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शब्दकोष 15 || क्रम-क्रम से क्षोभित तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / क

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

क्रम-क्रम - क्षोभित


क्रम - क्रम ( सं ० , क्रि ० वि ० ) क्रम - क्रम से , बारी - बारी से ।

क्रमानुसार ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = क्रम के अनुसार , सिलसिलेवार , सिलसिले से । 

क्षमा ( सं ० , स्त्री ० ) = बदला लेने की भावना छोड़कर अपने प्रति किये गये किसी के अपराध को सह लेना । 

(क्षर = क्षय होते - होते नष्ट हो जाने वाले ( mmb P01 ) 

{क्षर - नाशवान् , परिवर्तनशील , जड़ प्रकृति मंडल ( देखें , गी ० , अ ० १५ ) । P01 }

क्षर - अक्षर के परे ( वि ० = जो क्षर ( जड़ प्रकृति ) और अक्षर ( चेतन प्रकृति ) - दोनों से ऊपर है , जिसे न क्षर कहा जा सकता है , न अक्षर पँ ० ) परमात्मा । 

[क्षेत्र = शरीर । { शरीर पाँच प्रकार के हैं - स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य । गीता , अध्याय १३ में पाँच स्थूल तत्त्वों , पाँच सूक्ष्म तत्त्वों , कर्म और ज्ञान की दस इन्द्रियों , मन , अहंकार , बुद्धि , जड़ात्मिका मूल प्रकृति , चेतना , संघात ( कहे गयं का संघरूप ) , धृति ( धारण करने की शक्ति ) , इच्छा , द्वेष , सुख और दु : ख - इन इकतीस तत्त्वों के समुदाय को स - विकार क्षेत्र कहा गया है । अन्तिम चार तत्त्व ही क्षेत्र के विकार हैं । गीता के इस क्षेत्र के अन्दर उक्त पाँचो शरीर आ जाते हैं । }   P01 ]

क्षेत्रज्ञ ( सं ० , वि ० ) = पिंड या शरीर को जाननेवाला । ( पुं ० ) = आत्मा । 

क्षोभित ( सं ० , वि ० ) क्षुब्ध , क्षोभ - युक्त , हलचल - युक्त , असंतुलित ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  क्रम-क्रम, क्रमानुसार, क्षमा, क्षर, क्षर-अक्षर के परे, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, क्षोभित, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्द कोस,
 

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शब्दकोष 15 || क्रम-क्रम से क्षोभित तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 15 ||  क्रम-क्रम  से  क्षोभित   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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