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शब्दकोष 19 || चिदानंदमय से जड़ातीत तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / च

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.


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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

चिदानंदमय - जड़ातीत

 

[चहुँ खानि = चार खानियाँ , उत्पत्ति के विचार से चार प्रकार के प्राणी ; जैसे - अंडज , पिंडज ( जरायुज ) , उष्मज ( स्वेदज ) और उद्भिज्ज ( स्थावर , अंकुरज ) | अंडज = अंडे से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - साँप , मछली , मुर्गा , पक्षी आदि । पिंडज - सीधे शरीर से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे मनुष्य , कुत्ता , बिल्ली आदि पशु । उष्मज - गर्मी - पसीने और मैल से अथवा फल आदि के सड़ने से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - खटमल , जूँ , चीलर आदि । उद्भिज्ज - भूमि से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - वृक्ष , गुल्म , लता आदि । अंडज भी एक तरह से पिंडज ही है । पिंडज का एक प्रकार है- -जरायुज । जो प्राणी जरायु ( झिल्ली ) में लिपटा हुआ गर्भ से जन्म लेता है , उसे जरायुज कहते हैं । P09 ] 

{चास = बालकर । ( P145 ) }

चिदानन्दमय ( सं ० , वि ० ) = ज्ञान और आनन्द से भरपूर ।

चिदानन्दमय शरीर ( सं ० , पुं ० ) जो शरीर परिवर्त्तन - रहित , ज्ञानमय और आनन्दमय हो , चेतन शरीर , कैवल्य शरीर । 

चिह्न ( सं ० , पुं ० ) = लक्षण , वह जिससे किसी पदार्थ की पहचान हो जाए , धब्बा , दाग । 

चिह्नित ( सं ० , वि ० ) किया हुआ , चिह्न - युक्त । 

( चीनै = पहचाने । नानक वाणी 03  ) 

(चूड़ा = हाथ में पहनने का एक आभूषण ।  श्रीचंदवाणी 1क ) 

चेतन ( सं ० , वि ० पुं ० ) = ज्ञानवान् । ( पुं ० ) वह तत्त्व जो अपना भी ज्ञान कर सके और दूसरे का भी , चेतन प्रकृति , परा प्रकृति । 

(चेतन = ज्ञानमय , ज्ञानस्वरूप । P05 ) 

चेतन प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) ज्ञानमयी प्रकृति , परा प्रकृति ।

चेतन धार ( स्त्री ० ) = चेतन तत्त्व की धारा , सुरत । 

चेतनवृत्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = सुरत , वह चेतन तत्त्व जिसके सहारे शरीर टिका हुआ रहता है । 

चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) जो प्रकृति ज्ञानमयी और त्रय गुण - रहित हो , परा प्रकृति , चेतन प्रकृति ।  

(चेतावन = चेतानेवाला , सद्ज्ञान या उपदेश देनेवाला , जगानेवाला , मोह भंग करनेवाला , अज्ञान दूर करनेवाला ; सचेत , सजग या सावधान करनेवाला । P30 )

(चेतो =चेताओ , जगाओ । श्रीचंदवाणी 1क )

चैतन्य ( सं ० वि ० ) = चेतन , ज्ञानमय ( पुं ० ) सुरत , चेतनवृत्ति , चेतनता , ज्ञानमय होने का भाव , ज्ञान , जागृति । 

चैतन्य क्षेत्र ( सं ० , पुं ० ) = चेतन मंडल । 

चैतन्य तत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = चेतनता रखनेवाला पदार्थ , चेतन तत्त्व । 

चैतन्यातीत ( सं ० , वि ० ) = चेतन प्रकृति - मंडल से रहित ।

चोरी ( स्त्री ० ) = किसी की कोई वस्तु उसकी अनुमति के बिना छिपाकर ले लेना । 


( छाई = परछाईं । नानक वाणी 03  ) 

(छवि = सौंदर्य । P145 )

(छीजै = क्षय कीजिये , धीरे - धीरे घटाइये , नष्ट कीजिये । P139 ) 

छोह - प्रेम , स्नेह , ममता , कृपा , दया ; देखें- “ नाथ करहु बालक पर छोहू । सूध दूधमुख करिअ न कोहू  " ( रामचरितमानस , बालकांड ) । “ मातहु तें बढ़ि छोह करैं नित , पितहुँ तें अधिक भलाइ हे ।" (१०६ ठा पद्य)

 


जंगाली ( फा ० जंगारी , वि ० ) = तूतिये के रंग का हरा या नीला रंग । 

(जंजाल = जग - जाल , प्रपंच , उलझन , फँसाव , बंधन , आवरण । P01

जग ( सं ० , पुं ० ) = संसार । 

(जगत सार = जगत् का मूलतत्त्व ।  P13 ) 

जगद्गुरु ( सं ० , वि ० ) = संसार के लोगों को ज्ञान देनेवाला ।

जगमगाना ( अ ० क्रि ० ) = जगमग करना , प्रकाशित होना , चमकना । 

जगाना ( स ० क्रि ० ) = सोये हुए को उठाना , प्रकट करना , उत्तेजित करना , भड़काना । 

(जन = भक्त । P04 ) 

(जर जर कर्यो = जर्जर किया , बहुत ज्यादा पीडित किया ।  P13  ) 

(जयति = जय हो । P04 ) 

जड़ ( वि ० ) = अज्ञानमय । ( पुं ० ) वह पदार्थ जो न अपना ज्ञान कर सके और न दूसरे का ; जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति । 

जड़ शरीर ( पुं ० ) = स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण ये चार शरीर । 

जड़ातीत ( वि ० ) = जड़ात्मक प्रकृति-मंडलों से रहित । 


जड़ातीत - ज्ञाता    तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं


     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  चिदानंदमय, चिदानंदमय शरीर, चिन्ह, चिन्हित, चेतन, चेतन प्रकृति, चेतन-धार, चेतनवृत्ति, चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति, चैतन्य, चैतन्य क्षेत्र, चैतन्य तत्व, चैतन्यातीत, चोरी, जंगाली, जग, जगद्गुरू, जगमगाना, जागाना, जड़, जड़ शरीर, जड़ातीत  आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 19 || चिदानंदमय से जड़ातीत तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 19 ||  चिदानंदमय  से  जड़ातीत   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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