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शब्दकोष 40 || रंगीन से रेफरेंस तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / र

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश

रंगीन - रेफरेंस

 

रंगीन ( सं ० , वि ० ) = रंगवाला  । 

रजोगुण ( सं ० , पुं ० ) = प्रकृति का एक गुण या शक्ति जो उत्पन्न करने का काम करती है । 

रत ( सं ० , वि ० ) = लीन । 

ररं ( पुं ० ) = शून्य मंडल का शब्द  ।  

रवि ( सं ० , पुं ० ) = सूर्य । 

रस ( सं ० , पुं ० ) = जिह्वा इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण किया जानेवाला विषय , स्वाद , आनन्द , किसी पदार्थ का निचोड़ा गया तरल पदार्थ । 

रसना  ( बंद, स्त्री ० ) =  जिह्वा । 

रसीदा ( फा ० रसीदः , वि ० ) = पहुँचा हुआ , पूर्ण । 

(रहूँ = जाँच करता रहूँ , पहचान करता रहूँ , खोजता रहूँ । P09 )

(रहम (अरबी) = दया, कृपा। P11 ) 

(रहमान (अरबी) = दयालु, कृपालु । P11 ) 

रहस्य ( सं ० , पुं ० ) = छिपी हुई बात । 

(रागादि ( राग + आदि ) = प्रेम , आसक्ति , लालच आदि भाव ।  P13  ) 

(राजते = राजता है , विद्यमान है , स्थित है , शोभित है ।  P07 ) 

(राजस विषय = जो विषय ( पदार्थ ) रजोगुण बढ़ाए । P13  ) 

{राता = रत करनेवाला , अनुरक्त करनेवाला , संलग्न करनेवाला , लीन करनेवाला , अनुरक्त रहनेवाला , संलग्न रहनेवाला , लीन रहनेवाला ; देखें- " मनुआँ असथिरु सबदे राता , एहा करणी सारी । " ( गुरु नानकदेवजी )P30 }

{राता =  रत , अनुरक्त , लगा हुआ , लीन , प्रेमी ; देखें- “ अस विवेक जब देइ विधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥ " ( मानस , बालकांड ) P30 }

{राम दिवाकर = सूर्यब्रह्म । ( राम = ब्रह्म । दिवाकर = सूर्य । त्रिकुटी में दिखाई पड़नेवाला सूर्य ब्रह्म और गुरु का अत्यन्त तेजोमय सगुण - साकार रूप है । पदावली के ८८ वें पद्य में इसे ब्रह्मदिवाकर कहकर गुरु का रूप बताया गया है ; देखें- " जहाँ ब्रह्म दिवाकर रूप गुरू धर , करें परम परकाश रे । " ) P03 }

रामनाम ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वास्तविक ध्वन्यात्मक नाम , सर्वव्यापक शब्द , समस्त सृष्टि में व्यापक शब्द , आदिनाद ।

(रामनाम = राम अर्थात् परम प्रभु परमात्मा का असली नाम । P05 ) 

राह ( फा ० , स्त्री ० ) = मार्ग , रास्ता ,  पथ ।  

राहे नजात ( फा ० अ ० , स्त्री ० ) = मुक्ति का मार्ग । 

(रीझै = रीझता है , प्रसन्न होता है , संतुष्ट होता है । P145 )

(रुज = कष्ट , पीड़ा , संताप , रोग , बीमारी । P13 ) 

(रुद्धं = रुद्ध , अवरुद्ध , घिरा हुआ , ढंका हुआ , आच्छादित , आवरणित ।  P13 ) 

रूप ( सं ० , पुं ० ) = स्थूल दृष्टि या दिव्य दृष्टि से देखा जानेवाला विषय । 

(रूप ब्रह्मांड = सूक्ष्म जगत् जहाँ तक ही रंग - रूप दिखाई पड़ते हैं , प्रकाश - मंडल । P139 ) 

रूपान्तर ( सं ० , पुं ० ) = हुआ दूसरा रूप । 

रूपान्तरण ( सं ० , पुं ० ) = बदला बदलना । 

रूपान्तरित ( सं ० , वि ० ) = जिसका रूपान्तरण हुआ हो , दूसरे रूप में बदला हुआ , जो दूसरे रूप में बदल गया हो । 

रू-बरू ( फा ० ) = आमने - सामने , प्रत्यक्ष , समक्ष ।

{रूरे = श्रेष्ठ , उत्तम , सुन्दर , अच्छा ; देखें- " भरहिं निरन्तर होहिं न पूरे । तिन्हके हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे ॥ ( रामचरितमानस , अयोध्याकांड ) P04

रेचक ( सं ० , पुं ० ) = प्राणायाम की एक क्रिया जिसमें पेट में रोकी गयी वायु को बाहर निकाल दिया जाता है । 

रेफेरेन्स ( अँ o ) = प्रसंग , संकेत , चर्चा , उल्लेख ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  रंगीन, रजोगुण, रत, ररं, रवि, रस, रसना, रशीदा, रहस्य, रामनाम, राह, राहे नजात, रूप, रूपांतर, रूपांतरण, रूपांतरित, रू-बरू, रेचक, रेरेफरेंसआदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 40 || रंगीन से रेफरेंस तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 40 || रंगीन से  रेफरेंस  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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