MS02 रामचरितमानस-सार सटीक
रामचरितमानस सार सटीक |
152 दोहों और 951 चौपाइयों में गुप्त-योग ध्यान
तुलसीकृत रामायण का नाम जो स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने रखा है, 'रामचरितमानस' है । इस उत्तम ग्रन्थ को तो 'रघुवर भगति प्रेम परमिति - सी' के स्थूल रूप में सर्वसाधारण देखते ही हैं और कुछ लोग इसे 'सद्गुरु ज्ञान विराग जोग के' के रूप में भी देख रहे हैं; पर इसके दोनों उपर्युक्त स्वरूपों को पूर्ण रूप से कोई बिरले ही देख सकते हैं; क्योंकि भक्ति का स्थूल स्वरूप जितनी सरलता से देखा जा सकता है, उतनी सरलता से उसका सूक्ष्म स्वरूप नहीं दरसता है और योग-विराग आदि को 'मानस' का जलचर बनाकर ग्रन्थकार ने रखा है।
रामचरितमानस में योग क्यों नहीं दिखते
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रामचरितमानस में योग
Ramcharitamanas |
दिनांक : २९ अगस्त, सन् १९३० ई०
- मेँहीँ
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रामायण के जलचर क्या है?
Aantarik pase |
नवीन संस्करण की बिशेषता
रामचरितमानस- सार सटीक के लाभ
इस तरह यह पुस्तक संतमत का एक अत्यन्त तेजस्वी अंग है। लोगों के बीच इस पुस्तक की माँग अधिकाधिक है। जल्द ही पिछले संस्करण की समाप्ति के कारण यह २६वाँ संस्करण पाठकों के समक्ष प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। आशा है कि मर्मज्ञ इससे अधिकाधिक लाभ उठावेंगे।
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क. प्रस्तावना
बालकांड- - प्रथम सोपान
अयोध्याकांड - द्वितीय सोपान --
अरण्यकांड - तृतीय सोपान
किष्किन्धाकांड - चतुर्थ सोपान
सुन्दरकांड - पंचम सोपान
लंकाकांड - षष्ठ सोपान
उत्तरकांड - सप्तम सोपान
रामचरितमानस-सार सटीक के विशिष्ट संस्करण
गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस को रामायण नाम से ही जन - साधारण अधिक जानते हैं और इस ग्रन्थ को बड़ी पूज्य और पवित्र दृष्टि से देखते हैं ।
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श्रीमद्भगवद्गीता के बाद रामायण का ही भारती भाषा जाननेवालों के बीच में अधिक प्रचार है, परन्तु इसे पाठ करने, इसमें वर्णित राम कथा को सुनने-समझने का जितना ख्याल लोगों में है, उसका शतांश भी इसमें विशद रूप से वर्णित राम के सत्यस्वरूप और उसे पाने के लिए पूरी भक्ति करने का विचार (उनमें ) नहीं है । यद्यपि गोस्वामीजी ने जन-रुचि को आकर्षित करने के लिए कथानक का सहारा लिया है, परन्तु विद्वज्जन भी इन स्थूल कथाओं में ही उलझे से रह जाते हैं । बहुत कम विद्वान ही इसकी गहराई में डुबकी लगाने का प्रयत्न करते हैं ।
पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने सन्त-साधना की पूरी अनुभूति का वर्णन रामचरितमानस में पाया है और इसीलिए उन्होंने सर्वजन-कल्याण के लिए इस सुप्रचारित ग्रन्थ में छिपे ज्ञान का उद्घाटन किया है । गोस्वामी तुलसीदासजी की यह विलक्षण प्रतिभा है कि उन्होंने ईश्वर की सगुण-लीला के माध्यम से ही उनके सत्य स्वरूप और उनकी प्राप्ति के लिए पूरी भक्ति का सिलसिलेवार वर्णन इस ग्रन्थ में कर दिया है । इसके अतिरिक्त लोक व्यवहार के सदाचारपूर्ण नैतिक उपदेश भी इसमें समाविष्ट हैं। पूज्यपाद सद्गुरुदेव ने कथानकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए रामचरित के मान सरोवर में छिपे जलचरों को पकड़-पकड़कर जैसे बाहर ला दिया है और इसका नाम 'रामचरितमानस - सार सटीक' रखा है।
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प्रथम संस्करण स्वयं श्रीसद्गुरुदेवजी ने अपनी देख-रेख में प्रकाशित कराया था। इसकी द्वितीय आवृत्ति श्री राम गोसाईजी एवं श्री योगीदासजी (भागलपुर) सत्संगी द्वय ने तथा तृतीय आवृत्ति श्री देवकीनन्दन मण्डलजी सत्संगी ( जमालपुर ) ने प्रकाशित कराई। चतुर्थ एवं उसके बाद की आवृत्तियाँ अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग-प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित की गई हैं। चतुर्थ आवृत्ति में पूज्यपाद सदगुरुदेव ने व्याख्या के विविध स्थलों पर आवश्यक संशोधन एवं परिवर्द्धन भी किए, जिससे यह ग्रन्थ अधिक प्रांजल और उपादेय बन गया। पूर्व के संस्करण में सद्गुरुदेव महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज द्वारा जहाँ-तहाँ दोहे, चौपाइयों आदि के नीचे ( इसका अर्थ सुगम है) लिखा गया था । पाठकों की विशेष सुविधा को ध्यान में रखते हुए पुस्तक के नवीन संस्करण में उनके अर्थ दे दिए गए हैं, जिन्हें तारांकित (# ) करके दर्शा दिया गया है ।
