MS08 मोक्ष-दर्शन एक परिचय
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची' की बारहवीं पुस्तक "सत्संग- सुधा भाग 1" है । इस पुस्तक में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज बताते हैं '
सत्संग - योग ' की भूमिका से "
सत्संग द्वारा श्रवण - मनन से मोक्षधर्म - सम्बन्धी मेरी जानकारी जैसी है , उसका ही वर्णन चौथे भाग में मैंने किया है । परमात्मा , ब्रह्म , ईश्वर , जीव , प्रकृति , माया , बन्ध मोक्षधर्म वा सन्तमत की उपयोगिता , परमात्म भक्ति और अन्तर - साधन का सारांश साफ - साफ समझ में आ जाय इस भाग के लिखने का हेतु यही है । "
आइये इस पुस्तक का अवलोकन करते हैं--
महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की सातवीं पुस्तक "MS07 महर्षि मँहीँ पदावली || स्तुति-प्रार्थना ईश्वर सद्गुरु आदि सभी विषयों के गेय पदों से भरपूर पुस्तक" के बारे में जानने के लिए 👉 यहां दवाएँ।
| मोक्ष- दर्शन |
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मोक्ष प्राप्ति क्या होता है? मोक्ष प्राप्ति का भावार्थ क्या है?
प्रभु प्रेमियों ! "कल्याण - पाद महर्षिजी ने वेद - काल से लेकर आजतक के मोक्ष - दर्शन को चार प्रकोष्ठों में प्रतिष्ठित किया है और उसका नाम रखा है- ' सत्संग - योग , चारो भाग ' और उनके अनुभव ज्ञान की वाणियाँ गम्भीर सरलता में अभिव्यक्त होकर ' मोक्ष - दर्शन ' नाम धारण कर आज मुमुक्षुजनों में अमृत - वितरण के लिए प्रस्तुत है ।" प्रकाशक (मोक्ष-दर्शन)
"सामान्यतः ' मैं हूँ ' का ज्ञान मनुष्य को स्वतः होता है । उसको यह जानने में कठिनाई नहीं होती कि वह शारीरिक , मानसिक और सांसारिक बंधनों एवं विकारों से जकड़ा हुआ है । परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता रहित होने के कारण वह शांतिमय सुख से वंचित रहता है । इस हेतु उपर्युक्त बंधनों , विकारों एवं कष्टों से छूटने तथा आत्म - स्वतंत्रता का शांतिमय स्थिर सुख लाभ करने का ज्ञान और उसकी युक्ति उसे अवश्य प्राप्त करनी चाहिए , जो संतों के संग और उनकी सेवा के सिवाय अन्य कहीं से प्राप्त होने योग्य नहीं है ।"
मोक्ष - संबंधी पर्याप्त ज्ञान के हेतु मैंने वेदार्थ * , उपनिषद् , संतवाणी तथा अन्यान्य सद्ग्रंथों का अध्ययन किया । श्रीसद्गुरु महाराजजी का संग तो था ही , इसके अतिरिक्त यत्र - तत्र भ्रमण करके मैंने अन्य महात्माओं का भी सत्संग किया । वर्णित सद्ग्रंथों में से मोक्ष - विषयक सद्ज्ञान का संग्रह कर उसे तीन भागों में विभक्त कर दिया ।
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मोक्ष- दर्शन A-Z |
सत्संग , अध्ययन और वर्षों के साधनाभ्यास की अनुभूतियों से जो कुछ मेरी जानकारी में आया - जैसा कुछ मुझे बोध हुआ , उन सबको अपने वाक्यों में गठित कर मैंने चौथे भाग का निर्माण किया । पश्चात् चारो को मिलाकर उस बृहत् पुस्तक का नाम मैंने ' सत्संग योग ' रखा । ' सत्संग - योग ' के चौथे भाग में यत्र - तत्र प्रमाण स्वरूप कुछ संतों की वाणियाँ भी दी गयी हैं । ईश्वर , जीव , जगत् , जीव का बंध और मोक्ष , मोक्ष- मार्ग पर चलने का सहारा और उसकी युक्ति प्रभृति मोक्ष - विषयक जिन बातों का ज्ञान मनुष्य को अनिवार्य रूप से होना चाहिए , वह समस्त ज्ञान इस चौथे भाग में है ।
मुक्ति का मार्ग कौन सा है?
विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा अवश्य ही भारत अधिक अध्यात्म भावापन्न देश है । वैदिक काल को अनेक विद्वान् विचारक अध्यात्म का स्वर्णिम काल कहकर उद्घोषित करते हैं ; क्योंकि उस समय जन - जीवन बड़ा ही शांतिमय और सुखद था और ऋषि - मुनियों की तपस्या के पुनीत तेज से सारा समाज आच्छादित सा था । उस दिव्य काल के शीर्षस्थ ऋषि या शांति प्राप्त संतजन की हार्दिक अभिलाषा थी - ' सभी सुखी हों और रहें , सभी आरोग्यमय जीव बिताएँ , सभी सर्वजीवों के लिए भद्र - शुभ - कल्याण ही देखें अर्थात् केवल सर्वकल्याण के लिए ही सांसारिक कर्तव्य करें और किसी को भी किसी प्रकार के दुःख की प्राप्ति न हो । ' , तपः तेज से उत्प्राणित वाणी का प्रभाव और दबाव उस समय अवश्य ही छाया हुआ था , पर इसी के अंतराल में महामाया क मोहकारिणी लीला भी संचरित थी ।
मोक्ष प्राप्ति के कितने उपाय है
अपनी जाति , अपना शासन - क्षेत्र , अपनी भाषा , अपना रीति - रिवाज आदि संकीर्णताओं या सीमा विभेद करनेवाली वृत्तियों की संख्या बढ़ती गयी । धर्मतत्त्व की नैसर्गिक अखण्डता को भी छद्मजाल से भेदों और खण्डों में दिखाया जाने लगा । वशिष्ठ और विश्वामित्र के काल से लेकर आजतक माया की इस छद्मलीला से सुबुद्ध जन अपरिचित नहीं है । महामानव बुद्धदेव ने इस कपट को पहचाना और इसका संवेधन किया । इसीलिए बुद्धकाल को हम मानवता के कल्याण - विस्तारण का ' हीरक काल ' कहकर बोध ले सकते हैं ।
एक दिन पूज्यपाद महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने अपना हार्दिक भाव इन शब्दों में व्यक्त किया था - ' जिसको कोई नहीं पूछता- कोई पूछनेवाला नहीं है , ऐसा -व्यक्ति जब मेरे पास दीक्षा - भजन - भेद लेने आता है , तो आनन्द से मेरा हृदय परिपूर्ण हो जाता है । ' इन वाणियों की ऊर्जस्वित सर्वजन - कल्याण - भावना , ऐसा लगता है , जैसे मानव समाज के सारे कलुषित आवरणों को अपने अदम्य शक्तिशाली विस्फोट से चूर्ण - विचूर्ण कर विश्व भर में छा जाने के लिए आतुर - आकुल हो । इसीलिए उनके अन्तर से प्रस्फुटित यह वाणी अपने मंगल- निनाद को ऊँचे - से - ऊँचे उठाये जा रही है - जितने मनुष तनधारि हैं , प्रभु भक्ति कर सकते सभी । अन्तर व बाहर भक्ति कर , घट - पट हटाना चाहिए ।
मोक्ष प्राप्ति के साधन कलयुग में
कल्याण - पाद महर्षिजी ने वेद - काल से लेकर आजतक के मोक्ष - दर्शन को चार प्रकोष्ठों में प्रतिष्ठित किया है और उसका नाम रखा है- ' सत्संग - योग , चारो भाग ' और उनके अनुभव ज्ञान की वाणियाँ गम्भीर सरलता में अभिव्यक्त होकर ' मोक्ष - दर्शन ' नाम धारण कर आज मुमुक्षुजनों में अमृत - वितरण के लिए प्रस्तुत है ।
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मोक्ष- दर्शन मुख्य कवर |
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मोक्ष-दर्शन
सूची पत्र
- १. शांति , सन्त और संतमत की परिभाषा , उपनिषद् और संतवाणी की एकता और संतमत की मूल भित्ति उपनिषद् ही है ।
- २. नादानुसंधान या सुरत शब्द योग ही संतमत की विशेषता है । इसे ही नाम भजन या ध्वन्यात्मक सारशब्द का भजन भी कहते हैं ।
- ३. जड़ और चेतन प्रकृति की सान्तता और इसके परे अनन्त की स्थिति की अनिवार्यता । अनन्त तत्त्व एक , अनादि , जड़ातीत , चैतन्यातीत और मायिक विस्तृतत्व - विहीन है , यही संतमत का परम अध्यात्म पद है ।
