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शब्दकोष 34 || फुटाना से बुध्दि-पर तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ब

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

फुटाना - बुध्दि-पर

 

फुटाना ( स ० क्रि ० ) = फूट डालना , अलग करना । 

(फुनि = पुनि , फिर । नानक वाणी 52 )

फैलाव ( हिं ० , पुं ० ) = फैला हुआ होने का भाव , विस्तार , क्षेत्र , सीमा , मंडल । 

फौरन ( अ ० , क्रि ० वि ० ) = तुरन्त , शीघ्र , तत्काल , उसी समय। 


बखि्शश ( फा ० , स्त्री ० ) = दान , इनाम , पुरस्कार , क्षमा।

बचना ( अ ० क्रि ० ) = अलग रहना । 

बन्द ( फा ० , वि ० ) = समाप्त , खत्म , रुका हुआ । 

बन्द ( फा ० , पँ ० ) = आवरण । ( वि ० ) आवरण पड़ा हुआ , जो खुला हुआ नहीं हो , जो रुका हुआ हो । 

बन्द लगाना = आवरण या परदा डालना ; मुँह , कान या आँखों को बन्द करना । 

(बनराड़ = वनराजि , वृक्षों का समूह , जंगल ।  नानक वाणी 53 

बरतना ( हिं ० , अ ० क्रि ० ) = बर्ताव करना , व्यवहार करना ।

बलधाम ( सं ० वि ० ) बल का घर , बल का भंडार ।

{बलिहारी ( बलिहार + ई ) = बलि होने का भाव , बलिदान , कुर्बानी , त्याग , महिमा , उपकार । ( बलिहार = बलि होनेवाला , जनकल्याण के लिए कष्ट उठानेवाला , दूसरों की भलाई के लिए व्यक्तिगत सुखों तथा स्वार्थ का त्याग करनेवाला । ) P02 }

बल्कि ( फा ० ) = इसके विरुद्ध , अन्यथा , वरन् , अच्छा यह कि । 

बहुतक ( हिं ० , वि ० ) = बहुत - से । 

(बहुरंग = बहुत रूप धारण करनेवाला , परमात्मा । श्रीचंदवाणी 1क )

(बहुरि = फिर, लौटकर । P10 ) 

(ब्रह्माण्ड = बाह्य जगत्, आन्तरिक ब्रह्माण्ड जो कैवल्य मंडल तक है। P10 ) 

बार ( स्त्री ० ) = देर , विलम्ब | 

बारंबार ( क्रि ० वि ० ) = बार - बार , सदा , हमेशा । 

बारीकी ( फा ० , स्त्री ० ) = सूक्ष्मता , बारीक ( महीन , पतला ) होने का भाव । 

बाहर की इन्द्रिय ( स्त्री ० ) कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय । 

(बाहरी भक्ति =  सत्संग , गुरु - सेवा और स्थूल उपासन । P07

बाहरी सत्संग ( पुं ० ) = वह सभा जिसमें संत - महात्मा धर्म - अधर्म आदि से संबंधित बातें श्रोताओं को सुनाया करते हैं । 

बाहरी साधन ( पुं ० ) = शरीर के बाहर किया जानेवाला कोई प्रयत्न | 

बाह्य जगत् ( सं ० , पुं ० ) = बाहरी संसार , पिंड ( शरीर ) से भिन्न संसार । 

बिल्कुल ( अ ० , क्रि ० वि ० ) = एकदम , सर्वथा , पूरी तरह , पूरा - पूरा ।

(बिसटी = लँगोटी ।  श्रीचंदवाणी 1क )

बिहाई ( क्रियापद ) = छोड़कर ।

(बीचारि = विचार करो , चिन्तन करो , ध्यान करो ।  नानक वाणी 52 )

बीन ( स्त्री ० ) = सितार की तरह  का एक बड़ा बाजा , वीणा , सँपेरों के बजाने की तूमड़ी । 

(बुझावन = बुझानेवाला , समझानेवाला । P30 )

(बुद्ध = जो जगा हुआ हो , जिसको बोध ( ज्ञान ) हो गया हो , ज्ञानी , ज्ञानवान् । P04 ) 

बुद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसका काम है निर्णय करना अर्थात् सोच - विचार करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचना । 

(बुद्धि = निश्चय या विचार करनेवाली भीतर की एक इन्द्रिय । P01 ) 

(बुद्धि = ज्ञान । P11 ) 

बुद्धि - पर ( सं ० , वि ० ) = बुद्धि की पहुँच से बाहर , बुद्धि के द्वारा जिसका चिन्तन - मनन नहीं किया जा सके, बुद्धि से श्रेष्ठ ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  फुटाना, फैलाव, फौरन, बख्शीश, बंचना, बंद, बंद, बंद लगाना, बरतरना, बलधाम, बल्कि, बहुतक, बार, बारंबार, बारीकी, बाहर क इद्रीय, बाहरी सत्संग, बाहरी साधन, बाह्य जगत्, बिल्कुल, बिहाई, बीन, बुद्धि, बुद्धि-पर  आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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शब्दकोष 34 || फुटाना से बुध्दि-पर तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 34  ||  फुटाना  से  बुध्दि-पर   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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