शब्दकोष-10क || इक्ष्वाकु से इहलोक तक में इम्ब्रेस, इलाज, इश्क, इष्ट इन्द्रियगम्य, इन्द्रियगम्य रूप, इन्द्रियगोचरआदि शब्दों के शब्दार्थादि
महर्षि मेंहीं-शब्दकोष || बाबा लालदास कृत
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोष' पुस्तक के लेखक पूज्य पाद लालदास जी महाराज के द्वारा लिखित इक्ष्वाकु से इहलोक तक के शब्दों के अर्थ एवं अन्य व्याकरणिय परिचय इस पोस्ट में दिये गये हैं। जो बड़ी ही सरल भाषा में है । सबों के लिए आसानी से जानने योग्य है। तो आइए इन शब्दों के अर्थों को जानने के पहले इस पुस्तक और इसके लेखक के तस्वीर देखें.
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इक्ष्वाकु ( सं ० , पुं ० ) = सूर्यवंश का पहला राजा जो सूर्यपुत्र मनु का पुत्र था ।
इच्छामरण ( सं ० , पुं ० = जब अपनी इच्छा हो , तभी मरना ।
इच्छुक ( सं ० , वि ० ) = इच्छा रखनेवाला ।
इड़ा ( सं ० , स्त्री ० ) = शरीर की बायीं ओर की यौगिक नाड़ी , रीढ़ की बायीं ओर बहेवाली चेतन धारा ।
इतमीनान ( अ ० , पुं ० ) = संतोष , भरोसा , विश्वास , शांति ।
इतर ( सं ० , वि ० ) = दूसरा , भिन्न ।
इति ( सं ० , स्त्री ० ) = अन्त , समाप्ति , पूर्णता । वि ० यह । अव्य ० इस प्रकार ।
इतिहास ( सं ० , पुं ० ) = वह पुस्तक जिसमें किसी देश की विशिष्ट घटनाओं और विशिष्ट व्यक्तियों के विषय में लिखा हुआ हो ।
इन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० ) = शरीर में स्थित वह साधन जिससे कुछ किया जाए या जिससे कुछ जाना जाए , कर्म की इन्द्रिय , ज्ञान की इन्द्रिय और भीतर की इन्द्रिय
इन्द्रियगत ( सं ० वि ० ) = इन्द्रिय से संबंध रखनेवाला , इन्द्रिय घाटों में फैला हुआ ।
इन्द्रियगम्य ( सं ० वि ० ) - इन्द्रियों के द्वारा जानने के योग्य।
इन्द्रियगम्य रूप ( सं ० , पुं ० ) = आँख इन्द्रिय से दिखलायी पड़नेवाला रूप ।
इन्द्रियगोचर ( सं ० वि ० ) = इन्द्रियों से जानने के योग्य पुँ ० इन्द्रियों के विषय।
इन्द्रिय - ग्राह्य ( सं ० वि ० ) = इन्द्रियों के ग्रहण में आने के योग्य ।
इन्द्रिय - चक्र ( सं ० , पुं ० ) = लिंग चक्र , पिंड का दूसरा चक्र ।
इन्द्रिय - द्वार ( सं ० , पुं ० ) = इन्द्रिय घाट , इन्द्रिय - गोलक , शरीर का वह अवयव जिसके माध्यम से ज्ञानेन्द्रिय अपना काम करती है ।
इन्द्रिय - निग्रह ( सं ० , पुं ० ) = इन्द्रियों को अपने - अपने विषय की ओर जाने से रोकने की क्रिया , इन्द्रियों को संयम में रखने का काम ।
इन्द्रिय - मंडल ( सं ० , पुं ० ) = शरीर के अन्दर वह स्थान जहाँ तक इन्द्रियों की पहुंच होती है , वह स्थान जहाँ तक कोई इन्द्रिय अपना काम कर सकती है । ( त्रिकूटी या कारण मंडल तक इन्द्रिय मंडल है । )
इन्द्रियमय शब्द ( सं० , पुं ० ) = वह शब्द जो कान इन्द्रिय से सुनायी पड़े , वह शब्द जो मुँह से उच्चारित किया जा सके ।
इन्द्रिय-वृत्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = इन्द्रियों के कार्य इन्द्रिय व्यापार ( सं ० , पुं ० ) इन्द्रियों के काम ।
इन्द्रिय - स्थंभन ( सं ० , पुं ० ) इन्द्रियों पर नियंत्रण , इन्द्रिय संयम , इन्द्रियों को विषयों की ओर जाने से रोकना ।
इन्द्रियातीत ( सं ० वि ० ) = जहाँ तक इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो , जो इन्द्रियों से नहीं जाना जा सके , जो इन्द्रियों की पहुँच से बाहर हो , इन्द्रिय के ग्रहण में नहीं आनेवाला ।
इन्द्रियातीत रूप ( सं ० , पुं ० ) = जो रूप आँखों या दिव्य दृष्टि से भी नहीं दिखलायी पड़े , आत्मस्वरूप , परमात्म - स्वरूप ।
इम्पार्ट ( अॅ ० , क्रि ० ) = प्रदान करना ।
इम्ब्रेस ( अॅ ० , क्रि ० ) = छाती से लगाना ।
इलाज ( अॅ ० , पुं ० ) = चिकित्सा , उपचार उपाय ।
इल्म ( अॅ ० , पुं ० ) = विद्या , ज्ञान , जानकारी ।
इल्म - योग ( अ ० सं ० , पुं ० ) = ज्ञानयोग , वह योग जिसमें ज्ञान की प्रधानता हो ।
इल्मे रूहानी ( अ ० , पुं ० ) = आध्यात्मिक ज्ञान ।
इश्क ( अॅ ० , पुं ० ) = प्रेम , मुहब्बत ।
इष्ट ( सं ० , वि ० ) = जिसकी इच्छा की जाए , जो चाहा जाए । पुं ० इष्टदेव , भक्त जिनका मानस ध्यान करें भक्त जिनकी पूजा करें ।
इष्ट देव ( सं ० , पुं ० ) = आराध्य देव भक्त जिनका मानस ध्यान करें भक्त जिनकी उपासना करें ।
इस्तेमाल ( अ ० , पुं ० ) = काम लाना , उपयोग में लाना ।
इस्म ( अॅ ० , पुं ) = नाम ।
इह ( सं ० , अव्य ० ) = यहाँ , इस स्थान पर , इस लोक में ।
इहलोक ( सं ० , पुं ० ) = यह संसार , पृथ्वी ।∆
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