MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची' की आठवीं पुस्तक "ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति" है । इस पुस्तक में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज बताते हैं कि- ईश्वर की भक्ति क्यों आवश्यक है? जीवन में ईश्वर भक्ति का क्या महत्व है ? भक्ति करना क्यों जरूरी है? ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति क्या है? मनुष्य के जीवन में ईश्वरीय ज्ञान का क्या महत्व है? ईश्वर के ज्ञान की वृद्धि से क्या लाभ होता है? भगवान के चार ध्यान कौन से हैं? ईश्वर के उपदेश से ज्ञान में वृद्धि होती है। ज्ञानयोग का ग्रन्थ कौन सा है? गीता के अनुसार ज्ञान योग क्या है? कर्मयोग ज्ञानयोग भक्तियोग क्या है? ज्ञान योग का अर्थ क्या है? यह पुस्तक ईश्वर के अर्थ को बताने वाला और भगवान को समझाने वाला पीडीएफ और ओरिजिनल बुक है । आइए ईश्वर संबंधी बातों को समझने के लिए 'ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति' पुस्तक का दर्शन करें-
महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की आठवीं पुस्तक "MS08 मोक्ष-दर्शन || मोक्ष संबंधी आवश्यक सभी बातों की स्टेप बाय स्टेप जानकारी की पुस्तक" के बारे में जानने के लिए 👉 यहां दवाएँ।
| ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति |
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भक्ति करना क्यों जरूरी है? Why is it necessary to do devotion?
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज इसमें कहते हैं कि-- ईश्वर भक्ति क्यों करें? मनुष्य शरीर की विशेषता क्या है? मनुष्य का शरीर कैसा है? मनुष्य शरीर से क्या-क्या हो सकता है? मनुष्य शरीर का सर्वोत्तम काम क्या है? ब्रह्मचर्य सहित अन्य कौन सा काम करना चाहिए? अपने देश का नियम क्या था? स्वावलम्बी जीवन का महत्व, असली ईश्वर भक्ति क्या है? ईश्वर भक्ति के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इत्यादि बातें। आइये कुछ नमुना रूप में देखें-
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इस प्रवचन लेख में क्या-क्या बातें बतायीं गई है
प्रभु प्रेमियों ! उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर आपको निम्नांकित क्रम से प्राप्त होगें अर्थात् इस लेख में आपको निम्नलिखित प्रश्नों के हिसाब से क्रमशः उत्तर मिलेंगे । आपको जिन प्रश्नों का उत्तर चाहिए आप उतने नंबर के पैराग्राफ का पाठ करें । प्रश्न है 👉
1. मनुष्य का शरीर कैसा है? 2. मनुष्य का शरीर देवालय या शिवालय है। 3. मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है? 4. मोक्षार्थी का जीवन और ब्रह्मचर्य 5. संसार में कैसे रहना चाहिए? 6. कबीर साहेब और संतों का स्वावलम्बी जीवन 7. मनुष्य का शरीर ठाकुरवाड़ी कैसे बनता है। इनके उत्तर के बाद देते पोस्ट में ईश्वर-भक्ति के अन्य प्राचीन और अर्वाचीन बातों को जानेंगे। तो आइये प्रवचन पढ़े--
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मनुष्य का शरीर कैसा है?
प्यारे लोगों !
यह बात बहुत प्रसिद्ध है। शास्त्रीय रूप से प्रसिद्ध है-
'नर समान नहिं कवनिउ देही ।
जीव चराचर जाचत जेही ॥"
अर्थात् मनुष्य शरीर के समान कोई भी - शरीर नहीं है, जिसको जड़-चेतन सभी चाहते हैं। 'जीव चराचर' - चलनेवाले, नहीं चलनेवाले जितने प्राणी हैं, सभी मनुष्य - शरीर चाहते हैं। मनुष्य, पक्षी चलनेवाले हैं और वृक्ष, पहाड़ चलनेवाले नहीं हैं। सभी चाहते हैं कि मनुष्य शरीर मिले। किसी मनुष्य से पूछिये कि हाथी बहुत बड़ा जानवर है, वह आप बनना चाहते हैं? कोई पसन्द नहीं करेगा। गौ की पूजा हम करते हैं; लेकिन गौ या बैल होना कोई पसन्द नहीं करता। मनुष्य- शरीर उत्तम शरीर है। कितना उत्तम है यह? उपनिषत्कार ने कहा है-
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2. मनुष्य-देह देवालय या शिवालय है।
'देह शिवालयं प्रोक्तं सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।
मनुष्य - देह शिवालय है। इसमें सबको सिद्धि मिलती है। ''देहं विष्ण्वालयं प्रोक्तं सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।' मनुष्य देह ठाकुरबाड़ी है। इसमें सबको सिद्धि मिलती है। हाड़-मांस को लोग अपवित्र समझते हैं; लेकिन जबतक जीवित मनुष्य- शरीर में लगा हुआ है, तबतक पवित्र हैं। संसार में जितने जो कुछ प्राणी हैं, सबसे विशेष मनुष्य है। परमार्थ साधन, देव-पूजन, मोक्ष का साधन इसी शरीर से होते हैं; और ये हैं भी इसी शरीर के लिए । मनुष्य - शरीर ही इस काम को आरम्भ कर सकता है और धीरे-धीरे करके समाप्त कर सकता है और किसी शरीर में नहीं । 'सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहिं गावा।' इसलिए कि यह शरीर सभी साधनों का घर है। जो यत्न करो; सफल होओगे। और जो मुक्ति में जाना चाहें; वे मनुष्य शरीर में - आकर जा सकते हैं और किसी शरीर में नहीं । मोक्ष पाने का यत्न करना चाहिए; इसी के लिए सन्त उपदेश करते हैं--
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3. मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है?
