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MS01 सत्संग-योग चारो भाग || संतमत सत्संग का प्रतिनिधि ग्रंथ || भारतीय योगविद्या का खजाना

त्संग-योग (चारों भाग) एक परिचय

     सत्संग योग (चारो भाग)- सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की  पाँचवीं रचना है। इसमें सूक्ष्म भक्ति का निरूपण वेद, शास्त्र, उपनिषद्, उत्तर- गीता, गीता, अध्यात्म-रामायण, महाभारत, संतवाणी और आधुनिक विचारकों के विचारों द्वारा किया गया है। इसके स्वाध्याय और चिन्तन-मनन से अध्यात्म-पथ के पथिकों को सत्पथ मिल जाता है। इसका प्रकाशन सर्वप्रथम 1940 ई0 में हुआ था। वर्तमान में यह 23 वें संस्करण में प्रस्तुत है; जिसे मूल रूप में ही छापा गया है। 

MS01, सत्संग योग चारों भाग ।। एक परिचय और  ब्रिक्री ।। Literature in Sadhguru Maharishi
सत्संग-योग चारो भाग

सत्संग-योग चारो भाग की विशेषता

     "सत्संग-योग" एक अध्यात्म ज्ञान का खजाना है। इसके बारे मै स्वयं गुरुदेव कहते थे कि "सत्संग-योग" भानुमती का पिटारा है। (भानुमति एक जादूगरनी थी। जो लोगों की मनोवांछित वस्तुएं अपने पिटारा से निकाल कर दे दिया करती थी।) मोक्ष प्राप्ति के लिए जितनी ज्ञान की आवश्यकता है, वह  सभी ज्ञान "सत्संग-योग" के इस पिटारे से प्राप्त किया जा सकता है।

उपरोक्त कथन पूज्यपाद लालदास जी महाराज के शब्दों में सुनने के लिए निम्न विडियो देंखे-



     संतमत और वेदमत में भिन्नता नहीं है, इस बात को प्रमाणित करने वाली यह ग्रंथ सदगुरु महर्षि मेंहीं की प्रमुख पुस्तक है।  जो संतमत का प्रतिनिधि ग्रंथ है। इसमें 52 संत-महात्माओं के उपदेशों का संकलन किया गया है।

     इस ग्रंथ की एक  झलक निम्नांकित चित्रों में देखें. यह दो संस्करणों में उपलब्ध है- एक साधारण संस्करण और दूसरा हार्ड कवर संस्करण. इसके साथ ही इसका पीडीएफ फाइल भी उपलब्ध है.


MS01  सत्संग-योग चारो भाग

MS01  सत्संग-योग १

MS01  सत्संग-योग २

MS01  सत्संग-योग ३

MS01  सत्संग-योग ४

MS01  सत्संग-योग ५

MS01  सत्संग-योग ५

MS01  सत्संग-योग ७

MS01  सत्संग-योग ८

MS01  सत्संग-योग ९

MS01  सत्संग-योग १०

MS01  सत्संग-योग ११

MS01  सत्संग-योग १२

MS01  सत्संग-योग १३

MS01  सत्संग-योग १४

MS01  सत्संग-योग १५

MS01  सत्संग-योग १५

MS01  सत्संग-योग १६

MS01  सत्संग-योग १७

MS01  सत्संग-योग १९

MS01  सत्संग-योग २०

MS01  सत्संग-योग २१

MS01  सत्संग-योग २२

MS01  सत्संग-योग २३

MS01  सत्संग-योग २६

MS01  सत्संग-योग २४

MS01  सत्संग-योग चारो भाग

इस ग्रंथ का हार्डकवर संस्करण का झलक निम्न चित्र में देखें-


सत्संग योग चारो भाग

सत्संग योग लास्ट कवर



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     प्रभु प्रेमियों ! 'सत्संग योग' के प्रथम भाग को अच्छी तरह से और साधारण भाषा में समझने के लिए पूज्यपाद स्वामी लालदास जी महाराज ने "उपनिषद् - सार" ( ' सत्संग - योग ' के प्रथम भाग में संकलित उपनिषदों के पद्यात्मक मंत्रों की सरल भाषा में व्याख्या ) नामक पुस्तक लिखी है। सत्संग योग के पहले भाग के अधिकांश श्लोक गीता-सार में भी है। इन दोनों पुस्तकों के साथ सत्संग योग के दूसरे भाग को समझने में मदद के लिए सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज द्वारा संपादित "संतवाणी सटीक" और स्वामी लालदास जी महाराज द्वारा संपादित "संतवाणी-सुधा सटीक" अत्यंत महत्वपूर्ण है। सत्संग-योग के चौथे भाग को समझने के लिए "पिंड माहीं ब्रह्मांड",  "मोक्ष दर्शन का शब्दकोश",  "संतमत- दर्शन" तथा "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित"  नामक पुस्तकों का भी पाठ करना चाहिए.

