महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / र
रंगीन - रेफरेंस
रंगीन ( सं ० , वि ० ) = रंगवाला ।
रजोगुण ( सं ० , पुं ० ) = प्रकृति का एक गुण या शक्ति जो उत्पन्न करने का काम करती है ।
रत ( सं ० , वि ० ) = लीन ।
ररं ( पुं ० ) = शून्य मंडल का शब्द ।
रवि ( सं ० , पुं ० ) = सूर्य ।
रस ( सं ० , पुं ० ) = जिह्वा इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण किया जानेवाला विषय , स्वाद , आनन्द , किसी पदार्थ का निचोड़ा गया तरल पदार्थ ।
रसना ( बंद, स्त्री ० ) = जिह्वा ।
रसीदा ( फा ० रसीदः , वि ० ) = पहुँचा हुआ , पूर्ण ।
(रहूँ = जाँच करता रहूँ , पहचान करता रहूँ , खोजता रहूँ । P09 )
(रहम (अरबी) = दया, कृपा। P11 )
(रहमान (अरबी) = दयालु, कृपालु । P11 )
रहस्य ( सं ० , पुं ० ) = छिपी हुई बात ।
(रागादि ( राग + आदि ) = प्रेम , आसक्ति , लालच आदि भाव । P13 )
(राजते = राजता है , विद्यमान है , स्थित है , शोभित है । P07 )
(राजस विषय = जो विषय ( पदार्थ ) रजोगुण बढ़ाए । P13 )
{राता = रत करनेवाला , अनुरक्त करनेवाला , संलग्न करनेवाला , लीन करनेवाला , अनुरक्त रहनेवाला , संलग्न रहनेवाला , लीन रहनेवाला ; देखें- " मनुआँ असथिरु सबदे राता , एहा करणी सारी । " ( गुरु नानकदेवजी )P30 }
{राता = रत , अनुरक्त , लगा हुआ , लीन , प्रेमी ; देखें- “ अस विवेक जब देइ विधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥ " ( मानस , बालकांड ) P30 }
{राम दिवाकर = सूर्यब्रह्म । ( राम = ब्रह्म । दिवाकर = सूर्य । त्रिकुटी में दिखाई पड़नेवाला सूर्य ब्रह्म और गुरु का अत्यन्त तेजोमय सगुण - साकार रूप है । पदावली के ८८ वें पद्य में इसे ब्रह्मदिवाकर कहकर गुरु का रूप बताया गया है ; देखें- " जहाँ ब्रह्म दिवाकर रूप गुरू धर , करें परम परकाश रे । " ) P03 }
रामनाम ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वास्तविक ध्वन्यात्मक नाम , सर्वव्यापक शब्द , समस्त सृष्टि में व्यापक शब्द , आदिनाद ।
(रामनाम = राम अर्थात् परम प्रभु परमात्मा का असली नाम । P05 )
राह ( फा ० , स्त्री ० ) = मार्ग , रास्ता , पथ ।
राहे नजात ( फा ० अ ० , स्त्री ० ) = मुक्ति का मार्ग ।
(रीझै = रीझता है , प्रसन्न होता है , संतुष्ट होता है । P145 )
(रुज = कष्ट , पीड़ा , संताप , रोग , बीमारी । P13 )
(रुद्धं = रुद्ध , अवरुद्ध , घिरा हुआ , ढंका हुआ , आच्छादित , आवरणित । P13 )
रूप ( सं ० , पुं ० ) = स्थूल दृष्टि या दिव्य दृष्टि से देखा जानेवाला विषय ।
(रूप ब्रह्मांड = सूक्ष्म जगत् जहाँ तक ही रंग - रूप दिखाई पड़ते हैं , प्रकाश - मंडल । P139 )
रूपान्तर ( सं ० , पुं ० ) = हुआ दूसरा रूप ।
रूपान्तरण ( सं ० , पुं ० ) = बदला बदलना ।
रूपान्तरित ( सं ० , वि ० ) = जिसका रूपान्तरण हुआ हो , दूसरे रूप में बदला हुआ , जो दूसरे रूप में बदल गया हो ।
रू-बरू ( फा ० ) = आमने - सामने , प्रत्यक्ष , समक्ष ।
{रूरे = श्रेष्ठ , उत्तम , सुन्दर , अच्छा ; देखें- " भरहिं निरन्तर होहिं न पूरे । तिन्हके हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे ॥ ( रामचरितमानस , अयोध्याकांड ) P04
रेचक ( सं ० , पुं ० ) = प्राणायाम की एक क्रिया जिसमें पेट में रोकी गयी वायु को बाहर निकाल दिया जाता है ।
(रेणु = धूल । नानक वाणी 52 )
रेफेरेन्स ( अँ o ) = प्रसंग , संकेत , चर्चा , उल्लेख ।
लखना - विख्यात तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां दवाएं
लालदास साहित्य सूची
|
प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत महर्षि मेँहीँ शब्दकोश + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।