शब्दकोष 09 || आदिनाद से आहत शब्द तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
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आदिनाद - आहत शब्द
आदिनाद ( सं ० , पुं ० ) = वह नाद जो परमात्मा से सृष्टि के पहले सृष्टि के निर्माण के लिए उत्पन्न हुआ , ओंकार , सारशब्द , सत्यनाम ।
आदिनाम ( सं ० , पुं ० ) = आदिशब्द , ओंकार ।
आदिशब्द ( सं ० , प ० ) = सृष्टि के पहले परमात्मा से उत्पन्न शब्द जिससे सारी सृष्टि हुई ।
आधिभौतिक ( सं ० वि ० ) = अधिभूत से संबंध रखनेवाला , पाँच स्थूल तत्त्वों से बने संसार से संबंध रखनेवाला , भौतिक , सांसारिक ।
(आधेय = जो किसी पर आधारित हो . जो किसी पर टिका हुआ हो । P01 )
(आधेयता = किसी पर आधारित रहने का गुण , किसी पर टिके रहन का स्वभाव , किसी के सहारे रहने का भाव । P01 )
(आन = अन्य , दूसरा । P03, P04 )
आन्तरिक ( सं ० वि ० ) = अन्दर का , भीतर का ।
आन्तरिक सत्संग ( सं ० पुं ० ) = ध्यानाभ्यास करना , ध्यानाभ्यास के द्वारा सुरत से शरीर के अन्दर परमात्मा से मिलने के लिए चलना ।
{आप = परमात्मा; देखें- पंचम बजै धुर घर से, जहाँ आप विराजै । (५४वाँ पद) }
आपा ( हिं ० , पुं ० ) = आत्मस्वरूप , अहंकार ।
( आपा = आत्मस्वरूप । नानक वाणी 03 )
(आभरत् = अच्छी प्रकार धारण करें । MS01-1 )
(आरति = आरती, पूजन के समय किसी देवमूर्ति या सन्त-महात्मा के सामने कपूर या घी का प्रज्वलित दीपक गोलाकार घुमाना, आरती के समय पढ़ा जानेवाला पद, पूजा, आराधना । P10)
आवरण ( सं ० , पुं ० ) = ढक्कन , जो किसी पदार्थ को ढँक लेने का काम करे ।
(आवरण = स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य अथवा अंधकार , प्रकाश और शब्द । P01 )
आवरणित ( सं ० वि ० ) = आवृत , ढँका हुआ ।
आवश्यकता ( सं ० , स्त्री ० ) = आवश्यक होने का भाव , आवश्यक वस्तु, जरूरी चीज ।
(आवागमन = आना - जाना , जन्म - मरण । P07)
आवाज ( फा ० , स्त्री ० ) = ध्वनि , बोली , वाणी , स्वर, शब्द ।
(आश = आशा ; सांसारिक परिस्थितियों , वस्तुओं और प्राणियों से सुख पाने की उम्मीद , इच्छा । P09).
(आस = आशा , इच्छा । नानक वाणी 52 )
आसन ( सं ० , पुं ० ) = बैठना , बैठने की क्रिया , वह पदार्थ जिसपर बैठा जाए ; बैठने की मुद्रा ; जैसे सिद्धासन , पद्मासन , उत्कृतोरु आसन आदि ।
(आसा सारी = सारी आशाओं के साथ , पूरी आशा और भरोसे के साथ , पूरे श्रद्धा - विश्वास के साथ , हृदय के समस्त भावों के साथ । P02 )
(आसा = आशा, इच्छा । P11 )
आसान ( फा ० , वि ० ) = सरल , जो कठिन न हो , सहज ।
(आहत = चोट खाया हुआ , जिसपर आघात किया गया हो ; यहाँ अर्थ है आहत शब्द अर्थात् वह शब्द जो किसी पदार्थ के आहत होने पर उत्पन्न हुआ हो , जड़ात्मक प्रकृतिमंडलों के शब्द । P01 )
आहत शब्द ( सं ० , पुं ० ) = वह शब्द या ध्वनि जो किसी पदार्थ में ठोकर लगने से या उसके काँपने पर उत्पन्न हुआ हो.
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प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में आदिनाद, आदिनाम, आदिशब्द, आधीभौतिक, अंतरिक, आंतरिक सत्संग, आपा, आवरण, आवरणित, आवश्यकता, आवाज, आसन, आसान, आहत शब्द इत्यादि शब्दों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे।इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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