महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / म
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
मानस जप - मृदंग
(मात्र - समस्त , सभी , सिर्फ , केवल । P06 )
मानस जप ( सं ० , पुं ० ) = गुरु के द्वारा बतलाये गये किसी मंत्र का मन - ही - मन लगातार उच्चारण करना ।
(मानस जप = मन - ही - मन गुरु द्वारा बताये गये मंत्र की बारंबार या लगातार आवृत्ति करना । P06 )
मानस दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = वह दृष्टि जिससे चिन्तन या ख्याल में आये हुए पदार्थ को देखते हैं ।
मानस ध्यान ( सं ० , पुं ० ) = इष्ट के स्थूल रूप को मन में उगाना , आँखें बंद करके इष्ट के मनोमय स्थूल रूप को देखना ।
(मानस ध्यान = इष्ट के स्थूल रूप का मन - ही - मन चिन्तन करते रहना , इष्ट के देखे हुए स्थूल रूप को ज्यों - का - त्यों मन में उगाने का प्रयत्न करना । P06 )
(माया = जड़ और चेतन प्रकृतिरूपी भ्रम । P07)
मायातीत ( सं ० , वि ० ) = माया से परे , जो माया मंडल से ऊपर हो । ( पँ ० ) परमात्मा ।
(मायाबद्ध = माया में बँधा हुआ , माया में फंसा हुआ । P06 )
मायावी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = माया का , माया - संबंधी , त्रय गुणों से बना हुआ , सगुण , माया करनेवाला , छली , प्रपंची ।
मायावी शब्द ( सं ० , पुं ० ) = सगुण शब्द , वह वर्णात्मक या ध्वन्यात्मक शब्द जो त्रय गुणमय हो ।
मायिक ( सं ० , वि ० ) = माया - संबंधी , माया का , माया से बना हुआ ।
मायिक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = सगुण शब्द , जड़ात्मक मंडलों के शब्द ।
माहात्म्य ( सं ० , पुं ० ) = महत्ता , बड़प्पन , बड़ाई , महिमा ।
(मिठाई = खाने की कोई मीठी चीज | P145 )
(मिलवै = मिला , मिलाते हैं , प्राप्त कराते हैं । P03 )
(मिष्टान्न ( मिष्ट+अन्न) = रुचिकर खाद्य पदार्थ । P145 )
{मुअलिज ( अरबी मुआलिज) = इलाज करनेवाला, चिकित्सक, वैद्य |P11 }
(मुकत = मुक्त , मुक्ति , मुकुट । श्रीचंदवाणी 1क )
(मुकर = मुकुर , दर्पण , आईना । नानक वाणी 03 )
मुक्त ( सं ० , वि ० ) = छूटा हुआ , छुटकारा पाया हुआ ।
(मुक्ताहल = मुक्ताफल , मोती । P145 )
मुख मोड़ना ( स ० क्रि ० ) = विमुख होना , उदासीन होना , दूर होना , अलग होना , संबंध तोड़ लेना ।
मुख्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य या प्रधान होने का भाव ।
मुख्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य होने का भाव , प्रधान होने का भाव ।
(मुनि = मननशील , गंभीर विचारक , जो ब्रह्म , जीव , जगत् , माया आदि दार्शनिक बातों पर विचार करे ; यहाँ अर्थ है - महामुनि , पूरे मुनि , सन्त । P05 )
मुरली - नाद ( सं ० , पुं ० ) = बाँसुरी की ध्वनि ।
मुर्शिद ( अ ० , पुं ० ) = गुरु , ज्ञान देनेवाला व्यक्ति ।
मुश्किल ( अ ० , वि ० ) = कठिन । ( स्त्री ० ) कठिनाई ।
मुश्किल कुश ( अ ० - फा ० , वि ० ) = कठिनाई को मारनेवाला या दूर करेनवाला ।
(मूरति = मूर्ति , रूप , रूपवाला , व्यक्त पुरुष । P03 )
मूढ़ता ( सं ० मूढता , स्त्री ० ) = विवेक - हीनता , नासमझी ।
मूल ( सं ० , पुं ० ) = जड़ , नींव , = आधार । ( मूल = आरंभ ।P145 )
(मूल = जड़ , जो सबकी जड़ हो , जो सबका आधार हो , जो सबकी उत्पत्ति का मूलकारण हो , जो सबके मूल में अवस्थित हो , जो सबके पहले से विद्यमान हो । P05 )
मूलभित्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य आधार ।
मूलरूप ( सं ० , पुं ० ) = वास्तविक रूप ।
मूलतत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = वह पदार्थ जो सबके पहले से हो , वह पदार्थ जो सबके अस्तित्व का कारण हो , परमात्मा ।
(मृग - वारि = मृगजल , रेगिस्तान में ज्येष्ठ - वैशाख के दिनों में कड़ी धूप के कारण दूर मालूम पड़नेवाला जलाशय , जिस ओर हिरन अपनी प्यास बुझाने के लिए दौड़ता है । P07)
मृदंग ( सं ० , पुं ० ) = एक प्रकार बाजा जो ढोलक से कुछ लंबा होता है ।
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