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शब्दकोष 10ख || ईक्षण से ईस्टर्न स्टार तक में ईश्वर- प्रणिधान, ईश्वर - भक्ति, ईश्वर - भजन आदि शब्दों के शब्दार्थादि

महर्षि मेंहीं-शब्दकोष || बाबा लालदास कृत

    प्रभु प्रेमियों  ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोष' पुस्तक के लेखक पूज्य पाद लालदास जी महाराज के द्वारा लिखित ईक्षण से ईस्टर्न स्टार तक के शब्दों के अर्थ एवं अन्य व्याकरणिय परिचय इस पोस्ट में दिये गये हैं।  जो बड़ी ही सरल भाषा में है ।  सबों के लिए आसानी से जानने योग्य है।  तो आइए इन शब्दों के अर्थों को जानने के पहले इस पुस्तक और इसके लेखक के तस्वीर देखें.

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महर्षि मेंहीं- शब्दकोष परिचय

ईक्षण से ईस्टर्न स्टार तक के शब्दों के अर्थादि


ईक्षण ( सं ० , पुं ० ) = देखना , इच्छा , संकल्प , मौज । 

ईर्ष्या ( सं ० , स्त्री ० ) = अपने निकटवर्ती और परिचित लोगों को सुख - संपत्ति , प्रतिष्ठा आदि में अपनी बराबरी करते हुए या अपने से अधिक उन्नति करते हुए देखकर मन में होनेवाला एक विकार ।

ईर्ष्यालु ( सं ० , वि ० ) = ईर्ष्या करनेवाला ।  

ईश ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , राजा , पति । 

ईश - स्मरण ( सं ० , पुं ० ) = ईश्वर का स्मरण , ईश्वर - वाचक शब्द का जप । 

ईशान ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , शिव , पूरब और उत्तर के बीच का कोना । 

ईशित्व ( सं ० , पुं ० ) = स्वामित्व , मालिकपना , योग की आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक जिसके प्रभाव से साधक सबपर शासन कर सकता है । 

ईश्वर ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , परमात्मा , परमात्मा का वह अंश जो किसी सीमित स्थान तक व्यापक हो , जीव , ब्रह्म , राम , कृष्ण , शिव आदि । वि ० सामर्थ्यवान् ।

ईश्वर की भक्ति ( स्त्री ० ) = वह प्रेममय कर्म जिसे करते - करते ईश्वर की प्राप्ति हो , अपने शरीर के अन्दर इन्द्रियों से छूटते हुए ईश्वर - साक्षात्कार के लिए चलना । 

ईश्वरकृत ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर के द्वारा बनाया हुआ । 

ईश्वर- प्रणिधान ( सं ० , पुं ० ) = सब कर्मों को ईश्वर के प्रति अर्पित कर देना , ईश्वर में चित्त लगाना , ईश्वर की शरण होना ।

ईश्वर - भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = ईश्वर के प्रति दृढ़ प्रेम , ईश्वर से मिलने के लिए हृदय में उत्पन्न प्रेम , शरीर के अंदर ईश्वर से मिलने के लिए चलना । 

ईश्वर - भजन ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा की भक्ति , परमात्मा की उपासना । 

ईश्वर - मुख ( सं ० , वि ० ) = जिसकी वृत्ति या ख्याल परमात्मा की ओर लगी हुई रहे । 

ईश्वरवादी ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखनेवाला । 

ईश्वर - विषयक ( सं ० वि ० ) = ईश्वर - संबंधी बातों से संबंध रखनेवाला । 

ईश्वरार्पण - बुद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = सभी किये गये कर्मों को ईश्वर को अर्पित कर देने की भावना या विचार । 

ईश्वरीय ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर से संबंध रखनेवाला , ईश्वर का , ईश्वर के द्वारा किया गया , दिया गया या भेजा गया । 

ईसा ( अ ० , पुं ० ) = ईसा मसीह जिनके विचार पर ईसाई धर्म चला हुआ है । 

ईसाई ( अ ० , वि ० ) = ईसा से संबंध रखनेवाला , महात्मा ईसा के धर्म को माननेवाला । 

ईसाई धर्म ( अ ० सं ० , पुं ० ) = ईसा मसीह के द्वारा चलाया हुआ पंथ , जो पंथ ईसा मसीह के विचारों पर आधारित हो । 

ईस्टर्न स्टार ( अँ , पुं ० ) = पूर्वी तारा , साधक को पहले - पहल दशम द्वार में दिखलायी पड़नेवाला तारा ।∆


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प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोश' पुस्तक से इस पोस्ट में हम लोगों ने जाना कि ईश्वरकृत, ईश्वर- प्रणिधानईश्वर - भक्तिईश्वर - भजनईश्वर - मुख    ईश्वरवादी, ईश्वर - विषयकईश्वरार्पण - बुद्धिईश्वरीयईसाईसाई, ईसाई धर्मईस्टर्न स्टार आदि शब्दों के शब्दार्थादि एवं व्याकरणिक परिचय को जाना।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आप् के मन में किसी अन्य प्रकार की जानकारी प्राप्त करने की इच्छा है, तो हमें कमेंट करें और इस बात को अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें जिससे वे भी लाभ ले सके।  इस ब्लॉग का सदस्य बने।   जिससे आपको आने वाले पोस्ट की निशुल्क सूचना ईमेल द्वारा प्राप्त होती रहे, फिर मिलेंगे दूसरे पोस्ट में ।  जय गुरु महाराज


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शब्दकोष 10ख || ईक्षण से ईस्टर्न स्टार तक में ईश्वर- प्रणिधान, ईश्वर - भक्ति, ईश्वर - भजन आदि शब्दों के शब्दार्थादि शब्दकोष 10ख || ईक्षण से ईस्टर्न स्टार तक में ईश्वर- प्रणिधान, ईश्वर - भक्ति, ईश्वर - भजन आदि शब्दों के शब्दार्थादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/12/2022 Rating: 5

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