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शब्दकोष 11 || उक्ति से ऋषि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / उ+ऋ

    प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
लालदास जी और गुरु बाबाबाबा


उक्ति - ऋषि    शब्द  तक के शब्द और उसके अर्थ


उक्ति - ऋषि


उ+ऋ


उक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) कही गयी कोई बात । 

(उक्ति = कथन , उपदेश । P04 ) 

उच्च ( सं ० , वि ० ) = ऊँचा । 

उच्चतर ( सं ० , वि ० ) = किसी की तुलना में ऊँचा । 

उच्चरन्त् ( सं ० , क्रियापद ) = उच्चारण करते हुए , कहते हुए ।

(उज्ज्वल = उजला , प्रकाशमय । P139 ) 

उत्कर्ष ( सं ० , पुं ० ) = वृद्धि , बढ़ती , उन्नति । 

उत्कृष्ट ( सं ० वि ० ) = ऊँचे स्तर का । 

उत्तम ( सं ० वि ० ) = अच्छा । 

उत्तम उत्तम ( सं ०, वि० ) = अच्छा - अच्छा , अच्छे - से - अच्छा । 

उत्तरोत्तर ( सं ० , वि ० ) - एक कें बाद दूसरा । ( क्रि ० वि ० ) एक से एक बढ़कर , अधिक-से-अधिक , क्रमशः लगातार । 

उत्थित ( सं ० , वि ० ) = उठा हुआ , उत्पन्न , निकला हुआ ।

उत्पत्तिहीन ( सं ० वि ० ) = उत्पत्ति रहित , अजन्मा , जिसकी उत्पत्ति ।

उदय ( सं ० , पुं ० ) = उत्पत्ति , किसी या जन्म नहीं हुआ हो । पदार्थ का ऊपर उठना , उन्नति , निकलना , प्रकट होना । 

उद्गम स्थान ( सं ० , प ० ) = उत्पत्ति स्थान , वह स्थान जहाँ से किसी की उत्पत्ति हुई हो ।

(उदार = दानी , खुले दिलवाला । P04 ) 

उन्मुनी रहनी ( हिं ० , स्त्री ० ) = वह अवस्था जिसमें मन संकल्प - विकल्प छोड़कर रहता है । 

उपकारार्थ ( सं ० , पुं ० ) = उपकार । 

{उपकारार्थ ( उपकार + अर्थ )= भलाई के लिए । P08 }

उपकारी ( सं ० , वि ० ) = उपकार करनेवाला , भलाई करनेवाला । 

उपदेश ( सं ० , पुं ० ) = आदेश , आज्ञा , शिक्षा , सिखावन , सिखाने या सीखनेयोग्य बात । 

उपनिषद् ( सं ० , स्त्री ० ) = ऋषियों के द्वारा संस्कृत में रचा हुआ ग्रन्थ जिसमें ब्रह्म , जीव , माया , ब्रह्म - प्राप्ति का उपाय आदि बातों का उल्लेख है , वेदान्त , वेद का अन्तिम भाग अर्थात् ज्ञानकाण्ड ।  (उपनिषद् - वेद का अन्तिम भाग ( ज्ञानकांड ) , जिसमें ब्रह्म , जीव , जगत् , प्रकृति , ब्रह्म - प्राप्ति के साधन आदि दार्शनिक बातों की सूक्ष्म विवेचना है । P08  ) 

उपयोगिता ( सं ० , स्त्री ० ) = उपयोगी होने का भाव , किसी काम में आने के योग्य होने का भाव । 

उपर्युक्त ( सं ० , वि ० ) = ऊपर कहा हुआ । 

उपाधी ( उपाधि + ई ) = त्रिगुणात्मिका माया में आबद्ध , जड़ावरणों में बँधा हुआ । ( उपाधि - विशेषण , गुण - त्रयगुण , आवरण , माया ) P13 ) 

उपासक ( सं ० वि ० ) = उपासना करनेवाला ।  

उपासना ( सं ० , स्त्री ० ) = निकट बैठना , योगाभ्यास या ध्यानाभ्यास जिसके द्वारा इष्ट की निकटता प्राप्त होती है , ईश्वर साक्षात्कार का उपाय , साधना , भक्ति , पूजा-पाठ आदि ।  

उपास्य ( सं ० , वि ० पुँ ० ) = उपासना करने के योग्य , जिसकी उपासना की जाए । ( पँ ० ) इष्ट । 

(उमगि = उमंग युक्त होकर , आनन्दित होकर  P145 )

उर ( सं ० , पुं ० ) = हृदय । 

(उज्ज्वल = उजला, स्वच्छ, निर्मल । P10 ) 

उल्लिखित ( सं ० , वि ० ) = उल्लेख = किया हुआ , ऊपर लिखा हुआ , ऊपर वर्णन किया हुआ । 


ऊर्ध्वगति ( सं ० , स्त्री ० ) = ऊपर की ओर चलना या उठना । 



ऋषि ( सं ० , वि ० ) = वैदिक मंत्रों के दृष्टा , जीवन और जगत् के सत्य नियमों की खोज करनेवाला । ( पुं ० ) वे आत्मज्ञ महापुरुष जिनके वचन वेद आदि ग्रंथों में संकलित हैं ।

(ऋषि - प्राचीन काल के वे आत्मज्ञ महापुरुष जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियों को संस्कृत भाषा में अभिव्यक्त किया , जो वेद - उपनिषद् आदि ग्रंथों में संकलित हैं । P08  ) 

(ऋषि = वैदिक मन्त्रों के द्रष्टा जो आत्मज्ञ महापुरुष थे । P05 ) 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  उक्ति, उच्च, उच्चतर,उच्चारन्त्, उत्कर्ष, उत्कृष्ट, उत्तम, उत्तम-उत्तम, उत्तरोत्तर, उत्थित, उत्पत्तिहीन, उदय, उद्गम-स्थान, उन्मुनि रहनी,  उपकारार्थ, उपकारी, उपदेश, उपनिषद, उपयोगिता, उपर्युक्त, उपासक, उपासना, उपास्य, उर, उल्लिखित, ऋषि इत्यादि शब्दों  से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


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शब्दकोष 11 || उक्ति से ऋषि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 11  ||  उक्ति  से  ऋषि   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/09/2021 Rating: 5

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