महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / भ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
भटकना - मंडल
( भक्ति = सेवा भाव , हृदय का वह भाव जिसके कारण किसी सद्गुण सम्पन्न व्यक्ति के प्रति विश्वास , आदर , प्रेम , सेवा और पूज्यता का भाव रखते हैं । P09 )
(भक्ति - भेद = भजन - भेद , ईश्वर भक्ति करने की युक्ति , भक्ति के प्रकार , परमात्मा की ओर चलने की रीति , भक्ति - रहस्य , भक्ति की महिमा । P09 )
(भजु - भजो , भक्ति करो , सुमिरन करो । P30 )
भटकना ( हिं ० अ ० क्रि ० ) = बिना लाभ के या बिना कारण के जहाँ तहाँ घूमना - फिरना ।
{भय = डर , अहित होने की संभावना से उत्पन्न दु:ख । ( भय कई प्रकार के होते हैं ; जैसे - अपने मरने का भय , प्रिय व्यक्ति के मरने का भय , धन - नाश का भय , प्रतिष्ठा के चले जाने का भय , स्वास्थ्य - नाश का भय , मरने के बाद मनुष्य - योनि से भिन्न योनि में जाने का भय आदि । ) P02 }
भरपूर ( वि ० ) = भरा हुआ ।
भला ( वि ० ) = अच्छा , लाभदायक । ( पुं ० ) भलाई , कल्याण ।
(भव = संसार , जन्म - मरण चक्र । P139 )
(भव = संसार , होना , जन्म , जन्म - मरण । P02 )
(भव खंडन = संसार को अर्थात् आवागमन के चक्र को नष्ट करनेवाला । P139 )
(भवखंडना = संसार को अर्थात् जन्म - मरण के चक्र को मिटानेवाला । नानक वाणी 53 )
(भवजल = भव-जलनिधि, संसार-समुद्र । P11 )
{भव तिमिर = संसार का अज्ञान अंधकार । ( तिमिर = अंधकार ) P04 }
(भव - फंदन = संसार के बंधन - काम , क्रोध आदि षड् विकार , जन्म - मरणरूप बंधन , जन्म - मरण का दुःख । P02 )
(भव - भय = जन्म - मरण का दुःख , संसार का दुःख , त्रय ताप । P30 )
(भव-सागर = संसाररूपी समुद्र, दुःखदायी संसार। P11 )
(भ्रम = अज्ञानता , मिथ्या ज्ञान , माया । P139 )
(भ्रम तम = अज्ञान - अंधकार , मिथ्या ज्ञानरूपी अंधकार । P30 )
(भ्रम तम जाल = बंधन - रूप अज्ञान - अंधकार । P03 )
(भ्रमि-भ्रमि - भ्रमण कर करके , घूम - घूमकर । P09
भव्य ( सं ० , वि ० ) = अच्छा लगने वाला , सुन्दर ।
भाँति ( सं ० , स्त्री ० ) = प्रकार , तरह , रीति , ढंग ।
(भाँति = प्रकार , विविधता , अनेकता । P01 )
( भारती - हिन्दी भाषा ( सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज हिन्दी भाषा को भारती भाषा कहना पसन्द करते थे । पंजाबी भाषा भी हिन्दी के ही अन्तर्गत है )। P08 )
भारती भाषा ( सं ० , स्त्री ० ) = हिन्दी भाषा ( सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज हिन्दी भाषा को ' भारती भाषा ' कहना पसंद करते थे । )
भारती सन्तवाणी ( सं ० , स्त्री ० ) = हिन्दी भाषा में लिखी गयी संतों की वाणी , हिन्दी भाषा के संतों की वाणी ।
(भावै = अच्छा लगे । P09 )
भित्ति ( सं ० , स्त्री ० ) नींव , आधार , कारण ।