निधड़क बैठा नाम बिनु, चेति न करै पुकार ।
यह तन जल का बुदबुदा, बिनसत नाहीं बार॥'
-- कबीर साहब
यह शरीर बड़ा अच्छा है; लेकिन क्या बालपन, क्या बुढ़ापा, क्या जवानी का शरीर, यम के फन्दे में जो शरीर पड़ेगा, वह जाएगा ही । लेकिन ठिकाना नहीं, कब यम के फन्दे में आ जाएगा?
नहँ बालक नहँ जौवने, नहँ विरधी कछु बन्ध ।
वह अवसर नहिं जानिये, जब आय पड़े जम फन्द ॥
- गुरु नानक साहब
इस शरीर से मोक्ष का साधन अवश्य करो। मोक्ष - साधन करो और कोई काम नहीं करो, ऐसी बात सन्त लोग नहीं कहते। ऐसा भजन जिससे मोक्ष हो, सो करो और जबतक जीवन हैं, तभी तक साधन कर सकते हो। मोक्ष के लिए साधन है। जो अत्यन्त अपेक्षित है, वह करो । जबसे होश हो, सचेत होओ, तबसे भजन करो। हमारे देश का पुराना नियम है, पहले ब्रह्मचर्य का पालन करो।
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4. मोक्षार्थी का जीवन और ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य का पालन कब से करो ? जब से उपनयन हुआ अर्थात् जन्म के बाद जो दूसरा संस्कार हो जाय। जन्म धारण करने पर पाँच-सात वर्षों के बाद उत्सव कराते हैं, उसमें जनेऊ देते हैं । उसी समय से शुचिता से रहने के लिए सिखाया जाता है । गायत्री मन्त्र का जप करने को भी कहा जाता है। इस मन्त्र के साथ प्राणायाम भी बताया जाता है। प्राणायाम - हीन गायत्री - जप निर्जीव होता है- निष्फल होता है। संयम के साथ जप करने से लाभ होता है। उपनयन होने पर विद्या के लिए गुरुकुल जाओ और वहाँ विद्याभ्यास के साथ गायत्री मन्त्र का जप भी करो । विद्या समाप्त कर घर जाओ । गृहस्थ - जीवन में प्रवेश करो और उपनयन के समय में जो दीक्षा प्राप्त किए हो, सो भी करो । फिर घर छोड़कर संन्यास लेने की बात थी; वह नियम अब खतम हो गया। लेकिन ऐसा जाना जाता है कि उस समय बचपन से ही लोग योग सिखाने का काम करते थे। लोग योग सीखते थे।
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5. संसार में कैसे रहना चाहिए?
