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शब्दकोष 30 || परम से परा तक के शब्दों के शब्दार्थादि || संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / प

     प्रभु प्रेमियों ! ' संतमत+ मोक्ष - दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं . कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन किया गया है. जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपादेय है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें.

निर्मल चैतन्य - परधाम  तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं

सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
लालदास जी और गुरु बाबाबाबा


परम - परा    शब्द  तक के शब्द और उसके अर्थ


परम - परां

{पर = उत्कृष्ट , श्रेष्ठ । (mmbP01}

(पर = श्रेष्ठ , ऊपर , बाहर । P06 ) 

परम ( सं ० , वि ० पुं ० ) अत्यन्त , सबसे श्रेष्ठ । ( P03 )

(परम = अत्यन्त , अत्यधिक , सबसे बढ़ा - चढ़ा । P04 ) 

परम अध्यात्म पद ( सं ० , पुं ० ) = परमात्म - पद । 

परम अलौकिक ( सं ० , वि ० ) = अत्यन्त अलौकिक ( पुं ० ) परमात्मा । 

परम उच्च पद ( सं ० , पुं ० ) = अत्यन्त ऊँचा पद , परमात्म - पद । 

परम कल्याण ( सं ० , पुं ० ) = अत्यन्तु भलाई , परम मुक्ति , जन्म - मरण के चक्र से छूटकर परमात्मा से मिल जाना । 

{परम गुरु = सबसे बढ़ा - चढ़ा गुरु , जो सबका गुरु हो , परमात्मा । ( परमात्मा ने सृष्टि के आरंभिक काल में ऋषियों के हृदय में ज्ञान दिया । उस ज्ञान को ऋषियों ने लोगों में प्रचारित किया । इसीलिए परमात्मा आदिगुरु और सबका गुरु या परम गुरु कहा जाता है । ) P04 }

परम ज्ञान ( सं ० , पँ ० ) = उच्च श्रेणी का ज्ञान , अध्यात्म ज्ञान ।

(परम तत्त्व = सबसे पहले का तत्त्व या पदार्थ , आदितत्त्व , सर्वोपरि तत्त्व , मूलतत्त्व जिससे समस्त सृष्टि हुई है । P06 )

परम पद ( सं ० , पुं ० ) = सर्वश्रेष्ठ पद , परमात्म पद । 

परम पावन ( सं ० , वि ० ) अत्यन्त पवित्र ।  

परम पुरातन ( सं ० , वि ० पुं ० ) = सबसे अधिक पुराना । ( पुं ० ) परमात्मा । 

(परम पुरातन = जो अत्यन्त प्राचीन काल से अपना अस्तित्व रखता हुआ आ रहा है , जिससे पुराना और कोई वा कुछ नहीं है ।P06 )

(परम पुरुषहू तें = परम पुरुष ( परमात्मा ) से भी ।  P03 )

(परम प्रचंडिनि शक्ति = परम प्रचंड शक्ति , परमात्मा की अत्यन्त बड़ी शक्ति, जिसके द्वारा परमात्मा सृष्टि करता है । P05 ) 

परम प्रभु ( सं ० , वि ० ) = सबसे बड़ा शासक । ( पुं ० ) परमात्मा । 

(परम प्रभु = जिससे बड़ा दूसरा कोई शासक नहीं हो । P06 )

परम मोक्ष ( सं ० , पुं ० ) = वह श्रेष्ठ मोक्ष जिसमें कोई भी शरीर नहीं रहे और परमात्म - पद में अवस्थिति हो जाए , वह उत्तम स्थिति जिसमें जन्म - मरण का चक्र छूट जाए । 

परम योग ( सं ० , पुं ० ) = उच्च श्रेणी का योग , परमात्म साक्षात्कार का उच्च श्रेणी का साधन ( युक्ति , उपाय ) । 

(परम विज्ञानी = जिन्होंने परम विज्ञानस्वरूप परमात्मा को पा लिया हो , पूर्ण विज्ञानी , पूर्ण अनुभव और पूर्ण समता प्राप्त व्यक्ति । P30 )

(परम सुहावन = परम सुहावना , देखने में बड़ा अच्छा लगनेवाला  । P30 )

