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शब्दकोष 29 || निर्मल चैतन्य से परधाम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / न

    प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


निर्मल चैतन्य - परधाम

 

निर्मल चैतन्य ( सं ० , पुं ० ) = कैवल्य मंडल , निर्मल चेतन मंडल। 

निर्मायिक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = माया - रहित शब्द , त्रयगुण - रहित शब्द , निर्गुण शब्द , आदिनाद । 

निर्मूल ( सं ० , वि ० ) = जड़ विहीन , पूरी तरह नष्ट । 

निर्मोह ( सं ० , वि ० ) = मोह - रहित , अज्ञानता - रहित , ममता या आसक्ति से रहित । 

निर्वाह ( सं ० , पुं ० ) = गुजर - बसर । 

(निवारण = हटाना , रोकना , दूर करना । P07 ) 

निश्चय ( सं ० , पुं ० ) = अवश्य ( क्रि ० वि ० ) निश्चित रूप से ।

(निश्चय = संकल्प , धारणा , विचार , विश्वास । P06 ) 

निश्चलता ( सं ० , स्त्री ० ) = निश्चल होने का भाव , नहीं चलने का भाव । 

{निश्चलता ( निः + चलता )= मन की अचलता , मन का चलायमान न होना । ( मन की पूरी स्थिरता वा निश्चलता विषयों की आसक्ति का त्याग करने पर होती है और आसक्ति का त्याग शब्द - साधना की पूर्णता होने पर होता है । ) P08 }

निश्चित ( सं ० , वि ० ) = निश्चय किया हुआ , निर्णय किया हुआ , बिल्कुल ठीक , दृढ़ , पक्का , साबित किया हुआ , सत्य ।

(निष्कपट = कपट - रहित , छल - रहित , दुराव - छिपाव - रहित , सच्चा  P06 ) 

(निष्कपट ( निः + कपट ) = कपट - रहित , छल - रहित,  सच्चा , सरल । P07 ) 

निषेधात्मक उक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = नकारात्मक कथन , वह कथन जिसमें कुछ न होने का भाव हो ।  

(निशि - दिन = रात - दिन ।P09 )

निसबत ( अ ० , स्त्री ० ) = विषय में , बारे में , संबंध , तुलना ।

(नीच = मलिन , अपवित्र , बुरा , ओछा । P02 )

नूर ( अ ० , पुं ० ) = प्रकाश । 

नेति ( सं ० , पुं ० ) = यह नहीं , अन्त नहीं ।

नेह ( सं ० स्नेह , पँ ० ) = प्रेम , छोटे से किया जानेवाला प्रेम ।

(नेहू - नेह , स्नेह , प्रेम , राग । P09 )

नोक ( फा ० , स्त्री ० )= किसी पदार्थ का बहुत पतला सिरा । 

न्यून ( सं ० , वि ० ) = थोड़ा , छोटा ।

 

 

पंचगंगाघाट ( पुं ० ) = काशी का एक स्थान जहाँ कई नदियों का मिलाप है । 

पंजा ( फा ० , पुं ० )  = पाँचो अंगुलियों सहित हथेली का अगला भाग , संकेत , इशारा , भेद , आज्ञा । 

(पद = स्थान , आधार । ( परमात्मा में स्थान और स्थानीय का भेद नहीं होता । P06 ) 

(पट = आवरण ।  P07 ) 

पंथाई भाव ( पुं ० ) = अपने ही पंथ , मत या संम्प्रदाय को बड़ा मानने का भाव । ( पंथाई भाव - दूसरे के पंथ को ओछा और अपने पंथ को श्रेष्ठ मानते हुए अपने ही पंथ की बातों पर अविचारपूर्वक डटे रहने का भाव , साम्प्रदायिक भाव । P08  ) 

( प्रेम = हृदय का वह भाव जिसके कारण प्रिय व्यक्ति को बार बार स्मरण करते हैं ; बार - बार उसे देखने की इच्छा होती है ; सदा उसकी निकटता चाहते हैं और स्वयं कष्ट उठाकर भी उसे सुखी देखना चाहते हैं । P09 ) 

( प्रेम-भक्ति - वह सेवा भाव जिसमें प्रेम निहित हो , प्रेमपूर्ण सेवा भाव । P09 ) 

पक्ष ( सं ० , पुं ० ) = पंख , तरफ , ओर । 

पटाकाश ( सं ० , पुं ० ) = कपड़े से बने घर के भीतर का आकाश । 

पद ( सं ० , पुं ० ) = स्थान , आधार , पाँव , पद्य , कविता , वह कार्य - भार जो किसी व्यक्ति को सौंपा गया हो | 

(पद = चरण । P03 , P02 )

पद्य ( सं ० , पुं ० ) = कविता । 

परधाम ( सं ० , पुं ० ) = श्रेष्ठ धाम , श्रेष्ठ स्थान , परमात्मा । ( वि ० ) जो सब धामों ( पदों , स्थानों ) में श्रेष्ठ हो ( परमात्मा ) |


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  निर्मल चैतन्यधा, निर्मायिक शब्द, निर्मूल, निर्मोह, निर्वाह, निश्चय, निश्चलता, निश्चित, निषेधात्मक उक्ति, निसवत, नूर, नेति, नेह, नोक, न्यून, पंचगंगाघाट, पंजा, पंथाई भाव, पक्ष, पटाकाश, पद, पद्य, परधाम , आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 29 || निर्मल चैतन्य से परधाम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 29 ||  निर्मल चैतन्य  से  परधाम   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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