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शब्दकोष 38 || मानस जप से मृदंग तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष /

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

मानस जप - मृदंग

 

(मात्र - समस्त , सभी , सिर्फ , केवल । P06 ) 

मानस जप ( सं ० , पुं ० ) = गुरु के द्वारा बतलाये गये किसी मंत्र का मन - ही - मन लगातार उच्चारण करना । 

(मानस जप = मन - ही - मन गुरु द्वारा बताये गये मंत्र की बारंबार या लगातार आवृत्ति करना । P06 

मानस दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = वह दृष्टि जिससे चिन्तन या ख्याल में आये हुए पदार्थ को देखते हैं । 

मानस ध्यान ( सं ० , पुं ० ) = इष्ट के स्थूल रूप को मन में उगाना , आँखें बंद करके इष्ट के मनोमय स्थूल रूप को देखना । 

(मानस ध्यान = इष्ट के स्थूल रूप का मन - ही - मन चिन्तन करते रहना , इष्ट के देखे हुए स्थूल रूप को ज्यों - का - त्यों मन में उगाने का प्रयत्न करना । P06 

(माया = जड़ और चेतन प्रकृतिरूपी भ्रम । P07

मायातीत ( सं ० , वि ० ) = माया से परे , जो माया मंडल से ऊपर हो । ( पँ ० ) परमात्मा । 

(मायाबद्ध = माया में बँधा हुआ , माया में फंसा हुआ । P06 ) 

मायावी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = माया का , माया - संबंधी , त्रय गुणों से बना हुआ , सगुण , माया करनेवाला , छली , प्रपंची ।

मायावी शब्द ( सं ० , पुं ० ) = सगुण शब्द , वह वर्णात्मक या ध्वन्यात्मक शब्द जो त्रय गुणमय हो । 

मायिक ( सं ० , वि ० ) = माया - संबंधी , माया का , माया से बना हुआ । 

मायिक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = सगुण शब्द , जड़ात्मक मंडलों के शब्द । 

माहात्म्य ( सं ० , पुं ० ) = महत्ता , बड़प्पन , बड़ाई , महिमा ।

(मिठाई = खाने की कोई मीठी चीज | P145  )

(मिलवै = मिला , मिलाते हैं , प्राप्त कराते हैं । P03 ) 

(मिष्टान्न ( मिष्ट+अन्न) = रुचिकर खाद्य पदार्थ । P145  )

{मुअलिज ( अरबी मुआलिज) = इलाज करनेवाला, चिकित्सक, वैद्य |P11 }

(मुकत = मुक्त , मुक्ति , मुकुट । श्रीचंदवाणी 1क )

(मुकर = मुकुर , दर्पण , आईना । नानक वाणी 03 ) 

मुक्त ( सं ० , वि ० ) = छूटा हुआ , छुटकारा पाया हुआ । 

(मुक्ताहल = मुक्ताफल , मोती । P145  )

मुख मोड़ना ( स ० क्रि ० ) = विमुख होना , उदासीन होना , दूर होना , अलग होना , संबंध तोड़ लेना । 

मुख्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य या प्रधान होने का भाव ।

मुख्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य होने का भाव , प्रधान होने का भाव । 

(मुनि = मननशील , गंभीर विचारक , जो ब्रह्म , जीव , जगत् , माया आदि दार्शनिक बातों पर विचार करे ; यहाँ अर्थ है - महामुनि , पूरे मुनि , सन्त । P05 ) 

मुरली - नाद ( सं ० , पुं ० ) = बाँसुरी की ध्वनि । 

मुर्शिद ( अ ० , पुं ० ) = गुरु , ज्ञान देनेवाला व्यक्ति । 

मुश्किल ( अ ० , वि ० ) = कठिन । ( स्त्री ० ) कठिनाई । 

मुश्किल कुश ( अ ० - फा ० , वि ० ) = कठिनाई को मारनेवाला या दूर करेनवाला । 

(मूरति = मूर्ति , रूप , रूपवाला , व्यक्त पुरुष । P03 ) 

मूढ़ता ( सं ० मूढता , स्त्री ० ) = विवेक - हीनता , नासमझी । 

मूल ( सं ० , पुं ० ) = जड़ , नींव , = आधार । ( मूल = आरंभ ।P145 ) 

(मूल = जड़ , जो सबकी जड़ हो , जो सबका आधार हो , जो सबकी उत्पत्ति का मूलकारण हो , जो सबके मूल में अवस्थित हो , जो सबके पहले से विद्यमान हो । P05 ) 

मूलभित्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = मुख्य आधार । 

मूलरूप ( सं ० , पुं ० ) = वास्तविक रूप । 

मूलतत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = वह पदार्थ जो सबके पहले से हो , वह पदार्थ जो सबके अस्तित्व का कारण हो , परमात्मा । 

(मृग - वारि = मृगजल , रेगिस्तान में ज्येष्ठ - वैशाख के दिनों में कड़ी धूप के कारण दूर मालूम पड़नेवाला जलाशय , जिस ओर हिरन अपनी प्यास बुझाने के लिए दौड़ता है । P07 

मृदंग ( सं ० , पुं ० ) = एक प्रकार बाजा जो ढोलक से कुछ लंबा होता है ।


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शब्दकोष 38 || मानस जप से मृदंग तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 38  ||  मानस जप से मृदंग   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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