महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / म
मजीरा - मानना
मजीरा ( पुं ० ) = काँसे की कटोरियों की जोड़ी जिसे ताल देने के लिए बजाते हैं । (मजीरा = “ बजाने के लिए काँसे की छोटी कटोरियों की जोड़ी , ताल ।" P145 )
(मठ = मकान , घर । P07 )
मठाकाश ( सं ० , पुं ० ) = घर या मकान के भीतर का आकाश ।
मतa ( सं ० , पुं ० ) = विचार , ज्ञान , सिद्धान्त , विश्वास , सम्प्रदाय , किसी के द्वारा प्रचारित किया गया कोई विशेष विचार ।
मतb ' ( सं ० मा , क्रि ० वि ० ) = एक शब्द जिसके द्वारा कुछ करने की मनाही की जाती है , न , नहीं ।
(मत = विचार , मान्यता , विश्वास, धर्म, माननेयोग्य विचार , अपनानेयोग्य विचार , उपदेश , शिक्षा , कर्त्तव्य कर्म । P08 )
(मति = बुद्धि । P02 )
(मत्स्य = मछली । P06 )
(मद - अहंकार , घमंड ; मैं ऐसा हूँ या वैसा हूँ ; मैंने यह किया या वह किया ऐसी धारणा । P09 )
(मधुकर = भौंरा ; यहाँ अर्थ है- सुरत या मन । P145 )
मन ( सं ० , पुं ० ) = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसका काम है संकल्प - विकल्प करना । [मन = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसकी मुख्य वृत्ति है प्रस्ताव करना , गुनावन करना या संकल्प - विकल्प करना । ( जाग्रत् और स्वप्न - अवस्थाओं में धाराप्रवाह उलटी - सीधी बातों का मन में आते रहना , मन का संकल्प - विकल्प करना है । P01 ), (मन विकी), ( मन विक्ष) ]
मनन ( सं ० , पुं ० ) = चिन्तन , किसी बात पर सोच - विचार करने की क्रिया , विचारना ।
(मनन = मनन ज्ञान , वह श्रवण ज्ञान जो बारंबार विचार किये जाने पर सत्य जंच गया हो । P04 )
(मनन = विचार । P07 )
मन - मोदक ( सं ० , पुं ० ) = मनोमय मोदक , मन की कल्पना से बनायी गयी मिठाई ( लड्डू ) , कल्पना की मिठाई , काल्पनिक मिठाई ।
(मनसा = मन से । P09 )
(मनः = मनस् वा मानस ( तथा ) MS01-1)
(मणि = बहुमूल्य रत्न , जवाहिर । P13 )
मनुष्य- पिंड ( सं ० , पुं ० ) = मनुष्य का शरीर ।
मनोनिरोध ( सं ० , पुं ० ) = मन का निरोध , मन की चंचलता को रोकना , मन को किसी ओर जाने से रोकना ।
मनोबल ( सं ० , पँ ० ) = मन का बल , संकल्प - शक्ति ।
मनोविकार ( सं ० , पुं ० ) = मन के छह हानिकारक भाव ; जैसे काम , क्रोध , लोभ , मोह , मद और ईर्ष्या ।
(ममतादि ( ममता + आदि ) = ममत्व, मेरापन - अपनापन आदि भाव । P13 )
मर्दल ( सं ० , पुं ० ) = मृदंग की तरह का एक बाजा जिसका प्रचलन बंगाल में है ।
मर्म ( सं ० , पुं ० ) = रहस्य , छिपा हुआ भेद , महिमा , हृदय ।
मर्यादित ( सं ० , वि ० ) = सीमित , सीमाबद्ध , किसी स्थान विशेष तक ही अपनी स्थिति या फैलाव रखनेवाला , शिष्ट , अनुशासित ।
(मल = अनात्म तत्त्व , असार तत्त्व , विकार , दोष । P139 )
(मल - मैल , दोष , विकार , पाप , असार , असत्य । P30 )
(मलआनलो = मलयानिल , चंदन के पहाड़ की वायु । नानक वाणी 53 )
मस्तक ( हिं ० , पुं ० ) = सिर , मस्तिष्क ।
महदाकाश ( सं ० , पुं ० ) = महत् आकाश , बड़ा आकाश , आकाश किसी आवरण के अन्दर नहीं है , खुला आकाश ।
(महा अद्भुतं = अत्यन्त आश्चर्यजनक । P13 )
महाकारण मंडल ( सं ० , पुं ० ) = कारण मंडल का भंडार या खानि , साम्यावस्थाधारिणी मूल प्रकृति का मंडल ।
(महातत्त्व = महत्तत्त्व , समष्टि बुद्धि ( सांख्य - दर्शन ) , जड़ात्मिका मूल प्रकृति ( कठोपनिषद् , अ ० २ , वल्ली ३ , श्लोक ७ ) । P13 )
(महाधुन = महाध्वनि, अत्यन्त ऊँची और तीक्ष्ण (तीव्र) ध्वनि । P10 )
महान् ( सं ० , वि ० पुं ० ) = बड़ा ।
(महान् यंत्र = बड़ी मशीन , बड़ा कल । P06 )
महापुरुष ( सं ० , पुं ० ) = बड़ा व्यक्ति ।
मूलभित्ति = मूल - आधार ( भित्ति आधार , दीवार , स्रोत , उद्गम , उत्पत्ति स्थान ) । ( P08 )
माइनर ( अँ ० ) = छोटा ।
(मात्रा = पोशाक , पहरावा , उपयोग में लायी जानेवाली चीजें । श्रीचंदवाणी 1क )
मादक ( सं ० , वि ० ) = मद ( नशा ) उत्पन्न करनेवाला ।
मानना ( हिं ० , स ० क्रि ० )= स्वीकार करना, ( अ ०, क्रि ० ) आदर करना ।
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