महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ए+ओ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
एकचित्त - ओर
ए+ओ
एकचित्त ( सं ० , वि ० ) = एक चित्तवाला , एकाग्र या सिमटा हुआ मनवाला ।
(एकता = एक होने भाव । P07)
(एकता का = एक होने का , एक हो जाने का । P06 )
एकदेशीय ( सं ० वि ० ) = एक . देश से संबंध रखनेवाला , किसी स्थान विशेष तक ही अपनी सीमा या स्थिति रखनेवाला ।
एकमेक ( सं ० , वि ० ) = एक - ही एक , किसी से मिलकर उसी के जैसा हो गया हुआ ।
एकविन्दुता ( सं ० , स्त्री ० ) = दशम द्वार में दिखलायी पड़नेवाले ज्योतिर्मय विन्दु पर देर तक सुरत के अवस्थित रहने की दशा ।
(एक सर्वेश्वर पर ही अचल विश्वास - परमात्मा एक ही है - इसपर अटल विश्वास होना । P06 )
एकाग्र ( सं ० , वि ० ) = स्थिर किया हुआ , सिमटा हुआ , किसी एक पदार्थ पर स्थिर , सामने के किसी एक ध्येय तत्त्व या लक्ष्य पर समेटा हुआ या सिमटा हुआ ।
ओ
ओत - प्रोत ( सं ० , वि ० ) = गुँथा हुआ , बुना हुआ , पूरी तरह भरा हुआ , फैला हुआ , मिला हुआ ।
ओम् ( सं ० , पुं ० ) = जिससे सृष्टि हुई है । आदिशब्द ।
{ओम् = आदिनाद , सारशब्द । ( सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ओम् को त्रिकुटी का शब्द नहीं , कैवल्य मंडल का शब्द मानते हैं । ) P01 }
ओर ( हिं ० , स्त्री ० ) = तरफ , दिशा ।
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