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मोक्ष दर्शन (01-11) संतमत और भारतीय संत परंपरा में संतों के विभिन्नता का कारण और निवारण

सत्संग योग भाग 4 मोक्ष दर्शन / 01-11

प्रभु प्रेमियों ! भारतीय साहित्य में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों और प्राचीन-आधुनिक पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों को संग्रहित करकेे प्रमाणित किया गया है कि सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों में एकता है। 'सत्संग योग' नामक इस पुस्तक के चौथे भाग में इन्हीं विचारों के आधार पर और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अपनी साधनात्मक अनुभूतियों के आधार पर, मनुष्यों के सभी दुखों से छूटने के उपायों का वर्णन किया गया है। इसे 'मोक्ष दर्शन' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मोक्ष से संबंधित बातों को अभिव्यक्त् करने के लिए पाराग्राफ नंंबर दिया गया हैैैै ।  इन्हीं पैराग्राफों में से  कुुछ पैराग्राफों  के बारे  में यहाँ  जानेंगेेेे । 

मोक्ष-दर्शन  पुस्तक के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए      

मोक्ष-दर्शन 1-11

संतमत  और  भारतीय संत परंपरा में संतों के विभिन्नता का कारण और निवारण

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज मोक्ष-दर्शन के पाराग्राफ संख्या 01 से 11 तक में बताते हैं कि शांति किसे कहते हैं? संत कौन है? संतमत क्या है? शांति प्राप्ति की आआवश्यकता क्या है? शांति प्राप्त करना जरूरी क्यों है? शांति प्राप्ति के उपाय, प्राचीन संतों के विचार, नादानुसंधान की महिमा, संतमत की विभिन्नता का कारण और निवारण, अकथ वा अगोचर वा निर्गुण शब्दों के पारिभाषिक अर्थ, विकृत किनमें आती है? अनंत की सत्ता और विशेषता क्या है? आइये इन बातों को इनके ही शब्दों में पढें-


सत्संग - योग भाग ४ (मोक्ष-दर्शन) 

गद्य 

( १ ) शान्ति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं । 

( २ ) शान्ति को जो प्राप्त कर लेते हैं , सन्त कहलाते हैं । 

( ३ ) सन्तों के मत वा धर्म को सन्तमत कहते हैं । 

( ४ ) शान्ति प्राप्त करने का प्रेरण मनुष्यों के हृदय में स्वाभाविक ही है । प्राचीन काल में ऋषियों ने इसी प्रेरण से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया । इन्हीं विचारों से मिलते हुए विचारों को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि सन्तों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओं में सर्व - साधारण के उपकारार्थ वर्णन किया ; इन विचारों को ही सन्तमत कहते हैं ; परन्तु सन्तमत की मूल भित्ति तो उपनिषद् के वाक्यों को ही मानने पड़ते हैं ; क्योंकि जिस ऊँचे ज्ञान का तथा उस ज्ञान के पद तक पहुँचाने के जिस विशेष साधन - नादानुसन्धान अर्थात् सुरत - शब्द - योग का गौरव सन्तमत को है , वे तो अति प्राचीन काल के इसी भित्ति पर अंकित होकर जगमगा रहे हैं । सत्संग - योग के प्रथम , द्वितीय और तृतीय ; इन तीनों भागों को पढ़ लेने पर इस उक्ति में संशय रह जाय , सम्भव नहीं है । भिन्न - भिन्न काल तथा देशों में सन्तों के प्रकट होने के कारण तथा इनके भिन्न - भिन्न नामों पर इनके अनुयायियों द्वारा सन्तमत के भिन्न - भिन्न नामकरण होने के कारण संतों के मत में पृथक्त्व ज्ञात होता है ; परन्तु यदि मोटी और बाहरी बातों को तथा पन्थाई भावों को हटाकर विचारा जाय और सन्तों के मूल एवं सार विचारों को ग्रहण किया जाय , तो यही सिद्ध होगा कि सब सन्तों का एक ही मत है । सब सन्तों का अन्तिम पद वही है , जो पारा - संख्या ११ में वर्णित है और उस पद तक पहुँचने के लिए पारा संख्या ५९ तथा ६१ में वर्णित सब विधियाँ उनकी वाणियों में पायी जाती हैं । सन्तों के उपास्य देवों में जो पृथक्त्व है , उसको पारा - संख्या ८६ में वर्णित विचारानुसार समझ लेने पर यह  पृथक्त्व भी मिट जाता है । पारा - संख्या ११ में वर्णित पद का ज्ञान तथा उसकी प्राप्ति के लिए नादानुसन्धान ( सुरत - शब्द - योग ) की पूर्ण विधि जिस मत में नहीं है , वह सन्तमत कहकर मानने योग्य नहीं हैक्योंकि सन्तमत के विशेष तथा निज चिह्न ये ही दोनों हैं । नादानुसन्धान को नाम - भजन भी कहा जाता है ( पारा - संख्या ३५ में पढ़िये ) । किसी सन्त की वाणी में जब नाम को अकथ वा अगोचर वा निर्गुण कहा जाता है , तब उस नाम को ध्वन्यात्मक सारशब्द ही मानना पड़ता है । 
यथा 
"अदृष्ट अगोचर नाम अपारा । अति रस मीठा नाम पियारा ॥" ( गुरु नानक ) 