     सत्संग-योग योग के चौथे भाग का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित है और इसका पीडीएफ और मूल संस्करण दोनों उपलब्ध है.





सत्संग - योग ,  विषय - सूची

प्रथम भाग

क्रमांक           विषय 

  1. वेद - मन्त्र ( ' वैदिक विहंगम योग ' से संगृहीत )
  2. केनोपनिषद् के मन्त्र 
  3. कठोपनिषद् के मन्त्र 
  4. मुण्डकोपनिषद् के मन्त्र 
  5. प्रश्नोपनिषद् के मन्त्र 
  6. ईशावास्योपनिषद् के मन्त्र 
  7. छान्दोग्योपनिषद् के मन्त्र 
  8. मुक्तिकोपनिषद् के मन्त्र
  9. ब्रह्मोपनिषद् के मन्त्र
  10. नादविन्दूपनिषद् के मन्त्र
  11. ध्यानविन्दूपनिषद् के मन्त्र
  12. शाण्डिल्योपनिषद् के मन्त्र 
  13. वराहोपनिषद् के मन्त्र 
  14. मण्डलब्राह्मणोपनिषद् के मन्त्र 
  15. ब्रह्मविन्दूपनिषद् के मन्त्र 
  16. श्वेताश्वतरोपनिषद् के मन्त्र 
  17. मैत्रायण्युपनिषद् के मन्त्र 
  18. मैत्रेय्युपनिषद् के मन्त्र   
  19. क्षुरिकोपनिषद् के मन्त्र 
  20. तेजोविन्दूपनिषद् के मन्त्र  
  21. योगतत्त्वोपनिषद् के मन्त्र 
  22. त्रिपाद्विभूति महानारायणोपनिषद् के मन्त्र 
  23. महोपनिषद् के मन्त्र 
  24. शारीरकोपनिषद् के मन्त्र 
  25. योगशिखोपनिषद् के मन्त्र 
  26. श्रीजाबालदर्शनोपनिषद् के मन्त्र 
  27. जाबालोपनिषद् के मन्त्र 
  28. गर्भोपनिषद् के मन्त्र 
  29. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महाशय कृत श्रीमद्भगवद्गीता         रहस्य अथवा कर्मयोग से उद्धृत श्रीमद्भगवद्गीता के चुने             हुए       श्लोकों के केवल अर्थ 
  30. श्रीमद्भागवत 
  31. अध्यात्म रामायण ( पं ० रामेश्वर भट्ट- कृत टीका ) 
  32. शिव संहिता 
  33. ज्ञान संकलिनी तन्त्र 
  34. बृहत्तन्त्रसार 
  35. बह्माण्डपुराणोत्तर गीता 
  36. उत्तर गीता 
  37. दुर्गा सप्तशती 
  38. महाभारत 
  39. संक्षिप्त पद्मपुराणांक ( कल्याण ) 
  40. स्कन्दपुराण 
  41. मनुस्मृति

