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MS02 रामचरितमानस-सार सटीक ।। 152 दोहों और 951 चौपाइयों में गुप्त-योग ध्यान से संबंधित वर्णन

MS02  रामचरितमानस-सार सटीक

      प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की दूसरी पुस्तक "रामचरितमानस-सार सटीक" है । इस पुस्तक में  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज  बताते हैं कि  रामचरितमानस में केवल कथा कहानी ही नहीं है, वल्कि भक्ति-योग की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म बातों की भी इसमें चर्चा है। मैंने 152 दोहों और 951 चौपाइयों में ऐसे ही सूक्ष्म योग और उससे संबंधित बातें पायी है। इसकी व्याख्या से स्थूल भक्ति और सूक्ष्म भक्ति के साधनों का प्रकाश होता है। आइये इस पुस्तक का अवलोकन करते हैं--

      'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची'  की पहली  पुस्तक "सत्संग योग" के बारे में जानने के लिए   👉 यहां दवाएँ। 


Ramcharitamanas_sar_Satik
रामचरितमानस सार सटीक

152 दोहों और 951 चौपाइयों में गुप्त-योग ध्यान

     प्रभु प्रेमियों ! रामचरितमानस के पूरे कथानक को रखते हुए उनमें जो योग  बिषयक  मुख्य-मुख्य दोहा चौपाईयां हैं उनका वर्णन करके उसकी व्याख्या किया गया है । कथा को भी बनाए रखने के लिए उसका सार भाग जोड़ते हुए आगे बढ़ा दिया है। जिससे कथा का भी आनंद और योग विषयक रामचरितमानस में वर्णन का भी विशेष जानकारी प्राप्त होता है।

रामचरितमानस सार सटीक ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं टीकीत भारती ग्रंथ
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     संत कवि मेँहीँ  की यह दूसरी रचना है। यह 1930 ई0 में भागलपुर, बिहार प्रेस से प्रकाशित हुई थी। इसमें गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस के 152 दोहों और 951 चौपाइयों की व्याख्या की गयी है। इसका मुख्य लक्ष्य है-स्थूल भक्ति और सूक्ष्म भक्ति के साधनों को प्रकाश में लाना।  मानस प्रेमियों के लिए यह बहुत ज्ञानवर्धक पुस्तक है। आइए इसकी भूमिका और प्रकाशकीय का पाठ करें।

Ramayan
रामचरितमानस का कबर
भूमिका

तुलसीकृत रामायण का नाम जो स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने रखा है, 'रामचरितमानस' है । इस उत्तम ग्रन्थ को तो 'रघुवर भगति प्रेम परमिति - सी' के स्थूल रूप में सर्वसाधारण देखते ही हैं और कुछ लोग इसे 'सद्गुरु ज्ञान विराग जोग के' के रूप में भी देख रहे हैं; पर इसके दोनों उपर्युक्त स्वरूपों को पूर्ण रूप से कोई बिरले ही देख सकते हैं; क्योंकि भक्ति का स्थूल स्वरूप जितनी सरलता से देखा जा सकता है, उतनी सरलता से उसका सूक्ष्म स्वरूप नहीं दरसता है और योग-विराग आदि को 'मानस' का जलचर बनाकर ग्रन्थकार ने रखा है।  

रामचरितमानस में योग क्यों नहीं दिखते

रामचरितमानस सार सटीक का लास्ट कवर
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  ( 'नव रस जप तप जोग विरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥' ) जलचर जल - गर्भ में छिपे रहते हैं और सरलता से देखे नहीं जाते । रामचरितमानस के उपर्युक्त दोनों स्वरूपों का पूर्ण रूप से दर्शन करने के लिए ही मैंने उससे सार-संग्रह करने का प्रयास किया है । मैं नहीं कह सकता कि मुझे इसमें पूरी सफलता हुई है। इस संग्रह का नाम मैंने 'रामचरितमानस-सार सटीक' रखा है और अपनी बुद्धि के अनुसार इसका अर्थ और कुछ व्याख्या भी लिख दी है । इसमें वर्णित योग कठिन हठयोग नहीं है, बल्कि परम सरल भक्ति योग है, जिसका अभ्यास रेचक, पूरक और कुम्भक के द्वारा न होकर रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति के द्वारा वा कागभुशुण्डिजी के भजनाभ्यास की रीति से होता है ।  