- ४. परा अपरा प्रकृति , अंशी - अंश , आत्म - अनात्म तथा क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ और आच्छादन - तत्त्वों के रूपों का विचार ।
- ५. परम प्रभु की प्राप्ति के बिना कल्याण नहीं ।
- ६. क्षर - अक्षर सत् - असत् का विचार , परम प्रभु की मौज बिना सृष्टि नहीं होती ; मौज , कम्प एवं शब्द की अनिवार्य एकता और आदि कम्प एवं आदिशब्द ही सृष्टि का साराधार है ।
- ७. आदिनाद को ही रामनाम , सत्यनाम , ॐकार आदि कहा जाता है , शब्द का गुण , सृष्टि के दो बड़े मण्डल , अपरा प्रकृति के चार मण्डल , पिण्ड एवं ब्रह्माण्ड के मण्डलों का संबंध , भिन्न - भिन्न मण्डलों के केन्द्र |
- ८. केन्द्रीय शब्दों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर है , सूक्ष्म शब्द स्थूल में व्यापक तथा विशेष शक्तिशाली होता है । केन्द्रीय शब्दों को पकड़कर सर्वेश्वर तक पहुँच सकते हैं ।
- ९ . प्रकृति कैसे अनाद्या है ? कैवल्य शरीर चेतन है ।
- १०. अनन्त से बढ़कर कोई अधिक सूक्ष्म तथा विस्तृत नहीं हो सकता । अपरिमित का परिमित पर शासन होना अनिवार्य है । प्रभु प्राप्ति के लिए अन्तर में यात्रा क्यों आवश्यक है ?
- ११. अन्तर में चलना प्रभु की भक्ति तथा अन्तर- सत्संग है । मन की एकाग्रता एकविन्दुता है ।
- १२. दूध में घी की भाँति मन में सुरत है । सृष्टि के जिस मण्डल में जो रहता है , वह वहीं का अवलम्ब लेता है । सिमटाव का स्वभाव ।
- १३. दृष्टि- योग का संकेत , दिव्य दृष्टि कैसे खुलती है ?
- १४. दृष्टि- योग से नादानुसंधान की योग्यता , निम्न मण्डल की शब्द - धारा पकड़कर ऊँचे लोक में प्रवेश और वहाँ की शब्द - धारा का ग्रहण । शब्द - साधन का मन पर प्रभाव , पंच पापों का त्याग और सद्गुरु की सेवा , उनका सत्संग तथा अतिशय ध्यानाभ्यास की आवश्यकता ।
- १५. सगुण - निर्गुण उपासना की क्रमबद्धता और भेद , उपनिषदों में वर्णित शब्दातीत पद , गीतोक्त क्षेत्रज्ञ तत्त्व और अनाम तत्त्व की अभिन्नता तथा इससे परे कोई अन्य तत्त्व नहीं है ।
- १६. सारशब्द के अतिरिक्त मायिक शब्दों का भी ध्यान आवश्यक है , दृष्टियोग से शब्दयोग आसान है ।
- १७. जड़ात्मक प्रकृति मण्डल के अन्दर सारशब्द की प्राप्ति होनी युक्तियुक्त नहीं , शब्द- ध्यान भी ज्योति मण्डल में पहुँचा देता है । १८. सारशब्द अलौकिक है । इसकी नकल लौकिक शब्दों में नहीं हो सकती । किसी वर्णात्मक शब्द को सारशब्द की नकल कहनी अयुक्त है ।
- १९ . जो सब मायिक शब्द नीचे के दर्जे में सुने जा सकते हैं , वे ही शब्द ऊपर के दर्जे में भी सुनाई पड़ सकते हैं- उत्कृष्ट रूप में और इनका अभ्यास करना भी उचित ही है ।
- २०. स्थूल मण्डल के शब्दों की अपेक्षा सूक्ष्म मण्डल के शब्द विशेष सुरीले तथा मधुर होते हैं । कैवल्य पद में शब्द की विविधता नहीं है । चारो साधन विधियों की युक्तियुक्ता
- २१. गुरु भक्ति बिना परम कल्याण नहीं , पहचान , उनकी सर्वश्रेष्ठता , गुरु शिष्यों पर प्रभाव ।
- २२. गुरु की आवश्यकता और सहारा । सद्गुरु की के आचरण का
- २३. गुरु कृपा का वर्णन , गुरु - भक्ति की आवश्यकता
- २४. संतमत की उपयोगिता , भिन्न - भिन्न इष्टों की आत्मा एक ही है ।
- २५. नादानुसंधान की विधि , यम - नियम के भेद |