 सत्संग - योग , द्वितीय भाग 

  1. भगवान् महावीर की वाणी 
  2. भगवान् बुद्ध के सदुपदेश 
  3. भगवान् शंकराचार्यजी महाराज की वाणी
  4. महायोगी गोरखनाथजी महाराज के पद्य 
  5. स्वात्मारामजी महाराज के वचन 
  6. प्रभु ईसा मसीह के सदुपदेश 
  7. संत कबीर साहब की साखी और शब्द आदि 
  8. संत रैदासजी की वाणी 
  9. संत कमाल साहब की वाणी 
  10. धर्मदासजी का शब्द 
  11. गुरु नानक साहब की वाणी 
  12. ॐ मात्रा बाबा श्रीचन्दजी की 
  13. सन्त दादू दयाल साहब की वाणी 
  14. सन्त चरणदासजी को वाणी 
  15. सहजोबाई की वाणी 
  16. सन्त दरिया साहब ( बिहारी ) की वाणी 
  17. सन्त दरिया साहब ( मारवाड़ी ) की वाणी 
  18. सन्त केशव दासजी की अमीघूँट 
  19. बाबा धरनीदासजी की वाणी 
  20. सन्त जगजीवन साहब की वाणी 
  21. सन्त पलटू साहब की वाणी 
  22. सन्त गरीबदासजी की वाणी 
  23. सन्त यारी साहिब की वाणी 
  24. सन्त दूलनदासजी की वाणी 
  25. सन्त बुल्ला साहिब की वाणी 
  26. सन्त गुलाल साहिब की वाणी 
  27. सन्त सुन्दरदासजी की वाणी 
  28. परमहंस लक्ष्मीपतिजी महाराज के दोहे 
  29. शिवनारायण स्वामीजी के वचन 
  30. गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी 
  31. भक्तप्रवर सूरदासजी महाराज के वचन 
  32. श्रीदेवतीर्थ स्वामी ( श्रीकाष्ठ - जिह्वा स्वामी ) जी के वचन
  33.  श्रीइन्द्रनारायण दासजी का लिखाया रामरक्षास्तोत्रम् 
  34.  श्रीसुतीक्ष्ण दास रामानन्दी साधु से लिखाया शब्द 
  35. कविरंजन रामप्रसाद सेनजी के बंगला पद्य
  36. सन्त तुलसी साहब ( हाथरसवाले ) की वाणी ---
  37. सन्त तुलसी साहब के शिष्य सूर स्वामीजी के शब्द 
  38. राधास्वामी साहब की वाणी 
  39. रायबहादुर शालिग्राम साहब के वचन 
  40. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक कृत श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य के         कुछ वचन- 
  41. परम भक्तिन मीराबाई की वाणी 
  42. साधु मानपुरीजी का शब्द 
  43. राजयोगी श्रीटीकारामनाथजी महाराज का वचन 
  44. जैनयोगी आनन्दघनजी का शब्द 
  45. बाबा कीनारामजी का भजन 
  46. स्वामी ब्रह्मानन्दजी के वचन 
  47. सद्गुरु बाबा देवी साहब के वचन 
  48. श्रीरामकृष्ण परमहंसदेवजी के वचन 
  49. स्वामी विवेकानन्दजी महाराज के वचन 
  50. बाबा देवी साहब का पत्रांश ( श्रीधीरजलालजी के नाम से )
  51.  श्रीधीरजलाल साहब के पद्य 
  52. परमहंस ध्यानानन्द साहब के शब्द 
  53. श्रीतेतरदासजी सत्संगी के पद्य 

