महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ज
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
ज्ञानवान् - झूठ
(ज्ञान = सच्चा ज्ञान , अध्यात्म - ज्ञान । P30 )
{ज्ञान अखंड = जिसका ज्ञान कभी खंडित नहीं होता हो , जिसका ज्ञान सदा एक - जैसा रहता हो । ( सामान्य लोगों का ज्ञान - विवेक सत्संगति - कुसंगति में बढ़ता - घटता रहता है ; परन्तु आत्मज्ञ महापुरुषों का ज्ञान - विवेक कभी भी खंडित नहीं होता । रामचरितमानस , उत्तरकांड में भी श्रीराम के लिए ज्ञान अखंड विशेषण का प्रयोग किया गया है ; देखें - " ग्यान अखंड एक सीतावर । मायावस्य जीव सचराचर ॥ " ) P04 }
(ज्ञान - उदधि = ज्ञान के समुद्र , अपार ज्ञानवाले , ज्ञान के भंडार । P03 )
{ज्ञान - घन = ज्ञान - समूह , ज्ञान की खान , ज्ञान के बादल , ज्ञान - रूपी जल की वर्षा करनेवाला । ( गो ० तुलसीदासजी ने भी हनुमान्जी की वन्दना करते हुए उन्हें 'ज्ञानघन' कहा है ; देखें- " प्रनवौं पवनकुमार , खल वन पावक ज्ञानधन । " - मानस , बालकांड । ) P03 }
ज्ञानवान् ( सं ० , वि ० ) = बहुत ज्ञान रखनेवाला , बहुत विद्वान् ।
ज्ञानेन्द्रिय ( सं ० , स्त्री ० ) = वह इन्द्रिय जिससे संसार के विषय ( रूप , रस , गंध , स्पर्श या शब्द ) का ज्ञान प्राप्त होता है । ऐसी इन्द्रियाँ पाँच हैं ; जैसे आँख , कान , नाक , जिह्वा और त्वचा ।
ज्ञानोपार्जन ( सं ० , पुं ० ) = ज्ञान का उपार्जन , ज्ञान सीखने की क्रिया ।
झंकार ( सं ० , स्त्री ० ) = ध्वनि , आवाज , झनझन शब्द , झन झनाहट ।
(झकाझक = खूब उजला और चमकता हुआ। P10 )
(झलक = प्रकाश । P145 )
झलकना ( स ० क्रि ० ) = दिखायी पड़ना ।
(झाँझ = झाल । P145 )
झिड़कना ( अ ० क्रि ० ) = डाँटना फटकारना , जली - कटी सुनाना , भला - बुरा कहना ।
झूठ ( वि ० ) = झूठ बात । असत्य । ( पुं ० ) झूठ बात।
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