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MS02-02 रामचरितमानस में दृष्टियोग की चर्चा ।। ज्ञान प्रसंग ।। चरणामृत क्या है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं

रामचरितमानस-सार-सटीक / 02

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "रामचरितमानस सार सटीक" के बंदना प्रसंग में गुरु वंदना करते हुए गुरु की बहुत महिमा का बखान किया गया है और  बताया गया है कि वास्तविक चरण रज क्या है? जिसके लगाने से अनेक प्रकार के फायदे होते हैं। 

सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ज्ञान चर्चा करते हुए-


ं।परिव्राजक महर्षि मेंही
परिव्राजक महर्षि मेंही

रामचरितमााानस ज्ञान प्रसंग मेंं गुरु  बंदना

     प्रभु प्रेमियों  ! रामचरितमााानस ज्ञान प्रसंग के इस भाग में बताया गया है कि स्वामी श्री अरगड़ानंद जी गुरु वंदना, गुरु वंदना हिंदी, गुरु वंदना गीत, गुरु वंदना इन हिंदी, गुरु वंदना भजन, गुरु वंदना श्लोक, दृष्टियोग कैसे करें, दृष्टियोग क्या  है, दृष्टि योग की पूरी जानकारी इत्यादि बातों के बारे में साधारण लोग साधारण तरह से जानते हैं किंतु  सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज इसके बारे में बताते हैं -


३. गुरु वन्दना । 


    ∆    गुरु - पद तथा गुरु - पद - रज की वन्दना , गुरु - पद - रज की महिमा , गुरु - पद - नख से निकलनेवाली मणियों की ज्योति की वंदना एवं उनके ध्यान की महिमा , अंतर्ज्योति की महिमा , अंतर्ज्योति के प्रत्यक्ष होने पर दिव्य दृष्टि तथा विवेक - दृष्टि का खुलना एवं उसके अन्य लाभ , गुरुपदरज ' नयनामृत ' अंजन के समान और नयन में उसके लगाने का फल : 

सोरठा - बंदउँ गुरु पद कंज , कृपासिन्धु नररूप हरि । महामोह तमपुंज , जासु बचन रबिकर निकर ॥ 

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥ अमिअ मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥ सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥ श्री गुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ॥ दलन मोह तम सो सुप्रकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥ उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूझहिं रामचरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥ 

दोहा- जथा सु अंजन आंजि दृग , साधक सिद्ध सुजान । कौतुक देखहिं सैल बन , भूतल भूरि निधान । गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन । नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन । तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन । बरनउँ रामचरित भव मोचन

     भावार्थ- मैं उन गुरुदेव के चरण - कमलों को प्रणाम करता हूँ , जो कृपा के समुद्र तथा मनुष्य के रूप में सब सांसारिक दुःखों के हरनेवाले परमात्मा ही हैं तथा जिनका वचन भारी अज्ञानतारूपी घने अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य की किरणों के समूह के समान है । सोरठा ॥

     ( कोई कहते हैं कि गो ० तुलसीदासजी के गुरु का नाम ' रामदास ' था और कोई कहते हैं कि ' नरहरि ' या ' नरहर्यानन्द ' था । ) 

    - मैं गुरुदेव के चरण - कमलों के उन धूलिरूपी परागों को प्रणाम करता हूँ , जो अच्छी रुचिरूपी सुगंध और प्रेमरूपी अत्यन्त मीठे रस ( मकरन्द , पुष्प - रस ) से युक्त हैं । ( सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज ने लिखा है कि चरण - रज तीन प्रकार की होती है - मिट्टी - रूप , आभा - रूप और ब्रह्म - ज्योतिरूप । शरीर से निकलनेवाली जो ज्योति शरीर को चारो ओर से घेरे रहती है , वही आभा है । यह आभा तब झलकती है , जब साधक इष्ट का मानस ध्यान * पूर्ण कर लेता है । ) 

     - गुरुदेव की चरण धूलि संजीवनी बूटी के सुन्दर चूर्ण के समान है , जो संसार के सभी रोगों के समूह ( सभी मानस रोगों ) को दूर कर देनेवाली है ।

      - गुरुदेव की चरण धूलि पुण्यात्मा भगवान् शिवजी की देह पर लगी हुई पवित्र चिता भस्म के समान है , जो सुन्दर ( सुगंधित ) और कल्याण तथा आनंद प्रदान करनेवाली है ।

     - गुरुदेव की चरण - धूलि भक्त के सुंदर मनरूपी आईने की मैल को हटानेवाली होती है , जिसका तिलक करने से वह सभी सद्गुणों को वश कर देती है ।

     - मैं श्रीगुरुदेव के चरण - नख से निकलनेवाली मणि - समूह की ज्योतियों को प्रणाम करता हूँ , जिनका ध्यान करने से अंतर में दिव्य दृष्टि खुल जाती है । ( मानस ध्यान में गुरु का जो मनोमय स्थूल मुखमंडल दिखाई पड़ता है , वही गुरु का पद - नख है । )

     - दिव्य दृष्टि के खुल जाने पर दरसनेवाला वह श्रेष्ठ प्रकाश अज्ञानता रूपी अंधकार का नाश कर डालता है और जिसके हृदय में वह प्रकाश प्रत्यक्ष हो जाता है , वह बड़ा भाग्यवान् हो जाता है ।

 - गुरुदेव के चरण नख से निकलनेवाली मणियों की ज्योति का ध्यान करने से हृदय की दोनों निर्मल आँखें ( दिव्य चक्षु और विवेक - चक्षु ) खुल जाती हैं ; संसाररूपी रात्रि के सब दोष - दुःख मिट जाते हैं । '

      - और गुप्त प्रकट रामचरितरूपी मणि - माणिक्य , चाहे वे जहाँ और जिस किसी भी खानि के क्यों न हों , दिखाई पड़ने लग जाते हैं । 

    -जैसे आँखों में सिद्धांजन लगा लेने पर साधक सिद्ध ( सफलमनोरथ ) -तथा सुजान ( अच्छे जानकार ) हो जाते हैं और वे पहाड़ों , जंगलों तथा धरती के अंदर की बहुत - सी खानों को सहज ही देखने लग जाते हैं । 

दोहा ॥ - गुरुदेव की चरण धूलि कोमल और सुन्दर ' नयनामृत ' अंजन - जैसी जो दृष्टि के सब दोषों को दूर करनेवाली है ।

      -मैं उसी चरण धूलिरूपी अंजन से अपने विवेकरूपी नेत्र को पवित्र करके जन्म - मरण के चक्र से छुड़ानेवाले श्रीरामचरित का वर्णन करता हूँ । श्रीरामचरितमानस ज्ञान - प्रसंग अर्थ सहित संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज


आइए निम्नांकित चित्र में गुरु वंदना के संबंधित प्रसंग पढ़ें-

लेख चित्र एक
लेख चित्र एक
लेख चित्र दो
लेख चित्र दो

लेख चित्र समाप्त
लेख चित्र समाप्त


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MS02-02 रामचरितमानस में दृष्टियोग की चर्चा ।। ज्ञान प्रसंग ।। चरणामृत क्या है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं MS02-02  रामचरितमानस में दृष्टियोग की चर्चा  ।। ज्ञान प्रसंग ।।  चरणामृत क्या है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/26/2018 Rating: 5

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