रामचरितमानस में योग

     इन प्रसंगों का वर्णन इसमें समुचित रीति से किया गया है। 
MS02, रामचरितमानस-सार सटीक ।। Ramcharitamanas
Ramcharitamanas
प्रेमी भक्तजनों से मेरा नम्र निवेदन है कि वे इसको एकबार आदि से अन्त पर्यन्त ध्यान देकर विचारते हुए पढ़ें। बेसिलसिले न पढ़ें; क्योंकि छोड़-छाड़ कर बेसिलसिले पढ़ने से समुचित लाभ न होगा। मैं विद्वान नहीं हूँ, केवल एक अत्यन्त साधारण सत्संगी हूँ । यद्यपि 'रामचरितमानस - सार सटीक' को मैंने एक कॉपी पर लिख लिया था, कॉपी सबके सामने रखने योग्य नहीं थी; क्योंकि उसमें भाषा की बहुत अशुद्धियाँ थीं । इस त्रुटि को विशेष परिश्रम से सुधारने के लिए ई० टी० ( E. T.) स्कूल बरहरवा ( सन्ताल परगना ) के हेड पण्डित श्रीयुक्त सूर्यनारायण मिश्रजी को अनेकानेक धन्यवाद देता हूँ ।

दिनांक : २९ अगस्त, सन् १९३० ई०

- मेँहीँ


प्रकाशकीय

     गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस को रामायण ■ नाम से ही जन साधारण अधिक जानते हैं और इस ग्रन्थ को बड़ी पूज्य और पवित्र दृष्टि से देखते हैं । 

MS02 Last cover, रामचरितमानस सार सटीक
                     MS02 Last cover
    श्रीमद्भगवद्गीता के बाद रामायण का ही भारती भाषा जाननेवालों के बीच में अधिक प्रचार है, परन्तु इसे पाठ करने, इसमें वर्णित राम कथा को सुनने-समझने का जितना ख्याल लोगों में है, उसका शतांश भी इसमें विशद रूप से वर्णित राम के सत्यस्वरूप और उसे पाने के लिए पूरी भक्ति करने का विचार ( उनमें ) नहीं है। यद्यपि गोस्वामीजी ने जन - रुचि को आकर्षित करने के लिए कथानक का सहारा लिया है, परन्तु विद्वज्जन भी इन स्थूल कथाओं में ही उलझे - से रह जाते हैं। बहुत कम विद्वान ही इसकी गहराई में डुबकी लगाने का प्रयत्न करते हैं ।

रामायण के जलचर क्या है? 

Aantarik pase
Aantarik pase
    संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने सन्त-साधना की पूरी अनुभूति का वर्णन रामचरितमानस में पाया है और इसीलिए उन्होंने सर्वजन कल्याण के लिए इस सुप्रचारित ग्रन्थ में छिपे ज्ञान का उद्घाटन किया है तथा कथानकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए रामचरित के मान सरोवर में छिपे जलचरों को पकड़- पकड़कर जैसे बाहर ला दिया है और इसका नाम 'रामचरितमानस - सार सटीक' रखा है। इसमें १५२ दोहे और ९५१ चौपाइयाँ अर्थ- सहित हैं। जगह-जगह पर गुरु महाराज ने व्याख्या एवं टिप्पणी भी दे दी है, जिससे समझने में आसानी हो जाती है। इस पुस्तक के माध्यम से विद्वानों की दृष्टि में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अन्य संतों की तरह गो० तुलसीदासजी महाराज भी केवल सगुणियाँ वा निगुर्णियाँ नहीं थे, बल्कि सगुण की साधना शुरू कर निर्गुण को भी पार कर शुद्ध स्वरूप में प्रतिष्ठित परमप्रभु सर्वेश्वर के पहुँचे हुए अनन्य भक्त थे।