सत्संगी और पाठक बन्धु इस पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन-मनन करके गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रतिपादित ईश्वर - स्वरूप और उनकी बताई नवधा भक्ति पर चलने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें, यही इसकी सार्थकता है और इसी में हमें प्रसन्नता है ।
मकर संक्रान्ति, विक्रम संवत् २०५५
- प्रकाशक
श्रीरामचरितमानस ज्ञान प्रसंग से
प्राक्कथन
'श्रीरामचरितमानस ज्ञान प्रसंग ( अर्थ सहित ) ' मानस के ज्ञान-प्रसंगों का टीकाग्रंथ है, जो मेरे द्वारा संपादित तथा टीकाकृत है। टीका-लेखन का काम मैंने अपने गुरुदेव के भरोसे आरंभ किया और चार महीने के कठिन परिश्रम के पश्चात् उन्हीं की कृपा से इसे पूरा भी किया। प्रत्येक ज्ञान -प्रसंग के ऊपर मैंने एक उपयुक्त शीर्षक लगाया है और ज्ञान-प्रसंग की विषय-वस्तु का भी संक्षेप में निर्देश किया है।
विशिष्ट संस्करण |
मैंने ज्ञान -प्रसंग का भावार्थ किया है, सरलार्थ नहीं; क्योंकि सरलार्थ से नहीं, भावार्थ से ही किसी काव्यात्मक मूलपाठ का अर्थ पूरी तरह स्पष्ट हो पाता है। मुझे मानस के जितने भी टीका ग्रंथ देखने को मिले, सबमें मैंने सरलार्थ ही देखा, भावार्थ नहीं।
प्रस्तुत ग्रंथ में भावार्थ के नीचे कहीं-कहीं जो टिप्पणियाँ दी गयी हैं, वे प्राय: छोटी-छोटी ही हैं, बड़ी-बड़ी नहीं। ग्रंथ के आरंभ में लंबी प्रस्तावना दी गयी है, उससे 'मानस' की महत्ता एवं विशिष्टता प्रकट होती है।
यह टीकाग्रंथ लिखने के पूर्व मैंने मानस के कई टीकाकारों के ग्रंथों का अवलोकन किया था, उनमें से पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के टीका-ग्रंथ 'रामचरितमानस - सार सटीक' से मेरा अधिक लगाव रहा है।
अनेक टीका-ग्रंथों का अवलोकन करते समय मैंने देखा कि कई मूलपाठों के अर्थ भिन्न-भिन्न टीकाकारों ने भिन्न-भिन्न ढंग से किये हैं। यह बात सबकी समझ में आने के योग्य है कि किसी मूलपाठ के किये गये अनेक अर्थों में से एक ही अर्थ सत्य हो सकता है, सब-के-सब नहीं।
मुझे अनुभव हुआ कि दस-पाँच बार 'मानस' का पाठ करके इसकी टीका लिखने का दुस्साहस किसी को भी नहीं करना चाहिए। 'मानस' बड़ा गूढ़ ग्रंथ है। इसकी टीका लिखने की इच्छा रखनेवाले को कम-से-कम बीस-पचीस वर्ष तक भी पूरे 'मानस' का गंभीर अध्ययन एवं मनन अवश्य करना चाहिए ।
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मैं न तो भाषा का पंडित हूँ, न विशेष अच्छी समझ-बूझ रखनेवाला, न 'मानस' का गंभीर अध्येता और न समर्पित भक्तियोग का साधक ही। मैं सच कहता हूँ कि यदि मुझपर अपने गुरुदेव की कृपा नहीं होती, तो मैं यह ग्रंथ नहीं लिख पाता ।
इस टीका- ग्रंथ के प्रामाणिक होने का भी मेरा दावा नहीं है; क्योंकि मैं अल्पमति हूँ और इसमें मेरा अपना कुछ है भी नहीं । यदि प्रबुद्ध पाठकों को इस ग्रंथ में किये गये अर्थ कहीं गलत,
असंगत या भिन्न प्रतीत हों, तो वे महापुरुषों के द्वारा किये गये अर्थों को ही प्रामाणिक मानें और मुझे अल्पज्ञ तथा नासमझ समझकर क्षमा करें। उन सभी महापुरुषों के प्रति करबद्ध होकर अपना शीश झुकाता हूँ, जिनके ग्रंथों से मैंने प्रस्तुत पुस्तक में सहायता ली है।
मैं एक बार फिर अपने गुरु जनों एवं 'मानस' के मर्मज्ञ महानुभावों इस ग्रंथ में आयी हुई त्रुटियों के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ; मुझे पूरा विश्वास है कि वे मुझे अवश्य क्षमा करेंगे; क्योंकि बड़े लोग छोटे के अपराध को क्षमा करते ही हैं।
पाठकों को यदि कहीं पाठान्तर देखने को मिले, तो इससे उन्हें चौंकना नहीं चाहिए; क्योंकि विभिन्न प्रतियों में पाठ-भेद मिलता ही है। यदि इस ग्रंथ से 'मानस'- प्रेमियों का थोड़ा भी उपकार हो सका, तो मैं अपने को धन्य समझँगा । जय गुरु !
- छोटेलाल दास
(३१-७-२०११ ई०) संतनगर, बरारी, भागलपुर-३ ( बिहार )
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "रामचरितमानस सार सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि रामायण में योग का प्रसंग किस रूप में है । रामचरितमानस गुरु महाराज को क्यों लिखना पड़ा ? रामायण में विशेष बात क्या है? रामायण के विशिष्ट संस्करण, रामायण का हमारे जीवन में क्या महत्व है? रामायण का सांस्कृतिक महत्व क्या है? रामायण की सुविधा क्या है? रामायण का मुख्य संदेश क्या है? रामायण कथा, रामायण कथा हिंदी में लिखित पीडीएफ, रामायण कथा पढ़ने के लिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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