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LS29 क1 हमारे जीवन में रामायण का महत्व || What is the importance of Ramayana in our life?

हमारे जीवन में रामायण का महत्व

     प्रभु प्रेमियों  !  मानस से भारतीय समाज का बड़ा उपकार हुआ है। बहुत-से श्रद्धालुओं और भक्तों ने इसके अध्ययन-मनन में, कथा में अपना पूरा जीवन खपा - दिया और इसकी शिक्षाओं पर चलकर अपने जीवन का निर्माण किया; अपनी पारमार्थिक उन्नति की । बहुतेरे सज्जनों ने इसकी कथाओं के वाचक होकर प्रभूत सम्मान-प्रतिष्ठा और अर्थ भी उपार्जित किया। एकमात्र 'मानस' ही भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ होने की क्षमता रखता है और यही भारतीय ऋषि-मुनियों तथा संतों के द्वारा स्थापित मर्यादाओं का दर्पण भी है। आइये भावार्थकार के ऐसे ही ओजस्वी लेख जो कि इसी ग्रंथ के प्रस्तावना  का है। पाठ करैं--


श्री रामचरितमानस में वर्णित ज्ञान प्रसंगों की जानकारी
रामायण ज्ञान-प्रसंग

What is the importance of Ramayana in our life?

     प्रभु प्रेमियों  !  रामचरितमानस के लिखने का उद्देश्य क्या है ? जैसे- ताजमहल का बनाने का उद्देश्य मुमताज वेगम और शाहजहां का प्रेम है ।  उसी तरह रामचरितमानस को लिखने का परम उद्देश्य क्या है? क्या आप चाहते हैं कि हमारा देश, समाज, गांव और परिवार को किस हिसाब से चलना चाहिए ? वे सभी आदर्श का क्या नमूना होना चाहिए ? हमें अपना जीवन और देश को किस पैमाने पर ढालना चाहिए कि हमारा यह जीवन और मरने के बाद का जीवन सुखी और शांतिमय हो।  तो आपको रामायण का पाठ बार बार करना चाहिए। 

     'श्रीरामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग' पुस्तक के इस लेख में हम लोग जानगे--  1. ताजमहल क्यों बनाया गया?  ताजमहल को किसने बनाया? ताजमहल को बनाने में कितना समय लगा?  ताजमहल किस धातु से बना है? क्या ताजमहल अजर-अमर के तरह है❓  2. रामायण का कैसा ग्रंथ है? रामायण को लिखने में कितना समय लगा ? रामचरितमानस की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? रामचरितमानस किसने लिखा है?  रामचरितमानस किस तरह अजर-अमर है?  रामचरितमानस लिखते समय गोस्वामी जी के आयु क्या थी❓  3.  शिक्षा देने की सर्वोत्तम विधि कैसी होनी चाहिए? शिक्षा देने की भारतीय प्राचीन परंपरा क्या है ? शिक्षा किस तरह देनी चाहिए कि वह सार्थक हो जाए ❓  4रामचरितमानस को ग्रंथराज क्यों कहा जाता है? श्रीमद्भागवत महापुराण और रामचरितमानस में कौन विशेष है?  रामायण पाठ से क्या मिलता है ?  रामायण में किस तरह की  ज्ञान  है?  इत्यादि बातें। 

प्रस्तावना

     आज से लगभग चार सौ वर्ष से भी अधिक समय पूर्व की बात है। मुगल बादशाह शाहजहाँ भारत पर हुकूमत कर रहे थे। उन्हें अपनी पत्नी मुमताज से बेहद मुहब्बत थी। जब मुमताज की जिंदगी का अंतिम समय आया, तो उसने अपने पति से दो प्रार्थनाएँ कीं, "पतिदेव ! आप मेरे मरने के बाद दूसरा विवाह नहीं कीजिएगा और मेरी कब्र पर ऐसी खूबसूरत इमारत (मकबरा) बनवाइएगा, जिसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग आएँ।” शाहजहाँ ने अपनी पत्नी की ये दोनों प्रार्थानाएँ स्वीकार कर लीं।

ताजमहल किस पत्थर से बना है? 

