MS02-02 रामचरितमानस में दृष्टियोग की चर्चा ।। ज्ञान प्रसंग ।। चरणामृत क्या है ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
रामचरितमानस-सार-सटीक / 02
३. गुरु वन्दना ।
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥ अमिअ मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥ सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥ श्री गुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ॥ दलन मोह तम सो सुप्रकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥ उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूझहिं रामचरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥
( कोई कहते हैं कि गो ० तुलसीदासजी के गुरु का नाम ' रामदास ' था और कोई कहते हैं कि ' नरहरि ' या ' नरहर्यानन्द ' था । )
- मैं गुरुदेव के चरण - कमलों के उन धूलिरूपी परागों को प्रणाम करता हूँ , जो अच्छी रुचिरूपी सुगंध और प्रेमरूपी अत्यन्त मीठे रस ( मकरन्द , पुष्प - रस ) से युक्त हैं । ( सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज ने लिखा है कि चरण - रज तीन प्रकार की होती है - मिट्टी - रूप , आभा - रूप और ब्रह्म - ज्योतिरूप । शरीर से निकलनेवाली जो ज्योति शरीर को चारो ओर से घेरे रहती है , वही आभा है । यह आभा तब झलकती है , जब साधक इष्ट का मानस ध्यान * पूर्ण कर लेता है । )
- गुरुदेव की चरण धूलि संजीवनी बूटी के सुन्दर चूर्ण के समान है , जो संसार के सभी रोगों के समूह ( सभी मानस रोगों ) को दूर कर देनेवाली है ।
- गुरुदेव की चरण धूलि पुण्यात्मा भगवान् शिवजी की देह पर लगी हुई पवित्र चिता भस्म के समान है , जो सुन्दर ( सुगंधित ) और कल्याण तथा आनंद प्रदान करनेवाली है ।
- गुरुदेव की चरण - धूलि भक्त के सुंदर मनरूपी आईने की मैल को हटानेवाली होती है , जिसका तिलक करने से वह सभी सद्गुणों को वश कर देती है ।
- मैं श्रीगुरुदेव के चरण - नख से निकलनेवाली मणि - समूह की ज्योतियों को प्रणाम करता हूँ , जिनका ध्यान करने से अंतर में दिव्य दृष्टि खुल जाती है । ( मानस ध्यान में गुरु का जो मनोमय स्थूल मुखमंडल दिखाई पड़ता है , वही गुरु का पद - नख है । )
- दिव्य दृष्टि के खुल जाने पर दरसनेवाला वह श्रेष्ठ प्रकाश अज्ञानता रूपी अंधकार का नाश कर डालता है और जिसके हृदय में वह प्रकाश प्रत्यक्ष हो जाता है , वह बड़ा भाग्यवान् हो जाता है ।
- गुरुदेव के चरण नख से निकलनेवाली मणियों की ज्योति का ध्यान करने से हृदय की दोनों निर्मल आँखें ( दिव्य चक्षु और विवेक - चक्षु ) खुल जाती हैं ; संसाररूपी रात्रि के सब दोष - दुःख मिट जाते हैं । '
- और गुप्त प्रकट रामचरितरूपी मणि - माणिक्य , चाहे वे जहाँ और जिस किसी भी खानि के क्यों न हों , दिखाई पड़ने लग जाते हैं ।
-जैसे आँखों में सिद्धांजन लगा लेने पर साधक सिद्ध ( सफलमनोरथ ) -तथा सुजान ( अच्छे जानकार ) हो जाते हैं और वे पहाड़ों , जंगलों तथा धरती के अंदर की बहुत - सी खानों को सहज ही देखने लग जाते हैं ।
दोहा ॥ - गुरुदेव की चरण धूलि कोमल और सुन्दर ' नयनामृत ' अंजन - जैसी जो दृष्टि के सब दोषों को दूर करनेवाली है ।
-मैं उसी चरण धूलिरूपी अंजन से अपने विवेकरूपी नेत्र को पवित्र करके जन्म - मरण के चक्र से छुड़ानेवाले श्रीरामचरित का वर्णन करता हूँ । श्रीरामचरितमानस ज्ञान - प्रसंग अर्थ सहित संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
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| लेख चित्र दो |
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| लेख चित्र समाप्त |
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/26/2018
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