शब्दकोष 45 || संभाल से सगुण ब्रह्म तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
संभाल - सगुण ब्रह्म
सँभाल ( स्त्री ० ) = रक्षा , हिफाजत ।
(संकट = विपत्ति , आफत , दुःख , कष्ट । P30 )
संकेत ( सं ० , पुं ० ) = इशारा ।
संग ( सं ० , पँ ० ) = साथ ।
संत ( सं ० , पुं ० ) = वे महापुरुष जिन्होंने शान्ति प्राप्त कर ली है ।
संतमत ( सं ० , पुं ० ) = संतों का मत , संतों के विचार , संतों के सिद्धान्त या ज्ञान ।
संतमत सत्संग ( सं ० , पुं ० ) = संतों के विचारों के आधार पर होनेवाला सत्संग ।
संतमत - सत्संग - महासभा ( सं ० , स्त्री ० ) = एक संस्था जो संतों के विचारों पर आधारित सत्संग का प्रचार करती है , इसका मुख्यालय महर्षि मँहीँ आश्रम , कुप्पाघाट , भागलपुर है ।
संतुष्ट ( सं ० , वि ० ) = संतोष - युक्त , अच्छी तरह प्रसन्न ।
संतोष ( सं ० , पुं ० ) = न्यायपूर्वक की गयी कमाई से जीवन निर्वाह करते हुए प्रसन्न रहना ।
संदोह ( सं ० , पुं ० ) = समूह , भंडार , खानि ।
संधि ( सं ० , स्त्री ० ) = मिलाप , मिलन , मिलन स्थल ।
संधि - विन्दु ( सं ० , पुं ० ) = वह विन्दु जो दो पदार्थों के मिलन स्थान पर हो ।
संबंध ( सं ० , पुं ० ) = लगाव , सम्पर्क ।
संबंधित ( सं ० , वि ० ) = अच्छी तरह जुड़ा हुआ या बँधा हुआ , संबंध रखनेवाला , संबंध - युक्त ।
संभव ( सं ० , वि ० ) = जो हो सकता हो , हो सकनेवाला ।
संलग्न ( सं ० , वि ० ) = अच्छी तरह लगा हुआ ।
(संलग्न हो = अच्छी तरह लगा हुआ रहकर, तत्परतापूर्वक , मुस्तैदी के साथ । P07 )
संशय ( सं ० , पँ ० ) = सन्देह , शंका , अज्ञानता , किसी पदार्थ के विषय में निश्चित रूप से यह नहीं कह पाना कि वह अमुक पदार्थ ही है ।
संस्कार ( सं ० , पुं ० ) = मन पर पड़ी हुई छाप जो बारंबार कोई काम करने पर बनती है ।
(संसृतं = संसृति , संसार , आवागमन । P13 )
(संसृति = संसार , जन्म - मरण । P04 )
(स = साथ , सहित , गुप्त । P01 )
(सखायः = वे समान आख्यानवाले आत्मस्वरूप से युक्त होकर। MS01-3 )
(सगल = सकल , समस्त । नानक वाणी 53 )
सगुण ( सं ० , वि ० ) = गुण - सहित , गुणवान् ; सत्त्व , रज और तम प्रकृति के इन तीनों गुणों से युक्त । ( पुं ० ) जड़ प्रकृति।
(सगुण = त्रय गुणों से बना हुआ , जड़ात्मक प्रकृति मंडल । P30 )
(सगुण = १ . त्रय गुण - सहित , २. त्रय गुणों से बना हुआ , जड़ प्रकृति मंडल । सत् जो अविनाशी या अपरिवर्तनशील है , चेतन प्रकृति । P01 )
{सगुण ( स + गुण ) = जो त्रयगुणों से युक्त है , जो त्रयगुणों से बना हुआ है , जड़ प्रकृति । P06 }
सगुण प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) = त्रय गुणों से बनी हुई प्रकृति , जड़ प्रकृति ।
सगुण ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह अंश जो त्रय गुणों से बने शरीर में या जड़ प्रकृति के किसी भाग में व्याप्त हो , राम कृष्ण आदि अवतारी पुरुष, परमात्मा का जो अंश त्रय गुणों से बने पदार्थों ( पिंड- ब्रह्मण्डों या जड़ात्मक प्रकृति-मंडलों में व्यापक हो।
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।