नवीन संस्करण की बिशेषता

Cover और व्याख्या की पुस्तक
Cover
     पूर्व के संस्करण में सद्गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज द्वारा जहाँ-तहाँ दोहे, चौपाइयों आदि के नीचे ( इसका अर्थ सुगम है) लिखा गया था । पाठकों की विशेष सुविधा को ध्यान में रखते हुए पुस्तक के नवीन संस्करण में उनके अर्थ दे दिए गए हैं। पुस्तक - अन्तर्गत तारे (* ) से चिह्नित दोहे, चौपाइयों आदि की टीकाएँ महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज द्वारा की गई हैं।

रामचरितमानस- सार सटीक के लाभ

     सत्संगी और पाठक बन्धु इस पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन-मनन करके गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रतिपादित ईश्वर - स्वरूप और उनकी बताई नवधा भक्ति पर चलने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें, यही इसकी सार्थकता है और इसी में हमें प्रसन्नता है ।

     इस तरह यह पुस्तक संतमत का एक अत्यन्त तेजस्वी अंग है। लोगों के बीच इस पुस्तक की माँग अधिकाधिक है। जल्द ही पिछले संस्करण की समाप्ति के कारण यह २६वाँ संस्करण पाठकों के समक्ष प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। आशा है कि मर्मज्ञ इससे अधिकाधिक लाभ उठावेंगे।


गुरु- पूर्णिमा

संवत् २०७४ वि० (९ जुलाई, २०१७ ई०)


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* श्रीरामचरितमानस: ज्ञान-प्रसंग (अर्थ सहित ) *

== प्रसंग-सूची ==

क्रमांक             प्रसंग

क.  प्रस्तावना

       LS29 क 1

        LS29 क 2

        LS29 क 3


बालकांड- - प्रथम सोपान


१. मंगलाचरण के श्लोक- 

२. भाषा - मंगलाचरण ( देव- वंदना ) -

     क. ज्ञान-प्रसंग से



५. खल-वंदना-

६. संत और असंत की एक साथ वंदना-

७. रामनाम - वन्दना-

८. रामचरितमानस के आदि-आचार्य और 
    रामचरित-सर-

९. शिव-पार्वती - संवाद - 

१०. निर्गुण ब्रह्म के सगुण होने का सामान्य कारण - 

११. श्रीराम और लक्ष्मणजी की गुरु-भक्ति-

अयोध्याकांड - द्वितीय सोपान -- 


१. लक्ष्मणजी को श्रीराम के संग वन-जाने की                सुमित्राजी की अनुमति एवं उपदेश -

२. गुह निषाद - लक्ष्मण-संवाद-

३. श्रीराम - वाल्मीकि - संवाद -

४. कौशल्याजी के सामने भरतजी का शपथ खाना- 

५. भरतजी को वशिष्ठजी का समझाना 
     ( शोचनीय कौन? ) -

६. स्वार्थी इन्द्र को गुरु बृहस्पतिजी का उपदेश-

अरण्यकांड - तृतीय सोपान


१. इन्द्रपुत्र जयन्त के द्वारा श्रीराम का बल थाहना - 

२. श्रीराम - अत्रि - मिलन- प्रसंग-
    क. 

३. श्रीराम-लक्ष्मण-संवाद (भक्तियोग )-

४. शूर्पणखा - प्रसंग —

५. जटायु की आदर्श भक्ति-

६. शापमुक्त गंधर्व को श्रीराम का उपदेश - 

७. शबरी और नवधा भक्ति -

८. वनमार्ग में श्रीराम की ज्ञानवार्त्ता-

९. पंपा सरोवर का वर्णन -

१०. पंपा सरोवर पर श्रीराम-नारद-संवाद-

किष्किन्धाकांड - चतुर्थ सोपान


१. सुमित्र - कुमित्र के लक्षण-

२. सुग्रीव के वैराग्यमय वचन-

३. वर्षा -वर्णन- ऋतु - -

४. शरद् ऋतु-वर्णन - 

५. सुग्रीव का दैन्य-प्रदर्शन -

६. सुग्रीव - गीता 

सुन्दरकांड - पंचम सोपान


१. हनुमान्जी का लंका-प्रवेश

२. रावण को हनुमान्जी की शिक्षा

३. रावण को पुलस्त्य ऋषि का संदेश- -
     क. 
     ख. 

