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शब्दकोष 10 a || इक्ष्वाकु से ईक्षण तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / इ+ई

        प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

आदिनाद - आहत शब्द  तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं

सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

इक्ष्वाकु  से  ईक्षण

 


इक्ष्वाकु ( सं ० , पुं ० ) = सूर्यवंश का पहला राजा जो सूर्यपुत्र मनु का पुत्र था । 

इच्छामरण ( सं ० , पुं ० = जब अपनी इच्छा हो , तभी मरना ।

इच्छुक ( सं ० , वि ० ) = इच्छा रखनेवाला । 

इड़ा ( सं ० , स्त्री ० ) = शरीर की बायीं ओर की यौगिक नाड़ी , रीढ़ की बायीं ओर बहेवाली चेतन धारा । 

इतमीनान ( अ ० , पुं ० ) = संतोष , भरोसा , विश्वास , शांति ।

इतर ( सं ० , वि ० ) = दूसरा , भिन्न । 

इति ( सं ० , स्त्री ० ) = अन्त , समाप्ति , पूर्णता । ( वि ० )  यह ।  ( अव्यय ) इस प्रकार ।

इतिहास ( सं ० , पुं ० ) = वह पुस्तक  जिसमें किसी देश की विशिष्ट घटनाओं और विशिष्ट व्यक्तियों के विषय में लिखा हुआ हो । 

{इन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० ) = शरीर में स्थित वह साधन जिससे कुछ किया जाए या जिससे कुछ जाना जाए , कर्म की इन्द्रिय , ज्ञान की इन्द्रिय और भीतर की इन्द्रिय । ( mms10क) }

इन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० ) = शरीर का वह अंग या अवयव जिससे प्राणी कोई काम करता है या सांसारिक विषय का ज्ञान प्राप्त करता है । 

(इन्द्रिय = कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ । P06 ) 

इन्द्रियगत ( सं ० वि ० ) = इन्द्रिय से संबंध रखनेवाला , इन्द्रिय घाटों में फैला हुआ । 

इन्द्रियगम्य ( सं ० वि ० ) - इन्द्रियों के द्वारा जानने के योग्य।

इन्द्रियगम्य रूप ( सं ० , पुं ० ) = आँख इन्द्रिय से दिखलायी पड़नेवाला रूप ।

इन्द्रियगोचर ( सं ० वि ० ) = इन्द्रियों से जानने के योग्य पुँ ० इन्द्रियों के विषय।

इन्द्रिय - ग्राह्य ( सं ० वि ० ) = इन्द्रियों के ग्रहण में आने के योग्य । 

इन्द्रिय - चक्र ( सं ० , पुं ० ) = लिंग चक्र , पिंड का दूसरा चक्र ।

इन्द्रिय - द्वार ( सं ० , पुं ० ) = इन्द्रिय घाट , इन्द्रिय - गोलक , शरीर का वह अवयव जिसके माध्यम से ज्ञानेन्द्रिय अपना काम करती है । 

इन्द्रिय - निग्रह ( सं ० , पुं ० ) = इन्द्रियों को अपने - अपने विषय की ओर जाने से रोकने की क्रिया , इन्द्रियों को संयम में रखने का काम । 

इन्द्रिय - मंडल ( सं ० , पुं ० ) = शरीर के अन्दर वह स्थान जहाँ तक जीवात्मा इन्द्रियों के साथ रहता है , वह स्थान जहाँ तक कोई इन्द्रिय अपना काम कर सकती है । ( त्रिकुटी या कारण मंडल तक इन्द्रिय मंडल है । ) 

{इन्द्रिय - मंडल ( सं ० , पुं ० ) = शरीर के अन्दर वह स्थान जहाँ तक इन्द्रियों  की पहुंच होती है , वह स्थान जहाँ तक कोई इन्द्रिय अपना काम कर सकती है । ( त्रिकूटी या कारण मंडल तक इन्द्रिय मंडल है । ) mms10क) }

इन्द्रियमय शब्द ( सं० , पुं ० ) = वह शब्द जो कान इन्द्रिय से सुनायी पड़े , वह शब्द जो मुँह से उच्चारित किया जा सके । 

