शब्दकोष 19 || चिदानंदमय से जड़ातीत तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / च
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
चिदानंदमय - जड़ातीत
च
[चहुँ खानि = चार खानियाँ , उत्पत्ति के विचार से चार प्रकार के प्राणी ; जैसे - अंडज , पिंडज ( जरायुज ) , उष्मज ( स्वेदज ) और उद्भिज्ज ( स्थावर , अंकुरज ) | अंडज = अंडे से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - साँप , मछली , मुर्गा , पक्षी आदि । पिंडज - सीधे शरीर से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे मनुष्य , कुत्ता , बिल्ली आदि पशु । उष्मज - गर्मी - पसीने और मैल से अथवा फल आदि के सड़ने से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - खटमल , जूँ , चीलर आदि । उद्भिज्ज - भूमि से उत्पन्न होनेवाले प्राणी ; जैसे - वृक्ष , गुल्म , लता आदि । अंडज भी एक तरह से पिंडज ही है । पिंडज का एक प्रकार है- -जरायुज । जो प्राणी जरायु ( झिल्ली ) में लिपटा हुआ गर्भ से जन्म लेता है , उसे जरायुज कहते हैं । P09 ]
(चलत = चलती , प्रभाव , गति , चाल , लीला । नानक वाणी 53 )
चवरो = चँवर , डाँड़ी में लगा हुआ सुरा गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा , जो राजाओं या देवमूर्ति के सिर पर डुलाया जाता है । नानक वाणी 53 )
{चास = बालकर । ( P145 ) }
चिदानन्दमय ( सं ० , वि ० ) = ज्ञान और आनन्द से भरपूर ।
चिदानन्दमय शरीर ( सं ० , पुं ० ) जो शरीर परिवर्त्तन - रहित , ज्ञानमय और आनन्दमय हो , चेतन शरीर , कैवल्य शरीर ।
चिह्न ( सं ० , पुं ० ) = लक्षण , वह जिससे किसी पदार्थ की पहचान हो जाए , धब्बा , दाग ।
चिह्नित ( सं ० , वि ० ) किया हुआ , चिह्न - युक्त ।
( चीनै = पहचाने । नानक वाणी 03 )
(चूड़ा = हाथ में पहनने का एक आभूषण । श्रीचंदवाणी 1क )
चेतन ( सं ० , वि ० पुं ० ) = ज्ञानवान् । ( पुं ० ) वह तत्त्व जो अपना भी ज्ञान कर सके और दूसरे का भी , चेतन प्रकृति , परा प्रकृति ।
(चेतन = ज्ञानमय , ज्ञानस्वरूप । P05 )
चेतन प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) ज्ञानमयी प्रकृति , परा प्रकृति ।
चेतन धार ( स्त्री ० ) = चेतन तत्त्व की धारा , सुरत ।
चेतनवृत्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = सुरत , वह चेतन तत्त्व जिसके सहारे शरीर टिका हुआ रहता है ।
चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति ( सं ० , स्त्री ० ) जो प्रकृति ज्ञानमयी और त्रय गुण - रहित हो , परा प्रकृति , चेतन प्रकृति ।
(चेतावन = चेतानेवाला , सद्ज्ञान या उपदेश देनेवाला , जगानेवाला , मोह भंग करनेवाला , अज्ञान दूर करनेवाला ; सचेत , सजग या सावधान करनेवाला । P30 )
(चेतो =चेताओ , जगाओ । श्रीचंदवाणी 1क )
चैतन्य ( सं ० वि ० ) = चेतन , ज्ञानमय ( पुं ० ) सुरत , चेतनवृत्ति , चेतनता , ज्ञानमय होने का भाव , ज्ञान , जागृति ।
चैतन्य क्षेत्र ( सं ० , पुं ० ) = चेतन मंडल ।
चैतन्य तत्त्व ( सं ० , पुं ० ) = चेतनता रखनेवाला पदार्थ , चेतन तत्त्व ।
चैतन्यातीत ( सं ० , वि ० ) = चेतन प्रकृति - मंडल से रहित ।
(छवि = सौंदर्य । P145 )
(छीजै = क्षय कीजिये , धीरे - धीरे घटाइये , नष्ट कीजिये । P139 )
जंगाली ( फा ० जंगारी , वि ० ) = तूतिये के रंग का हरा या नीला रंग ।
(जंजाल = जग - जाल , प्रपंच , उलझन , फँसाव , बंधन , आवरण । P01)
जग ( सं ० , पुं ० ) = संसार ।
(जगत सार = जगत् का मूलतत्त्व । P13 )
जगद्गुरु ( सं ० , वि ० ) = संसार के लोगों को ज्ञान देनेवाला ।
जगमगाना ( अ ० क्रि ० ) = जगमग करना , प्रकाशित होना , चमकना ।
जगाना ( स ० क्रि ० ) = सोये हुए को उठाना , प्रकट करना , उत्तेजित करना , भड़काना ।
(जन = भक्त । P04 )
(जर जर कर्यो = जर्जर किया , बहुत ज्यादा पीडित किया । P13 )
(जयति = जय हो । P04 )
जड़ ( वि ० ) = अज्ञानमय । ( पुं ० ) वह पदार्थ जो न अपना ज्ञान कर सके और न दूसरे का ; जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति ।
जड़ शरीर ( पुं ० ) = स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण ये चार शरीर ।
जड़ातीत ( वि ० ) = जड़ात्मक प्रकृति-मंडलों से रहित ।
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