४. सुग्रीव के प्रति शरणागतवत्सल श्रीराम के वचन-

५. श्रीराम और शरणागत विभीषण का संवाद -


लंकाकांड - षष्ठ सोपान


१. मूर्च्छित लक्ष्मणजी के लिए श्रीराम का विलाप- 

२. धर्ममय रथ - वर्णन-

उत्तरकांड - सप्तम सोपान


१. श्रीरामराज्य - वर्णन - 

२. श्रीराम-प्रताप-दिनेश की विशेषता-

३. श्रीराम - सनकादिक-मिलन-प्रसंग

४. संत-असंत के लक्षण- 

५. सनकादिक मुनियों का श्रीरामकथा-प्रेम -

६. श्रीराम का पुरजन - उपदेश -

७. श्रीराम से वशिष्ठजी की विनती.

८. श्रीराम-कथा-विषयक पार्वतीजी के उद्गार 

९. श्रीराम भक्त सबसे दुर्लभ -

१०. भुशुंडिजी का वास स्थान और उनका 
       भजन -साधन.

११. गरुड़ मोह का समाधान -

१२. श्रीराम का सहज स्वभाव

१३. भक्त को अविद्या माया नहीं व्यापती- 

१४. काग भुशुण्डि को श्रीराम का वरदान -

१५. भगवान् श्रीराम का निज सिद्धांत- -

१६. काग भुशुंडजी का निज अनुभव-

१७. श्रीराम- प्रताप-वर्णन - 

१८. भुशुंडिजी को काग-शरीर प्रिय क्यों-

१९. कलियुग की विशेषता और हृदय में
       युग-धर्म की  नित्य अवस्थिति-

२०. दुष्ट से न वैर अच्छा, न प्रेम अच्छा- 

२१. लोमश मुनि का ब्रह्मोपदेश-

२२. ब्राह्मण-शरीर में भुशुंडिजी की गुनावन-

२३. भुशुण्डिजी को लोमश मुनि का आशीर्वाद-

२४. भक्ति की महिमा -

२५. ज्ञान और भक्ति का अंतर -

२६. गरुड़जी के सात प्रश्न और भुशुण्डिजी के
      उनके उत्तर

२७. काग भुशुण्डिजी और गरुड़-संवाद का 
      अंतिम अंश-

२८. शिव और पार्वती का अंतिम संवाद-

२९. गो० तुलसीदासजी के अंतिम वचन -

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सचेतन


रामचरितमानस-सार सटीक  के विशिष्ट संस्करण


प्रकाशकीय

     गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस को रामायण नाम से ही जन - साधारण अधिक जानते हैं और इस ग्रन्थ को बड़ी पूज्य और पवित्र दृष्टि से देखते हैं ।  

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  श्रीमद्भगवद्गीता के बाद रामायण का ही भारती भाषा जाननेवालों के बीच में अधिक प्रचार है, परन्तु इसे पाठ करने, इसमें वर्णित राम कथा को सुनने-समझने का जितना ख्याल लोगों में है, उसका शतांश भी इसमें विशद रूप से वर्णित राम के सत्यस्वरूप और उसे पाने के लिए पूरी भक्ति करने का विचार (उनमें ) नहीं है । यद्यपि गोस्वामीजी ने जन-रुचि को आकर्षित करने के लिए कथानक का सहारा लिया है, परन्तु विद्वज्जन भी इन स्थूल कथाओं में ही उलझे से रह जाते हैं । बहुत कम विद्वान ही इसकी गहराई में डुबकी लगाने का प्रयत्न करते हैं ।

    पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने सन्त-साधना की पूरी अनुभूति का वर्णन रामचरितमानस में पाया है और इसीलिए उन्होंने सर्वजन-कल्याण के लिए इस सुप्रचारित ग्रन्थ में छिपे ज्ञान का उद्घाटन किया है । गोस्वामी तुलसीदासजी की यह विलक्षण प्रतिभा है कि उन्होंने ईश्वर की सगुण-लीला के माध्यम से ही उनके सत्य स्वरूप और उनकी प्राप्ति के लिए पूरी भक्ति का सिलसिलेवार वर्णन इस ग्रन्थ में कर दिया है । इसके अतिरिक्त लोक व्यवहार के सदाचारपूर्ण नैतिक उपदेश भी इसमें समाविष्ट हैं। पूज्यपाद सद्गुरुदेव ने कथानकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए रामचरित के मान सरोवर में छिपे जलचरों को पकड़-पकड़कर जैसे बाहर ला दिया है और इसका नाम 'रामचरितमानस - सार सटीक' रखा है।

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  प्रथम संस्करण स्वयं श्रीसद्गुरुदेवजी ने अपनी देख-रेख में प्रकाशित कराया था। इसकी द्वितीय आवृत्ति श्री राम गोसाईजी एवं श्री योगीदासजी (भागलपुर) सत्संगी द्वय ने तथा तृतीय आवृत्ति श्री देवकीनन्दन मण्डलजी सत्संगी ( जमालपुर ) ने प्रकाशित कराई। चतुर्थ एवं उसके बाद की आवृत्तियाँ अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग-प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित की गई हैं। चतुर्थ आवृत्ति में पूज्यपाद सदगुरुदेव ने व्याख्या के विविध स्थलों पर आवश्यक संशोधन एवं परिवर्द्धन भी किए, जिससे यह ग्रन्थ अधिक प्रांजल और उपादेय बन गया। पूर्व के संस्करण में सद्गुरुदेव महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज द्वारा जहाँ-तहाँ दोहे, चौपाइयों आदि के नीचे ( इसका अर्थ सुगम है) लिखा गया था । पाठकों की विशेष सुविधा को ध्यान में रखते हुए पुस्तक के नवीन संस्करण में उनके अर्थ दे दिए गए हैं, जिन्हें तारांकित (# ) करके दर्शा दिया गया है ।

सत्संगी और पाठक बन्धु इस पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन-मनन करके गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रतिपादित ईश्वर - स्वरूप और उनकी बताई नवधा भक्ति पर चलने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें, यही इसकी सार्थकता है और इसी में हमें प्रसन्नता है ।

मकर संक्रान्ति, विक्रम संवत् २०५५

- प्रकाशक


श्रीरामचरितमानस ज्ञान प्रसंग से

प्राक्कथन

     'श्रीरामचरितमानस ज्ञान प्रसंग ( अर्थ सहित ) ' मानस के ज्ञान-प्रसंगों का टीकाग्रंथ है, जो मेरे द्वारा संपादित तथा टीकाकृत है। टीका-लेखन का काम मैंने अपने गुरुदेव के भरोसे आरंभ किया और चार महीने के कठिन परिश्रम के पश्चात् उन्हीं की कृपा से इसे पूरा भी किया। प्रत्येक ज्ञान -प्रसंग के ऊपर मैंने एक उपयुक्त शीर्षक लगाया है और ज्ञान-प्रसंग की विषय-वस्तु का भी संक्षेप में निर्देश किया है।

विशिष्ट संस्करण  रामचरितमानस शास्त्री का विशिष्ट संस्करण
विशिष्ट संस्करण

     मैंने ज्ञान -प्रसंग का भावार्थ किया है, सरलार्थ नहीं; क्योंकि सरलार्थ से नहीं, भावार्थ से ही किसी काव्यात्मक मूलपाठ का अर्थ पूरी तरह स्पष्ट हो पाता है। मुझे मानस के जितने भी टीका ग्रंथ देखने को मिले, सबमें मैंने सरलार्थ ही देखा, भावार्थ नहीं।

     प्रस्तुत ग्रंथ में भावार्थ के नीचे कहीं-कहीं जो टिप्पणियाँ दी गयी हैं, वे प्राय: छोटी-छोटी ही हैं, बड़ी-बड़ी नहीं। ग्रंथ के आरंभ में लंबी प्रस्तावना दी गयी है, उससे 'मानस' की महत्ता एवं विशिष्टता प्रकट होती है।

