शब्दकोष 13 || कथित से कुल्ल मालिक तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / क
कथित से कुल्ल मालिक
क
(कंज ( कम् + ज ) = जो जल में उत्पन्न हुआ हो ; यहाँ अर्थ है कमल । P03 )
(कउ = को । नानक वाणी 53 )
(कउ = को , में । नानक वाणी 52 )
कदापि ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = कभी , कभी भी ।
(कपूर = जल्द जल उठनेवाला एक सुगंधि पदार्थ ; यहाँ अर्थ है - ज्योतिर्मय विन्दु । P145 )
कम ( फा ० , वि ० ) = थोड़ा , अल्प ।
(कमल = मंडल , अंदर का दर्जा या स्तर । P145 )
(कमाई = उद्योग , प्रयत्न । P09 )
कमी ( फा ० , स्त्री ० ) = कम ( थोड़ा ) होने का भाव , थोड़ापन , अभाव , हानि ।
कम्प ( सं ० , पुं ० ) = कम्पन , किसी पदार्थ के काँपने या हिलने - डुलने की क्रिया ।
कम्पमय ( सं ० , वि ० ) = कम्पन से भरा हुआ , कम्पन से युक्त ( पुं ० ) शब्द जो कम्पनमय होता है ।
कर ( सं ० , पुं ० ) = हाथ , हाथी की सूँड़ , किरण ( विभक्ति ) का , के , की । ( वि ० ) करनेवाला ।
(कर = हाथ । P09)
(कर = किरण , प्रकाशमयी दृष्टि धार । P30 )
(कड़क-कड़क = घोर शब्द करते हुए । P145 )
(करण = करना ; यहाँ अर्थ है करनेवाला । P04 )
(कर्मणा - कर्म से । P09)
करम ( अ ० , पुं ० ) = दया , कृपा ।
करम बख्शिश ( अ ० फा ० , स्त्री ० ) = दया दान ।
(करिष्यतः = दोनों को प्राप्त करें। MS01-2 )
(करुण कर = करुणामय हाथ , दयामय हाथ । P01 )
करुणा ( सं ० , स्त्री ० ) = दया ।
कर्त्तव्य कर्म ( सं ० , पुं ० ) करनेयोग्य कर्म , उचित कर्म ।
(कर्म = क्रिया , जो कुछ हो अथवा जो कुछ किया जाय । P01 )
कर्मेन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० ) = वह इन्द्रिय जिससे कोई काम किया जाता है ; जैसे हाथ , पैर , मुँह , गुदा और लिंग ।
कल्पना ( सं ० , स्त्री ० ) चिन्तन , सोच - विचार , अनुमान ।(कल्पना = विचार , धारणा | P09 )
(कल्प-विटप = कल्पवृक्ष, वह बृक्ष जिसके निकट जाने पर मन में उत्पन्न होने वाली सभी कल्पनाएं (इच्छाएँ) पूरी होती जाए। P98 )
( काई = मैल , दोष , आवरण । नानक वाणी 03 )
काज ( हिं ० , पुं ० ) = कार्य , काम ।
काम ( सं ० , पुं ० ) = कामना , इच्छा , काम - वासना , मन के छह विकारों में से एक जिससे प्रेरित होकर स्त्री - पुरुष एक दूसरे की ओर खिंचते हैं ।
कामिल ( अ ० , वि ० ) = पूर्ण, पूरा , पहुँचा हुआ , निपुण ।
(कामी = कामना करनेवाला , इच्छा करनेवाला । P13 )
(काया गढ़ = शरीररूपी किला । P139 )
कारण ( सं ० , पुं ० ) = हेतु , प्रयोजन , जिससे कुछ बने या उत्पन्न हो ; कारण की खानि ( स्त्री ० ) जैसे घड़े का कारण मिट्टी है । महाकारण मंडल , साम्यावस्था धारिणी जड़ात्मिका मूल प्रकृति ।
कारण मंडल ( सं ० , पुं ० ) = वह मंडल जिससे सूक्ष्म मंडल बना है ।
कारण - रूप ( सं ० , पुं ० ) = विकृति , महाकारण का विक्षुब्ध भाग जिससे विश्व - ब्रह्माण्ड बनता है । ( वि ० ) कारण बना हुआ , जो किसी कार्य का कारण हो ।
(काल = समय । P01 )
(किसने मूँड़ा = किसने संन्यासी बनाया , किसने दीक्षित किया । श्रीचंदवाणी 1क1)
(किसने मुँड़ाया = किसकी प्रेरणा से संन्यासी हुआ । श्रीचंदवाणी 1क)
किंचित् मात्र ( सं ० , वि ० ) बहुत ही थोड़ा ।
(कीरति = कीर्ति , यश , सद्गुणों की चर्चा । P04 )
(कील = खूँटी, खंभा, स्तंभ, धुरी । P14 )
(कीशं = कीश , बन्दर । P13 )
(कुबुद्धि = बुरा विचार , बुरा ज्ञान । P13 )
कुंभक ( सं ० , पुं ० ) = प्राणायाम की एक क्रिया जिसमें नाक से भीतर खींची गयी वायु को भीतर कुछ देर तक रोककर रखा जाता है ।
कुल्ल मालिक ( अ ० कुल मालिक , वि ० ) = सबका स्वामी । ( पुं ० ) परमात्मा ।
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