महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ख
प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज द्वारा लिखित व संग्रहित है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--
क्रम-क्रम - क्षोभित तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां दवाएं।
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बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज |
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
खगराई - गरु
ख
खगराई ( हिं ० , वि ० ) = पक्षियों के राजा । ( पुं ० ) गरुड़ ।
खगराजा ( वि ० ) = पक्षियों का राजा । ( पुं ० ) गरुड़ |
{खरी = खरा , अच्छा , सुन्दर , शुद्ध , पवित्र ; देखें- " यह दुविधा पारस नहिं जानत , कंचन करत खरो । " ( भक्त सूरदासजी ) P03 }
{खर्व = छोटा ; देखें- " रुद्धं नहीं नाहिं दीर्घं न खर्वं । " ( १३ वाँ पद्य ) P01 } (खर्वं = खर्व , छोटा ; देखें-- " हिरण्यगर्भहु खर्व जासों , जो हैं सान्तन्ह पार में । " - पहला पद्य । P13 )
(खाद्य पदार्थ = खाने - योग्य पदार्थ । P06 )
खास ( अ ० , वि ० ) = विशेष , मुख्य , प्रधान ।
(खिंथा - कंथा , गुदड़ी । श्रीचंदवाणी 1क)
खिल ( सं ० , वि ० ) = थोड़ा , जो पूरा नहीं हो ।
(खुद (फारसी ) = स्वयं, आप, अपने-आप । P11 )
खुदा ( फा ० , पुं ० ) ईश्वर ।
खूब ( फा ० , वि ० ) = बहुत , बहुत अधिक , अच्छा , भला ।
(खेइ = खेकर, डाँड़ों से नाव चलाकर । P11 )
ख्याल ( अ ० , पुं ० ) ध्यान , स्मृति याद ।
ख्वाजा साहब - एक सूफी संत जो अमीर खुशरो के = विचार , गुरु थे ।
ग
(ज्ञान प्रकाशन = सद्ज्ञान प्रकाशित या प्रकट करनेवाला , अच्छी शिक्षा देनेवाला । P30 )
गंध ( सं ० , स्त्री ० ) = नाक इन्द्रिय से ग्रहण किया जानेवाला विषय ।
(गंजन = नाश ; यहाँ अर्थ है - नष्ट करनेवाला । P02 )
गंभीरतम ( सं ० वि ० ) सबसे अधिक गंभीर बहुत गहरा , बहुत गहन , बहुत कठिनाई से समझने योग्य ।
गगन - द्वार ( सं ० पुं ० ) = अन्तर के आकाश में प्रवेश करने का द्वार , दशम द्वार , आज्ञाचक्र केन्द्रविन्दु ।
गत होना ( अ ० क्रि ० ) = मर जाना ।
गति ( सं ० , स्त्री ० ) = गमन करने की क्रिया , चलने की क्रिया , चाल , वेग ।
(गम्यं = गम्य , जाननेयोग्य , पहचाननेयोग्य , समझनेयोग्य । P13 )
गरज ( हिं ० , स्त्री ० ) = बहुत गंभीर और ऊँचा शब्द ।
गरु ( पुं ० ) = गोरू , सींगवाला पशु चौपाया , मवेशी ।
गरु - ग्रहण तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में खगराई, खगराजा, खास, खिल, खुदा, खूब, ख्याल, ख्वाजा साहब, गंध, गंभीरतम, गगन-द्वार, गत होना, गति, गरज, गरु आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
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