महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
अपरम्पार - अलख
अपरम्पार ( सं ० अपरंपर , वि ० ) = वार - पार - रहित , अपार , सीमा रहित , अत्यन्त ।
{अपरम्पार ( संस्कृत अरंपर ) = जिसका वारापार ( हद , सीमा , वार - पार ) नहीं है , असीम । P06 }
अपरा ( सं ० वि ० स्त्री ० ) = जो श्रेष्ठ नहीं है । ( स्त्री ० ) अपरा ( जड़ ) प्रकृति जो चेतन प्रकृति से श्रेष्ठ नहीं है ।
{अपरा (स्त्री ० वि० ) = अपरा प्रकृति , निम्न कोटि की प्रकृति , अज्ञानमयी प्रकृति , जड़ प्रकृति मंडल ( देखें , गी ० , अ ० ७ ) । P01}
{अपरा ( अ+परा ) = अपरा प्रकृति , निम्न कोटि की प्रकृति , जड़ प्रकृति ( देखें- गीता , अध्याय ७ , श्लोक 5 ) । P06 }
अपरिमित ( सं ० वि ० ) = जो परिमित ( सीमित ) नहीं है , असीम , सीमा रहित ।
अपरोक्ष ( सं ० वि ० ) = जो परोक्ष नहीं हो , प्रत्यक्ष , जिसका अनुभव हुआ हो , जो आँखों के सामने हो ।
अपान ( सं ० , पँ ० ) = नाक से बाहर फेंकी गयी वायु , गुदा मार्ग से बाहर निकलनेवाली वायु ।
अपार ( सं ० , वि ० ) = पार - रहित , जिसका दूसरा किनारा दिखायी न पड़े , आदि - अन्त तथा मध्य - रहित , बहुत अधिक ।
(अपार = जिसका वार - पार या ओर - छोर नहीं हो , जिसकी सीमा नहीं हो , असीम , आदि - मध्य - अन्त - रहित । P01 )
अपुनपौ ( हिं ० , पुं ० ) = अपनापा , अपनी आत्मा ।
(अपेक्ष = अपेक्षा । P01 )
(अपेक्षा = चाहना , आवश्यकता , आसरा , सहारा , भरोसा , तुलना में , अनुपात में । P01 )
अप्रतिहत ( सं ० , वि ० ) = बेरोक टोक , निर्विघ्न , बाधा - रहित , बिना किसी बाधा के ।
अभिन्न ( सं ० वि ० ) = जो भिन्न नहीं हो , जो अलग नहीं हो , एक ही एक अभिमान ( सं ० , पुं ० ) अहंकार ।
(अभिन्न ( अ + भिन्न ) = जो भिन्न नहीं है , जो अलग नहीं है , अटूट । P06 )
अभोगी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = भोग = घमंड , नहीं भोगनेवाला , विरक्त , निर्लिप्त ।
अभ्यास ( सं ० , पुं ० ) = कोई काम पूरा करने के लिए या कोई काम करने की कला सीखने के लिए कोई क्रिया बारंबार करना ।
अभ्यासी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = अभ्यास करनेवाला , साधक ।
(अमृत = चेतन तत्त्व | P145 )
(अमृत रस = अक्षय आनंद , अविनाशी सुख , परमात्मा का आनन्द । P139 )
(अमर पद = अविनाशी पद , परमात्मा । श्रीचंद वाणी 1)
(अमल ( अमल ) = दोष - रहित , त्रुटि - विहीन, शुद्ध । P07)
{अमल ( अ + मल ) = निर्मल , मल - रहित , पवित्र , शुद्ध , निर्दोष , निर्विकार । P01 }
(अमात् = अव्यक्त से । MS01-3 )
(अमित = अपरिमित , असीम , अनन्त , असंख्य , बहुत अधिक । P04 )
अमीर खुशरो = आरंभिक खड़ी बोली हिंन्दी के एक मुसलमान कवि जो ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे ।
(अमीरस = अमृत रस , ज्योति और नाद की प्राप्ति से उत्पन्न आनंद । P145 )
अमोघ ( सं ० , वि ० ) = अचूक , अव्यर्थ , निष्फल नहीं होनेवाला , बेकार नहीं होनेवाला ।
अमोघशक्ति ( सं ० , वि ० ) जिसकी शक्ति कभी घटे - बढ़े नहीं और नष्ट नहीं हो ।
अयुक्त ( सं ० , वि ० ) = युक्ति संगत नहीं , तर्क - संगत नहीं , विचार के अनुकूल नहीं , उपयुक्त नहीं , युक्त नहीं , ठीक नहीं , अनुचित ।
अयोग्य ( सं ० , वि ० ) योग्य नहीं , लायक नहीं , जो किसी काम के योग्य नहीं हो ।
अरूप ( सं ० , पुं ० ) = रूप - रहित ; वह जो न स्थूल दृष्टि से दिखायी पड़े , न सूक्ष्म दृष्टि से ।
अलख ( सं ० वि ० ) नहीं , दिखायी पड़नेयोग्य , जो स्थूल या सूक्ष्म किसी भी दृष्टि से देखने में नहीं आए । ( पु० ) परमात्मा ।
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प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में अपरम्पार,अपरा,अपरिमित, अपरोक्ष, अपरोक्ष ज्ञान, , अपार, अपुनपौ, अपेक्ष, अपेक्षा,अप्रतिहत, अभिन्न, अभ्यास, अभ्यासी, अमृत, अमृत रस, अमर पद, अमल, अमित, अमीर खुशरो इत्यादि से संबंधित शब्दों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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