सत्संग योग भाग 4 (मोक्ष दर्शन) / 04
प्रभु प्रेमियों ! भारतीय साहित्य में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों और प्राचीन-आधुनिक पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों को संग्रहित करकेे प्रमाणित किया गया है कि सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों में एकता है। 'सत्संग योग' नामक इस पुस्तक के चौथे भाग में इन्हीं विचारों के आधार पर और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अपनी साधनात्मक अनुभूतियों के आधार पर, मनुष्यों के सभी दुखों से छूटने के उपायों का वर्णन किया गया है। इसे 'मोक्ष दर्शन' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मोक्ष से संबंधित बातों को अभिव्यक्त् करने के लिए पाराग्राफ नंंबर दिया गया हैैैै । इन्हीं पैराग्राफों में से कुुछ पैराग्राफों के बारे में जानेंगेेेे ।
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नादानुसंधान का महत्व और योगिक क्रिया नाद योग
प्रभु प्रेमियों ! संतमत के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज निम्नलिखित पाराग्राफों में नादानुसंधान की कितनी अवस्थाएं हैं, नादानुसंधान की अवस्था की संख्या, नाद के प्रकार, आहत नाद क्या है, सत्संग-योग में वर्णित नादानुसंधान के विषय, नाद श्रवण, नाद के प्रकार, नाद योग समाधि, नादानुसन्धान, नाद की विशेषताएं naadaanusandhaan kee kitanee avasthaen hain, naadaanusandhaan kee avastha kee sankhya, naad ke prakaar, aahat naad kya hai, satsang-yog mein varnit naadaanusandhaan ke vishay, naad shravan, naad ke prakaar, naad yog samaadhi, naadaanusandhaan, naad kee visheshataen इत्यादि बातों के बारे में बताया गया है। इन बातों को समझने के लिए पढ़े ं--
मोक्ष दर्शन (33 से 44)
( ३३ ) कम्प और शब्द के बिना सृष्टि नहीं हो सकती । कम्प और शब्द सब सृष्टियों में अनिवार्य रूप से अवश्य ही व्यापक हैं ।
( ३४ ) आदिशब्द सम्पूर्ण सृष्टि के अन्तस्तल में सदा अनिवार्य , अविच्छिन्न और अव्याहत रूप से अवश्य ही ध्वनित होता है । यह अत्यन्त निश्चित है । यह शब्द सृष्टि का साराधार , सर्वव्यापी और सत्य है ।
( ३५ ) अव्यक्त से व्यक्त हुआ है अर्थात् सूक्ष्मता से स्थूलता हुई है । सूक्ष्म , स्थूल में स्वाभाविक ही व्यापक होता है । अतएव आदिशब्द सर्वव्यापक है । इस शब्द में योगी जन रमते हुए परम प्रभु सर्वेश्वर तक पहुँचते हैं अर्थात् इस शब्द के द्वारा परम प्रभु सर्वेश्वर का अपरोक्ष ( प्रत्यक्ष ) ज्ञान होता है । इसलिए इस शब्द को परम प्रभु का नाम - ' रामनाम ' कहते हैं । यह सबमें सार रूप से है तथा अपरिवर्तनशील भी है । इसीलिए इसको सारशब्द , सत्यशब्द और सत्यनाम भारती सन्तवाणी में कहा है , और उपनिषदों में ऋषियों ने इसको ॐ कहा है । इसीलिए यह आदिशब्द संसार में ॐ कहकर विख्यात है ।
( ३६ ) शब्द का स्वाभाविक गुण है कि वह अपने केन्द्र पर सुरत को आकर्षित करता है , केन्द्र के गुण को साथ लिए रहता है और अपने में ध्यान लगानेवाले को अपने गुण से युक्त कर देता है ।
( ३७ ) सृष्टि के दो बड़े मण्डल हैं - परा प्रकृति मण्डल वा सच्चिदानन्द पद वा कैवल्य पद वा निर्मल चेतन ( जड़ - विहीन चेतन ) मण्डल और अपरा प्रकृति वा जड़ात्मक प्रकृति मण्डल ।
( ३८ ) जड़ात्मक वा अपरा प्रकृति चार मण्डलों में विभक्त है - महाकारण , कारण , सूक्ष्म और स्थूल । इस प्रकृति का मूल स्वरूप ( रज , तम और सत्त्व ) त्रय गुणों का सम्मिश्रण रूप है ; अपने इस रूप में यह प्रकृति साम्यावस्थाधारिणी है । इसके इस रूप को महाकारण कहना चाहिये । इसके इस रूप के किसी विशेष भाग में जब गुणों का उत्कर्ष होता है , तब इसका वह भाग क्षोभित होकर विकृत रूप को प्राप्त हो जाता है । इसलिए वह भाग प्रकृति नहीं कहलाकर विकृति कहलाता है और उस भाग में सम अवस्था नहीं रह जाती है । विश्व - ब्रह्माण्ड की रचना होती है और इसीलिए वह भाग विश्व - ब्रह्माण्ड का कारण - रूप है । ऐसे अनेक बह्माण्डों का कारण जड़ात्मक मूल प्रकृति में है , इसलिए यह प्रकृति अपने मूल रूप में कारण की खानि भी कही जा सकती है । कारण - रूप से सृष्टि का प्रवाह जब और नीचे की ओर प्रवाहित होता है , तब वह सूक्ष्म कहलाता है और सूक्ष्म रूप से और नीच की ओर उतरकर स्थूलता को प्राप्त हो वह स्थूल कहलाता है । इसी तरह जड़ात्मक प्रकृति के चार मण्डल बनते हैं ।
