शब्दकोष 14 || कुल्ल मालिक से क्रम-क्रम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / क
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
कुल्ल मालिक - क्रम-क्रम
कुल्ल मालिक ( अ ० कुल मालिक , वि ० ) = सबका स्वामी । ( पुं ० ) परमात्मा ।
(कुल्ल मालिक = कुल मालिक ( अरबी ) , सबका स्वामी , सर्वेश्वर । P06 )
कुशल ( सं ० , वि ० ) = निपुण , प्रवीण , कोई काम करने में अभ्यस्त ।
कुशा ( फा ० कुश , वि ० ) = मार डालनेवाला , दूर करनेवाला ।
{कूक = कूककर , दुःखी स्वर में चिल्लाकर या पुकारकर ; देखें- " केसो कहि - कहि कूकिए , ना सोइयै असरार । रात दिवस के कूकण , कबहूँ लगै पुकार ।। " ( संत कबीर साहब ) P03 }
कृतकृत्य ( सं ० . वि ० ) = जिसका काम पूरा हो गया हो ।
कृपा ( सं ० , स्त्री ० ) बड़े की प्रसन्नता जिसके चलते वे किसी का कोई काम कर देने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
कृपापात्र ( सं ० , वि ० ) = कृपा के योग्य ।
कृपा - वृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = कृपा की वर्षा ।
(कृष्ण = आकर्षित करनेवाला । P05 )
केन्द्र ( सं ० , पुं ० ) = किसी गोल • पदार्थ के ठीक मध्य का भाग , कोई मुख्य स्थान , वह स्थान जहाँ दो मंडलों ( स्थूल , सूक्ष्म , कारण आदि मंडलों ) की सीमाएँ मिलती हों ।
केन्द्र विन्दु ( सं ० , पुं ० ) = केन्द्र ) का विन्दु , जो विन्दु केन्द्र में हो ।
केन्द्रित ( सं ० , वि ० ) = केन्द्रीय स्थान में सिमटकर लगा हुआ , केन्द्र में स्थिर , किसी खास जगह पर स्थित ।
केन्द्रीय ( सं ० , वि ० ) = केन्द्र का , केन्द्र से संबंधित ।
केन्द्रीय शब्द ( सं ० , पुं ० ) = केन्द्र का शब्द , केन्द्र से उत्पन्न होनेवाला शब्द , स्थूल , सूक्ष्म आदि किसी मंडल के केन्द्र से उठनेवाला शब्द ।
(केरा = का । P10 )
(केलि = क्रीड़ा , खेल । P145 )
केवल ( सं ० वि ० ) = सिर्फ , मात्र , एक ही एक , शुद्ध , पवित्र ।
कैवल्य ( सं ० , पुं ० ) = होने का भाव , किसी के साथ नहीं होने का भाव , केवलता , एक - ही- एक होने का भाव , कैवल्य मंडल , निर्मल चेतन मंडल ।
कैवल्य दशा ( सं ० , स्त्री ० ) = जड़त्मिका प्रकृति के मंडलों से ऊपर उठकर निर्मल चेतन मंडल में आने की दशा , अकेले होने की स्थिति ।
कैवल्य पद ( सं ० , पँ ० ) = जड़ विहीन चेतन - मंडल , परा प्रकृति मंडल ।
कैवल्य मंडल ( सं ० , पुं ० ) जड़ - रहित चेतन प्रकृति का मंडल , निर्मल चेतन - मंडल |
कैवल्य शरीर ( सं ० , पुं ० ) = चेतन शरीर ।
(कोट = कोटि , करोड़ | P145 )
कोटि ( सं ० , वि ० ) = करोड़ । कोशिश ( फा ० , स्त्री ० ) = यत्न , प्रयास ।
क्रम ( सं ० , पुं ० ) सिलसिला ।
क्रम - क्रम ( सं ० , क्रि ० वि ० ) क्रम - क्रम से , बारी - बारी से ।
लालदास साहित्य सूची
|
प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत महर्षि मेँहीँ शब्दकोश + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।