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शब्दकोष 20 || जड़ातीत से ज्ञाता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ज

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

चिदानंदमय - जड़ातीत  तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं

सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज


महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

जड़ातीत - ज्ञाता

 

जड़ातीत ( वि ० ) = जड़ात्मक प्रकृति-मंडलों से रहित । 

जड़ात्मक आच्छादन - मंडल ( पुं ० ) - वह आच्छादन - मंडल ( आवरण मंडल ) जो जड़ हो ; जैसे स्थूल मंडल , सूक्ष्म मंडल , कारण मंडल और महाकारण मंडल । 

जड़ात्मक आवरण ( पुं ० ) = जड़ प्रकृति के मंडलों का आवरण ; जैसे स्थूल , सूक्ष्म , कारण और महाकारण - मंडल । 

जड़ात्मक प्रकृति ( स्त्री ० ) = वह प्रकृति जिसका स्वरूप अज्ञानमय हो , जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति । 

जड़ात्मक मूल प्रकृति ( स्त्री ० ) साम्यावस्थाधारिणी जड़ात्मिका मूल प्रकृति जिसमें सत्त्व , रज और तम- ये तीनों गुण समान समान मात्रा में रहते हैं । 

जड़ात्मक सगुण प्रकृति ( स्त्री ० ) = वह प्रकृति जो अज्ञानमयी और त्रय गुणों से बनी हुई हो , जड़ प्रकृति , अपरा प्रकृति । 

(जगमग = प्रकाशित । P139 ) 

(जत = यतिपन , इन्द्रिय संयम , त्याग , वैराग्य , यम-नियम ।श्रीचंदवाणी 1क )    

( जन = भक्त , दास ।  नानक वाणी 03 ) 

 (जय = जय हो , विजय हो , यश फैले । P04 ) 

(जरद ( फा ० जर्द , वि ० ) = पीला । {जरद = पीला , वैश्य । श्रीचंदवाणी 1क ) }     

जाग्रत् अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) जगी हुई अवस्था , जिस अवस्था में जीवात्मा चौदहो इन्द्रियों के साथ रहता है , जिस अवस्था में प्राणी को अपने शरीर और बाहरी संसार का भी ज्ञान होता है ।

जाग्रत् दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = वह दृष्टि जिससे जगी हुई अवस्था मे  कुछ देखते हैं । 

जाती ( अ ० , वि ० ) = अपना , निज व्यक्तिगत , अपना खास ।

जाती नाम ( अ ० सं ० , पुं ० ) अपना खास नाम , अपना असली नाम ( ध्वन्यात्मक सारशब्द परमात्मा का जाती नाम है ; क्योंकि सुरत से पकड़े जाने पर यह नाम साधक को परमात्मा से मिला देता है । ) 

जानकारी ( स्त्री ० ) = ज्ञान । 

जारी ( अ ० , वि ० ) = प्रवाहित , बहता हुआ , प्रचलित ।  

जीव ( सं ० , पुं ० ) = प्रत्येक शरीर में व्याप्त परमात्मा का अंश , जीवात्मा , चेतन- आत्मा । 

जीवता ( सं ० , स्त्री ० ) जीव भाव , जीव - दशा , जीव होने का = भाव । 

जीवन - काल ( सं ० , पुं ० ) = जन्म से लेकर मृत्यु तक का समय । 

जीवन - मुक्त ( सं ० , वि ० ) जीवन्मुक्त , जीते - जी मुक्त , जो जीवन - काल में ही शरीर और संसार से ऊपर उठ गया हो । 

(जीवात्मा = प्राणियों के शरीर में स्थित आत्मतत्त्व या चेतन आत्मा ।  P06 ) 

(जुलमी (अरबी) = जुल्मी, जुल्म (अत्याचार, अन्याय) करनेवाला, उपद्रव करनेवाला, उत्पात मचानेवाला, अशान्त करनेवाला, सतानेवाला । P11 ) 

{जोतस्वरूप = ज्योति स्वरूप , प्रकाश - रूप ( दशम द्वार का श्वेत ज्योतिर्मय विन्दु गुरु का एक छोटे - से - छोटा सगुण साकार प्रकाशमय रूप है । ) P09 }

{जो न व्यक्ति है = जो साधारण मनुष्यों में से और राम - कृष्ण आदि जैसे विशेष धर्मवान् और अवतारी पुरुषों में से कोई भी नहीं है- " बरन विहीन , न रूप न रेखा , नहिं रघुवर नहिं श्याम । " ( १२ वाँ पद्य )  P06 }

{जो मायिक विस्तृतत्व - विहीन है = माविक पदार्थों में पाये जानेवाले विस्तृतत्व ( विस्तृत + त्व ) , विस्तृति या विस्तार ; जैसे लंबाई - चौड़ाई - मुटाई वा ऊँचाई - गहराई , माप - तौल , संख्या आदि जिसके नहीं बताये जा सकें । ( लंबाई - चौड़ाई - मुटाई वा ऊँचाई - गहराई , माप - तौल , संख्या आदि मायिक पदार्थों के ही बताये जा सकते हैं । परमात्मा परमालौकिक तत्त्व है , उसमें विस्तार नहीं है । ) P06 }

जोर ( फा ० , पुं ० ) = बल , शक्ति । 

ज्ञप्तिमनीनयत् ( सं ० , क्रियापद ) - ज्ञान करा दिया । 

ज्ञात ( सं ० , वि ० ) = जाना हुआ । जिसकी जानकारी हुई हो ।

ज्ञाता ( सं ० , वि ० ) = ज्ञान रखनेवाला, जानकार ।

(ज्ञान - प्रद = ज्ञान प्रदान करनेवाला । P03 )


ज्ञानवान् - झूठ    तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं.


     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  जड़ात्मक आच्छादन-मंडल, जड़ात्मक आवरण, जड़ात्मक प्रकृति, जड़ात्मक मूल प्रकृति, जड़ात्मक सगुन प्रकृति, जरद, जाग्रत अवस्था, जाग्रत दृष्टि, जाति, जाति नाम, जानकारी, जारी, जीव, जीवता, जीवन-काल, जीवन-मुक्त, जोर, ज्ञप्तिमनीनयत्, ज्ञात, ज्ञाता  आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 20 || जड़ातीत से ज्ञाता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 20  ||  जड़ातीत से ज्ञाता   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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