महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / ख
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
खगराई - गरु
ख
खगराजा ( वि ० ) = पक्षियों का राजा । ( पुं ० ) गरुड़ |
{खरी = खरा , अच्छा , सुन्दर , शुद्ध , पवित्र ; देखें- " यह दुविधा पारस नहिं जानत , कंचन करत खरो । " ( भक्त सूरदासजी ) P03 }
(खाद्य पदार्थ = खाने - योग्य पदार्थ । P06 )
खास ( अ ० , वि ० ) = विशेष , मुख्य , प्रधान ।
(खिंथा - कंथा , गुदड़ी । श्रीचंदवाणी 1क)
खिल ( सं ० , वि ० ) = थोड़ा , जो पूरा नहीं हो ।
(खुद (फारसी ) = स्वयं, आप, अपने-आप । P11 )
खुदा ( फा ० , पुं ० ) ईश्वर ।
खूब ( फा ० , वि ० ) = बहुत , बहुत अधिक , अच्छा , भला ।
(खेइ = खेकर, डाँड़ों से नाव चलाकर । P11 )
ख्याल ( अ ० , पुं ० ) ध्यान , स्मृति याद ।
ख्वाजा साहब - एक सूफी संत जो अमीर खुशरो के = विचार , गुरु थे ।
ग
गंध ( सं ० , स्त्री ० ) = नाक इन्द्रिय से ग्रहण किया जानेवाला विषय ।
(गंध = गंध को ग्रहण करनेवाली इन्द्रिय, नाक । नानक वाणी 53 )
(गंजन = नाश ; यहाँ अर्थ है - नष्ट करनेवाला । P02 )
गंभीरतम ( सं ० वि ० ) सबसे अधिक गंभीर बहुत गहरा , बहुत गहन , बहुत कठिनाई से समझने योग्य ।
गगन - द्वार ( सं ० पुं ० ) = अन्तर के आकाश में प्रवेश करने का द्वार , दशम द्वार , आज्ञाचक्र केन्द्रविन्दु ।
{गगन मै = गगनमय , आकाश का बना हुआ । ( नानक वाणी 53 )}
गत होना ( अ ० क्रि ० ) = मर जाना ।
गति ( सं ० , स्त्री ० ) = गमन करने की क्रिया , चलने की क्रिया , चाल , वेग ।
(गम्यं = गम्य , जाननेयोग्य , पहचाननेयोग्य , समझनेयोग्य । P13 )
गरज ( हिं ० , स्त्री ० ) = बहुत गंभीर और ऊँचा शब्द ।
गरु ( पुं ० ) = गोरू , सींगवाला पशु चौपाया , मवेशी ।
लालदास साहित्य सूची
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