- २६. तीन बंद , ध्यान से प्राण स्पन्दन का बंद होना , मन पर दृष्टि का प्रभाव श्वास के प्रभाव से अधिक है । साधक को स्वावलम्बी होना आवश्यक है ।
- २७. मांस - मछली और मादक द्रव्यों का त्याग आवश्यक है , शुद्ध आत्मा का स्वरूप ।
- २८. जीवता का उदय हुआ है , इसका नाश भी किया जा सकेगा । आत्मा अनन्त है , अतः इसका मिटना असम्भव , मोक्ष - साधक का बारम्बार उत्तम मनुष्य जन्म ।
- २९ . परम प्रभु की सृष्टि की मौज का लौट आना असम्भव
- ३०. ईश्वर भक्ति या मुक्ति का साधन एक ही बात ।
- ३१. परम प्रभु सर्वेश्वर का अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त करने का साधन ।
- ३२. ॐकार वर्णन
- ३३. सगुण - निर्गुण तथा उनसे परे अनाम की
- उपासनाओं का विवेचन । पद्य
- १. सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर
- २. सर्वेश्वरं सत्य शांति स्वरूपं,
- सद्गुरु - स्तुति
- ३. नमामी अमित ज्ञान रूपं कृपालं
- ४. सद्गुरो नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं
- ५. सत्य ज्ञानदायक गुरु पूरा
- ६. सम दम और नियम यम दस - दस
- ७. मंगल मूरति सतगुरु
- ८. जय - जय परम प्रचण्ड तेज
- ९ . सतगुरु सत परमारथ रूपा
- १०. जय जयति सद्गुरु जयति जय
- ११. सतगुरु सुख के सागर शुभ गुण आगरआगर
यहां पर जितना भी भजन है वह सब भजन "महर्षि मेंहीं पदावली" का है और ये सभी भजन पदावली के सूची में है. सभी भजन आप यहां दबाकर अपनी इचछीत भजन का चयन कर पढ़ सकते हैं- भजन चयन के लिए
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प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन पुस्तक से आप निम्नलिखित सभी प्रश्नों के उत्तर के साथ ही साथ और भी मोक्ष संबंधित बातों के बारे जानेगे . प्रश्न- मोक्ष कब मिलता है? मोक्ष प्राप्ति क्या होता है? धर्मशास्त्र में मोक्ष को क्या कहा जाता है ? मुक्ति का मार्ग कौन सा है? मोक्ष प्राप्ति के साधन कलयुग में ? भगवत गीता के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग कौन सा है? मोक्ष प्राप्ति के कितने उपाय है? मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं? आत्मा को मोक्ष कब मिलता है ? मोक्ष मिलने के बाद क्या होता है? आदि बातें.
इतना सारा जानकारी प्राप्त करने के बाद आप अवश्य ही खरीदना चाहेंगे और इसे अभी अवश्य मंगा ले क्योंकि स्टौक सीमित मात्रा में प्रकाशित होती है. स्टॉक कब समाप्त हो जाएगा कोई पता नहीं रहता है -
प्रभु प्रेमियों ! आप लोगों के जानकारी के लिए बता दें कि यह सत्संग योग का चतुर्थ भाग है इसकी विशेषता के कारण इसे अलग से प्रकाशित किया गया है.
मोक्ष-दर्शन पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है और इसका एक शब्दकोश भी है-
प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष-दर्शन के उपर्युक्त विवेचन से हमलोगों ने जाना कि भक्त कवि लेखक विचारक ने इस ग्रंथ को लिखकर हमलोंगों का बड़ा उपकार किया है। इसके साथ ही मोक्ष क्या है और इसे कैसे पा सकते हैं? मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है? मोक्ष क्या है? इत्यादि बातें । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त पुस्तक की झांकी दिखाई गई है। उसे भी अवश्य देखें, सुनें।
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