MS13 सत्संग- सुधा भाग 2 || वेद-उपनिषद्, गीता-रामायण एवं सन्तवाणी सम्मत ईश्वर-भक्ति, सदाचार आदि का वर्णन
MS13 सत्संग-सुधा भाग 2
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वेद-उपनिषद्, गीता-रामायण एवं सन्तवाणी सम्मत ईश्वर-भक्ति, सदाचार आदि का वर्णन
प्रभु प्रेमियों ! 60 वर्षों से बिंदु-नाद की साधना करते हुए संत- साहित्य के प्रमाणों के आधार पर सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने अपने अट्ठारह प्रवचनों में सत्संग, ध्यान, ईश्वर, सद्गुरु, सदाचार एवं संसार में रहने की कला के बारे में बताये हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि वेद-उपनिषद एवं संत- साहित्य में वर्णित बातें बिल्कुल सत्य हैं और जांचने पर प्रत्यक्ष है। लोग इन साधनाओं को करके अपना इहलोक और परलोक के जीवन को सुखमय बना सकते हैं । जिन लोगों ने इसका अनुसरण किया वे धन्य धन्य हो रहे हैं । आप भी पीछे न रहे पढ़िये इन प्रवचनों को और मानव जीवन को धन्य-धन्य होइये।
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सत्संग- सुधा भाग 2 |
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सत्संग- सुधा भाग 2
क्र. विषय
१. जहाँ रहो, सत्संग करो
२. पिण्ड और ब्रह्मण्ड में एक ही सारतत्त्व व्यापक
३. शिव - दर्शन
४. ज्ञान और योग; दोनों का अभ्यास करना चाहिये
५. सन्तोक्ति-असम्मत सन्तमत नहीं है
६. मेरे गुरुजी ने कहा था
७-. अपने गुरु की याद में
८. सद्गुरु बाबा देवी साहब के सदुपदेशों का सारांश सारांश
९. संसार की सँभाल करते संसार के पार में देखो
१०. हमारी संस्कृति का स्वरूप
११. ईश्वर - सम्बन्धी ज्ञान के लिये जाति-पाँति की कोई
विशेषता नहीं है
१२. ज्ञान तथा योग; दोनों का संग-संग साधन आवश्यक है
१३. मनुष्य-शरीर अद्भुत है
१४. मानस रोगों को जड़ से नाश करने की युक्ति
१५. ईश्वर की मान्यता ही धर्मों में सुमेरु है
१६. संशयों को निर्मूल करने के लिये विन्दु-ध्यान और
नाद-ध्यान है
१७. ईश्वर - दर्शन
१८. अलौकिक जागरण
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