शब्दकोष 18 || घटरामायण से चित्त तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / घ+च
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
एकचित्त - ओर
घ+च
(घट = शरीर । P07)
{घट - पट = शरीर के अन्दर जीवात्मा पर पड़े हुए आवरण - अंधकार , प्रकाश और शब्द। (P07) P30 }
घटरामायण ( सं ० , पँ ० ) = संत तुलसी साहब हाथरसवाले की एक पुस्तक का नाम ।
घटाकाश ( सं ० , पुं ० ) = घड़े के अन्दर का आकाश ।
घन ( सं ० , पँ ० ) बादल , समूह ।
(घनेरा = बहुत अधिक । P10 )
(घड़ी = २४ मिनट का समय। P11 )
घेरा ( हिं ० , पुं ० ) = सीमा , घेरनेवाली चीज , परिधि , अहाता ।
च
चंचल ( सं ० , वि ० ) = चलायमान , चलता हुआ , जो स्थिर नहीं हो ।
चंचलता ( सं ० , स्त्री ० ) = चंचल होने का भाव ।
(चर = चलनेवाला , जानेवाला । P06 )
(चानणि = चाँदनी , प्रकाश । नानक वाणी 53 )
चिढ़ ( हिं ० , स्त्री ० ) = चिढ़ने की क्रिया या भाव , किसी की छोटी - मोटी बात पर भी बिगड़ उठना , सहनशीलता का अभाव ।
चित् ( सं ० , वि ० ) = चेतन , ज्ञानमय । ( पुं ० ) ज्ञानमय तत्त्व , चेतन प्रकृति ।
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