( ३९ ) परा प्रकृति - मण्डल के सहित जड़ात्मक प्रकृति के चारो मण्डलों को जोड़ने से सम्पूर्ण सृष्टि में पाँच मण्डल - कैवल्य , महाकारण , कारण , सूक्ष्म और स्थूल हैं ।
( ४० ) संख्या ३९ में लिखित पाँच मण्डलों से जैसे विश्व ब्रह्माण्ड ( बाह्य जगत् ) भरपूर है , वैसे ही इन पाँचो मण्डलों से पिण्ड ( शरीर ) भी भरपूर है । जाग्रत और स्वप्न अवस्थाओं में की अपनी स्थितियों को विचारने पर प्रत्यक्ष ज्ञात होता है कि पिंड के जिस मण्डल में जब जो छोड़ता है , ब्रह्माण्ड के भी उसी मण्डल में वह तब रहता है वा ब्रह्माण्ड के भी उसी मण्डल को वह तब छोड़ता है । इसलिए पिण्ड के सब मण्डलों को जो सुरत वा चेतन - वृत्ति पार करेगी , तो बाह्य सृष्टि के भी सब मण्डलों को वह पार कर जाएगी ।
( ४१ ) किसी भी मण्डल का बनना तबतक असम्भव है , जबतक उसका केन्द्र स्थापित न हो ।
( ४२ ) संख्या ३९ में सृष्टि के कथित पाँच मण्डलों के पाँच केन्द्र अवश्य हैं ।
( ४३ ) कैवल्य मण्डल का केन्द्र स्वयं परम प्रभु सर्वेश्वर हैं । महाकारण का केन्द्र कैवल्य और महाकारण की सन्धि है , कारण का केन्द्र महाकारण और कारण की सन्धि है , सूक्ष्म का केन्द्र कारण और सूक्ष्म की सन्धि है और स्थूल का केन्द्र सूक्ष्म और स्थूल की सन्धि है ।
( ४४ ) केन्द्र से जब सृष्टि के लिए कम्प की धार प्रवाहित होती है , तभी सृष्टि होती है और प्रवाह का सहचर शब्द अवश्य होता है । अतएव संख्या ३९ में कथित पाँचो मण्डलों के केन्द्रों से उत्थित केन्द्रीय शब्द अवश्य हैं । कथित पाँचो मण्डलों के केन्द्रीय ध्वन्यात्मक सब शब्दों के मुँह वा प्रवाह - ओर ऊपर से नीचे को है । इनमें से प्रत्येक , सुरत को अपने - अपने उद्गम - स्थान पर आकर्षण करने का गुण रखता है । सार - शब्द वा निर्मायिक शब्द परम प्रभु सर्वेश्वर तक आकर्षण करने का गुण रखता है और वर्णित दूसरे - दूसरे शब्द , जिन्हें मायावी कह सकते हैं , अपने से ऊँचे दर्जे के शब्दों से , ध्यान लगानेवाले को मिलाते हैं । इनका सहारा लिए बिना सारशब्द का पाना असम्भव है । यदि कहा जाय कि सारशब्द मालिक के बुलाने का पैगाम देता है , तो उसके साथ ही यही कहना उचित है कि इसके अतिरिक्त दूसरे सभी केन्द्रीय शब्दों में से प्रत्येक शब्द अपने से ऊँचे दर्जे के शब्दों को पकड़ा देता है । इति।।
( मोक्ष-दर्शन में आये किलिष्ट शब्दों की सरलार्थ एवं अन्य शब्दों के शब्दार्थादि की जानकारी के लिए "महर्षि मेँहीँ + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें )
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प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन के उपर्युक्त पैराग्राफों से हमलोगों ने जाना कि How many stages of nadusanandha, number of nadanasandha, types of nad, what is nada nad इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें। जय गुरु महाराज।
महर्षि मेँहीँ साहित्य "मोक्ष-दर्शन" का परिचय
'मोक्ष-दर्शन' सत्संग-योग चारों भाग पुस्तक का चौथा भाग ही है. इसके बारे में विशेष रूप से जानने के लिए 👉 यहां दवाएं।
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मोक्ष दर्शन (33-44) नादानुसंधान का महत्व और योगिक क्रिया नाद योग ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
12/29/2020
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