सत्संग - योग , तृतीय भाग 

  1. उड़िया स्वामीजी महाराज के विचार 
  2. अष्टांग योग ( लेखक - श्रीरामचन्द्र रघुवंश ' अखण्डानन्द 
  3. योग का विषय - परिचय ( ले ० - महामहोपाध्याय
  4. श्रीगोपीनाथजी - कविराज , एम ० ए ० ) 
  5. उपनिषदों में योग ले ० - ( स्वामी श्रीरघुवराचार्य जी महाराज )
  6.  श्रीयोगवाशिष्ठ में योग ( ले ० - प्रो ० डॉ ० श्री भीखनलालजी         आत्रेय , एम ० ए ० , डी ० लिट् ० ) 
  7. आत्मज्ञान प्राप्त करने का सरल उपाय - यं -योग -- ( ले ० -         ब्रह्मचारी श्रीगोपाल चैतन्यदेवजी महाराज ) 
  8. नादानुसन्धान ( ले ० स्वामी श्रीएकरसानन्दजी सरस्वती               महाराज )            
  9. जपयोग ( ले ० - योगी श्रीबाल स्वामीजी महाराज ) 
  10. योग क्या है ( ले०- योगी श्रीभूपेन्द्रनाथजी सान्याल ) 
  11.  प्राणायाम का शरीर पर प्रभाव -( ले ० स्वामी                               श्रीकुवलयानन्दजी )        
  12. हठयोग और प्राचीन राजविद्या अथवा राजयोग ( ले ० - एक          दीन )         
  13. वेदान्त का महान् वैलक्षण = ( ले ० - स्वामी अभेदानन्दजी ,            पी  - एच ० डी ० ) 
  14. वेदान्त का अर्थ और उसकी लोकमान्यता ( ले ० - श्री पी ० के        ० आचार्य , एम ० ए ० , पी एच ० डी ० , डी ० लिटू ० ,            आई ० ई ० एस ० ) 
  15. शब्दाद्वैतवाद ( ले ० - श्री बी ० कुटुम्ब शास्त्री ) 
  16. वेदान्त- शिक्षा की कुछ बातें ( ले ० डॉ ० एम ० एच ० सैयद ,           एम ० ए ० , पी - एच ० डी ० , डी ० लिटू ० ) 
  17. अवतार - तत्त्व ( लेखक का नाम नहीं दिया गया है ) 
  18. नाद ब्रह्म मोहन की मुरली ( लेखक का नाम नहीं दिया गया है )
  19.  वेदान्त- दर्पण ( ले ० - बालकरामजी विनायक ) 
  20. कबीर साहब और वेदान्त ( ले ० - महन्त श्रीरामस्वरूप                   दासजी   ) 
  21. वेद में संत ( ले ० - वेददर्शनाचार्य श्री गंगेश्वरानंदजी महाराज )  
  22. संत चर्चा ( ले ० - पं ० श्रीकृष्णदत्तजी भारद्वाज , एम ० ए ० ,         आचार्य , शास्त्री , वेदान्त विद्यार्णव ) 
  23. संत तत्त्व ( ले ० - स्वामी श्रीशुद्धानंदजी भारती ) - 
  24. ईसाई संत ( ले ० श्रीसम्पूर्णानदजी ) 
  25. कल्याण , संतांक , पृष्ठ ४५४ से उद्धृत 
  26. श्रीरामचरितमानस का दार्शनिक सिद्धांत ( ले ० - स्वामी                 एकरसानंदजी ) 
  27. स्वामी श्रीभूमानंदजी के वचन देव तथा ईश्वर ( ले ० - पं ०                कृष्णदत्तजी भारद्वाज शास्त्री , बी ० ए ० ) 
  28. महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधीजी के विचार 
  29. स्वामी श्रीदयानंद सरस्वतीजी की वाणी 