परम शान्तिदायक ( सं ० , वि ० ) = अत्यन्त शान्ति देनेवाला ।

परम सत्ता ( सं ० , स्त्री ० ) = वह सबसे बड़ा अस्तित्ववान् पदार्थ जिसके आधार पर अन्य सब पदार्थ टिके हुए हैं , परम तत्त्व , परमात्मा । 

(परम सत्ता = परम अस्तित्ववान् , जो व्यावहारिक और प्रातिभासिक सत्ताओं से उच्चतर पारमार्थिक सत्ता है , जिसकी अपनी निजी स्थिति है । P06 ) 

परम सनातन ( सं ० , वि ० पुं ० ) = सबके पहले से अपना अस्तित्व रखता हुआ आनेवाला । ( पुं ० ) परमात्मा । 

(परम सनातन = जो अत्यन्त प्राचीन और अत्यन्त अविनाशी है , जो सदा से विद्यमान ही है । P06 ) 

परम सन्त पुरुष ( सं ० , पुं ० ) = जो पुरुष पूरी तरह सन्त की गति को प्राप्त कर गया हो । 

परमा भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = ऊँचे स्तर की भक्ति , अत्यन्त श्रेष्ठ भक्तियोग । 

परमात्मा की विभूति ( स्त्री ० ) - सृष्टि का तेजवान् , ऐश्वर्यवान् या धर्मवान् प्राणी पदार्थ । 

परमोचित ( सं ० वि ० ) = अत्यन्त उचित , अत्यन्त अच्छा । ( पुं ० ) अत्यन्त अच्छा काम । 

(परमोदार ( परम + उदार ) = अत्यन्त खुले दिलवाला । P04 ) 

परवाह ( फा ० , स्त्री ० ) = चिन्ता , ख्याल , विचार । 

{परस्पर सापेक्षा भाष. वे दो पदार्थ जिनका आपस में कारण कार्य या आधार- आधेय का संबंध हो; जैसे- पिता-पुत्र और मिट्टी - घड़े में  कारण - कार्य का तथा आकाश - बादल में आधार - आधेय का संबंध है । २. उलटे गुण रखनेवाले दो पदार्थ : जैसे- अंधकार - प्रकाश , शीत - उष्ण , जन्म - मरण , जड़ - चेतन आदि । ) P01 }

परा ( सं ० , वि ० स्त्री ० ) = श्रेष्ठ | ( स्त्री ० ) परा प्रकृति , चेतन प्रकृति जो जड़ प्रकृति से श्रेष्ठ है । 

(परा = चेतन - प्रकृति mmbP01 ।) 

{परा (स्त्री ० वि० ) = प्रकृति , उच्च कोटि की प्रकृति , ज्ञानमयी प्रकृति , चंतन प्रकृति ( देखें , गी ० , अ ० ७) । P01}

{परा = परा प्रकृति , उच्च कोटि की प्रकृति , चेतन प्रकृति ( देखें- गीता , अध्याय ७ , श्लोक 5  ) । P06 }

{परा ( स्त्री ० विशेषण ) = श्रेष्ठ । P06 }

(परा धारा = श्रेष्ठ धारा , चेतन धारा । P05  ) 




परा धारा - पुतली    तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं



     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इन पोस्टों  में संत , संतमत , संतमत की उपयोगिता , जड़ प्रकृति , चेतन प्रकृति , आदिनाद , सृष्टि - क्रम , सृष्टि के मंडल , जीव , ब्रह्म , ईश्वर , परमेश्वर , ईश्वर की भक्ति , परम मुक्ति , संतमत की साधना - पद्धतियों ( मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टियोग तथा शब्द - साधना ) , साधना - पद्धतियों के अभ्यास से उत्पन्न अनुभूतियों , सद्गुरु की महत्ता , यम - नियम , साधकों के आहार-विहार, सत्संग,   परम, परम अध्यात्म-पद, परम अलौकिक, परम उच्च पद, परम कल्याण, परम ज्ञान, परम पद, परम पावन, परम पुरातन, परम प्रभु, परम मोक्ष, परम योग, परम शांतिदायक, परम सत्ता, परम सनातन, परम संत पुरुष, परमा भक्ति, परमात्मा की विभूति, परमोचित, परवाह, परा, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । 



मोक्ष दर्शन का शब्दकोश
मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष 

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शब्दकोष 30 || परम से परा तक के शब्दों के शब्दार्थादि || संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष शब्दकोष 30 || परम  से  परा   तक के शब्दों के शब्दार्थादि  ||  संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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