शब्दकोष 10 b || ईक्षण से उक्ति तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ई+उ
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महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
ईक्षण - उक्ति
ई
ईक्षण ( सं ० , पुं ० ) = देखना , इच्छा , संकल्प , मौज ।
ईर्ष्या ( सं ० , स्त्री ० ) = अपने निकटवर्ती और परिचित लोगों को सुख - संपत्ति , प्रतिष्ठा आदि में अपनी बराबरी करते हुए या अपने से अधिक उन्नति करते हुए देखकर मन में होनेवाला एक विकार ।
ईर्ष्यालु ( सं ० , वि ० ) = ईर्ष्या करनेवाला ।
ईश ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , राजा , पति ।
ईश - स्मरण ( सं ० , पुं ० ) = ईश्वर का स्मरण , ईश्वर - वाचक शब्द का जप ।
ईशान ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , शिव , पूरब और उत्तर के बीच का कोना ।
ईशित्व ( सं ० , पुं ० ) = स्वामित्व , मालिकपना , योग की आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक जिसके प्रभाव से साधक सबपर शासन कर सकता है ।
ईश्वर ( सं ० , पॅ ० ) परमात्मा का वह अंश जो किसी स्थान विशेष तक ही अपना प्रभुत्व ( शासन , मालिकपना , स्वामित्व या अधिकार ) रखता हो ।
{ईश्वर ( सं ० , पुं ० ) = स्वामी , परमात्मा , परमात्मा का वह अंश जो किसी सीमित स्थान तक व्यापक हो , जीव , ब्रह्म , राम , कृष्ण , शिव आदि । वि ० सामर्थ्यवान् । mms10क) }
ईश्वर की भक्ति ( स्त्री ० ) = वह प्रेममय कर्म जिसे करते - करते ईश्वर की प्राप्ति हो , अपने शरीर के अन्दर इन्द्रियों से छूटते हुए ईश्वर - साक्षात्कार के लिए चलना ।
ईश्वरकृत ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर के द्वारा बनाया हुआ ।
ईश्वर- प्रणिधान ( सं ० , पुं ० ) = सब कर्मों को ईश्वर के प्रति अर्पित कर देना , ईश्वर में चित्त लगाना , ईश्वर की शरण होना ।
ईश्वर - भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = ईश्वर के प्रति दृढ़ प्रेम , ईश्वर से मिलने के लिए हृदय में उत्पन्न प्रेम , शरीर के अंदर ईश्वर से मिलने के लिए चलना ।
ईश्वर - भजन ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा की भक्ति , परमात्मा की उपासना ।
ईश्वर - मुख ( सं ० , वि ० ) = जिसकी वृत्ति या ख्याल परमात्मा की ओर लगी हुई रहे ।
ईश्वरवादी ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखनेवाला ।
ईश्वर - विषयक ( सं ० वि ० ) = ईश्वर - संबंधी बातों से संबंध रखनेवाला ।
ईश्वरार्पण - बुद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = सभी किये गये कर्मों को ईश्वर को अर्पित कर देने की भावना या विचार ।
ईश्वरीय ( सं ० , वि ० ) = ईश्वर से संबंध रखनेवाला , ईश्वर का , ईश्वर के द्वारा किया गया , दिया गया या भेजा गया ।
ईसा ( अ ० , पुं ० ) = ईसा मसीह जिनके विचार पर ईसाई धर्म चला हुआ है ।
ईसाई ( अ ० , वि ० ) = ईसा से संबंध रखनेवाला , महात्मा ईसा के धर्म को माननेवाला ।
ईसाई धर्म ( अ ० सं ० , पुं ० ) = ईसा मसीह के द्वारा चलाया हुआ पंथ , जो पंथ ईसा मसीह के विचारों पर आधारित हो ।
ईस्टर्न स्टार ( अँ , पुं ० ) = पूर्वी तारा , साधक को पहले - पहल दशम द्वार में दिखलायी पड़नेवाला तारा ।∆
उ
उक्त ( वि० सं०) = कहा या बतलाया हुआ।
उक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = कही गयी कोई बात ।
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प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में ईश्वरकृत, ईश्वर- प्रणिधान, ईश्वर - भक्ति, ईश्वर - भजन, ईश्वर - मुख, ईश्वरवादी, ईश्वर - विषयक, ईश्वरार्पण - बुद्धि, ईश्वरीय, ईसा, ईसाई, ईसाई धर्म, ईस्टर्न स्टार इत्यादि शब्दों के शब्दार्थादि आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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