सत्संग - योग , चतुर्थ भाग 

  1. सन्तमत किसे कहते हैं ? सन्तमत की मूल भित्ति उपनिषद् के  वाक्य ही हैं ...... 
  2. सुरत शब्द योग ही सन्तमत की विशेषता है ।  नाम - भजन      तथा ध्वन्यात्मक सारशब्द का भजन एक ही है ...... 
  3. सारे सान्तों के पार में एक अनन्त अवश्य ही है । यह एक और अनादि है , यह जड़ातीत , चैतन्यातीत अचिन्त्यस्वरूप है , मायिक विस्तृतत्व - विहीन है , यही सन्तमत का परम अध्यात्म पद है । अपरा और परा प्रकृतियाँ ..... 
  4. अंशी और अंश , आत्म - अनात्म तथा क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का विचार....
  5. कारण महाकारण के विचार , परम प्रभु की प्राप्ति के बिना कल्याण नहीं ... 
  6. क्षर अक्षर का विचार , परम प्रभु में मौज हुए बिना सृष्टि नहीं होती । मौज कम्पमय है आदिशब्द सृष्टि का साराधार है ....
  7. अनादिनाद का ही नाम रामनाम , सत्यनाम , ॐकार है , शब्द का गुण , सृष्टि के दो बड़े मंडल , अपरा प्रकृति के चार मण्डल , पिण्ड और ब्रह्माण्ड के मण्डलों का सम्बन्ध , भिन्न भिन्न मण्डलों के केन्द्र , अनन्त , अनाम , पिण्ड - ब्रह्माण्ड का सांकेतिक चित्र ... 
  8. केन्द्रीय शब्दों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर है , सूक्ष्म शब्द स्थूल में व्यापक तथा विशेष शक्तिशाली होता है , केन्द्रीय शब्दों को पकड़कर सर्वेश्वर तक पहुँच सकते हैं ... 
  9. प्रकृति अनाद्या कैसे है ? कैवल्य शरीर चेतन अनन्त से बढ़कर कोई सूक्ष्म और विस्तृत नहीं हो सकता , अपरिमित परिमित पर शासन करता है ... 
  10. अनंत से बढ़कर कोई सूक्ष्म और विस्तृत नहीं हो सकता, अपरिमित परमित पर शासन करता है.... 
  11. अन्तर में चलना परम प्रभु सर्वेश्वर की भक्ति है - यही आन्तरिक सत्संग है ,  मन की एकाग्रता एकविन्दुता है- ....... 
  12. दूध में घी की तरह मन में सुरत है , सृष्टि के जिस मण्डल में जो रहता है , वह वहीं का अवलम्ब लेता है ...
  13. दृष्टि - योग क्या है ? दिव्य दृष्टि कैसे खुलती  है..... 
  14. शब्द - साधन का मन पर प्रभाव , पंच महापाप , निम्न देशों के शब्द पकड़कर ऊँचे लोकों के शब्द पकड़ सकते हैं ...... 
  15. सगुण - निर्गुण - उपासना के भेद , उपनिषदों के शब्दातीत पद और श्रीमद्भगवद्गीता के क्षेत्रज्ञ तत्त्व के परे कोई अन्य तत्त्व नहीं है ....... 
  16. सारशब्द के अतिरिक्त मायिक शब्दों का भी ध्यान आवश्यक है । दृष्टियोग से शब्दयोग आसान है ...... 
  17. जड़ात्मक प्रकृति मण्डल में सारशब्द की प्राप्ति युक्ति - युक्त नहीं , शब्द ध्यान भी ज्योति मण्डल में पहुँचा देता है ... 
  18. सारशब्द अलौकिक है । इसकी नकल लौकिक शब्दों में नहीं हो सकती किसी वर्णात्मक शब्द को सारशब्द की नकल कहना अयुक्त ....... 
  19. जो सब मायिक शब्द नीचे के दर्जे में भी सुने जा सकते हैं , वे ही ऊपर दर्जे में भी सुनाई पड़ सकते हैं ; इनका अभ्यास भी उचित ही है ... 
  20. सूक्ष्म मण्डल के शब्द स्थूल मण्डल के शब्द से विशेष सुरीले और मधुर होते हैं , कैवल्य पद में शब्द की विविधता नहीं है , गुरु - भक्ति बिना परम कल्याण नहीं ... 
  21. सद्गुरु की पहचान , उनकी श्रेष्ठता , गुरु के आचरण का शिष्य के ऊपर प्रभाव ...... 
  22. गुरु की आवश्यकता , गुरु का सहारा ...... 
  23. गुरु की कृपा का वर्णन , गुरु भक्ति ....... 
  24. सन्तमत की उपयोगिता , भिन्न - भिन्न इष्टों की आत्मा अभिन्न है ....... 
  25. नादानुसन्धान की विधि , यम - नियम के भेद ........ 
  26. तीन बन्द , ध्यानाभ्यास से प्राण स्पन्दन का बंद होना ..... 
  27. मन पर दृष्टि का प्रभाव श्वास के प्रभाव से अधिक है , साधक का स्वावलम्बी होना आवश्यक है 
  28. मांस - मछली और मादक द्रव्यों का परित्याग आवश्यक है ....
  29. शुद्ध आत्म - स्वरूप अनन्त है , इसका कहीं से आना - जाना नहीं माना जा सकता..... 
  30. जीवता का उदय और अन्त , मोक्ष - साधन में लगे हुए अभ्यासी की गति , परम प्रभु की सृष्टि मौज का केन्द्र में लौटना असम्भव ...... 
  31. ईश्वर की भक्ति का साधन और मुक्ति का साधन एक ही है.....
  32. परम प्रभु सर्वेश्वर के अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त करने का साधन....
  33. ॐकार वर्णन ....
  34. सगुण - निर्गुण और सगुण - अगुण पर अनाम की उपासनाओं का विवेचन ......

