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शब्दकोष 37 || मजीरा से मानना तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / म

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

मजीरा - मानना

 

मजीरा ( पुं ० ) = काँसे की कटोरियों की जोड़ी जिसे ताल देने के लिए बजाते हैं । (मजीरा = “ बजाने के लिए काँसे की छोटी कटोरियों की जोड़ी , ताल ।"  P145 )

(मठ = मकान , घर । P07 ) 

मठाकाश ( सं ० , पुं ० ) = घर या मकान के भीतर का आकाश ।

मतa ( सं ० , पुं ० ) = विचार , ज्ञान , सिद्धान्त , विश्वास , सम्प्रदाय , किसी के द्वारा प्रचारित किया गया कोई विशेष विचार ।

मतb ' ( सं ० मा , क्रि ० वि ० ) = एक शब्द जिसके द्वारा कुछ करने की मनाही की जाती है , न , नहीं । 

(मत = विचार , मान्यता , विश्वास, धर्म, माननेयोग्य विचार , अपनानेयोग्य विचार , उपदेश , शिक्षा , कर्त्तव्य कर्म ।  P08 )

 (मति = बुद्धि । P02 )

(मत्स्य = मछली । P06 ) 

(मद - अहंकार , घमंड ; मैं ऐसा हूँ या वैसा हूँ ; मैंने यह किया या वह किया ऐसी धारणा । P09 )

(मधुकर = भौंरा ; यहाँ अर्थ है- सुरत या मन । P145 )

मन ( सं ० , पुं ० ) = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसका काम है संकल्प - विकल्प करना । [मन = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसकी मुख्य वृत्ति है प्रस्ताव करना , गुनावन करना या संकल्प - विकल्प करना । ( जाग्रत् और स्वप्न - अवस्थाओं में धाराप्रवाह उलटी - सीधी बातों का मन में आते रहना , मन का संकल्प - विकल्प करना है । P01 ), (मन विकी), ( मन विक्ष) ]

मनन ( सं ० , पुं ० ) = चिन्तन , किसी बात पर सोच - विचार करने की क्रिया , विचारना । 

(मनन = मनन ज्ञान , वह श्रवण ज्ञान जो बारंबार विचार किये जाने पर सत्य जंच गया हो । P04 ) 

(मनन = विचार । P07 ) 

मन - मोदक ( सं ० , पुं ० ) = मनोमय मोदक , मन की कल्पना से बनायी गयी मिठाई ( लड्डू ) , कल्पना की मिठाई , काल्पनिक मिठाई । 

(मनसा = मन से । P09 ) 

(मणि = बहुमूल्य रत्न , जवाहिर । P13  ) 

मनुष्य- पिंड ( सं ० , पुं ० ) = मनुष्य का शरीर ।  

मनोनिरोध ( सं ० , पुं ० ) = मन का निरोध , मन की चंचलता को रोकना , मन को किसी ओर जाने से रोकना । 

मनोबल ( सं ० , पँ ० ) = मन का बल , संकल्प - शक्ति ।

मनोविकार ( सं ० , पुं ० ) = मन के छह हानिकारक भाव ; जैसे काम , क्रोध , लोभ , मोह , मद और ईर्ष्या ।

(मम = मेरा । P04,  P11,  P13 ) 

(ममतादि ( ममता + आदि ) = ममत्व, मेरापन - अपनापन आदि भाव ।  P13  ) 

मर्दल ( सं ० , पुं ० ) = मृदंग की तरह का एक बाजा जिसका प्रचलन बंगाल में है ।  

मर्म ( सं ० , पुं ० ) = रहस्य , छिपा हुआ भेद , महिमा , हृदय ।

मर्यादित ( सं ० , वि ० ) = सीमित , सीमाबद्ध , किसी स्थान विशेष तक ही अपनी स्थिति या फैलाव रखनेवाला , शिष्ट , अनुशासित । 

(मल = अनात्म तत्त्व , असार तत्त्व , विकार , दोष । P139 ) 

(मल - मैल , दोष , विकार , पाप , असार , असत्य । P30 )

मस्तक ( हिं ० , पुं ० ) = सिर ,  मस्तिष्क । 

महदाकाश ( सं ० , पुं ० ) = महत् आकाश , बड़ा आकाश , आकाश किसी आवरण के अन्दर नहीं है , खुला आकाश ।

(महा अद्भुतं = अत्यन्त आश्चर्यजनक ।  P13  ) 

महाकारण मंडल ( सं ० , पुं ० ) = कारण मंडल का भंडार या खानि , साम्यावस्थाधारिणी मूल प्रकृति का मंडल ।  

(महातत्त्व = महत्तत्त्व , समष्टि बुद्धि ( सांख्य - दर्शन ) , जड़ात्मिका मूल प्रकृति ( कठोपनिषद् , अ ० २ , वल्ली ३ , श्लोक ७ ) ।  P13  ) 

(महाधुन = महाध्वनि, अत्यन्त ऊँची और तीक्ष्ण (तीव्र) ध्वनि । P10 ) 

महान् ( सं ० , वि ० पुं ० ) = बड़ा । 

(महान् यंत्र = बड़ी मशीन , बड़ा कल । P06 ) 

महापुरुष ( सं ० , पुं ० ) = बड़ा व्यक्ति । 

मूलभित्ति = मूल - आधार ( भित्ति आधार , दीवार , स्रोत , उद्गम , उत्पत्ति स्थान ) । ( P08  ) 

माइनर ( अँ ० )  = छोटा ।

(मात्रा = पोशाक , पहरावा , उपयोग में लायी जानेवाली चीजें । श्रीचंदवाणी 1क ) 

मादक ( सं ० , वि ० ) = मद ( नशा ) उत्पन्न करनेवाला । 

मानना ( हिं ० , स ० क्रि ० )= स्वीकार करना, ( अ ०, क्रि ० ) आदर करना ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  मजीरा, मठाकाश, मतa, मत, मन, मनन, मन-मोदक, मनुष्य-पिंड, मनोनिरोध, मनोबल, मनोविकार, मर्दल, मर्म, मर्यादित, मस्तक, महदाकाश, महाकारण मंडल, महान्, महापुरुष, माइनर, मादक, मानना,  आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 37 || मजीरा से मानना तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 37  ||  मजीरा से मानना   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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