शब्दकोष 35 || बुद्धि-बल से भटकन तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / भ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
बुद्धि-बल - भटकन
बुद्धिमानी ( सं ० , स्त्री ० ) = बुद्धिमान् का काम ।
बुद्धिमान् ( सं ० वि ० ) = अच्छी बुद्धिवाला , अच्छे ज्ञानवाला ।
बुद्धि - विपरीत ( सं ० वि ० ) = बुद्धि के उलटा , विचार के उलटा । जो बुद्धि के विचार के अनुकूल नहीं हो , जो बुद्धि के विचार में उचित नहीं ठहरे ।
बेनजीर ( फा ० अ ० , वि ० ) = अनुपम , उपमा - रहित , बेजोड़।
बेमेल ( फा ०, सं ० , पुं ० ) मेल का अभाव ।
(बेढंग = बेढंगा , बेतुका , अनुचित , असंगत । P04 )
बोध ( सं ० , पुं ० ) = ज्ञान । (बोध = ज्ञान। P14 )
(बोध महान = जिसको बहुत ज्ञान हो , बड़ा ज्ञानवान् , महाज्ञानी । P04 )
ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा , परमात्मा का वह अंश जो प्रकृति में या प्रकृति के किसी भाग में व्यापक हो ।
(ब्रह्मनाद = नादब्रह्म , शब्दब्रह्म , ब्रह्म का शब्दरूप , शब्दरूपी ब्रह्म , परमात्मा से संबंधित नाद , सृष्टि निर्माण हेतु परमात्मा से जो ध्वन्यात्मक शब्द उत्पन्न हुआ वह । P05 )
{ब्रह्मरूप = श्वेत ज्योतिर्मय विन्दु - रूपी । ( श्वेत ज्योतिर्मय विन्दु ब्रह्म का छोटे - से - छोटा सगुण - साकार रूप है । ) P03 }
ब्रह्मांड ( सं ० , पँ ० ) = विश्व , संसार , एक - एक सौर जगत् ।
ब्रह्माण्ड ( सं ० , पुं ० ) = सृष्टि या सृष्टि का कोई अंश जिसमें परमात्मा आंशिक रूप से व्यापक रहता है , पिंड से भिन्न बाहरी जगत् , पिंड में आँखों से ऊपर का भाग । (ब्रह्मांड = बाहरी जगत् , शरीर का दोनों आँखों से ऊपर का भाग । P30 )
ब्राह्म मुहूर्त ( सं ० , पुं ० ) = ब्रह्म वेला , अमृत वेला , रात्रि का पिछला पहर।
भक्त ( सं ० , वि ० ) = बँटा हुआ , भक्ति करनेवाला । ( पुं ० ) भात ।
भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) - प्रेमपूर्वक की गयी सेवा , किसी का सेवन करना ।
{भक्ति = भक्ति भाव , प्रेमपूर्ण सेवा भाव । ( सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की दृष्टि में , शरीर के अन्दर आवरणों से छूटते हुए परमात्मा से मिलने के लिए चलना परमात्मा की निज भक्ति है । ) P04 }
भगवन्त ( सं ० , वि ० ) = भगवान् ।
भगवान् ( सं ० , वि ० ) = जो समग्र ऐश्वर्य , धर्म , यश , संपत्ति , ज्ञान और वैराग्य से युक्त हो ।
(भजत है = भजता है , भक्तिभाव से प्रणाम करता है , स्मरण करता है , नाम लेता है , गुणगान करता है , शरण लेता है , पूजा - आराधना करता है । P02 )
भजन - भेद ( सं ० , पुं ० ) = भक्ति करने की युक्ति ।
{भजन सँग = ध्यान-भजन करने के प्रति खिंचाव या प्रेम, ध्यान-भजन की रुचि या उत्साह । ( संग = आसक्ति, प्रेम ) P11 }
भजना ( अ ० क्रि ० ) = भजन करना , भक्ति करना । ( स ० क्रि ० ) सेवन करना ।
भटकन ( हिं ० , स्त्री ० ) = भटकाव भटकने की क्रिया, बिना लाभ के इधर-उधर घूमना।
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