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शब्दकोष 17 || गरु से ग्रहण तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष /

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

गरु - ग्रहण


गरु ( पुं ० ) = गोरू , सींगवाला पशु चौपाया , मवेशी ।

गरुता ( स्त्री ० ) = पशु होने का भाव । 

गर्जन ( सं ० , पुं ० ) = डरावनी तथा ऊँची ध्वनि । 

(गति = गमन , जाना , चाल , चलने की क्रिया , एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की क्रिया , हिलने - डोलने की क्रिया , कंपन । P01 ) 

गर्दन ( फा ० , स्त्री ० ) = गला । 

गलत ( अ ० वि ० ) = जो सही नहीं हो , जो ठीक नहीं हो , अनुचित , बुरा । 

(गरज (अरबी) = मतलब, प्रयोजन, आवश्यकता, स्वार्थ ।  P11 ) 

गारना ( स ० क्रि ० ) = निचोड़ना , रस निकालना , कसना कष्ट उठाना । 

गिरा ( सं ० , स्त्री ० ) = वाणी , वचन । 

गुण ( सं ० , पुं ० ) = कोई विशेषता , अच्छा गुण , अच्छा या बुरा लक्षण ।

(गुण = त्रय गुण , धर्म , स्वभाव , विशेषता । P01 ) 

(गुण = त्रय गुण ; सत्त्व , रज और तम ।  P13 ) 

गुप्त ( सं ० , वि ० ) = छिपा हुआ । 

गुरु - आश्रित ( सं ० , वि ० ) = गुरु के आश्रय में रहनेवाला , गुरु पर आशा - भरोसा रखनेवाला । 

(गुरु का नाम = आदिगुरु परमात्मा का नाम , गुरुशब्द , सारशब्द ; देखें- " सतगुरु शब्द जो करे खोज , कहैं दरिया तब पूरन जोग । " ( दरिया साहब बिहारी ) P05 ) 

गुरुता ( सं ० , स्त्री ० ) = अच्छा गुरु होने का भाव , गौरव , बड़ापन , बड़प्पन  । 

गुरु - भक्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = गुरु की प्रेमपूर्वक की गयी सेवा ।

गुरु - मूर्त्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = गुरु का स्थूल रूप  । 

( गुहीजै = गूँथ लीजिये । P145  )

{गेर्यो = गेरा , गिरा दिया , डाल दिया ; देखें- " हरि ने कुटुंब जाल में गेरी । गुरु ने काटी ममता बेरी ॥ " ( सहजोबाई )  P13 }

(गो = इन्द्रिय । P01,  P06  , P13  

(गोचर = जिसमें इन्द्रिय विचरण करे , जो किसी इन्द्रिय की पकड़ में आए , जो किसी इन्द्रिय का विषय हो । P06 )

गोतीत ( हिं ० , वि ० ) = इन्द्रियों की पहुँच से बाहर , इन्द्रियों के ग्रहण में नहीं आने के योग्य । 

(गोदड़ी - गुदड़ी , फटे - पुराने कपड़ों को जोड़कर बनायी गयी कथरी ।  श्रीचंदवाणी 1क ) 

{गोस्वामी = जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया हो । ( गो = इन्द्रिय , पृथ्वी , गाय आदि ) P02 }

गोसाईं ( हिं ० , वि ० ) = इन्द्रियों का स्वामी , गायों का स्वामी ।

गौण ( सं ० , वि ० ) = मुख्य नहीं , महत्त्वपूर्ण नहीं , साधारण ।

गौरव ( सं ० , पँ ० ) = गुरुता , बड़ा होने का भाव , जिसपर गर्व किया जा सकें , जिसके चलते बड़ा होने का ज्ञान या अनुभव हो ।

ग्रहण ( सं ० , पुं ० ) = पकड़ने की क्रिया , पकड़  । 

(गही = गहकर , पकड़कर । P02 ) 



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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  गरु, गरुता, गर्जन, गर्दन, गलत, गारना, गिरा, गुण, गुप्त, गुरु आश्रित, गुरुता, गुरु-भक्ति, गुरु-मूर्ति, गोसाईं, गौण, गौरव, ग्रहण,   आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्द कोस,
 

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शब्दकोष 17 || गरु से ग्रहण तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 17  ||  गरु से ग्रहण   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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