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शब्दकोष 39 || मेलना से योनि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / म

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

मेलना - योनि

 

मेलना ( स ० क्रि ० ) = डालना , रखना । 

मेहर ( फा ० , स्त्री ० ) = कृपा , दया । 

(मैं - तू = द्वैतता , अनेकता , विविधता , अलगाव , सृष्टि के पदार्थों के भिन्न - भित्र होने का भाव । P01 ) 

(मोटी और बाहरी बातें= कंठी - छाप, तिलक धारण करना , छपी चादर ओढ़ना , सफेद या गैरिक वस्त्र पहनना , दाढ़ी - मूंछ - केश शिखा रखना अथवा मुंडा लेना आदि बातें । P08 

(मोक्ष = परम मोक्ष , सब शरीरों और संसार से सदा के लिए छूट जाना । P06 ) 

मोक्ष - साधक ( सं ० , वि ० ) = मोक्ष प्राप्ति की साधना या अभ्यास करनेवाला । 

मोक्ष - साधन ( सं ० , पुं ० ) = मोक्ष प्राप्त करने का उपाय या युक्ति , मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न । 

(मोरछड़ - मोरछल , मयूर के पंखों का बना चँवर ।  श्रीचंदवाणी 1क ) 

मोह ( सं ० , पुं ० ) = भ्रम , अज्ञानता , सांसारिक प्राणि - पदार्थों के प्रति होनेवाला प्रेम या आसक्ति । 

(मोह = अज्ञानता , ममत्व , लालच , आसक्ति । P13  ) 

मौज ( अ ० , स्त्री ० ) = संकल्प , इच्छा , लहर , तरंग , कंपन , कंपनयुक्त शब्द , सारशब्द , आदिनाद ।

मौज ( अ ० स्त्री ० ) = तरंग , लहर , उत्साह , उमंग , आनन्द , ईक्षण , संकल्प , शब्द - धार , आदिशब्द, सारशब्द । P07 ) 


 


यंत्र ( सं ० , पुं ० ) = मशीन , कल , मनुष्य के द्वारा बनायी गयी वह चीज जो प्राणी की तरह काम करे । 

यज्ञ-अग्नि ( सं ० , स्त्री ० ) = द्रव्य - यज्ञ में काम आनेवाली आग ।

यत्न ( सं ० , पुं ० ) = कोशिश , प्रयास , मेहनत ।

यथा ( सं ० ) = जिस प्रकार , जैसे । 

यथार्थ ( सं ० , वि ० ) = वास्तविक , ठीक , उचित , सत्य , जैसा है वैसा ।

यथार्थतः ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = यथार्थ रूप से , वास्तविक रूप में , सच्चे रूप में । 

यथोचित ( सं ० , वि ० ) = जैसा उचित है वैसा । 

यद्यपि ( सं ० ) = हालाँकि । 

यम ( सं ० , पुं ० ) = अष्टांग योग का पहला अंग जिसमें सत्य , अहिंसा , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ( असंग्रह ) आते हैं , संयम , अपनी इन्द्रियों को हानिकारक विषयों से हटाकर रखना ।

यात्रा ( सं ० , स्त्री ० ) = चलना , एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना । 

(याद ( फा ० ) = स्मरण स्मृति । P07 ) 

युक्त ( सं ० , वि ० ) = सहित , जुड़ा = हुआ , सटा हुआ , लगा हुआ । 

युक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = उपाय । 

(युक्ति = विचार । P04 ) 

युक्तियुक्त ( सं ० , वि ० ) = युक्ति संगत , तर्क - युक्त , तर्क - संगत , विचार के अनुकूल ।

युक्तिवाद ( सं ० , पुं ० ) = वह सिद्धान्त जिसमें उचित विचार को महत्त्व दिया जाता है । 

(युग - जोड़ा , दोनों । P30 , P03 )

(युग - युगान = युग - युगों तक , युग - युगों से , अनेक युगों से । ( युग चार हैं- सत्ययुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग । P09)

युगल ( सं ० , वि ० ) = दोनों , जोड़ा , दो वस्तुओं का समूह |

{यो = ईश्वर - प्राप्ति की युक्ति । ( महर्षि पतंजलि ने चित्तवृत्ति के निरोध को योग कहा है । चित्तवृत्ति का पूर्ण निरोध असली समाधि में होता है । ) P04 }

योग - विषयक ज्ञान ( सं ० , पुं ० ) = वह ज्ञान जो परमात्म - प्राप्ति की युक्ति के विषय से संबंध रखता है । 

योगी जन ( सं ० , पुं ० ) = वह पुरुष जो योग करता हो , वह व्यक्ति जो चित्त की वृत्तियों ( व्यापार , , कार्य ) को युक्ति - विशेष के द्वारा रोकने का प्रयत्न करता हो , वह व्यक्ति जो युक्ति - विशेष के द्वारा आत्मसाक्षात्कार करने का प्रयत्न कर रहा हो । 

योग्य ( सं ० , वि ० ) = लायक , समर्थ , उचित , ठीक , योग्यता रखनेवाला , कोई काम करने की क्षमता रखनेवाला । 

योग्यता ( सं ० , स्त्री ० ) = योग्य होने का भाव , शक्ति , सामर्थ्य  । 

योनि ( सं ० , स्त्री ० ) = प्राणी का शरीर । 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  मेलना, मेहर, मोक्ष-साधक, मोक्ष-साधन, मोह, मौज, यंत्र, यज्ञ-अग्नि, यत्न, यथा, यथार्थ, यथार्थतः, यथोचित, यद्यपि, यम, यात्रा, युक्त, युक्ति, युक्तियुक्त, युक्तिबाद, युगल, योग-विषयक ज्ञान, योगी जन, योग्य, योग्यता, योनि आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 39 || मेलना से योनि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 39  ||  मेलना  से  योनि  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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