     यह टीकाग्रंथ लिखने के पूर्व मैंने मानस के कई टीकाकारों के ग्रंथों का अवलोकन किया था, उनमें से पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के टीका-ग्रंथ 'रामचरितमानस - सार सटीक' से मेरा अधिक लगाव रहा है।

     अनेक टीका-ग्रंथों का अवलोकन करते समय मैंने देखा कि कई मूलपाठों के अर्थ भिन्न-भिन्न टीकाकारों ने भिन्न-भिन्न ढंग से किये हैं। यह बात सबकी समझ में आने के योग्य है कि किसी मूलपाठ के किये गये अनेक अर्थों में से एक ही अर्थ सत्य हो सकता है, सब-के-सब नहीं।

     मुझे अनुभव हुआ कि दस-पाँच बार 'मानस' का पाठ करके इसकी टीका लिखने का दुस्साहस किसी को भी नहीं करना चाहिए। 'मानस' बड़ा गूढ़ ग्रंथ है। इसकी टीका लिखने की इच्छा रखनेवाले को कम-से-कम बीस-पचीस वर्ष तक भी पूरे 'मानस' का गंभीर अध्ययन एवं मनन अवश्य करना चाहिए ।

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    मैं न तो भाषा का पंडित हूँ, न विशेष अच्छी समझ-बूझ रखनेवाला, न 'मानस' का गंभीर अध्येता और न समर्पित भक्तियोग का  साधक ही। मैं सच कहता हूँ कि यदि मुझपर अपने गुरुदेव की कृपा नहीं होती, तो मैं यह ग्रंथ नहीं लिख पाता । 

     इस टीका- ग्रंथ के प्रामाणिक होने का भी मेरा दावा नहीं है; क्योंकि मैं अल्पमति हूँ और इसमें मेरा अपना कुछ है भी नहीं । यदि प्रबुद्ध पाठकों को इस ग्रंथ में किये गये अर्थ कहीं गलत,

     असंगत या भिन्न प्रतीत हों, तो वे महापुरुषों के द्वारा किये गये अर्थों को ही प्रामाणिक मानें और मुझे अल्पज्ञ तथा नासमझ समझकर क्षमा करें। उन सभी महापुरुषों के प्रति करबद्ध होकर अपना शीश झुकाता हूँ, जिनके ग्रंथों से मैंने प्रस्तुत पुस्तक में सहायता ली है।

     मैं एक बार फिर अपने गुरु जनों एवं 'मानस' के मर्मज्ञ महानुभावों इस ग्रंथ में आयी हुई त्रुटियों के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ; मुझे पूरा विश्वास है कि वे मुझे अवश्य क्षमा करेंगे; क्योंकि बड़े लोग छोटे के अपराध को क्षमा करते ही हैं।

     पाठकों को यदि कहीं पाठान्तर देखने को मिले, तो इससे उन्हें चौंकना नहीं चाहिए; क्योंकि विभिन्न प्रतियों में पाठ-भेद मिलता ही है। यदि इस ग्रंथ से 'मानस'- प्रेमियों का थोड़ा भी उपकार हो सका, तो मैं अपने को धन्य समझँगा । जय गुरु !

                           - छोटेलाल दास

 (३१-७-२०११ ई०)  संतनगर, बरारी, भागलपुर-३ ( बिहार )



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   प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "रामचरितमानस सार सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि रामायण में योग का प्रसंग किस रूप में है । रामचरितमानस गुरु महाराज को क्यों लिखना पड़ा ?  रामायण में विशेष बात क्या है? रामायण के विशिष्ट संस्करण, रामायण का हमारे जीवन में क्या महत्व है? रामायण का सांस्कृतिक महत्व क्या है? रामायण की सुविधा क्या है? रामायण का मुख्य संदेश क्या है?  रामायण कथा, रामायण कथा हिंदी में लिखित पीडीएफ, रामायण कथा पढ़ने के लिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।



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MS02 रामचरितमानस-सार सटीक ।। 152 दोहों और 951 चौपाइयों में गुप्त-योग ध्यान से संबंधित वर्णन MS02  रामचरितमानस-सार सटीक ।। 152 दोहों और 951 चौपाइयों में गुप्त-योग ध्यान से संबंधित वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/22/2018 Rating: 5

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