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शब्दकोष 42 || विगतविकार से विशाल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / व

      प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि मेंहीं और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


विगतविकार - विशाल


विगतविकार ( सं ० , वि ० ) = विकारों ( दोषों ) से विहीन । 

(विगासक = विकासक , विकास करनेवाला , बढ़ानेवाला । P03 )

विचारानुसार ( सं ० वि ० ) = विचार के अनुसार । 

विचित्र ( सं ०, वि ० ) = विलक्षण , अनोखा , असाधारण , जो साधारण नहीं हो , अजीब ढंग का ; पहले नहीं देखा , सुना या अनुभव किया हुआ । 

विज्ञानरूप ( सं ० , वि ० ) = जिसका स्वरूप विशेष ज्ञानमय हो । 

विदित ( सं ० वि ० ) = ज्ञात , मालूम , जाना हुआ , प्रसिद्ध ।

(विघ्न = बाधा , उलझन , आफत । P03 )

विद्यमान ( सं ० , वि ० ) = अस्तित्व रखनेवाला , अपनी स्थिति रखनेवाला । 

विद्या ( सं ० , वि ० स्त्री ० ) = जानने के योग्य ( वस्तु ) । ( स्त्री ० ) ज्ञान शास्त्र । 

विद्याभ्यास ( सं ० , पुं ० ) = विद्या ( ज्ञान ) सीखने का अभ्यास ।

(विनय = विनती , प्रार्थना , निवेदन ।  P13  ) 

(विनवौं = विनती ( प्रार्थना ) करता हूँ , गुणगान करता हूँ । P09,   P03 ) 

(विराग = वैराग्य , लोक - परलोक के पदार्थों और सुखों में आसक्त न होने का भाव । P30 )

विद्वान् ( सं ० , वि ० ) = किसी विद्या की विशेष जानकारी रखनेवाला  ।

विधि ( सं ० , स्त्री ० ) = प्रकार , युक्ति , तरीका , उपाय , कोई काम करने का ढंग । ( पुं ० ) ब्रह्मा । 

(विनाशन = विनाश करना ; यहाँ अर्थ है विनाश करनेवाला । । P04 ) 

विन्दु ( सं ० , पुं ० ) = परिमाण - रहित और विभाजित नहीं होनेवाला चिह्न ।  

विपरीत ( सं ० , वि ० ) = उलटा । 

विभुता ( सं ० , स्त्री ० ) = व्यापकता फैला हुआ होने का भाव , बड़ा होने का भाव , बड़प्पन । 

विभूति - रूप ( सं ० , पुं ० ) = परमेश्वर का विभूति - रूप , परमेश्वर का कोई ऐश्वर्यवान् रूप , , परमेश्वर का कोई वह रूप जो विशेष तेजस्वी या विशेषतावाला हो जैसे गीता में भगवान् ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ , अक्षरों में मैं अकार हूँ ... आदि - आदि ।

विरज ( सं ० , वि ० ) = रज - रहित , मैल - रहित , निर्मल , शुद्ध , पवित्र । 

विरुद्ध ( सं ० , वि ० ) = के प्रतिकूल , के उलटा , के मुकाबले के सामने । 

विरोध ( सं ० , पुं ० ) = खिलाफ , विपक्षता । 

विलास ( सं ० , पुं ० ) = इशारा , आनन्द । 

विलीन ( सं ० , वि ० ) = विशेष रूप से लय को प्राप्त , विशेष रूप से किसी में मिल जाना , विनष्ट , गायब । 

विविध ( सं ० , वि ० ) = अनेक प्रकार के ।

विविधता ( सं ० , स्त्री ० ) = अनेकता , अनेक होने का भाव ।

(विवेक = उचित - अनुचित को समझने की बुद्धि की शक्ति । P30 )

विशाल ( सं ० , वि ० ) = बड़ा , बहुत लम्बा - चौड़ा तथा ऊँचा , बहुत बड़ा तथा देखने में सुंदर, भव्य ।


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हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्द कोस,
 

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शब्दकोष 42 || विगतविकार से विशाल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 42  ||  विगतविकार  से  विशाल  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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