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शब्दकोष 31 || परा प्रकृति से पुतली तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / प

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


परा प्रकृति- पुतली

 

परा प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) = श्रेष्ठ प्रकृति , चेतन प्रकृति जो ज्ञानमयी होने के कारण जड़ प्रकृति से श्रेष्ठ है । 

परा प्रकृति मंडल ( सं ० , पुं ० ) = चेतन प्रकृति का मंडल |

पराकाष्ठा ( सं ० , स्त्री ० ) = चरम सीमा , अन्तिम सीमा ।

परिचालित ( सं ० , वि ० ) = अच्छी तरह चलाया जाता हुआ ।

(परिचालित होता रहता है = चलाया जाता रहता है । P06 ) 

परिमित ( सं ० , वि ० )= सीमित , सीमा - युक्त । 

परिहरना ( स ० क्रि ० ) = छोड़ना ,  त्याग करना । 

परे ( सं ० पर , क्रि ० वि ० ) = बाहर , ऊपर , रहित , आगे , बाद , दूर , अलग । ( परे = बाहर , ऊपर । P07 ) 

परोक्ष ( सं ० वि ० ) = अप्रत्यक्ष , जो प्रत्यक्ष नहीं हो , जो आँखों के सामने नहीं हो , जिसका अनुभव नहीं हुआ हो । 

परोक्ष ज्ञान ( सं ० , पुं ० ) = बौद्धिक ज्ञान , पढ़ा हुआ या सुना हुआ ज्ञान , जो ज्ञान अनुभव में नहीं आया हो । 

पवित्रतापूर्ण ( सं ० , वि ० ) = पवित्रता से भरा हुआ । 

पसार ( सं ० प्रसार , पुं ० ) = विस्तार , फैलाव । 

पसीना ( हिं ० , पुं ० ) = गर्मी के कारण या शारीरिक श्रम करने पर शरीर के रोमकूपों से निकलने वाली जल की बूँदें । 

पसीने की कमाई ( स्त्री ० ) = स्वयं परिश्रम करने पर प्राप्त संपत्ति ।  

पहचान ( स्त्री ० ) = पहचानने की क्रिया , किसी लक्षण के आधार पर किसी को जानना या उससे परिचित होना । 

पाँच तत्त्वों के रंग ( पुं ० ) = पीला ( पृथ्वी का ) , लाल ( जल का ) , काला ( अग्नि का ) , हरा ( हवा का ) , उजला ( आकाश का ) । 

(पाखंड = ढोंग , आडम्बर, दिखावे का आचरण । P07 ) 

(पाणि = हाथ । P03 )

पात्र ( सं ० , पुं ० ) = बरतन । ( वि ० ) योग्य , लायक। 

(पाप निषेधन = पाप कर्मों से विरत करनेवाला , पाप कर्म करने से रोकनेवाला , पाप कर्म करने की मनाही करनेवाला , पापों के संस्कारों को मिटानेवाला । P30 )

पार ( सं ० , पुं ० ) = किसी पदार्थ का दूसरा किनारा , बाहर , दूसरी ओर , ऊपर , रहित , विहीन । 

(पार = पर , परे , बाहर , ऊपर , विहीन , श्रेष्ठ , भित्र । P01 ) 

(पार = नदी आदि का दूसरा किनारा । P11 ) 

(पार = बाहर , विहीन । P13  ) 

पाराग्राफ ( अं ० , पुं ० ) = अनुच्छेद , गद्य का वह अंश जिसमें अपने आपमें कोई पूरी बात लिखी गयी हो । 

पास ( सं ० पार्श्व , क्रि ० वि ० ) = निकट , समीप , नजदीक , जो दूर नहीं हो । 

{पाहिं = प्रति, पास, निकट; देखें - "हरि कुमति भर्महिं सुमति सत्य को, पाहि मोहि दीजै अभू । ” (१६वाँ पद्य) "सन्तत रहुँ मन नीच के पाहीं ।" ( १८वाँ पद्य)  P11 }

पिंड ( सं ० , पुं ० ) = प्राणी का शरीर , शरीर में आँखों से नीचे का भाग । 

(पिंड = शरीर , शरीर का दोनों आँखों से नीचे का भाग । P30 )

(पिंड = स्थूल शरीर, स्थूल शरीर का दोनों आँखों के नीचे का भाग। P10 ) 

पिण्डस्थ ( सं ० , वि ० ) = पिंड ( शरीर ) में स्थित । 

पुतली ( हिं ० , स्त्री ० ) = आँख का गोला ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  परा प्रकृति, परा प्रकृति मंडल, पराकाष्ठा, परिचालित, परिमित, परिहरना, परे, परोक्ष, परोक्ष ज्ञान, पवित्रतापूर्ण, पसार, पसीना, पसीने की कमाई, पहचान, पांच तत्वों के रंग, पात्र, पार, पाराग्राफ, पास, पिंड, पिंडस्त, पुतली,, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


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शब्दकोष 31 || परा प्रकृति से पुतली तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 31  ||  परा प्रकृति  से पुतली   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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