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शब्दकोष 41 || लखना से विख्यात तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ल

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
लालदास जी और गुरु बाबाबाबा


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

लखना - विख्यात

 

लखना ( स ० क्रि ० ) = देखने की क्रिया , देखना । 

लय ( सं ० , पुं ) = विलय , घुल-मिल जाना , एकमेक हो जाना ।

(लय = विलय , मिलना , लीन होना, नाश । P07 ) 

ललाम ( सं ० , पुं ० ) = रत्न । 

ललित ( सं ० , वि ० ) = सुन्दर । 

लसना ( अ ० क्रि ० ) = शोभा पाना । 

(लहत = लाभ करता है, प्राप्त करता है। P10 ) 

(लहर = तरंग, मनोविकार । P11 ) 

(लाग लगीजै = लाग लगा लीजिये , संबंध स्थापित कर लीजिये ।P145 )

लाभ ( सं ० , पुं ० ) = प्राप्ति , आमदनी ।  

लाभदायक ( सं ० , वि ० ) = लाभ देनेवाला । 

लिखित ( सं ० , वि ० ) = लिखा हुआ । 

(लेख = संस्कार , धर्मशास्त्र , विचार । श्रीचंदवाणी 1क 

(लेखे = देखता है, विचारता है, समझता है, मानता है, गिनता है। P10 ) 

लोप ( सं ० , पुं ० ) = गायब , नाश । 

लोभ ( सं ० , पुं ० ) = दूसरे की वस्तु को अनुचित रूप से ले लेने के लिए मन में उठा हुआ एक भाव । (लोभ = लालच , किसी दूसरे की अच्छी या उपयोगी वस्तु को देखकर उसे अपनाने या वैसी ही वस्तु कहीं से या किसी तरह प्राप्त करने की प्रबल इच्छा का होना । P09 ) 

लौकिक वस्तु ( सं ० , स्त्री ० ) = आँखों से दिखलायी पड़नेवाले लोक ( संसार ) की वस्तु । 

(लंगोटी - कौपीन , कछनी ।  श्रीचंदवाणी 1क ) 



वंचित ( सं ० , वि ० ) = ठगा हुआ , अलग , दूर ।  

{व ( फा ० ) = और । P09 )   P07 }  

(वच = वचन , वाणी , वाक्य । P01 ) 

(वग्नुं  = रमणीय अनाहत नाद को। MS01-3 )  

वचन- अगोचर ( सं ० , वि ० ) = जिसके विषय में वचन ( वाणी ) से कुछ भी कहा नहीं जा सके । 

(वर = वरदान । P13 ) 

वर्णन ( सं ० , पुं ० ) = कहने की क्रिया , कथन , कहना ।

वर्णनानुसार ( सं ० , वि ० ) = वर्णन के अनुसार । 

वर्णात्मक शब्द ( सं ० पुं ० ) = वर्णों ( अक्षरों ) से बना हुआ शब्द ; जैसे गाय , पुस्तक , राम , वृक्ष आदि । 

वर्णित ( सं ० , वि ० ) = वर्णन किया हुआ , कहा हुआ । 

(वसन = कपड़ा , वस्त्र , मकान , महल , निवास ।  P13 ) 

(व्यापक = फैला हुआ । P06 ) 

(व्यापक = फैला हुआ , समस्त प्रकृतिमंडलों में फैला हुआ । P13 ) 

(व्यापक = सर्वव्यापक , सबमें फैला हुआ, समस्त प्रकृति - मंडलों में फैला हुआ, परमात्म - अंश । P07 ) 

(व्याप्य = जिसमें कुछ फैलकर रह रहे हो , समस्त प्रकृति - मंडल जिनमें परमात्म - अंश व्यापक है । P07 ) 

(व्याप्य पर = प्रकृति - मंडलों के बाहर , सर्वव्यापकता के परे ।P07 )

(वाचा = वचन , वचन से । P09 )

(वाणम्  = भोक्ता आत्मा को। MS01-3 )  

विकार ( सं ० , पुं ० ) = किसी पदार्थ का बिगड़ा हुआ रूप , मन में उत्पन्न होनेवाला हानिकारक भाव ; जैसे काम , क्रोध , लोभ , मद , मोह या ईर्ष्या ; क्षेत्र ( शरीर ) का विकार ; जैसे इच्छा , द्वेष , सुख या दुःख । ( गीता , अ ०१३

विकास ( सं ० , पुं ० ) = आगे बढ़ने की क्रिया , प्रगति , उन्नति , फैलाव । 

विकृत ( सं ० , वि ० ) = विकार युक्त , जिसका रूप बिगड़ गया  हो या बदल गया हो । 

विकृति ( सं ० , स्त्री ० ) = विकृत होने की क्रिया या भाव , रूप के बिगड़ या बदल जाने का भाव , महाकारण - मंडल का वह भाग जो त्रय गुणों का उत्कर्ष - अपकर्ष हो जाने पर विकृत ( विकार युक्त , परिवर्त्तित ) हो गया हो । 

विख्यात ( सं ० , वि ० ) = विशेष प्रसिद्ध , विशेष प्रचलित , जिसका नाम - यश अधिक फैला हुआ हो ,  जो अधिक चर्चा में हो जिसे बहुत अधिक लोग जानते पहचानते हो.


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  लखना, लय, ललाम, ललित, लसना, लाभ, लाभदायक, लिखित, लोप, लोभ, लौकिक वस्तु, वंचित, वचन-अगोचर, वर्णन, वर्णनानुसार, वर्णनात्मक शब्द, वर्णित, विकार, विकास, विकृत, विकृति, विख्यात आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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शब्दकोष 41 || लखना से विख्यात तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 41 ||  लखना से  विख्यात  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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