महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ग
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
गरु - ग्रहण
ग
गरुता ( स्त्री ० ) = पशु होने का भाव ।
गर्जन ( सं ० , पुं ० ) = डरावनी तथा ऊँची ध्वनि ।
(गहबरा = गहरा । नानक वाणी 52 )
(गति = गमन , जाना , चाल , चलने की क्रिया , एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की क्रिया , हिलने - डोलने की क्रिया , कंपन । P01 )
(गरज (अरबी) = मतलब, प्रयोजन, आवश्यकता, स्वार्थ । P11 )
गर्दन ( फा ० , स्त्री ० ) = गला ।
गलत ( अ ० वि ० ) = जो सही नहीं हो , जो ठीक नहीं हो , अनुचित , बुरा ।
(गही = गहकर , पकड़कर । P02 )
गारना ( स ० क्रि ० ) = निचोड़ना , रस निकालना , कसना कष्ट उठाना ।
गिरा ( सं ० , स्त्री ० ) = वाणी , वचन ।
गुण ( सं ० , पुं ० ) = कोई विशेषता , अच्छा गुण , अच्छा या बुरा लक्षण ।
(गुण = त्रय गुण , धर्म , स्वभाव , विशेषता । P01 )
(गुण = त्रय गुण ; सत्त्व , रज और तम । P13 )
गुप्त ( सं ० , वि ० ) = छिपा हुआ ।
गुरु - आश्रित ( सं ० , वि ० ) = गुरु के आश्रय में रहनेवाला , गुरु पर आशा - भरोसा रखनेवाला ।
(गुरु का नाम = आदिगुरु परमात्मा का नाम , गुरुशब्द , सारशब्द ; देखें- " सतगुरु शब्द जो करे खोज , कहैं दरिया तब पूरन जोग । " ( दरिया साहब बिहारी ) P05 )
गुरुता ( सं ० , स्त्री ० ) = अच्छा गुरु होने का भाव , गौरव , बड़ापन , बड़प्पन ।
गुरु - भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = गुरु की प्रेमपूर्वक की गयी सेवा ।
गुरु - मूर्त्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = गुरु का स्थूल रूप ।
(गुहीजै = गूँथ लीजिये । P145 )
{गेर्यो = गेरा , गिरा दिया , डाल दिया ; देखें- " हरि ने कुटुंब जाल में गेरी । गुरु ने काटी ममता बेरी ॥ " ( सहजोबाई ) P13 }
(गो = इन्द्रिय । P01, P06 , P13 )
(गोचर = जिसमें इन्द्रिय विचरण करे , जो किसी इन्द्रिय की पकड़ में आए , जो किसी इन्द्रिय का विषय हो । P06 )
गोतीत ( हिं ० , वि ० ) = इन्द्रियों की पहुँच से बाहर , इन्द्रियों के ग्रहण में नहीं आने के योग्य ।
(गोदड़ी - गुदड़ी , फटे - पुराने कपड़ों को जोड़कर बनायी गयी कथरी । श्रीचंदवाणी 1क )
{गोस्वामी = जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया हो । ( गो = इन्द्रिय , पृथ्वी , गाय आदि ) P02 }
गोसाईं ( हिं ० , वि ० ) = इन्द्रियों का स्वामी , गायों का स्वामी ।
गौण ( सं ० , वि ० ) = मुख्य नहीं , महत्त्वपूर्ण नहीं , साधारण ।
गौरव ( सं ० , पँ ० ) = गुरुता , बड़ा होने का भाव , जिसपर गर्व किया जा सकें , जिसके चलते बड़ा होने का ज्ञान या अनुभव हो ।
(ज्ञान प्रकाशन = सद्ज्ञान प्रकाशित या प्रकट करनेवाला , अच्छी शिक्षा देनेवाला । P30 )
ग्रहण ( सं ० , पुं ० ) = पकड़ने की क्रिया , पकड़ ।
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