पद्य 

  1. सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर ..... 
  2. सर्वेश्वर सत्य शान्ति स्वरूपं .. 
  3. नमामी अमित ज्ञान , रूपं कृपालं .. 
  4. सद्गुरु नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं ...
  5. सत्य ज्ञान दायक गुरु पूरा ... 
  6. सम दम और नियम यम दस दस....
  7. मंगल मूरति सतगुरू , मिलवैं सर्वाधार .. 
  8. जय जय परम प्रचण्ड तेज .. 
  9. सतगुरु सत परमारथ रूपा ... 
  10. जय जयति सद्गुरु जयति जय जय ... 
  11. नहीं थल नहीं जल नहीं वायु अग्नी . ...
  12. है जिसका नहीं रंग नहिं रूप रेखा .. 
  13. सृष्टि के पाँच केन्द्र सज्जन ... 
  14. पाँच नौबत बिरतन्त कहौं सुनि लीजिये .. 
  15. खोजो पंथी पंथ तेरे घट भीतरे .. 
  16. सतगुरु सुख के सागर शुभ गुण आगर 
  17. प्रभु अकथ अनाम अनामय स्वामी . 
  18. नित प्रति सत्संग कर ले प्यारा .. 
  19. यहि मानुष देह समैया में करु .. 
  20. अद्भुत अन्तर की डगरिया जा पर . 
  21. प्रभु मिलने जो पथ धरि जाते , घट में....
  22. सुष्मनियाँ में नजरिया थिर होइ .. 
  23. जीवो ! परम पिता निज चीन्हो .. 
  24. सूरति दरस करन को जाती ...
  25. भाई योग- हृदय - केन्द्र विन्दु .. 
  26. मन तुम बसो तीसरो नैना महँ .. 
  27. जहाँ सूक्ष्म नाद ध्वनि आज्ञा .... 
  28. सुनिये सकल जगत के वासी .. 
  29. सन्तमते की बात कहुँ साधक हित लागी .. 
  30. मुक्ती मारग जानते , साधन करते नित्त ....... 
  31. सत्य सोहाता वचन कहिये , चोरी तज दीजै .... 
  32. योग हृदय वृत केन्द्र विन्दु सुख- सिन्धु .... 
  33. योग- हृदय में वास ना तन - वास ... 
  34. एक विन्दुता दुर्बीन हो दुर्बीन क्या करे .. 
  35. योग- हृदय केन्द्र बिन्दु में युग दृष्टियों को .. 
  36. गुरु हरि चरण में प्रीति हो युग ..... ----आरती---
  37. अज अद्वैत पूरण ब्रह्म पर की .. 
  38. आरति परम पुरुष की कीजै .. 
  39. आरति अगम अपार पुरुष की 


मूल पुस्तक के स्टॉक खत्म होने की चेतावनी



सद्गुरु महर्षि मेंहीं साहित्य सुमनावली


MS01 . सत्संग - योग ( चारो भाग )   MS02 . रामचरितमानस - सार सटीक,   MS03 . वेद दर्शन - योग,   MS04 . विनय - पत्रिका - सार सटीक,  MS05 . श्रीगीता - योग - प्रकाश, भारती (हिन्दी),  MS05a . श्री गीता-योग-प्रकाश   (अंग्रेजी अनुवाद),    MS06 . संतवाणी सटीक   MS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली   MS08 . मोक्ष दर्शन भारती (हिन्दी), MS08a . मोक्ष दर्शन अंग्रेजी अनुवाद,  MS09 . ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर भक्ति ,   MS10 . ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति, .  MS11 . भावार्थ - सहित घटरामायण - पदावली ,   MS12  .  सत्संग - सुधा , प्रथम भाग,   MS13. सत्संग सुधा , द्वितीय भाग,  MS14 . सत्संग - सुधा , तृतीय भाग,   MS15 . सत्संग - सुधा , चतुर्थ भाग,   MS16. राजगीर हरिद्वार दिल्ली सत्संग,  MS17 . महर्षि मेंहाँ - वचनामृत , प्रथम खंड,   MS18 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 1,   MS19 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 2, 



      प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "सत्संग योग" के परिचय में आपलोगों ने जाना कि  मोक्ष प्राप्ति के विषय में वेद-उपनिषद एवं अन्य संत-महात्माओं के क्या विचार हैं? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्नलिखित वीडियो मेंें सत्संग योग चारों भाग की झांकी दिखाई गई है।


महर्षि-साहित्य सीरीज की अगली पुस्तक MS02

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MS01 सत्संग-योग चारो भाग || संतमत सत्संग का प्रतिनिधि ग्रंथ || भारतीय योगविद्या का खजाना MS01  सत्संग-योग चारो भाग  ||  संतमत सत्संग का प्रतिनिधि ग्रंथ  ||  भारतीय योगविद्या का खजाना Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/19/2020 Rating: 5

2 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरों से आदर पाने की इच्छा मत रखिए; क्योंकि प्राय: लोग स्वयं आदर चाहते हैं; परंतु दूसरों को आदर देना नहीं चाहते।

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