भिन्न ( सं ० , वि ० ) = अलग , एक - जैसा नहीं हो , अन्तर रखने दीवार , जो वाला ।
भिन्न - भिन्न ( सं ० , वि ० ) = अलग अलग ।
भीतर की इन्द्रिय ( स्त्री ० ) = मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार ।
भीषण ( सं ० , वि ० ) = भयंकर , कठिन , बहुत अधिक ।
भूप ( सं ० , वि ० ) = भूपति , पृथ्वीपति , पृथ्वी का पालन करनेवाला । ( पुं ० ) राजा ।
(भूरी = भूरि , बहुत ; देखें- “ तातें करहिं कृपानिधि दूरी । सेवक पर ममता अति भूरी ॥ " ( रामचरितमानस , लंकाकांड ) | P09 )
भूल ( हिं ० , स्त्री ० ) नासमझी , अशुद्धि , त्रुटि , चूक ।
{भूल - चूक = असावधानी , आलस्य , और अज्ञानतावश होनेवाली गलतियाँ , दोष , कसूर , अपराध । ( कुछ गलतियाँ आदत , आवश्यकता , लज्जा - संकोच और षड्विकारवश भी होती हैं । ) P03 , P04 }
भेद ( सं ० , पुं ० ) = प्रकार , रहस्य , छिपा हुआ हाल , युक्ति , उपाय , तरीका , कोई काम करने का ढंग , भिन्नता , अंतर ।
(भेद = द्वैतता , अनेकता , जीव और ब्रह्म की भिन्नता का भाव । P139 )
(भेरी = नगाड़ा । नानक वाणी 53 )
{भेव = भेद , ज्ञान , युक्ति , रहस्य ; देखें- " विधि औ हरि हर पावत नाहीं , बिना गुरू प्रभु भेव जी । " ( ९२ वाँ पद्य ) P03 }
भोंदू ( हिं ० , वि ० ) = मूर्ख , नासमझ , छोटी बुद्धिवाला ।
भोग ( सं ० , पुं ० ) = भोगने की क्रिया ।
(भोग = नैवेद्य, वह खाद्य सामग्री जो देवता को चढ़ायी जाए । P10 )
भोगी ( सं ० , वि ० ) = भोगनेवाला ।
भ्रम ( सं ० , पुं ० ) = शंका , संदेह ।
( भ्रम = अज्ञानता , माया । नानक वाणी 03 )
(भ्रम = मिथ्या ज्ञान । P04 )
{भ्रम तम कूप = सूखे गहरे कुएँ के समान दु:ख देनेवाला अज्ञान - अंधकार । ( किसी चीज के बारे में कुछ नहीं जानना अज्ञानता है ; परन्तु किसी चीज को कुछ दूसरी ही चीज समझ लेना भ्रम है ; जैसे रस्सी को साँप समझ लेना । भ्रम का कारण अज्ञानता ही है । ) P03 }
भ्रू ( सं ० , स्त्री ० ) = भौंह |
(मंगल = कल्याण , अच्छाई , भलाई , आनन्द , मनोहर , सुहावना , सुन्दर । P03 )
(मंगल करण - कल्याण करनेवाला , आनन्द देनेवाला । P03 )
(मंगलमय = कल्याण से भरा हुआ , आनन्द से भरा हुआ , शुभ गुणों से परिपूर्ण । P03 )
मंजिल ( अ ० , स्त्री ० ) = पड़ाव , लक्ष्य , लक्ष्य स्थान , मकान का खंड , उद्देश्य , गन्तव्य स्थान , वह स्थान जहाँ जाना हो ।
मंडप ( सं ० , पुं ० ) = मँड़वा , चारो ओर से खुला हुआ ऐसा कच्चा या पक्का घर अथवा मकान जहाँ कोई विशेष कार्यक्रम होता हो ।
मंडल ( सं ० , पुं ० ) = क्षेत्र , सीमा , फैलाव , विस्तार , घेरा , गोल आकृति का कोई पदार्थ , संस्था , संघ , समुदाय ।
(मकरन्द = फूलों का रस । नानक वाणी 53 )
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