मोक्ष दर्शन (22-33) परमात्मा की प्राप्ति कहां होगी ।। ईश्वर-प्राप्ति क्यों जरूरी है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
सत्संग योग भाग 4 (मोक्ष दर्शन) / 03
प्रभु प्रेमियों ! भारतीय साहित्य में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों और प्राचीन-आधुनिक पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों को संग्रहित करकेे प्रमाणित किया गया है कि सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों में एकता है। 'सत्संग योग' नामक इस पुस्तक के चौथे भाग में इन्हीं विचारों के आधार पर और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अपनी साधनात्मक अनुभूतियों के आधार पर, मनुष्यों के सभी दुखों से छूटने के उपायों का वर्णन किया गया है। इसे 'मोक्ष दर्शन' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मोक्ष से संबंधित बातों को अभिव्यक्त् करने के लिए पाराग्राफ नंंबर दिया गया हैैैै । इन्हीं पैराग्राफों में से कुुछ पैराग्राफों के बारे में जानेंगेेेे ।
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परमात्मा की प्राप्ति कहां होगी? ईश्वर को प्राप्त करना क्यों जरूरी है ?
प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष-दर्शन के पाराग्राफ संख्या 22-33 तक में परमात्मा की प्राप्ति कहां होगी? स्थूल, सूक्ष्म, कारण और महाकारण किसे कहते हैं? ईश्वर प्राप्ति क्यों जरूरी है? हम ईश्वर भक्ति को जरूरी क्यों नहीं समझते हैं? आखिर ईश्वर कैसा है? सगुण निराकार क्या है? जड़ात्मक सगुण प्रकृति और चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति क्या है? इत्यादि बातों के बारे में बताया गया है. आइये इन बातों को समझने के लिए निम्नलिखित पराग्राफों का पाठ करें-
मोक्ष दर्शन (22-33)
( २२ ) आच्छादन - मण्डलों के केवल पार ही में परम प्रभु सर्वेश्वर के निज स्वरूप की प्राप्ति हो सकती है । जड़ात्मक आच्छादन - मण्डल चार रूपों में है । वे स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण कहलाते हैं । कारण की खानि को महाकारण कहते हैं ।
( २३ ) परम प्रभु सर्वेश्वर के निज स्वरूप की प्राप्ति के बिना परम कल्याण नहीं हो सकता है ।
( २४ ) आँखों पर रंगीन चश्मा लगा रहने के कारण बाहर के सब दृश्य चश्मे के रंग के अनुरूप रंगवाले दीखते हैं । इसी तरह जड़ात्मक अनात्म आच्छादनों से आच्छादित रहने के कारण जीव को आच्छादन - तत्त्व का ज्ञान होता है , उससे भिन्न तत्त्व का नहीं ।
( २५ ) कोई भी सगुण ( रज , तम और सत्त्व से युक्त ) और साकार रूप अनादि , अनन्त , मूलतत्त्व वा परम प्रभु सर्वेश्वर के सम्पूर्ण स्वरूप का रूप नहीं हो सकता है ।
( २६ ) गन्ध , स्पर्श , रस और त्रय गुण मण्डल के ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक शब्द सगुण निराकार कहे जा सकते हैं । इनके विशाल - से - विशाल मण्डल से भी परम प्रभु सर्वेश्वर के सम्पूर्ण स्वरूप का आच्छादन नहीं हो सकता है ।
( २७ ) निर्मल चेतन और उसके केन्द्र से उत्थित आदिनाद वा आदिध्वनि वा आदिशब्द त्रय गुण - रहित वा निर्गुण निराकार कहे जा सकते हैं ; इनसे अर्थात् निर्गुण से भी परम प्रभु सर्वेश्वर पूर्णरूप से आच्छादित होने योग्य नहीं हैं ; क्योंकि अनन्त को अपने घेरे के अन्दर ला सके , ऐसी किसी चीज को मानना बुद्धि - विपरीत और अयुक्त है ।
( २८ ) जड़ात्मक सगुण प्रकृति वा अपरा प्रकृति नाना रूपों में रूपान्तरित होती रहती है । इसलिए इसे क्षर और असत् कहते हैं ।
( २९ ) चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति वा परा प्रकृति रूपान्तरित नहीं होती है , इसीलिए इसको अक्षर और सत् कहते हैं । परम प्रभु सर्वेश्वर सत् और असत् तथा क्षर और अक्षर से परे हैं ।
( ३० ) परम प्रभु सर्वेश्वर में सृष्टि की मौज वा कम्प हुए बिना सृष्टि नहीं होती है ।
( ३१ ) मौज वा कम्प शब्द - सहित अवश्य होता है ; क्योंकि शब्द कम्प का सहचर है । कम्प शब्दमय होता है और शब्द कम्पमय होता है ।
( ३२ ) परा और अपरा ; युगल प्रकृतियों के बनने के पूर्व ही आदिनाद वा आदि ध्वन्यात्मक शब्द अवश्य प्रकट हुआ । इसी को ॐ , सत्यशब्द , सारशब्द , सत्यनाम , रामनाम , आदिशब्द और आदिनाम कहते हैं।
( ३३ ) कम्प और शब्द के बिना सृष्टि नहीं हो सकती । कम्प और शब्द सब सृष्टियों में अनिवार्य रूप से अवश्य ही व्यापक हैं । इति।।
( मोक्ष-दर्शन में आये किलिष्ट शब्दों की सरलार्थ एवं अन्य शब्दों के शब्दार्थादि की जानकारी के लिए "महर्षि मेँहीँ + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें )
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प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन के उपर्युक्त पैराग्राफों से हमलोगों ने जाना कि Where will God be attained? Who is gross, subtle, cause and cause? Why is it important to have God? Why don't we consider godly devotion to be necessary? How is God? What is the perfect formless? What is inert nature and conscious nature? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें।
महर्षि मेंहीं साहित्य "मोक्ष-दर्शन" का परिचय
'मोक्ष-दर्शन' सत्संग-योग चारों भाग पुस्तक का चौथा भाग ही है. इसके बारे में विशेष रूप से जानने के लिए 👉 यहां दवाएं।
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मोक्ष दर्शन (22-33) परमात्मा की प्राप्ति कहां होगी ।। ईश्वर-प्राप्ति क्यों जरूरी है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
12/30/2020
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