     मुमताज संसार से चल बसी; बादशाह ने दूसरा विवाह नहीं किया। उन्होंने आगरा में उसकी कब्र पर संगमरमर की इमारत बनवाना आरंभ किया। प्रतिदिन सैकड़ों कारीगर और हजारों मजदूर काम करने लगे। लगभग बीस-बाईस वर्ष के बाद वह इमारत बनकर तैयार हो गयी और उसका नाम रखा गया— 
विश्व प्रसिद्ध नौवा अजूबा आगरा स्थित  शाहजहां और मुमताज के प्रेम का प्रतीक ताजमहल
ताजमहल आगरा
 'ताजमहल' अर्थात् मुमताज की कब्र पर बना हुआ महल। 'ताजमहल' का दूसरा अर्थ यह भी लिया जा सकता है— महलों का ताज ( महलों में श्रेष्ठ ) । वास्तव में ताजमहल महलों का ताज हो गया; संसार के सात आश्चर्यजनक पदार्थों में उसकी गिनती होने लगी; देश-विदेश के लोग उसे देखने के लिए आगरा आने लगे और आज भी आते हैं। मुमताज का यह स्मारक उसके और शाहजहाँ के बीच की 'मुहब्बत की कथा बयाँ कर रहा है।

रामायण का लेखन कितने समय में हुआ? 

     जिस समय ताजमहल बन रहा था, उसी समय अयोध्या में एक निर्धन; परन्तु विद्वान् भक्त एक ग्रंथ लिखने में लगे हुए थे। 
गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस ग्रंथ
तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस

 दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन उन्हें ग्रंथ लिखने में लग गए। जब ग्रंथ लिखने का काम पूरा हुआ और कुछ विद्वानों ने उसकी पांडुलिपि का अवलोकन किया, तो सबने एक स्वर से घोषणा की कि यह सामान्य ग्रंथ नहीं, ग्रंथराज है— सभी ग्रंथों का राजा है। आप जानना चाहेंगे कि वे भक्त कौन थे और उनके लिखे हुए ग्रंथ का नाम क्या था? वे भक्त थे गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज और उनकी लिखी पुस्तक का नाम है - 'श्रीरामचरितमानस । '

श्रीरामचरितमानस का महत्व

     जबतक धरती रहेगी, तबतक 'श्रीरामचरितमानस' अमर रहेगा और इसके साथ कीर्ति-शरीर से अमर रहेंगे गो०तुलसीदासजी महाराज । ईंट-पत्थरों का बना हुआ स्मारक भीषण भूकंप हो जाने पर एक दिन धराशायी हो सकता है; परंतु गो० तुलसीदासजी का 'श्रीरामचरितमानस' उस स्थिति में भी कहीं-न-कहीं अपना अस्तित्व अवश्य बनाये रखेगा।

श्रीरामचरितमानस के लेखक

     गो० तुलसीदासजी ने १२६ वर्ष की लंबी आयु पायी थी; उन्होंने अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ - इन तीनों मुगल बादशाहों के शासनकाल को देखा था। कहते हैं कि गोस्वामीजी ने चौदह साल तक पूरे भारत की पैदल यात्रा की थी। जिस समय उन्होंने 'रामचरितमानस' का लेखन - कार्य पूरा किया, उस समय वे ७९ वर्ष के थे।

शिक्षा देने की सर्वोत्तम विधि

     कथाओं, दृष्टांतों तथा उपमाओं के द्वारा दी गयी शिक्षा और समझायी गयी निगूढ़ बातें सहज ही बोधगम्य तथा हृदयंगम हो जाती हैं। 
विशिष्ट संस्करण  रामचरितमानस शास्त्री का विशिष्ट संस्करण
विशिष्ट संस्करण
कथाओं के द्वारा शिक्षा देने की परंपरा भारत में अत्यन्त प्राचीन काल से ही चली आ रही है। गो० तुलसीदासजी के द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया ‘श्रीरामचरितमानस' एक सर्वथा निर्दोष महाकाव्य है। इसमें भी कथाओं के माध्यम से मानव जाति को लोक और परलोक सँवारने की महान् शिक्षाएँ दी गयी हैं।

     अद्वैतवाद का समर्थक और भक्ति-प्रधान 'मानस' विश्व - साहित्य में अपना अद्वितीय स्थान रखता है। इसके ऐसा ग्रंथ आजतक किसी भी युग, देश और भाषा में नहीं लिखा गया। इसमें वेद-शास्त्र, पुराण, रामायण आदि सभी सच्छास्त्रों का निचोड़ आ गया है। हालाँकि 'श्रीमद्भागवत महापुराण' भी भक्ति-प्रधान ग्रंथ है, फिर भी वह 'मानस' की समकक्षता में नहीं आ पाता।


रामायण पाठ से होने वाले लाभ

     नित नियमित रूप से 'मानस' का पाठ करने पर अवश्य ही हृदय में भक्ति भावना की जागृति होती है । 
स्वामी लालदास कृत रामचरितमानस  के ज्ञान प्रसंग की पुस्तक "श्रीरामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग"
श्रीरामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग

पग-पग पर शिष्टाचार की शिक्षा देनेवाला यह ग्रंथरत्न श्रीराम की भक्ति का प्रबल प्रचारक है और इसमें धर्म, दर्शन, सब प्रकार की नीतियों, योग, ज्ञान-विज्ञान, भक्ति, वैराग्य, जप-तप आदि की बातें भरी पड़ी हैं। मानव स्वभाव का सहज चित्रण भी इस सद्ग्रंथ में देखने को मिलता है; सूक्तियों का तो यह कोष है ही । काव्य-प्रेमी विद्वानों को इसमें काव्यानन्द मिलता है, तो श्रद्धालुओं को भक्ति का आनंद। विभिन्न रसों, छन्दों और अलंकारों की योजना तो इसमें देखते ही बनती है।

रामायण कैसे लिखा गया है? 

      यह ग्रंथशिरोमणि मुख्यतः हिन्दी के चौपाई, दोहा और सोरठा आदि छंदों में लिखा गया है; इन छन्दों के 
रामायण में वर्णित गुप्त योग को प्रकाशित करने वाला ग्रंथ है-- श्रीरामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग
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साथ हरिगीतिका, चवपैया, त्रिभंगी, तोमर, तोटक आदि छंद भी ग्रन्थ में प्रयुक्त हुए हैं। संस्कृत छंदों में अनुष्टुप् शार्दूलविक्रीडित, वसंततिलका, वंशस्थ, इन्द्रवज्रा, मालिनी, स्रग्धरा, रथोद्धता, भुजंगप्रयात और नगस्वरूपिणी का भी इसमें प्रयोग हुआ है। इन संस्कृत छंदों में से कुछ का प्रयोग प्रत्येक कांड के आरंभ के मंगलाचरण में और कुछ का कथाओं के बीच भी हुआ है। 'मानस' के आरम्भ में वंदना - प्रकरण जितना लंबा है, उतना लंबा वंदना - प्रकरण शायद ही विश्व के किसी ग्रंथ में मिले।

रामायण की प्रसिद्धि का क्या राज है? 

     'मानस' ही एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे कम पढ़े-लिखे लोगों से लेकर विद्वानों तक — सभी बड़े चाव से पढ़ते हैं और बारंबार पढ़ते रहने पर भी कभी अघाते नहीं । संपूर्ण भारतीय संस्कृति का एकमात्र प्रतिनिधित्व करनेवाले इस धर्मग्रंथ से विदेशी विद्वान् भी प्रभावित हुए हैं और उन्होंने भी इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इस अनुपम महाकाव्य की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण श्रीराम- जैसे महापुरुष का चरितनायक बनाया जाना भी है।

भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ

     मानस से भारतीय समाज का बड़ा उपकार हुआ है। बहुत-से श्रद्धालुओं और भक्तों ने इसके अध्ययन-मनन में 
रामचरितमानस ज्ञान प्रसंग का प्रथम पेज
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कथा अपना पूरा जीवन खपा - दिया और इसकी शिक्षाओं पर चलकर अपने जीवन का निर्माण किया; अपनी पारमार्थिक उन्नति की । बहुतेरे सज्जनों ने इसकी कथाओं के वाचक होकर प्रभूत सम्मान-प्रतिष्ठा और अर्थ भी उपार्जित किया। एकमात्र 'मानस' ही भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ होने की क्षमता रखता है और यही भारतीय ऋषि-मुनियों तथा संतों के द्वारा स्थापित मर्यादाओं का दर्पण भी है।

 ग्रंथ का नाम रामचरितमानस क्यों रखा गया है? 

     ग्रंथ का 'रामचरितमानस' नामकरण भगवान् शिव के द्वारा किया गया और वे ही इसके आद्य आचार्य हैं, इस बात को अत्यन्त नम्र संत  गो० तुलसीदासजी स्वीकार करते हुए कहते हैं कि 'श्रीरामचरितमानस' की रचना करके शिवजी ने इसे अपने मन में गुप्त रखा था, उपयुक्त समय आने पर उन्होंने इसे पार्वतीजी से कहा । 'रामचरितमानस' यह नामकरण उन्होंने ही अपने हृदय में अच्छी तरह विचारकर और प्रसन्नतापूर्वक किया- 

"रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ॥ 
रचि महेस निज मानस राखा | पाइ सुसमय सिवा सन भाखा ॥ तातें रामचरितमानस बर । धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर ।। "  ( बालकांड )

श्रीरामचरितमानस का प्रचार कैसे हुआ? 

