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शब्दकोष 44 || शब्दमय से श्वास तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष /

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

शब्दमय - श्वास

 

शब्दमय ( सं ० वि ० ) = शब्द से युक्त , शब्द से भरा हुआ ।

शब्दयोग ( सं ० , पुं ० ) = सुरत-शब्द-योग , नादयोग , नादानुसंधान , शरीर के अन्दर होनेवाली अनहद ध्वनियों के बीच सारशब्द में सुरत को जोड़ने की युक्ति । 

शब्दरूप धार ( स्त्री ० ) = शब्दरूपी धारा , शब्द की लहर ।

शब्दातीत ( सं ० , वि ० ) = शब्द से परे , वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक दोनों प्रकार के शब्दों से विहीन । ( पुं ० ) परमात्मा ।

{शब्दातीत ( शब्द + अतीत ) = शब्द - मंडल से ऊपर , शब्द - विहीन , नि : शब्द । P06 }

शब्दातीत पद ( सं ० , पुं ० ) = वह स्थान जहाँ शब्द की स्थिति नहीं है , परमात्मपद । 

शरीरी ( सं ० , वि ० ) शरीर में रहनेवाला , क्षेत्रज्ञ ( पुं ० ) आत्मा ।

शहरग ( फा ० , . स्त्री ० ) = शाहरग , बड़ी नाड़ी , सुषुम्ना नाड़ी , सुखमन विन्दु , दशम द्वारा । 

शान्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = मन की स्थिरता , मन की हलचल - रहित अवस्था ; सुख - दुःख , लाभ - हानि , मान - अपमान आदि द्वन्द्वों में एक जैसी बनी रहनेवाली मन की अवस्था । 

(शान्तिस्वरूपं = जिसका स्वरूप शान्तिमय हो ।  P13

(शिरधारी = शिर पर धारण करनेवाला , यहाँ अर्थ है- शिर पर धारण करनेयोग्य - आदर करनयोग्य , पूजनयोग्य , प्रणाम करनयोग्य । P02 ) 

(शिव = कल्याण , कल्याणकारी । P05 )  

शिक्षा ( सं ० , स्त्री ० ) = सीखने के  योग्य बात , उपदेश | 

(शीतं = ठंढा , शीतल ।  P13  ) 

शील ( सं ० , पुं ० ) = शीलता , उत्तम आचरण , सदाचार ,नम्रतापूर्वक किया गया सत्य व्यवहार , शिष्टाचार । 

शीश ( सं ० , पुं ० ) सिर , अहंकार । 

(शुद्ध = पवित्र । P04 ) 

शुद्ध आत्मस्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = वह आत्मस्वरूप जिसपर जड़ या चेतन तत्त्व का आवरण नहीं चढ़ा हो । 

शुद्ध आत्मा ( सं ० , स्त्री ० ) = वह आत्मतत्त्व या परमात्मतत्त्व जिसपर प्रकृति - मंडल का आवरण नहीं चढ़ा हो । 

शुद्धता ( सं ० , स्त्री ० ) होने का भाव , पवित्रता , दोष - रहित होने का भाव । 

शुद्धाचरण ( सं ० , पुं ० ) = पवित्र आचरण , पवित्र व्यवहार , पवित्र रहनी - गहनी । 

शुद्धाचारी ( सं ० , वि ० ) = पवित्र आचरण रखनेवाला ।

(शुद्धि = पवित्रता । P11 ) 

शुभकामना ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी के कल्याण के लिए की गयी इच्छा । 

श्रद्धा ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी को बड़ा समझने की भावना , गुरु जन के प्रति होनेवाला विश्वास ; गुरु और शास्त्र - वचनों में होने वाला अटूट विश्वास । (श्रद्धा = किसी के प्रति विश्वास , आदर , प्रेम और पूज्य भाव । P07 ) 

श्रवण ( सं ० , पुं ० ) - सुनने की क्रिया सुनना , कान ।

(श्रवण = श्रवण ज्ञान , जो ज्ञान किसी से सुनकर अधवा कोई पुस्तक पढ़कर प्राप्त किया गया हो । P04 ) 

श्वास ( सं०, पुरे  ) = नाक के छिद्रों से भीतर की ओर खींची गई  वायु ।

{श्री = श्रीयुत् , श्रीमत् , एक आदरसूचक शब्द जो आदरणीय व्यक्ति के नाम के पहले जोड़ा जाता है । ( श्री - धन , यश , शोभा , प्रतिष्टा , गौरव , महिमा , सौंदर्य । P07 ) }

(श्रेष्ठतर = जो किसी की अपेक्षा अथवा किसी से श्रेष्ठ हो । P04 ) 



{षट् विकार = मन के छह विकार--काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मात्सर्य ( ईर्ष्या ) । P11 }


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शब्दकोष 44 || शब्दमय से श्वास तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 44  ||  शब्दमय  से  श्वास  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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