"बंदउँ राम नाम रघुवर को । हेतु कृसानु - भानु - हिमकर को ॥ विधि हरिहर मय वेद प्रान सो।अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥ नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥" ( गोस्वामी तुलसीदास ) 

"सन्तो सुमिरहु निर्गुन अजर नाम ।" ( दरिया साहब , बिहारी ) 

"जाके लगी अनहद तान हो , निर्वाण निर्गुण नाम की ।" ( जगजीवन साहब ) 

( ५ ) चेतन और जड़ के सब मण्डल सान्त ( अंत - सहित ) और अनस्थिर हैं । 

( ६ ) सारे सांतों के पार में अनंत भी अवश्य ही है । 

( ७ ) अनन्त एक से अधिक कदापि नहीं हो सकता , और न इससे भिन्न किसी दूसरे तत्त्व की स्थिति हो सकती है । 

( ८ ) केवल अनन्त तत्त्व ही सब प्रकार अनादि है । 

( ९ ) इस अनादि अनन्त तत्त्व के अतिरिक्त किसी दूसरे अनादि तत्त्व का होना सम्भव नहीं है । 

( १० ) जो स्वरूप से अनन्त है , उसका अपरम्पार शक्तियुक्त होना परम सम्भव है । 

( ११ ) अपरा ( जड़ ) और परा ( चेतन ) ; दोनों प्रकृतियों के पार में अगुण और सगुण पर , अनादि - अनंतस्वरूपी , अपरम्पार शक्तियुक्त , देशकालातीत , शब्दातीत , नाम - रूपातीत , अद्वितीय ; मन , बुद्धि और इन्द्रियों के परे जिस परम सत्ता पर यह सारा प्रकृतिमण्डल एक महान् यंत्र नाईं परिचालित होता रहता है ; जो न व्यक्ति है और न व्यक्त है , जो मायिक विस्तृतत्व - विहीन है , जो अपने से बाहर कुछ भी अवकाश नहीं रखता है , जो परम सनातन , परम पुरातन एवं सर्वप्रथम से विद्यमान है , संतमत में उसे ही परम अध्यात्म - पद वा परम अध्यात्म - स्वरूपी परम प्रभु सर्वेश्वर ( कुल्ल मालिक ) मानते हैं ।... क्रमशः।।


( मोक्ष-दर्शन में आये किलिष्ट शब्दों की सरलार्थ एवं अन्य शब्दों के शब्दार्थादि की जानकारी के लिए "महर्षि मेँहीँ + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें ) 


इस पोस्ट के दूसरे भाग अर्थात मोक्ष दर्शन के 11 से 22  पैराग्राफ तक पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


     प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन के उपर्युक्त पैराग्राफों से हमलोगों ने जाना कि  संतमत क्या है, भारतीय संत, विश्व का सबसे महान संत, संत के लक्षण, संत परंपरा का परिचय, Santmat Satsang, संत के लक्षण,संत कितने प्रकार के होते हैं, संत कौन कहलाता है, संत और महात्मा में क्या अंतर है, भारत में सबसे बड़ा संत कौन है, संत कैसा होना चाहिए, संत का महत्व, शांति का महत्व इत्यादि बातों के बारे में. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें।



महर्षि मेंहीं साहित्य "मोक्ष-दर्शन" का परिचय

मोक्ष-दर्शन
  'मोक्ष-दर्शन' सत्संग-योग चारों भाग  पुस्तक का चौथा भाग ही है. इसके बारे में विशेष रूप से जानने के लिए  👉 यहां दवाएं


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मोक्ष दर्शन (01-11) संतमत और भारतीय संत परंपरा में संतों के विभिन्नता का कारण और निवारण मोक्ष दर्शन (01-11)  संतमत  और  भारतीय संत परंपरा में संतों के विभिन्नता का कारण और निवारण Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/03/2020 Rating: 5

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