इन बातों को जो लोग नहीं जानते हैं, वे कहते हैं कि 'अभी बच्चे हो, नहीं करो।' संसार का काम भी करो और मोक्ष का साधन भी करो। यही अपने देश का नियम था । सब-के-सब मोक्ष का साधन कीजिए और घर के कामों को भी देखिए । दोनों काम संग-संग करो। कुछ काल ऐसा व्यतीत हुआ कि लोग मोक्ष का साधन भी करते थे और घर के कामों को भी । इसलिए घर में काम- धन्धा भी करो और मोक्ष-साधन भी करो। दूसरे की देह का पालन नहीं कर सकते हो, तो अपनी देह का पालन-पोषण करो।
बाबा साहब ने मुझसे पूछा था, 'तुम अपनी जीविका के लिए क्या सोचते हो? मेरे सत्संग में आए हो, तो सेल्फ- सपोर्टर ( Self- supporter ) यानी स्वावलम्बी बनो।' अब मेरा जीवन बहुत अच्छा है, गुरु महाराज की बात सुनकर। मोक्ष का साधन परिवार छोड़कर करे, ऐसी बात नहीं। ईश्वर का भजन भी करो, जिससे मोक्ष मिले और घर का काम भी करो। यही बात भगवान श्रीकृष्ण ने कही है।
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6. कबीर साहेब और संतों का स्वावलम्बी जीवन
कबीर साहेब उसके पूर्ण स्वरूप थे, पूर्ण योगी थे। उनको ऐसा नहीं था कि हम जीविका नहीं करें। बचपन से वे जो काम करते थे, सब दिन करते रहे। बाबा नानक भी ऐसे थे । इनके सिलसिले में दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी थे। इनके यहाँ भी यही बात थी । दसवें गुरु ने सिक्ख धर्म को कायम किया; एक जाति को कायम किया; पंच ककार दिए । वे लोग संसार के कामों को करते हुए परमार्थ-साधन करते थे। सिर-रक्षा के लिए केश, कोई हथियार नहीं हो तो कड़ा - कृपाण, कच्छा इसलिए कि सदा तैयार, कोई लटपट नहीं। उन्होंने पंजाब को स्वतंत्र किया। आज के जमाने में परमार्थ का साधन कैसे करना चाहिए, इसका यह नमूना है। संसार का पालन-पोषण करो और ईश्वर का भजन भी करो । दसो गुरुओं ने यह शिक्षा दी।
बाबा नानक बहुत घूमे; पूर्वीय गोलार्द्ध में बहुत घूमे। पैदल जहाँ तक जाने का था, तमाम गए। कुछ सामुद्रिक यात्रा भी की ; जैसे लंका गए। सन्तों ने बताया है कि तुम्हारा शरीर - शिवालय और ठाकुरबाड़ी है।
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7. मनुष्य का शरीर ठाकुरवाड़ी कैसे बनता है।
अपने शरीर को तुम ठाकुरबाड़ी बना सकते हो अथवा विष्ठा का घर बना सकते हो । परमार्थ-साधन नहीं जानते हो, तो यह शरीर ठाकुरबाड़ी नहीं है। परमार्थ साधन है, तो ठाकुरबाड़ी है । अन्तःकरण पर शौच है, तो वह सदाचार है और बाहरी पवित्रता शुच्याचार है। सबको स्वभावतः भजन का अवलम्ब दिया गया है। उस अवलम्ब को पकड़ना चाहिए। जो पकड़ते हैं, वे ठीक-ठीक भजन करते हैं । सन्त कबीर साहब ने बताया है- पाँचो नौबत बाजती, होत छतीसो राग । सो मन्दिर खाली पड़ा, बैठन लागे काग ॥
यहि घट चन्दा यहि घट सूर, यहि घट बाजै अनहद तूर ।
यहि घट बाजै तबल निसान, बहिरा शब्द सुनै नहिं कान ॥'
- गुरु नानकदेव
प्रकाश और शब्द - ये दोनों अवलम्ब तुम्हारे अन्दर हैं। इस शरीर के अन्दर पाँच नौबतें बजती हैं। मांस, खून, हाड़, चाम, स्थूल नस-ये शरीर के स्थूल भाग हैं। मांस- रक्त के पिंजड़े में शून्य भी है।
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शून्य में कहीं अन्धकार भी है, कहीं प्रकाश भी है; लेकिन शब्द से खाली कोई भी जगह नहीं है। एकान्त में बैठकर ध्यान कीजिए और शब्द पकड़िए । ईश्वर की ज्योति और नाद; साधक के लिए अन्तस्साधना में ये दोनों सहारे हैं। ईश्वर के पास पहुँचने का यह सरल उपाय है। इस मनुष्य - शरीर को पाकर ईश्वर - स्वरूप को जानना चाहिए। इसलिए ईश्वर - भजन करो। केवल खाना- सोना किस काम का ? पशु मनुष्य - शरीर इसलिए नही है। भी खाता - सोता है।∆
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प्रभु प्रेमियों ! महर्षि साहित्य सीरीज के इस पोस्ट का पाठ करके आप लोगों ने जाना कि मनुष्य जीवन के संस्कार, मनुष्य जीवन का उद्देश्य, मनुष्य जीवन के चार आश्रम, मनुष्य जीवन की चार अवस्थाएं, मनुष्य जीवन चक्र, मनुष्य जीवन क्यों मिला है, मनुष्य जीवन अनमोल रे, मनुष्य जीवन अनमोल है, मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि। मनुष्य जीवन का लक्ष्य, मनुष्य जीवन का महत्व क्या है। इत्यादि बातें
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