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शब्दकोष 14 || कुल्ल मालिक से क्रम-क्रम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / क

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

कथित - कुल्ल मालिक  तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं


सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

कुल्ल मालिक - क्रम-क्रम


कुल्ल मालिक ( अ ० कुल मालिक , वि ० ) = सबका स्वामी । ( पुं ० ) परमात्मा ।

(कुल्ल मालिक = कुल मालिक ( अरबी ) , सबका स्वामी , सर्वेश्वर । P06 ) 

कुशल ( सं ० , वि ० ) = निपुण , प्रवीण , कोई काम करने में अभ्यस्त । 

कुशा ( फा ० कुश , वि ० ) = मार डालनेवाला , दूर करनेवाला ।

{कूक = कूककर , दुःखी स्वर में चिल्लाकर या पुकारकर ; देखें- " केसो कहि - कहि कूकिए , ना सोइयै असरार । रात दिवस के कूकण , कबहूँ लगै पुकार ।। " ( संत कबीर साहब ) P03 }

कृतकृत्य ( सं ० . वि ० ) = जिसका काम पूरा हो गया हो । 

कृपा ( सं ० , स्त्री ० ) बड़े की प्रसन्नता जिसके चलते वे किसी का कोई काम कर देने के लिए तैयार हो जाते हैं । 

कृपापात्र ( सं ० , वि ० ) = कृपा के योग्य ।

कृपा - वृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = कृपा की वर्षा । 

(कृष्ण = आकर्षित करनेवाला । P05 ) 

केन्द्र ( सं ० , पुं ० ) = किसी गोल • पदार्थ के ठीक मध्य का भाग , कोई मुख्य स्थान , वह स्थान जहाँ दो मंडलों ( स्थूल , सूक्ष्म , कारण आदि मंडलों ) की सीमाएँ मिलती हों । 

केन्द्र विन्दु ( सं ० , पुं ० ) = केन्द्र ) का विन्दु , जो विन्दु केन्द्र में हो । 

केन्द्रित ( सं ० , वि ० ) = केन्द्रीय स्थान में सिमटकर लगा हुआ , केन्द्र में स्थिर , किसी खास जगह पर स्थित । 

केन्द्रीय ( सं ० , वि ० ) = केन्द्र का , केन्द्र से संबंधित । 

केन्द्रीय शब्द ( सं ० , पुं ० ) = केन्द्र का शब्द , केन्द्र से उत्पन्न होनेवाला शब्द , स्थूल , सूक्ष्म आदि किसी मंडल के केन्द्र से उठनेवाला शब्द । 

(केरा = का । P10 ) 

(केलि = क्रीड़ा , खेल । P145 )

केवल ( सं ० वि ० ) = सिर्फ , मात्र , एक ही एक , शुद्ध , पवित्र ।

कैवल्य ( सं ० , पुं ० ) = होने का भाव , किसी के साथ नहीं होने का भाव , केवलता , एक - ही- एक होने का भाव , कैवल्य मंडल , निर्मल चेतन मंडल । 

कैवल्य दशा ( सं ० , स्त्री ० ) = जड़त्मिका प्रकृति के मंडलों से ऊपर उठकर निर्मल चेतन मंडल में आने की दशा , अकेले होने की स्थिति । 

कैवल्य पद ( सं ० , पँ ० ) = जड़ विहीन चेतन - मंडल , परा प्रकृति मंडल । 

कैवल्य मंडल ( सं ० , पुं ० ) जड़ - रहित चेतन प्रकृति का मंडल , निर्मल चेतन - मंडल | 

कैवल्य शरीर ( सं ० , पुं ० ) = चेतन शरीर । 

(कोट = कोटि , करोड़ | P145 )

कोटि ( सं ० , वि ० ) = करोड़ । कोशिश ( फा ० , स्त्री ० ) = यत्न , प्रयास । 

क्रम ( सं ० , पुं ० ) सिलसिला । 

क्रम - क्रम ( सं ० , क्रि ० वि ० ) क्रम - क्रम से , बारी - बारी से ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  कुशल, कुशा, कृतकृत्य, कृपा, कृपापात्र, कृपा-वृष्टि, केंद्र, केंद्र-बिंदु, केंद्रीय, केंद्रीय, केंद्रीय शब्द, केवल, कैवल्य, कैवल्य दशा, कैवल्य पद, कैवल्य मंडल, कैवल्य शरीर, कोटि, कोशिश, क्रम, क्रम-क्रम, इत्यादि शब्दों के शब्दार्थादि, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 14 || कुल्ल मालिक से क्रम-क्रम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 14  ||  कुल्ल मालिक   से  क्रम-क्रम   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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