इन्द्रिय-वृत्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = इन्द्रियों के कार्य इन्द्रिय व्यापार ( सं ० , पुं ० ) इन्द्रियों के काम । 

इन्द्रिय - स्थंभन ( सं ० , पुं ० ) इन्द्रियों पर नियंत्रण , इन्द्रिय संयम , इन्द्रियों को विषयों की ओर जाने से रोकना । 

इन्द्रियातीत ( सं ० वि ० ) = इन्द्रिय से या इन्द्रिय - ज्ञान से बाहर , इन्द्रिय के ग्रहण में नहीं आनेवाला । 

{इन्द्रियातीत ( सं ० वि ० ) = जहाँ तक इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो , जो इन्द्रियों से नहीं जाना जा सके , जो इन्द्रियों की पहुँच से बाहर हो , इन्द्रिय के ग्रहण में नहीं आनेवाला । mms10क) }

इन्द्रियातीत रूप ( सं ० , पुं ० ) = जो रूप आँखों या दिव्य दृष्टि से भी नहीं दिखलायी पड़े , आत्मस्वरूप , परमात्म - स्वरूप ।

इम्पार्ट ( अँ ० , स ० क्रि ० ) = प्रदान करना ।

इम्ब्रेस ( अँ ० स ० क्रि ० ) = छाती से लगाना । 

इलाज ( अॅ ० , पुं ० ) =  चिकित्सा , उपचार उपाय । 

इल्म ( अॅ ० , पुं ० ) = विद्या , ज्ञान , जानकारी ।

इल्म - योग ( अ ० सं ० , पुं ० ) = ज्ञानयोग , वह योग जिसमें ज्ञान की प्रधानता हो । 

इल्मे रूहानी ( अ ० , पुं ० ) = आध्यात्मिक ज्ञान । 

(इव = यह । नानक वाणी 53 ) 

इश्क ( अॅ ० , पुं ० ) = प्रेम , मुहब्बत । 

इष्ट ( सं ० वि ० ) = इच्छित , मनचाहा । ( पुं ० ) वह जिसको हम प्राप्त करना चाहते हैं , वह जिसका हम ध्यान करते हैं । 

{इष्ट ( सं ० , वि ० ) = जिसकी इच्छा की जाए , जो चाहा जाए । पुं ० इष्टदेव , भक्त जिनका मानस ध्यान करें;  भक्त जिनकी पूजा करें ।  mms10क) }

इष्टदेव ( सं ० , पॅ ० ) = देवता के समान आदरणीय पूजनीय इष्ट | 

{इष्ट देव ( सं ० , पुं ० ) = आराध्य देव भक्त जिनका मानस ध्यान करें भक्त जिनकी उपासना करें । mms10क) }

इस्तेमाल ( अ ० , पुं ० ) = काम लाना , उपयोग में लाना । 

इस्म ( अॅ ० , पुं ) = नाम । 

इह ( सं ० , अव्य ० ) = यहाँ , इस स्थान पर , इस लोक में ।

इहलोक ( सं ० , पुं ० ) = यह संसार , पृथ्वी ।

इहु = यह । नानक वाणी 03 )   ∆



ईक्षण ( सं ० , पुं ० ) = देखना , इच्छा , संकल्प , मौज। 


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   प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  इक्ष्वाकु, इच्छामरण, इच्छुक, इड़ा, इतमीनान, इतर, इति, इतिहास, इन्द्रिय, इन्द्रियगत, इन्द्रियगम्य रूप, इन्द्रियगोचर, इन्द्रिय - ग्राह्य, इन्द्रिय - चक्र, इन्द्रिय - द्वार, इन्द्रिय - निग्रह, इन्द्रिय - मंडल, इन्द्रियमय शब्द, इन्द्रिय-वृत्ति, इन्द्रिय - स्थंभन, इन्द्रियातीत, इन्द्रियातीत रूप, इम्पार्ट, इल्मे रूहानी, इश्क, इष्टदेव,इह, इहलोक, ईश्वर इत्यादि  शब्दों के शब्दार्थादि आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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शब्दकोष 10 a || इक्ष्वाकु से ईक्षण तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 10 a  ||  इक्ष्वाकु  से  ईक्षण   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/09/2021 Rating: 5

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