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शब्दकोष 33 || प्रथम से फहम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष/ फ

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

प्रथम - फहम

 

प्रथम ( सं ० , वि ० पुं ० ) = पहला । ( क्रि ० वि ० ) पहले , पूर्व ।

(प्रथम = पहले , पहले - पहल । P05  ) 

प्रदान ( सं ० , पुं ० ) = देने की क्रिया । 

(प्रपंच = झूठा , भ्रम। P07)  ( प्रपंच = आवरण ।P07)

{प्रपंच = फैलाव , विस्तार , माया , विविधता , उलझन , सृष्टिः देखें - विधि प्रपंच गुन अवगुन साना । कहहिं वेद इतिहास पुराना ।। " ( रामचरितमानस . बालकाण्ड ) P01 }

प्रभाव ( सं ० , पुं ० ) असर । 

(प्रभु = शासक , स्वामी ।  P13  ) 

(प्रभु का ध्वन्यात्मक नाम = परम प्रभु परमात्मा का वह नाम जो वणों से नहीं , ध्वनि से बना हुआ है । P05 ) 

प्रमाण ( सं ० , पुं ० ) = सबूत , वह जो किसी पदार्थ के होने का विश्वास करा दे या किसी पदार्थ का होना सिद्ध कर दे । 

प्रमाणित ( सं ० , वि ० ) = प्रमाण युक्त , साबित , सिद्ध , जो सत्य सिद्ध हो चुका हो । 

प्रवाह ( सं ० , पुं ० ) = धारा , जिसमें बहने का गुण हो । 

प्रवाह - ओर ( सं ० + हिं ० , स्त्री ० ) = वह दिशा जिधर से धारा चले । 

प्रवाहित ( सं ० , वि ० ) = प्रवाह युक्त , धारा - युक्त , बहता हुआ । 

प्रश्वास ( सं ० , पुं ० ) = नाक से बाहर की ओर फेंकी गयी या निकाली गयी वायु । 

प्रसार ( सं ० , पुं ० ) = पसार , फैलाव । 

( पृथक्त्व - पृथक्ता , अलगाव , भिन्नता । P08 ) 

प्राकृत ( सं ० , वि ० ) प्रकृति से संबंध रखनेवाला , स्वाभाविक , साधारण । 

प्राचीन ( सं ० , वि ० ) = पुराना , पूर्व का , पहले का । 

प्राण ( सं ० , पुं ० ) = प्राणवायु , नाक से आने - जानेवाली वायु । नाक से खींची गयी वायु , चेतनवृत्ति ।

प्राण- स्पन्दन ( सं ० , पुं ० ) = नाक के छिद्रों से आने - जानेवाली वायुओं का हिलना या चलना , श्वास - प्रश्वास , चेतन वृत्ति का चंचल रहना , सुरत का स्थिर न रहना । 

प्राणायाम ( सं ० , पुं ० ) = प्राणवायु का नियंत्रण , प्राणवायु को रोकने का अभ्यास , नाक के छिद्रों से आने - जानेवाली वायुओं को स्थिर करना । 

प्राप्त ( सं ० , वि ० ) = पाया हुआ । 

प्राप्य ( सं ० , वि ० ) = प्राप्त करने के योग्य , जिसे प्राप्त करना लक्ष्य हो । 

प्रेममयी कथा ( सं ० , स्त्री ० ) = प्रेम - भरी कथा । 

प्रेरण ( सं ० , पुं ० ) = प्रेरणा , खिंचाव , हृदय की प्रवृत्ति या झुकाव । ( प्रेरण - प्रेरणा , प्रवृत्ति , झुकाव , भाव , इच्छा, प्रेरित होकर, प्रेरणा पाकर , उत्तेजित होकर , उकसाया गया होकर , बाध्य होकर , बल पाकर । P08 ) 

प्रेरित ( सं ० , वि ० ) = प्रेरणा से युक्त , जिसे दूसरे से प्रेरणा मिली हो । 

(पोहप - पुहप , पुष्प , फूल । P145  )


 

फकीर ( अ ० , पुं ० ) = मुसलमान साधु ।  

फजूल ( अ ० , वि ० ) = व्यर्थ , बेकार । 

फहम ( अ ० , स्त्री ० ) = समझ , ज्ञान, युक्ति । 


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शब्दकोष 33 || प्रथम से फहम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 33  ||  प्रथम  से  फहम   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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