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शब्दकोष 21 || ज्ञानवान् से झूठ तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ज

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

ज्ञानवान् - झूठ

 

(ज्ञान = सच्चा ज्ञान , अध्यात्म - ज्ञान । P30 )

{ज्ञान अखंड = जिसका ज्ञान कभी खंडित नहीं होता हो , जिसका ज्ञान सदा एक - जैसा रहता हो । ( सामान्य लोगों का ज्ञान - विवेक सत्संगति - कुसंगति में बढ़ता - घटता रहता है ; परन्तु आत्मज्ञ महापुरुषों का ज्ञान - विवेक कभी भी खंडित नहीं होता । रामचरितमानस , उत्तरकांड में भी श्रीराम के लिए ज्ञान अखंड विशेषण का प्रयोग किया गया है ; देखें - " ग्यान अखंड एक सीतावर । मायावस्य जीव सचराचर ॥ " ) P04 }

(ज्ञान - उदधि = ज्ञान के समुद्र , अपार ज्ञानवाले , ज्ञान के भंडार । P03 ) 

{ज्ञान - घन = ज्ञान - समूह , ज्ञान की खान , ज्ञान के बादल , ज्ञान - रूपी जल की वर्षा करनेवाला । गो ० तुलसीदासजी ने भी हनुमान्जी की वन्दना करते हुए उन्हें 'ज्ञानघन' कहा है ; देखें- " प्रनवौं पवनकुमार , खल वन पावक ज्ञानधन । " - मानस , बालकांड । ) P03 }

{ज्ञान - ध्यान - निधि = ज्ञान - ध्यान के भंडार , ज्ञान - ध्यान में पूर्ण । ( निधि = खजाना , भंडार , समुद्र , घर , आधार । ) परचारी = प्रचार किया , प्रचार करनेवाला । धनि = धन्य , धनी , जिसके पास धन हो , जिसमें कोई गुण या विशेषता हो , ऐश्वर्यवान् , महिमावान् , स्वामी । ( ' धनी ' एक आदर , श्रेष्ठता या विशेषता - सूचक शब्द है , जो महापुरुष के नाम के आगे जोड़ा जाता है ; जैसे - धनी धर्मदासजी । P02 }

ज्ञानवान् ( सं ० , वि ० ) =  बहुत ज्ञान रखनेवाला , बहुत विद्वान् । 

ज्ञानेन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० )  = वह इन्द्रिय जिससे संसार के विषय ( रूप , रस , गंध , स्पर्श या शब्द ) का ज्ञान प्राप्त होता है । ऐसी इन्द्रियाँ पाँच हैं ; जैसे आँख , कान , नाक , जिह्वा और त्वचा ।

ज्ञानोपार्जन ( सं ० , पुं ० ) = ज्ञान का उपार्जन , ज्ञान सीखने की क्रिया । 

ज्योति मंडल ( सं ० , पुं ० ) = शरीर के अन्दर का वह दर्जा या स्तर जहाँ अलौकिक प्रकाश की अवस्थिति है , सूक्ष्म जगत् , सूक्ष्म मंडल । 
(जत = जितना , जो । P09 )

 

झंकार ( सं ० , स्त्री ० ) = ध्वनि , आवाज , झनझन शब्द , झन झनाहट । 

(झकाझक = खूब उजला और चमकता हुआ। P10 ) 

(झलक = प्रकाश । P145  )

झलकना ( स ० क्रि ० ) = दिखायी पड़ना । 

(झाँझ = झाल । P145  )

झिड़कना ( अ ० क्रि ० ) = डाँटना फटकारना , जली - कटी सुनाना , भला - बुरा कहना । 

झूठ ( वि ० ) = झूठ बात । असत्य । ( पुं ० ) झूठ बात।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  ज्ञानवान्, ज्ञानेंद्रिय, ज्ञानोपार्जन, ज्योति-मंडल, झंकार, झलकना, झिड़कना, झूठ  आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 21 || ज्ञानवान् से झूठ तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 21 ||  ज्ञानवान्  से  झूठ   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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