शब्दकोष 15 || क्रम-क्रम से क्षोभित तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / क
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
क्रम-क्रम - क्षोभित
क्रम - क्रम ( सं ० , क्रि ० वि ० ) क्रम - क्रम से , बारी - बारी से ।
क्रमानुसार ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = क्रम के अनुसार , सिलसिलेवार , सिलसिले से ।
क्षमा ( सं ० , स्त्री ० ) = बदला लेने की भावना छोड़कर अपने प्रति किये गये किसी के अपराध को सह लेना ।
(क्षर = क्षय होते - होते नष्ट हो जाने वाले ( mmb P01 )
{क्षर - नाशवान् , परिवर्तनशील , जड़ प्रकृति मंडल ( देखें , गी ० , अ ० १५ ) । P01 }
क्षर - अक्षर के परे ( वि ० = जो क्षर ( जड़ प्रकृति ) और अक्षर ( चेतन प्रकृति ) - दोनों से ऊपर है , जिसे न क्षर कहा जा सकता है , न अक्षर पँ ० ) परमात्मा ।
[क्षेत्र = शरीर । { शरीर पाँच प्रकार के हैं - स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य । गीता , अध्याय १३ में पाँच स्थूल तत्त्वों , पाँच सूक्ष्म तत्त्वों , कर्म और ज्ञान की दस इन्द्रियों , मन , अहंकार , बुद्धि , जड़ात्मिका मूल प्रकृति , चेतना , संघात ( कहे गयं का संघरूप ) , धृति ( धारण करने की शक्ति ) , इच्छा , द्वेष , सुख और दु : ख - इन इकतीस तत्त्वों के समुदाय को स - विकार क्षेत्र कहा गया है । अन्तिम चार तत्त्व ही क्षेत्र के विकार हैं । गीता के इस क्षेत्र के अन्दर उक्त पाँचो शरीर आ जाते हैं । } P01 ]
क्षेत्रज्ञ ( सं ० , वि ० ) = पिंड या शरीर को जाननेवाला । ( पुं ० ) = आत्मा ।
क्षोभित ( सं ० , वि ० ) क्षुब्ध , क्षोभ - युक्त , हलचल - युक्त , असंतुलित ।
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