     लोमश मुनि को श्रीराम कथा भगवान् शिव की कृपा से प्राप्त हुई थी, भुशुंडिजी के प्रति लोमश मुनि का यह वचन देखें- 

रामचरित सर गुप्त सुहावा । संभु प्रसाद तात मैं पावा ॥" (उत्तरकांड) 

     यह रामचरित भगवान् शंभु की प्रेरणा से लोमश मुनि ने भुशुंडिजी को सुनाया, भुशुंडिजी ने गरुड़जी तथा याज्ञवल्क्यजी को और याज्ञवल्क्यजी ने भरद्वाज के प्रति इसका कथन किया। इस प्रकार संसार में 'श्रीरामचरितमानस' का प्रचार हुआ— 

संभु कीन्ह यह चरित सुहावा । 
         बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा ॥ 
सोइ सिव काग भुसुंडिहि दीन्हा । 
         रामभगत अधिकारी चीन्हा ॥ 
तेहि सन जागबलिक पुनि पावा । 
          तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा ॥” (बालकांड)

     गोस्वामी तुलसीदासजी का निष्कपट कथन है कि उन्होंने 'श्रीरामचरितमानस' का अवधी भाषा में जो पद्यबद्ध अनुगायन किया है, वह भगवान् शिव की कृपा का फल है - 

" संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी । रामचरितमानस कवि तुलसी ॥ " (बालकांड)

     आप यह जानकर चकित होंगे कि भगवान् शिव ने पार्वतीजी से श्रीराम कथा सुनाते हुए यह कभी प्रकट नहीं किया कि यह राम-कथा उनकी रची हुई है; उन्होंने कहा कि हे उमे! मैंने तुम्हें वही सब कथा सुनायी, जो भुशुंडिजी ने गरुड़जी को सुनायी थी— 

“उमा कहिउँ सब कथा सुहाई । जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई ॥” (उत्तरकांड ) 

     इसका रहस्य यह है कि बुद्धिमान् लोग अपनी बात दूसरों के वाक्यों का आधार लेकर कहते हैं, इससे उनके मन में अहंकार उत्पन्न नहीं होने पाता ।


मानस मर्मज्ञ की दृष्टि में रामायण कथा

     मानस मर्मज्ञ श्री अश्विनी कुमार अवस्थीजी अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं-  
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 “ मानस में चार कल्पों की कथाओं का वर्णन किया गया है। इनमें तीन कथाओं का संक्षिप्त वर्णन करते हुए एक कल्प की कथा का "विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रत्येक कल्प का रावण अलग-अलग है। एक कल्प में भगवान् के द्वारपाल जय-विजय को सनकादिक ऋषियों के शाप के कारण रावण-कुंभकर्ण के रूप में जन्म लेना पड़ता है। एक कल्प की कथा के अनुसार, भगवान् शंकर के दो गणों को देवर्षि नारदजी शाप  देते हैं, जिसके कारण उन्हें राक्षसों के रूप में अवतरित होना पड़ता है। एक कल्प की कथा के अनुसार, जालंधर अपना बदला लेने के लिए रावण बनता है। चौथी कथा प्रतापभानु और अरिमर्दन की है, जो विप्र-शाप के कारण रावण - कुंभकर्ण के रूप में जन्म लेते हैं। 'मानस' के अनुसार श्रीराम जिस रावण का वध करते हैं, उसका संबंध प्रतापभानु-प्रसंग से है । "


 "रामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग" के इस प्रस्तावना का शेष भाग पढ़ने के लिए  👉 यहां दबाएं। 


     प्रभु प्रेमियों ! इस पोस्ट के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  "रामायण किसने लिखा? रामायण किसने लिखा और कब लिखा? रामायण किस युग में हुआ? रामायण किस भाषा में है? रामायण किस भाषा में रचित है? रामायण किसकी रचना है? रामायण किस किस ने लिखी? रामायण किसके द्वारा लिखी गई? रामायण किसने बनाई थी? रामायण किसे कहते हैं? रामायण किस किसने लिखी है?  रामायण किस सन में बनी?। इत्यादि बातें। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।



LS27  रामचरितमानस ज्ञान-प्रसंग


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LS29 क1 हमारे जीवन में रामायण का महत्व || What is the importance of Ramayana in our life? LS29 क1   हमारे जीवन में रामायण का महत्व  ||  What is the importance of Ramayana in our life? Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/08/2023 Rating: 5

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