शब्दकोष 34 || फुटाना से बुध्दि-पर तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ब
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
फुटाना - बुध्दि-पर
फुटाना ( स ० क्रि ० ) = फूट डालना , अलग करना ।
(फुनि = पुनि , फिर । नानक वाणी 52 )
फैलाव ( हिं ० , पुं ० ) = फैला हुआ होने का भाव , विस्तार , क्षेत्र , सीमा , मंडल ।
फौरन ( अ ० , क्रि ० वि ० ) = तुरन्त , शीघ्र , तत्काल , उसी समय।
ब
बखि्शश ( फा ० , स्त्री ० ) = दान , इनाम , पुरस्कार , क्षमा।
बचना ( अ ० क्रि ० ) = अलग रहना ।
बन्द ( फा ० , वि ० ) = समाप्त , खत्म , रुका हुआ ।
बन्द ( फा ० , पँ ० ) = आवरण । ( वि ० ) आवरण पड़ा हुआ , जो खुला हुआ नहीं हो , जो रुका हुआ हो ।
बन्द लगाना = आवरण या परदा डालना ; मुँह , कान या आँखों को बन्द करना ।
(बनराड़ = वनराजि , वृक्षों का समूह , जंगल । नानक वाणी 53 )
बरतना ( हिं ० , अ ० क्रि ० ) = बर्ताव करना , व्यवहार करना ।
बलधाम ( सं ० वि ० ) बल का घर , बल का भंडार ।
{बलिहारी ( बलिहार + ई ) = बलि होने का भाव , बलिदान , कुर्बानी , त्याग , महिमा , उपकार । ( बलिहार = बलि होनेवाला , जनकल्याण के लिए कष्ट उठानेवाला , दूसरों की भलाई के लिए व्यक्तिगत सुखों तथा स्वार्थ का त्याग करनेवाला । ) P02 }
बल्कि ( फा ० ) = इसके विरुद्ध , अन्यथा , वरन् , अच्छा यह कि ।
बहुतक ( हिं ० , वि ० ) = बहुत - से ।
(बहुरंग = बहुत रूप धारण करनेवाला , परमात्मा । श्रीचंदवाणी 1क )
(बहुरि = फिर, लौटकर । P10 )
(ब्रह्माण्ड = बाह्य जगत्, आन्तरिक ब्रह्माण्ड जो कैवल्य मंडल तक है। P10 )
बार ( स्त्री ० ) = देर , विलम्ब |
बारंबार ( क्रि ० वि ० ) = बार - बार , सदा , हमेशा ।
बारीकी ( फा ० , स्त्री ० ) = सूक्ष्मता , बारीक ( महीन , पतला ) होने का भाव ।
बाहर की इन्द्रिय ( स्त्री ० ) कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय ।
(बाहरी भक्ति = सत्संग , गुरु - सेवा और स्थूल उपासन । P07)
बाहरी सत्संग ( पुं ० ) = वह सभा जिसमें संत - महात्मा धर्म - अधर्म आदि से संबंधित बातें श्रोताओं को सुनाया करते हैं ।
बाहरी साधन ( पुं ० ) = शरीर के बाहर किया जानेवाला कोई प्रयत्न |
बाह्य जगत् ( सं ० , पुं ० ) = बाहरी संसार , पिंड ( शरीर ) से भिन्न संसार ।
बिल्कुल ( अ ० , क्रि ० वि ० ) = एकदम , सर्वथा , पूरी तरह , पूरा - पूरा ।
(बिसटी = लँगोटी । श्रीचंदवाणी 1क )
बिहाई ( क्रियापद ) = छोड़कर ।
(बीचारि = विचार करो , चिन्तन करो , ध्यान करो । नानक वाणी 52 )
बीन ( स्त्री ० ) = सितार की तरह का एक बड़ा बाजा , वीणा , सँपेरों के बजाने की तूमड़ी ।
(बुझावन = बुझानेवाला , समझानेवाला । P30 )
(बुद्ध = जो जगा हुआ हो , जिसको बोध ( ज्ञान ) हो गया हो , ज्ञानी , ज्ञानवान् । P04 )
बुद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = भीतर की चार इन्द्रियों में से एक जिसका काम है निर्णय करना अर्थात् सोच - विचार करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचना ।
(बुद्धि = निश्चय या विचार करनेवाली भीतर की एक इन्द्रिय । P01 )
(बुद्धि = ज्ञान । P11 )
बुद्धि - पर ( सं ० , वि ० ) = बुद्धि की पहुँच से बाहर , बुद्धि के द्वारा जिसका चिन्तन - मनन नहीं किया जा सके, बुद्धि से श्रेष्ठ ।
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।