुपूज्यन भूप = अनिवार्य रूप से पूजे जानेयोग्य ( आदर करनेयोग्य ) व्यक्तियों में जो श्रेष्ठ हो । ( सुपूज्य = सबसे अधिक पूजनीय । भूप = राजा , श्रेष्ठ । माता - पिता और अन्य गुरुजन भी आदरणीय हैं ; परन्तु संत सद्गुरु सबसे अधिक आदरणीय हैं ; क्योंकि उनसे बढ़कर और किन्हीं का उपकार नहीं हो सकता । ) P03 }
(सुपैद = उजला , ब्राह्मण । श्रीचंदवाणी 1क )
(सुबुधि = सुन्दर बुद्धि , अच्छी बुद्धि , सात्त्विकी बुद्धि , अच्छा ज्ञान । P03 )
(सुमिरत रहूँ = सुमिरन या जप करता रहूँ । P04 )
सुर ( सं ० , पुं ० ) = देवता । ब्रह्माण्ड का एक दर्जा ।
(सुरखाई = सुर्ख , लाल , क्षत्रिय । श्रीचंदवाणी 1क )
सुरत ( हिं ० , स्त्री ० ) = चेतन - आत्मा , चेतन वृत्ति , चेतन तत्त्व जिसके आधार पर शरीर जीवित रहता है और शरीर से जिसके निकल जाने पर शरीर मृतक हो जाता है । ( "सुरत के कई अर्थ हैं। उसकी एक परिभाषा है। जिनको आप सच्चिदानन्द ब्रह्म कहते हैं, उसी को कबीर साहब सत्पुरुष कहते हैं। जिस पुस्तक का नाम अनुराग सागर है, उसी में यह है। सुरत का अर्थ ख्याल भी होता है; सुरत का अर्थ तुलसीदासजी ने स्मरण भी किया है। "रहत न प्रभु चित चूक किये की। करत सुरत सै बार हिये की ।।" यह मैं बारम्बार का ख्याल करता हूँ। मेरे जानते परमात्मा परम उदार हैं, महादाता हैं; महाक्षमा-कर्त्ता हैं। यहाँ सुरत का अर्थ स्मरण करना हो जाता है। इसको दूसरी-दूसरी तरह से भी इस्तेमाल करते हैं। " S315 2. )
सुरतशब्दयोग ( पुं ० ) = ऐसी यौगिक क्रिया जिसमें शरीर के अन्दर होनेवाली अनहद ध्वनियों के बीच सारशब्द में सुरत को जोड़ने का अभ्यास किया जाता है , नादानुसंधान ।
{सुरत - शब्द - योग = वह युक्ति जिसके द्वारा अन्दर में होनेवाले आदिनाद में सुरत को संलग्न करने का अभ्यास किया जाता है । ( नादानुसंधान और सुरत - शब्द - योग - दोनों एक ही साधन के अलग - अलग नाम हैं । ) P08 }
(सुरत - शब्द - योग = ब्रह्माण्ड में होनेवाली अनहद ध्वनियों के बीच आदिनाद की परख करके उसमें सुरत को संलग्न करने का अभ्यास करना , नादानुसंधान । P06 )
सुरीला - सूर्ख तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां -दवाएँ
लालदास साहित्य सूची
|
प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत महर्षि मेँहीँ शब्दकोश + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।