शब्दकोष 08 || आकर्षण से आदिनाद तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / आ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
आकर्षण - आदिनाद
आ
आकर्षण ( सं ० . पुं ० ) = आकर्षित करने का गुण , खिंचाव , खींचने का गुण ।
आकर्षित ( सं ० वि ० ) = खिंचा हुआ ।
आकृष्ट ( सं ० वि ० ) = आकर्षित , खिंचा हुआ ।
आग्रह ( सं ० , पु ० ) = हठ , अनुरोध , निवेदन ।
आचरण ( सं ० , पुं ० ) = रहन - सहन , रहनी गहनी , क्रिया - कलाप , काम-धाम ।
आचरणहीनता ( सं ० , स्त्री ० ) = अच्छे आचरण से रहित होने का भाव ।
आच्छादन ( सं ० , पं ० ) = ढँकने का काम , आवरण ; आत्मा पर पड़े हुए आवरण ; जैसे स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य मंडल ।
आच्छादन - तत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = आवरण तत्त्व , वह पदार्थ जिससे कुछ ढँक जाए ।
आच्छादन - मंडल ( सं ० , पुं ० ) = अनात्मा का पसार , आवरण मंडल , वे मंडल जिनसे आत्मतत्त्व ढँक गया हो ; स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य मंडल ।
आच्छादन - विहीन ( सं ० , वि ० ) = आवरण - रहित ।
आच्छादित ( सं ० , वि ० ) = आवरणित , आवृत , ढँका हुआ ।
आज्ञा ( सं ० , स्त्री ० ) = अधिकारपूर्वक किसी को कुछ करने के लिए कहना ।
आज्ञाचक्र का प्रकाश - भाग ( पुं ० ) = आज्ञाचक्र का ऊपरी आधा भाग ।
(आतमु राम = आत्मारूपी राम , आत्मा का राम , परमात्मा । नानक वाणी 52 )
आत्मज्ञान ( सं ० , पुं ० ) = आत्मा परमात्मा से संबंधित बौद्धिक या अनुभव - ज्ञान ।
आत्मतत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = परम प्रभु परमात्मा का निज स्वरूप ।
आत्मा ( सं ० , स्त्री ० ) = परम प्रभु परमात्मा का निज स्वरूप , प्रत्येक शरीर में व्याप्त परमात्मा का अंश ।
आदत ( अ ० , स्त्री ० ) = स्वभाव , अभ्यास ।
(आड़बंद = कटिसूत्र , कमरकस , कमरबंद , फकीरों की लँगोटी ।श्रीचंद वाणी 01(क))
आदि ( सं ० , पुं ० ) = आरंभ, शुरूआत , उत्पत्ति , वगैरह । ( वि ० ) आरंभ का ।
(आदि = आरंभ , आदितत्त्व , जो सभी उत्पत्तिशील पदार्थों अथवा सृष्टि के पहले से विद्यमान है । P05 )
(आदि - अन्त - रहित = जिसका कहीं न ओर हो , न छोर । P06 )
आदि ध्वन्यात्मक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = वह शब्द जो ध्वनिमय हो और सृष्टि के पहले परमात्मा से उत्पन्न हुआ हो , सारशब्द , ओंकार , प्रणव नाद |
आदिध्वनि ( सं ० , स्त्री ० ) आदिशब्द , आदिनाद , सारशब्द जो सृष्टि के आरंभ में परमात्मा से उत्पन्न हुआ ।
आदिनाद ( सं ० , पुं ० ) = वह नाद जो परमात्मा से सृष्टि के पहले सृष्टि के निर्माण के लिए उत्पन्न हुआ , ओंकार , सारशब्द , सत्यनाम ।
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प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में आकर्षण, आकर्षित, आकृष्ट, आग्रह, आचरण, आचरणहीनता, अच्छादन, अच्छादन तत्व,अच्छादन मंडल, अच्छादन विहीन, अच्छादित, आज्ञा, आज्ञाचक्र का प्रकाश-भाग, आत्मज्ञान, आत्मतत्व, आत्मा, आदत, आदि ध्वन्यात्मक शब्द, आदिध्वनि, आदिनाद इत्यादि शब्दों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे।इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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