शब्दकोष 20 || जड़ातीत से ज्ञाता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ज
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
जड़ातीत - ज्ञाता
जड़ातीत ( वि ० ) = जड़ात्मक प्रकृति-मंडलों से रहित ।
जड़ात्मक आच्छादन - मंडल ( पुं ० ) - वह आच्छादन - मंडल ( आवरण मंडल ) जो जड़ हो ; जैसे स्थूल मंडल , सूक्ष्म मंडल , कारण मंडल और महाकारण मंडल ।
जड़ात्मक आवरण ( पुं ० ) = जड़ प्रकृति के मंडलों का आवरण ; जैसे स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण - मंडल ।
जड़ात्मक प्रकृति ( स्त्री ० ) = वह प्रकृति जिसका स्वरूप अज्ञानमय हो , जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति ।
जड़ात्मक मूल प्रकृति ( स्त्री ० ) साम्यावस्थाधारिणी जड़ात्मिका मूल प्रकृति जिसमें सत्त्व , रज और तम- ये तीनों गुण समान समान मात्रा में रहते हैं ।
जड़ात्मक सगुण प्रकृति ( स्त्री ० ) = वह प्रकृति जो अज्ञानमयी और त्रय गुणों से बनी हुई हो , जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति ।
(जगमग = प्रकाशित । P139 )
(जत = यतिपन , इन्द्रिय संयम , त्याग , वैराग्य , यम-नियम ।श्रीचंदवाणी 1क )
( जन = भक्त , दास । नानक वाणी 03 )
(जनक = जान पड़ता है , मानो । नानक वाणी 53 )
(जय = जय हो , विजय हो , यश फैले । P04 )
(ज्योतिः = ज्योतियों के । MS01-1 )
(जरद ( फा ० जर्द , वि ० ) = पीला । {जरद = पीला , वैश्य । श्रीचंदवाणी 1क ) }
(जलन = दुःख, कष्ट, पीड़ा । P14 )
जाग्रत् अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) जगी हुई अवस्था , जिस अवस्था में जीवात्मा चौदहो इन्द्रियों के साथ रहता है , जिस अवस्था में प्राणी को अपने शरीर और बाहरी संसार का भी ज्ञान होता है ।
जाग्रत् दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = वह दृष्टि जिससे जगी हुई अवस्था मे कुछ देखते हैं ।
जाती ( अ ० , वि ० ) = अपना , निज व्यक्तिगत , अपना खास ।
जाती नाम ( अ ० सं ० , पुं ० ) अपना खास नाम , अपना असली नाम ( ध्वन्यात्मक सारशब्द परमात्मा का जाती नाम है ; क्योंकि सुरत से पकड़े जाने पर यह नाम साधक को परमात्मा से मिला देता है । )
जानकारी ( स्त्री ० ) = ज्ञान ।
जारी ( अ ० , वि ० ) = प्रवाहित , बहता हुआ , प्रचलित ।
(जाते = जिससे । नानक वाणी 53 )
जीव ( सं ० , पुं ० ) = प्रत्येक शरीर में व्याप्त परमात्मा का अंश , जीवात्मा , चेतन- आत्मा ।
जीवता ( सं ० , स्त्री ० ) जीव भाव , जीव - दशा , जीव होने का = भाव ।
जीवन - काल ( सं ० , पुं ० ) = जन्म से लेकर मृत्यु तक का समय ।
जीवन - मुक्त ( सं ० , वि ० ) जीवन्मुक्त , जीते - जी मुक्त , जो जीवन - काल में ही शरीर और संसार से ऊपर उठ गया हो ।
(जीवात्मा = प्राणियों के शरीर में स्थित आत्मतत्त्व या चेतन आत्मा । P06 )
(जुलमी (अरबी) = जुल्मी, जुल्म (अत्याचार, अन्याय) करनेवाला, उपद्रव करनेवाला, उत्पात मचानेवाला, अशान्त करनेवाला, सतानेवाला । P11 )
{जोतस्वरूप = ज्योति स्वरूप , प्रकाश - रूप ( दशम द्वार का श्वेत ज्योतिर्मय विन्दु गुरु का एक छोटे - से - छोटा सगुण साकार प्रकाशमय रूप है । ) P09 }
{जो न व्यक्ति है = जो साधारण मनुष्यों में से और राम - कृष्ण आदि जैसे विशेष धर्मवान् और अवतारी पुरुषों में से कोई भी नहीं है- " बरन विहीन , न रूप न रेखा , नहिं रघुवर नहिं श्याम । " ( १२ वाँ पद्य ) P06 }
{जो मायिक विस्तृतत्व - विहीन है = माविक पदार्थों में पाये जानेवाले विस्तृतत्व ( विस्तृत + त्व ) , विस्तृति या विस्तार ; जैसे लंबाई - चौड़ाई - मुटाई वा ऊँचाई - गहराई , माप - तौल , संख्या आदि जिसके नहीं बताये जा सकें । ( लंबाई - चौड़ाई - मुटाई वा ऊँचाई - गहराई , माप - तौल , संख्या आदि मायिक पदार्थों के ही बताये जा सकते हैं । परमात्मा परमालौकिक तत्त्व है , उसमें विस्तार नहीं है । ) P06 }
जोर ( फा ० , पुं ० ) = बल , शक्ति ।
(युगल = दोनों, जोड़ा । P14 )
(ज्योतिः = ज्योतियाँ (और वह)। MS01-2 )
ज्ञप्तिमनीनयत् ( सं ० , क्रियापद ) - ज्ञान करा दिया ।
ज्ञात ( सं ० , वि ० ) = जाना हुआ । जिसकी जानकारी हुई हो ।
ज्ञाता ( सं ० , वि ० ) = ज्ञान रखनेवाला, जानकार ।
(ज्ञान - प्रद = ज्ञान प्रदान करनेवाला । P03 )
ज्ञानवान् - झूठ तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां दवाएं.
लालदास साहित्य सूची
|
प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत महर्षि मेँहीँ शब्दकोश + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।